आध ु िनक बनाम पाæचा×य वह आध ु िनक ही है जो हमेशा प ु राना हो जाता है । -ऑèकर वाइãड 'आध ु िनक' और 'पाæचा×य' के बीच भेद जानने की असमथता ही हमारे द ु ख का कारण है। सभी ब ु िजीवी तथा सßय मन ु çयɉ की आलोचना×मक सोच के वल पिæचम की प ू ंजी नहीं है बिãक सवåयापक है तब हमɅ उस पर इतना दुखी नहीं होना पड़ेगा। हमɅ अपनी शित को अÍछे कामɉ के िलए बचाकर रखना चािहए न िक उसे èवदेशी, िहंदु×व, भारतीय भाषा पर िववाद, अमेिरका पर िटÜपणी, िवदेशी पूंजी िनवेशकɉ पर कटा आिद बेकार के मुƧɉ पर बरबाद करना चािहए। उÛनीसवीं शताÞदी मɅ राजा राममोहन राय ɮवारा श ु Ǿ आध ु िनकीकरण तथा पिæचमी सßयता के बीच िववाद आज भारतीय जनता पाट के उ×थान से और चंड हो गया है। भावɉ की उलझनɅ हमɅ िवदेशी åयापार तथा प ू ं जी िनवेश के बीच परèपर िवरोधी धारणाओं मɅ बांध देती हɇ। ये हमɅ वैæवीक ृ त द ु िनया मɅ स ु रा की गुहार करने के िलए ेिरत करती हɇ। इससे हमारी आिथक सुधारɉ के ित अनुिया धीमी पड़ जाती है तथा एक ितèपधा×मक अथåयवèथा बनाने की समता कम हो जाती है। इस मुƧे के मूल मɅ भारतीय परंपरा, संèक ृ ित तथा रहन-सहन के खो जाने का एक डर-सा है। मगर यह हर असर पिæचम के सम हीनता का लण है , खासतौर से प ु रानी पीढ़ी के साथ शासन कर रही है। आæचयजनक Ǿप से उÛनीसवीं शताÞदी के हमारे कई ब ु िजीिवयɉ ने इस भेद को अÍछी तरह समझा और हमारी परंपराओं का आलोचना×मक अÚययन कर, इसे इèतेमाल कर, उन सभी संगठनɉ तथा रीितयɉ को ख×म कर िदया िजÛहɉने इतनी शतािÞदयɉ से