अपोजी, दिवस 4 : 31 माच, 2014 सादकीय सादकीय मनुय की जज दगी का कारवा इरधनुष के उस पटल के समान है, जजस पर सभी कार के र ग जवमान ह| कभी कुछ र ग स घषष के ऱप म हमारे सम होते ह, तो कभी कुछ र ग आन द-उलास के ऱप म, तो कभी कुछ र ग एक चुनौती के ऱप म हमारे सम होते ह| जज दगी के यही कुछ र ग कभी एक साथ जमलकर हमारे सम यौहार के ऱप म हमारी जज दगी म एक नया र ग घोलने आ जाते ह| “सा ि स लेना भी कैसी आदत है, जिए िाना भी कैसी ररवायत है| पााव बेजहसाब ह चलते िाते ह, इक सफर है िो बहता रहता है| जकतने बरस से, जकतने सजदय से जिए िाते ह, जिए िाते ह| ” अपोजी अथाषत पराकासा, इस तकनीकी यौहार पर जवजभन जतयोजगताओ म भाग लेने वाले जतभाजगय के चेहर के नूर ने इस यौहार की महकती जिजा म कुछ इसी कार के र ग घोले जक सभी की आँख म अपने पररम के िल के जलए एक अलग ही कार की लालसा जदखी, जो आने वाले समय के जलए जनजित ऱप से एक अछा स केत है| शायद यही तो है इस यौहार पर उन अनजगनत उमीद की पराकासा, जजसने हम सभी को इन पा च जदन म बेचैन कर रखा है| एक तकनीकी यौहार होने के नाते इस अपोजी नामक महापवष ने जनजित ही सभी कार के आयाम को पशष जकया तथा अपनी समत जजमेदाररय का अछे तरीके से जनवाषह जकया| इस पवष की इस कदर सिलता के जलए जनजित ऱप से आयोजन सजमजत के समत सदय का अथक यास सराहनीय है| परतु जब बात आती है एक सामाय दशषक के ऱप म जतभाजगता और कतषय का जनवाषह करने की जजमेदारी की, तो जनजित ही इस योहार के कुछ ण ने जनराशा दान की| एक दशषक होने के नाते शायद हम उन तमाम रतजग और यास को जनराश कर रहे थे जजहने इस योहार के आयोजन म अपना अमूय योगदान जदया है| इतने ग भीर अंदर है :- मिथाली मधमि अमनल गुा की पुनक क ना फु ल ॉटल ां ी सचुरी पेपर ेज़ट्स ‘गैले ररया’ फोटोाफी सौजय:- राह ु ऱ जैन