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1 टभाटय के भ ख योग औय उनकी योकथाभ भीन ता 1 औय नय बायत 2 1 सहामक वैऻाननक, सजी ववऻान वबाग, 2 धान वैऻाननक, फीज ववऻान एवं ौमोगगकी ववबाग, डॉ. मशवंत ससंह ऩयभाय औमाननकी एवं वाननकी ववववमारम, नौणी, सोरन टभाटय विि बय सजी पसर एक पसर है जसे सराद, , चटनी आदके खामा जाता है ऩके पर भ एकॉफिक एससड औय अम खननज य भाा भ ऩामे जाते ह दहभाचर देश भ टभाटय नकदी पसर है जसे गयभी तथा िाि कत उगामा जाता है । इस पसर को कई काय के पप , जीिाण औय विाण सॊसभत कयते ह जजससे इनके उऩादन भ फह त कभी हो जाती है विसबन योग का विियण नननसरखखत है : ) पप द जननत योग 1. कभय तोड़ योग मह टभाटय तथा ऩौधशारा भ तैमाय होने िारी अम सजजम जैसेकसशभरा सभचि , फगन, माज, रगोबी, फॊदगोबी आद का एक भ म योग है । योगकायक- वऩथथमभ, पाइटोथोया, जेरयमभ की जानतमाॉ तथा याइजोटोननमा सोरेनाई रण: इस योग के रण ऩौध ऩय दो ऩ भ ददखाई देते ह । ऩहरी अिथा भ फीज अॊक य ब सभ की सतह से नकरने से ऩहरे ही योग त हो जाते ह तथा भय जाते ह जससे ऩौधशारा की ऩौध सॊमा भ फह त कभी आ जाती है । सयी अिथा भ इस योग का सॊभण ऩौधे के तन ऩय होता है तथा तने का विगरन होने ऩय ऩौध ब सभ की सतह ऩय र ढ़क जाती है तथा भय जाती है ।
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Jul 27, 2020

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dariahiddleston
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    टभाटय के प्रभखु योग औय उनकी योकथाभ

    भीनू गुप्ता1 औय नयेंद्र बायत2

    1सहामक वैऻाननक, सब्जी ववऻान ववबाग,

    2प्रधान वैऻाननक, फीज ववऻान एवं प्रौद्मोगगकी ववबाग,

    डॉ. मशवंत ससहं ऩयभाय औद्माननकी एवं वाननकी ववश्वववद्मारम, नौणी,

    सोरन

    टभाटय विश्ि बय भें सब्जी पसरों भें एक प्रभुख पसर है जजसे सराद, सूऩ, चटनी आदद के रूऩ भें खामा जाता है । ऩके हुए परों भें एस्कॉर्फिक एससड औय अन्म खननज प्रचयु भात्रा भें ऩामे जाते हैं । दहभाचर प्रदेश भें टभाटय प्रभुख नकदी पसर है जजसे गयभी तथा िर्ाि कत ुभें उगामा जाता है । इस पसर को कई

    प्रकाय के पपूॊ द, जीिाणु औय विर्ाणु सॊक्रसभत कयते हैं जजससे इनके उत्ऩादन भें फहुत कभी हो जाती है । विसबन्न योगों का विियण ननम्नसरखखत है:

    अ) पपंूद जननत योग 1. कभय तोड़ योग

    मह टभाटय तथा ऩौधशारा भें तैमाय होने िारी अन्म सजब्जमों जैसेकक सशभरा सभचि, फैंगन, प्माज, पूरगोबी, फॊदगोबी आदद का एक भुख्म योग है ।

    योगकायक- वऩथथमभ, पाइटोफ्थोया, फ्मूजेरयमभ की प्रजानतमाॉ तथा याइजोक्टोननमा सोरेनाई

    रऺण: इस योग के रऺण ऩौधों ऩय दो रूऩों भें ददखाई देते हैं । ऩहरी अिस्था भें फीज अॊकुय बूसभ की सतह से ननकरने से ऩहरे ही योग ग्रस्त हो जाते हैं तथा भय जाते हैं जजससे ऩौधशारा

    की ऩौध सॊख्मा भें फहुत कभी आ जाती है ।

    दसूयी अिस्था भें इस योग का सॊक्रभण ऩौधे के तनों ऩय होता है तथा तने का विगरन होने ऩय ऩौध बूसभ की सतह ऩय रुढ़क जाती है तथा भय जाती है ।

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    योगचक्र तथा अनुकूर वातावयण - इस योग के योगजनक योगी फीज मा बूसभ जननत होते हैं । मह योग उन ऩौधशाराओॊ भें गॊबीय रूऩ धायण कय रेता है जहाॉ बूसभ भें हिा का आिागभन तथा ऩानी का ननकास ठीक से नहीॊ होता है ।

    योकथाभ

    i. ऩौध को जारीनुभा घय भें ही उगामें ।

    ii. ऩौधशारा का स्थान हय िर्ि फदर दें ।

    iii. ऩौधशारा की सभट्टी का उऩचाय पाभेसरन (एक बाग पाभेसरन तथा सात बाग ऩानी) मा सौय उजाि से कयें ।

    iv. फीजाई से ऩूिि फीज को कैप्टान (3 ग्राभ/कक. ग्रा. फीज) से उऩचारयत कयें।

    v. जजन ऺेत्रों भें जीिाणु योगों की सभस्मा है िहाॊ फीज का उऩचाय ऩहरे स्रेप्टोसाइक्रीन (1 ग्रा. प्रनत 10 री. ऩानी) के घोर भें 30 सभनट तक डुफो कय कयें औय छामा भें सुखाएॊ। सूखने के फाद कैप्टान से उऩचाय कयें।

    vi. जफ ऩौध 7 से 10 ददन की हो जाए तो उसकी भैन्कोजेफ (25 ग्रा/10 री ऩानी) + काफेंडाजजभ (10 ग्रा. /10 री ऩानी) से ससॊचाई कयें ।

    vii. ऩानी उतना ही दें जजतना जरूयी है । अथधक ऩानी योग को ऩनऩने भें सहामता कयता है ।

    2. फकाई पर सड़न योग

    योगकायक- पाइटोफ्थोया ननकोसशमानी उऩप्रजानत ऩैयाससदटका

    रऺण- इस योग के रऺण केिर हये परों ऩय ही ददखाई देते हैं । प्रबावित परों ऩय हल्के तथा गहये बूये यॊग के गोराकाय धब्फे चक्र के रूऩ भें ददखाई देते हैं जो दहयण की आॉख की तयह रगते हैं । योग ग्रस्त पर आभ तौय से जभीन ऩय थगय जाते हैं तथा सड़ जाते हैं ।

    योगचक्र तथा अनुकूर वातावयण - मह पपूॊ द बूसभ भें 1 से 2 िर्ि तक जीवित यहती है । नभी तथा फारयश िारा

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    भौसभ ि ्22.5 से 25 0 सेजल्समस ताऩभान इस योग के सरए उऩमुक्त हैं । योगाणु फारयश की फौछायों के साथ परों ऩय थचऩक जाते हैं तथा नभी िारे िाताियण भें ग्रस्त पर जभीन ऩय थगय जाते हैं ।

    योकथाभ

    I. ऩौधों को सहाया दे कय सीधा खड़ा यखें ।

    II. बूसभ की सतह से 15 -20 सै. भी.तक की ऩविमों को तोड़ दें ।

    III. िर्ाि कार के आयम्ब होते ही उऩमुक्त ऩानी ननकास के सरए नासरमाॊ फनाएॊ ।

    IV. सभम-सभम ऩय योग ग्रस्त परों को इकट्ठा कय के गड्ढे भें दफा दें ।

    V. िर्ाि ऋतु के आयम्ब होने से ऩहरे खेत की सतह ऩय चीर मा घास की ऩविमों का र्फछौना र्फछाएॊ ।

    VI. भानसून की िर्ाि के आयम्ब से ही पसर ऩय भेटारैजक्सर + भैन्कोजेफ मा साइभोक्जानीर + भैन्कोजेफ (25 ग्रा./10 री. ऩानी) का नछड़काि कयें तथा इसके उऩयाॊत भैन्कोजेफ (25 ग्रा/10 री ऩानी) मा कॉऩय आक्सीक्रोयाइड (30 ग्रा./10 री. ऩानी) मा फोडो सभश्रण (800 ग्राभ नीरा थोथा + 800 ग्राभ चनूा + 100 रीटय ऩानी) का नछड़काि 7 से 10 ददन के अन्तयार ऩय कयें ।

    3. ऩछेता झुरसा योग

    योगकायक-पाइटोफ्थोया इन्पेसटेन्स

    रऺण – इस योग के रऺण अथधकतय अगस्त के अॊनतभ ि ्ससतम्फय भाह के ऩहरे सप्ताह भें ऩिों ऩय गहये बूये यॊग के धब्फों के रूऩ भें ददखाई देते हैं जो फाद भें बूये कारे धब्फों भें ऩरयिनतित हो जाते हैं । नभ ि ्ठण्ड ेभौसभ भें मे धब्फे पैरने रगते हैं तथा 3-4 ददनों कें ऩौधे ऩूयी तयह से झुरस जाते हैं । परों ऩय बी गहये बूये यॊग के धब्फे ददखाई देते हैं । चयैी टभाटय बी इस योग से ग्रस्त होता है ।

    योगचक्र तथा अनुकूर वातावयण- मह पपूॊ द ज्मादातय आरू पसर से टभाटय ऩय आक्रभण कयती है ।ठॊडा ि ्नभीदाय िाताियण इस योग की िदृ्थधके सरए उऩमुक्त होता है ।

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    योकथाभ

    i. पसर चक्र अऩनाएॊ, खेत भें उऩमुक्त ऩानी ननकास का प्रफॊध कयें तथा पसर को खयऩतिाय से भुक्त यखें ।

    ii. योग ग्रस्त परों तथा ऩविमों को इकट्ठा कयके नष्ट कय दें।

    iii. ससतम्फय भाह के ऩहरे सप्ताह भें पसर ऩय भैन्कोजेफ (25 ग्रा./10 री. ऩानी) का नछड़काि कयें तथा इसके उऩयाॊत भेटारैजक्सर + भैन्कोजेफ (25 ग्रा./10 री. ऩानी) मा साइभोक्जानीर + भैन्कोजेफ (25 ग्रा./10 री. ऩानी) का 7 से 10 ददन के अन्तयार ऩय नछड़काि कयें ।

    ऩिों के ऊऩयी बाग ऩय गहये बूये यॊग के धब्फ ेऩिों के ननचरी सतह ऩय फने धब्फे

    योग ग्रस्त पर

    झुरसा ऩौधा

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    4. आल्टयनेरयमा धब्फा योग

    योगकायक-आल्टयनेरयमा सोरेनाई, आ. आल्टयनाटा, आ. आल्टयनाटा उऩ प्रजानत राइकोऩयसससी

    रऺण-

    आल्टयनेरयमा सोरेनाई- ऩिों ऩय गहये बूये यॊग के फनते हैं जो रक्ष्म ऩटर की तयह ददखाई देते हैं । नभ िाताियण भें मे धब्फे आऩस भें सभर जाते हैं औय गहये बूये यॊग के हो जाते हैं । ऩिे सभम से ऩहरे ऩीरे ऩड़ जाते हैं तथा थगय जाते हैं । इस योग के रऺण परों ऩय बी धसे हुए धब्फों के रूऩ भें ददखाई देते हैं ।

    आ. आल्टयनाटा- धब्फे आकाय भें छोटे, गोराकाय, र्फखये हुए तथा गहये बूये यॊग के होते हैं । ऩुयाने धब्फे चक्रनुभा ऩीरे ऺेत्र से नघये हुए होते हैं ।

    आ. आल्टयनाटा उऩ प्रजानत राइकोऩयसससी- हल्के बूये यॊग के कोणीम धब्फे फनते हैं जो आकाय भें छोटे होते हैं । धब्फे ककसी चक्रनुभा ऩीरे ऺेत्र से नघये नहीॊ होते । इस योग के रऺण तने ऩय बी देखे जा सकते हैं। गोराकाय चक्रनुभा धब्फे

    छोटे, गोराकाय, गहये बूये यॊग के धब्फे

    तने ऩय धब्फे

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    योगचक्र तथा अनुकूर वातावयण -आल्टयनेरयमा पपूॊ द की प्रजानतमाॉ योगग्रस्त ऩौधों के अिशरे्ों ि ्सॊक्रसभत फीज भें एक िर्ि से दसूये िर्ि तक जीवित यहती हैं । नभ िाताियण तथा 25 से 300 सेजल्समस ताऩभान इस योग के सरए उिभ है ।

    योकथाभ-

    i. योगग्रस्त ऩौधों के अिशरे्ों को इकट्ठा कय के नष्ट कय दें ।

    ii. पसर चक्र अऩनाएॊ तथा खेत को खयऩतिाय भुक्त यखें ।

    iii. स्िस्थ परों से ही फीज ननकारें ।

    iv. फीज का कैप्टान (3 ग्राभ/कक. ग्रा. फीज) से उऩचाय कयें ।

    v. बूसभ से 15 से 20 सै. भी. की ऊॊ चाई तक के ऩिों को तोड़ दें

    ताकक हिा का प्रिाह ठीक से हो सके।

    vi. पसर ऩय भैन्कोजेफ (25 ग्रा/10 री ऩानी) मा कॉऩय आक्सीक्रोयाइड (30 ग्रा./10 री. ऩानी) का नछड़काि कयें।

    5. सैप्टोरयमा धब्फा योग

    योग कायक- सैप्टोरयमा राइकोऩससिकी

    रऺण- ऩिों ऩय छोटे, ऩानीनुभा, गोराकाय धब्फे फनते हैं जजनके ककनाये सऩष्टतमा बूये तथा कें द्र धुॊधरे होते हैं । जफ ऩिों ऩय मह योग गॊबीय रूऩ धायण कय रेता हैं तफ इस योग के रऺण परों ऩय बी ददखाई देते हैं ।

    योगचक्र तथा अनुकूर वातावयण - मह पपूॊ द सॊक्रसभत ऩौधों के अिशरे्ों तथा योगी फीज भें जीवित यहती है । 20 से 250 सेजल्समस ताऩभान तथा 75 से 92

    ऩिों ऩय रऺण

    परों ऩय रऺण

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    प्रनतशत आद्रिता इस योग की िदृ्थध के सरए उऩमुक्त है ।

    योकथाभ

    i. योगग्रस्त ऩौधों के अिशरे्ों को इकट्ठा कय के नष्ट कय दें ।

    ii. पसर चक्र अऩनाएॊ, फीज स्िस्थ परों से ही रें तथा फीज का उऩचाय कैप्टान (3 ग्राभ /कक. ग्रा. फीज) से कयें ।

    iii. पसर ऩय काफेंडाजजभ (10 ग्रा. /10 री ऩानी) मा भैन्कोजेफ (25 ग्रा/10 री ऩानी) मा कम्ऩेननमन/ साफ़ (25 ग्रा/10 री ऩानी) का नछड़काि 10 से 14 ददन के अन्तयार ऩय कयें।

    6. पाईरोस्टटक्टा धब्फा योग

    योग कायक-पाईरोजस्टक्टा राइकोऩससिकी

    रऺण- इस योग से ऩिों ऩय छोटे- छोटे धब्फे ऩनऩते हैं जो फाद भें आकाय भें फड़ ेहो जाते हैं। उनका भध्म बाग

    सभम से ऩहरे ही नीच ेथगय जाता है तथा ऩिों भें सुयाख़ फन जाता है । ऩिों ऩय इस योग की तीव्रता अथधक होने ऩय इस योग के रऺण परों ऩय बी ददखाई देते हैं ।

    योगचक्र तथा अनुकूर वातावयण - मह पपूॊ द सॊक्रसभत ऩौधों के अिशरे्ों भें जीवित यहती हैं । 20 से 25 0

    सेजल्समस ताऩभान तथा >80 प्रनतशत आद्रिता इस योग के सरए उऩमुक्त है ।

    ऩिों ऩय शुरूआती रऺण

    ऩिों ऩय रऺण

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    योकथाभ

    i. योगग्रस्त ऩौधों के अिशरे्ों को इकट्ठा कय के नष्ट कय दें ।

    ii. पसर चक्र अऩनाएॊ। iii. स्िस्थ फीज का चमन कयें

    तथा फीज का उऩचाय कैप्टान (3 ग्राभ/कक. ग्रा. फीज) से कयें ।

    iv. पसर ऩय काफेंडाजजभ (10 ग्रा./10 री. ऩानी) मा भैन्कोजेफ (25 ग्रा./10 री. ऩानी) मा कम्ऩेननमन/ साफ़ (25 ग्रा./10 री. ऩानी) मा डाइपेन्कोनाजोर (5 सभ. री./10 री. ऩानी) का नछड़काि 10 से 14 ददन के अन्तयार ऩय कयें।

    7. ऩाऊडयी सभल्डमु योग

    योग कायक- रैविल्मूरा टौरयका, एयीसाइपी ससकोयेससएयभ

    रऺण-

    रैववल्मूरा टौरयका- इस पपूॊ द के रऺण ऩिों की ननचरी सतह ऩय सपेद चणूी धब्फे के रूऩ भें ददखाई देते हैं जजसके अनुरूऩ ऩिों की ऊऩयी सतह ऩीरी ऩड़

    जाती है । प्रबावित ऩिे सभम से ऩहरे ही झड़ जाते हैं ।

    एयीसाइपी ससकोयेससएयभ- इस पपूॊ द के रऺण ऩिों की दोनों सतह ऩय सपेद चणूी धब्फों के रूऩ भें ददखाई देते हैं जो शुरू भें अरग-अरग होते हैं ।ऩयन्तु फाद भें अथधक सॊक्रभण के कायण आकाय भें फढ़ कय आऩस भें सभर जाते हैं ।प्रबावित ऩिे ऩहरे ऩीरे तथा फाद भें बूये हो कय भय जाते हैं ।

    तन ेऩय सपेद चणूी ऩाउडय

    ऩिों ऩय सपेद चणूी ऩाउडय

  • 9

    योगचक्र तथा अनुकूर वातावयण - मह पपूॊ द कोननडडमभ अिस्था भें एक पसर से दसूयी पसर तथा एक ऺेत्र से दसूये ऺेत्र भें जीवित यहती है ।शुष्क ताऩभान इस योग के आक्रभण भें सहामक है ।

    योकथाभ

    i. योग के आयम्ब होते ही ऩौधों ऩय हैक्साकोनाजोर (5 सभ.री./10 री. ऩानी) का नछड़काि कयें, उसके फाद िेटेफर सल्पय (20 ग्रा./10 री. ऩानी) मा डीनोकैऩ (6 सभ. री./10 री. ऩानी) मा काफेंडाजजभ (10 ग्रा. /10 री. ऩानी) मा डाइपेन्कोनाजोर (5 सभ.री./10 री. ऩानी) का

    10 से 14 ददन के अन्तयार ऩय नछड़काि कयें।

    ii. एक पपूॊ दनाशक दिाई का प्रमोग फाय–फाय न कयें।

    फ) जीवाणु जननत योग

    8. जीवाणु धब्फा योग

    योगकायक- जैन्थोभोनास िेसीकेटोरयमा

    रऺण– इस योग के रऺण ऩौधों के ऩिों तथा तनों ऩय छोटे-छोटे धब्फों के रूऩ भें ददखाई देते हैं जो फाद भें गहये बूये यॊग के हो जाते हैं । धब्फे आऩस सभर जाते हैं तथा इनका आकाय फड़ा हो जाता है। फाद भें ऩिे ऩीरे ऩड़ जाते हैं । परों ऩय बूये कारे यॊग के उबये हुए धब्फे फनते हैं जजनके ककनाये अननमसभत होते हैं । फाद भें मे धब्फे धॊस जाते हैं ।

    ऩिों ऩय छोटे-छोटे धब्फे

    परों ऩय धब्फे

  • 10

    योगचक्र तथा अनुकूर वातावयण - मह जीिाणु फीज जननत है तथा ऩौधों के अिशरे्ों भें बी जीवित यहता है । सॊक्रसभत फीज से इस योग का आक्रभण ऩौधशारा भें ही हो जाता है । योगी ऩौध की खेत भें योऩाई कयने से योग खेत भें बी फ़ैर जाता है । ताऩभान (20-25 0

    सेजल्समस) तथा अथधक आद्रिता (>90 %) इस योग के सरए अनुकूर हैं।

    योकथाभ

    i. स्िस्थ फीज का चमन कयें। ii. पसर चक्र अऩनाएॊ तथा

    योगग्रस्त ऩौधों के अिशरे्ों को इकट्ठा कय के नष्ट कय दें ।

    iii. फीज को स्रेप्टोसाइक्रीन (1 ग्रा./ 10 री. ऩानी) भें 30 सभनट तक उऩचारयत कयें।

    iv. पसर ऩय योग के रऺण देखते

    v. ही स्रेप्टोसाइक्रीन (1 ग्रा/ 10 री ऩानी) का नछड़काि कयें । इसके फाद 7 से 10 ददन के अन्तयार ऩय कॉऩय आक्सीक्रोयाइड (30 ग्रा./10 री. ऩानी) का नछड़काि कयें ।

    9. भुझाान योग

    योगकायक-यारस्टोननमा सोरेनेससएयभ

    रऺण- सॊक्रसभत ऩौधों के ऩिे अचानक ही नीच ेकी तयप रटक जाते हैं तथा उनभें ऩीराऩन ददखाई नहीॊ देता है औय ऩूया ऩौधा ही भुयझा जाता है । इस योग की ऩहचान के सरए तन ेको साप ऩानी भें डारने से िह दथुधमा हो जाता है ।

    योगचक्र तथा अनुकूर वातावयण - मह जीिाणु सभट्टी भें जीवित यहता है । अथधक ताऩभान औय नभी इस योग के सरए अनुकूर हैं ।

    तने ऩय छोटे-छोटे धब्फे

    डॊठर ऩय छोटे-छोटे धब्फे

  • 11

    योकथाभ

    i. प्रबावित खेतों भें पसर चक्र अऩनाएॊ । योग से प्रबावित खेत भें प्माज, रहसुन, भक्का, गेहूॊ मा गैंदा जैसी पसरें रगा सकते हैं ।

    ii. प्रबावित खेतों को गसभिमों के ददनों भें (भाचि से जून के फीच) 30 से 45 ददनों तक सपेद ऩायदशी ऩोरीथीन (100 गेज भोटा) से ससॊचाई कयने के फाद ढक कय यखने से बी योग का सॊक्रभण कभ हो जाता है ।

    iii. योऩण से ऩहरे ऩौध की जड़ों को स्रेप्टोसाइक्रीन (1 ग्रा./ 10 री. ऩानी) भें 30 सभनट तक डुफो कय यखें तथा कपय योऩें।

    10. जीवाणु कैं कय

    योगकायक –क्रैिीफेक्टय सभथचगानेंससस उऩप्रजानत सभथचगानेंससस

    हये यॊग के भुयझाए ऩिे

    सॊक्रसभत पर

    सॊक्रसभत ऩिे

    दथुधमा हुआ ऩानी

  • 12

    रऺण- इस योग से नीच ेके ऩिे भुयझा जाते हैं । तने ऩय बूयी यॊग की धारयमाॊ ि ्कैं कय फनती हैं। परों ऩय सफ़ेद यॊग से नघये छोटे बूये यॊग के धब्फे ददखाई देते हैं ।

    योगचक्र तथा अनुकूर वातावयण -मे जीिाणु सॊक्रसभत फीज, योग ग्रस्त ऩौधों के अिशरे् ि ्खयऩतिाय आदद भें जीवित यहता है । 28 0 सेजल्समस ताऩभान योग के सरए अनुकूर है । योग नभ िाताियण भें गॊबीय रूऩ धायण कय रेता है ।

    योकथाभ

    i. योगग्रस्त ऩौधों के अिशरे्ों को इकट्ठा कयके नष्ट कय दें ।

    ii. पसर चक्र अऩनाएॊ औय योग ग्रससत बूसभ भें टभाटय की पसर कभ से कभ तीन िर्ि तक न रगामें ।

    iii. योगभुक्त फीज का प्रमोग कयें तथा फीज को स्रेप्टोसाइक्रीन (1 ग्रा./ 10 री. ऩानी) के घोर भें एक घॊटे के सरए उऩचारयत कयें । खेत तैमाय कयते सभम ब्रीथचॊग ऩाऊडय (15 कक.ग्रा. /हेक्टेमय) सभट्टी भें सभराएॊ तथा हल्की ससॊचाई कयें ।

    iv. पसर ऩय योग के रऺण देखते ही स्रेप्टोसाइक्रीन (1 ग्रा./ 10 री. ऩानी) का नछड़काि कयें । इसके फाद 7 से 10 ददन के अन्तयार ऩय कॉऩय आक्सीक्रोयाइड (30 ग्रा./10 री. ऩानी) का नछड़काि कयें ।

    स) ववषाणु जननत योग

    11. गचत्तीदाय भुझाान योग

    योगकायक- टोभेटो स्ऩोटीड विल्ट विर्ाणु

    सॊक्रसभत पर

    सॊक्रसभत ऩिे

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    रऺण- योगग्रस्त ऩौधों के ऩिों का यॊग काॊस्म की तयह का हो जाता है ।ऩिे भुझाि जाते हैं । ऩौधों की रम्फाई बी कभ हो जाती है।परों के सतह ऩय रार- ऩीरे यॊग के चक्र फनाते हुए धब्फे बी ददखाई देते हैं ।फाद भें योगग्रस्त ऩौधे बी भय जाते हैं ।

    होटट येंज (ऩरयऩोषक पसरें)- ककसी बी विर्ाणु की अऩेऺा इस विर्ाणु की भायक ऺभता फहुत अथधक है । मह विर्ाणु सशभरा सभचि, रैट्मूस, भटय, तम्फाकू, आरू, टभाटय औय फहुत सी सजािटी ऩौधों की प्रजानतमों को सॊक्रसभत कयता है ।

    संचायण- प्राकृनतक रूऩ से इस विर्ाणु का सॊचायण “थिप्स” नाभक कीट द्िाया होता है ।इस विर्ाणु को कीट का रायिा गहन ऩोर्ण से प्राप्त कयता है

    औय इसका सॊचायण व्मस्क कीट ही कयता है ।

    योकथाभ

    i. ऩौध को जारीनुभा घय भें ही उगामें ताकक थिप्स ऩौधशारा भें प्रिेश न कय ऩाएॊ ।

    ii. मदद पसर ऩय योग के रऺण ददखाई दें तो तत्कार प्रबावित ऩौधों को जड़ से ननकर कय नष्ट कय दें तथा पसर ऩय डसेसस (10 सभ. री. /10 री. ऩानी) का नछड़काि कयें ।

    12. भोजेक

    योगकायक–टोभेटो भोजेक विर्ाणु

    रऺण – योग ग्रस्त ऩौधों के ऩिों ऩय हल्के ि ्गहये यॊग की थचविमाॉ ददखाई देती हैं तथा छोटे ऩिे कबी-कबी विकृत हो जाते हैं । ऩिों का आकाय बी कभ

    यह जाता है जजससे पसर की ऩैदािाय ऩय असय ऩड़ता है ।

    होटट येंज (ऩरयऩोषक पसरें)- मद्दवऩ टभाटय इस विर्ाणु की एक भहििऩूणि ऩरयऩोर्क पसर है ऩयन्तु विर्ाणु सशभरा सभचि ि ्हयी सभचि ऩय बी विद्मभान यहता है ।

    सॊक्रसभत ऩौधा

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    संचायण- मह विर्ाणु योगी फीज मा बूसभ भें योगग्रस्त ऩौधों के अिशरे्ों भें कई भाह तक जीवित यहता है जहाॉ से इसका उन्भूरन कयना फहुत भुजश्कर है । इस विर्ाणु का सॊचायण हल्के घािों से हो सकता है जो जड़ों भें प्राकृनतक रूऩ से मा चोट रगने से हो सकते हैं । इस विर्ाणु को कोई बी योगिाहक कीट सॊचारयत नहीॊ कयता है ।

    योकथाभ

    i. इस विर्ाणु को आसया देने िारे खयऩतिायों को नष्ट कय दें ।

    ii. विर्ाणु भुक्त फीज के उऩमोग से इस योग की तीव्रता भें कापी कभी आ जाती है ।