गधी जयती भरत क भभमन भिवस है -रपल 02.10.2017 चीगढ 2 अूबर गधी जयती भरत के ˢभभमन क भदवस है इस भदन 1869 म मह गधी क जɉ आ थ जो सˋृभतक भरत के भतभनभध थे और भजɎोने भरत की सˋृभतक श के बल पर दे श को आजद करय इसभलए उनके जɉभदवस को ˢभभमन भदवस के प म मनन चभहए ये उर हररयण के रपल ो0 कɑन भसह सोलकी ने आज रʼ र भपत मह गधी और पूवव धनमी ˢगीय लल बहदुर श˓ी की जयती के पवन अवसर पर हररयण रजभवन म आयोभजत समरोह म मह गधी और ी लल बहदुर श˓ी को सुमन अभपवत करने के उपर अपने सबोधन म ʩ भकए इस अवसर पर मह गधी के भय भजनो क गयन आ तथ सववधमव थवन सभ भी की गई रपल ने आगे कह भक भरत के दो प ह एक रजनीभतक भरत और दू सर सˋृभतक भरत रजनीभतक भरत बदलत रहत है जैसे भक पहले रज -महरज होते थे , उसके बद भवदेशी शसन रह और अब लोकत है लेभकन सˋृभतक भरत नही बदलत और उसकी सˋृभतक श भी अु है गधी जी ने इसी श को जन और भवदेशी शसन के भव इसी क योग भकय इसीभलए लव मउटबेटन ने कह थ भक जो कम अकेले गधीजी ने भकय है वह दे श की 50 हजर की सेन भी नही कर सकती थी रʼ र भपत व श˓ी जी को भवभीनी जभल अभपवत करते ए रपल ने कह भक अनेक महपुषो ने गधी जी को आदशव मनकर उनके जैस जीवन जीय ˢगीय लल बहदुर श˓ी उɎी म से एक थे जब हम इन दोनो महपुषो क भवचर करते ह तो हम न होत है भक भरत कैस होन चभहए गधी जी ऐस भरत चहते थे भजसम गरीब से गरीब ʩ महसूस करे भक यह मेर दे श है ऐस तभी होग जब उसे रजनीभतक, आभथवक व समभजक समनत भमलेगी गधीजी ऐस भरत चहते थे भजसम सब समुदयो म समभव हो, अ˙ृʴत कही दे खने को न भमले , ˢत जीवन म हो और मभहलओ व पुषो को समन अभधकर भमल उɎोने कह भक आज हम गधी जी के भवचर को जीवन म अपनने की जरत है इसीभलए केȾ सरकर ने गत 9 अगˑ को ससद क भवशेष अभधवेशन बुलकर सकʙ भलय भक हम 2022 तक समज से गदगी, गरीबी, ʼचर , भहस , जतीयत व सदभयकत को ख कर गे गधी जी ने 1942 म 9 अगˑ को ही करो य मरो क नर दे कर अेजो से भरत को मु करने क सकʙ भलय थ उसके पच सल बद 1947 मे अेजो र भरत छोड़ने के सथ ही वह सकʙ पूर आ थ इसी कर 9 अगˑ 1917 को भलय गय हमर सकʙ भी पच सल बद 2022 म पूर होग और हम गधी जी के सपनो क भरत बनने म सफल होगे इस अवसर पर हररयण के मु सभचव ी 0 एस0 ढे सी, पुभलस महभनदेशक बी0 एस0 सधू , अभतरर मु सभचव पी0 रघवेȾ रव, अभतरर मु सभचव केशनी आनȽ अरोड़, सूचन , जन सɼकव व भष भवभग के भनदेशक टी 0 एल0 सकश, रपल के सभचव 0 अभमत कुमर अवल तथ अनेक अɊ अभधकरी भी उपथत थे