वे दिन कह से लऊ ?! णम / नमते कोयल की आवज़ ईवर की ि े न है जो सुननेवल को मुध कर ि े ती है , बर-बर सुनने की इछ जगती है | फू ल क रंग, सौियय, सुगंध आदि हम अपनी ओर आकषयत करते ह | ऊचे -ऊचे पहड़ ि ु गयम होने पर भी हमर यन खींचते ह | पने -सी हररयली हम भती है | क ु छ लोग के बोलने क ढंग हम अपने वश म कर लेत है , बर-बर उनकी बत सुनने की चह उभरती है | क ु छ लोग क यवहर इतन शलीन होत है कक उनसे बर-बर ममलने क मन करत है | क ु छ के मु ह से ननकले शि हम सतपथ दिखते ह | क ु छ की अमभयतत हम सही मश ि े ती है | क ु छ क वसय हम इतन भव-वभोर कर ि े त है कक उनक अभव अखरत है | क ु छ इतने नेदहल होते ह कक उनकी संगनत अछी लगती है | उपरर मलखखत बत के वल भूममक बधने के मलए नहीं , मेरे दिल की गहरई म छु पे अनुभव के तीक ह, एक शि भी क ृ िम नहीं है | म आप लोग को अपने सथ चौरलीस सल पीछे ले ज रही ह ू जबलपुर | ऊब को ि ू र रखकर मेरे अनुभव क मन से अनुभव कीजएग, मेरे संग जीवन पथ के पछड़े रते के हमरही बननएग | जबलपुर (जह पइल पुरव – अरबी) अथयत ् पहड़ी ढलन | वैसे भी जबल मने पहड़, पुर मने शहर | इस सुिर शहर के पीछे एक और आयन है – जबली ऋष क वसथन; होते -होते उसम वकर आ गय और बन गय वह ‘जबलपुर’ आप लोग को लगत होग कक म तय जबलपुर की य तरीफ़ कर रही ह ू | म वह िो वषय थी नतकोतर छि बनकर महकोशल कल महवयलय की | लगत होग कक इसम कौन-स महव नछप है | कई लोग वह के पढ़े ह ु ए ह अब भी कई वह मश त करते हगे | महवपूणय बत तो यह है कक उस महवयलय के चयय थे ी रमेवर सिजी ‘शुतल’ जह आधुननक दहिी सदहयकश के सतषय म से वशेष थन त (है ) थ | मेरे पतजी मुझे भती करने सथ चले थे | मुगलसरय से जबलपुर पह ु चते – पह ु चते कफ़ी ि े र लगी | वह (आडयनस फै तटरी) आयुध करखने म कययरत ी गंगधरनजी के घर खमररय पह ु चे – कफ़ी रत हो चुकी थी | रते भर पतजी मुझे अचलजी की रचनओं के बरे म सुनते आए |