Ĥभु Įी राम जी का आशीवा[द सब पर सदा बना रहे (S. Sood ) उ×तर काÖड Įी गणेशाय नमः Įीजानकȧवãलभो वजयते Įीरामचǐरतमानस सÜतम सोपान (उ×तरकाÖड) æलोक के कȧकÖठाभनीलं सुरवरवलसɮवĤपादाÞजचéनं शोभाɭयं पीतवèğं सरसजनयनं सव[दा सुĤसÛनम ्। पाणौ नाराचचापं कपǓनकरयुतं बÛधुना सेåयमानं नौमीɬयं जानकȧशं रघुवरमǓनशं पुçपकाǾढरामम ्।।1।। कोसलेÛġपदकÑजमÑजुलौ कोमलावजमहेशविÛदतौ। जानकȧकरसरोजलालतौ चÛतकèय मनभृɨगसɬगनौ।। 2।। कु ÛदइÛदुदरगौरसुÛदरं अिàबकापǓतमभीçटसƨदम ्। काǽणीककलकÑजलोचनं नौम शंकरमनंगमोचनम ्।।3।। दो0-रहा एक Ǒदन अवध कर अǓत आरत पुर लोग। जहँ तहँ सोचǑहं नाǐर नर कृ स तन राम ǒबयोग।। –*–*– सगुन होǑहं सुंदर सकल मन ĤसÛन सब के र। Ĥभु आगवन जनाव जनु नगर रàय चहु ँ फे र।। कौसãयाǑद मातु सब मन अनंद अस होइ। आयउ Ĥभु Įी अनुज जुत कहन चहत अब कोइ।। भरत नयन भुज दिÍछन फरकत बारǑहं बार। जाǓन सगुन मन हरष अǓत लागे करन ǒबचार।। रहेउ एक Ǒदन अवध अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा।। कारन कवन नाथ नǑहं आयउ। जाǓन कु Ǒटल कधɋ मोǑह ǒबसरायउ।।