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ISSN: 2347-2723 Impact Factor : 3.3754(UIF) VolUme - 5 | ISSUe -
2 | September - 2017
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‘महासमर’ उप यास क पृ भूिम म मानवीय मू य मंजू अरोरा अनुसंिध स-ु
कला एवं भाषा िवभाग,लवली ोफेशनल यूिनव सटी , फगवाड़ा, पंजाब.
सारांश: ाणी जगत म ास लेता मनु य अपने िववेक से और मानवीयता के
गुण-बोध से अ य जीव से पृथक स ा रखता है | सािह य जगत के मूध य सािह
यकार एवं मु यत: डॉ. नर कोहली अपने महा-उप यास ‘महासमर’ के घटना म , प
रि थितय एवं च र से मानवीय मू य क अप रहायता को जागृत और पुनजागृत
करने का यास सा करते ह | मू य जीवन को गित देते ह, और स माग पर चलने क
ेरणा देते ह | ऋ वै दक काल से यह िवषय िचरंतन है | समसामियक स दभ म रत
होते समाज के प रदृ य म, मानवीय मू य और उनका मह व और भी बढ़ जाता है |
बीजश द: े ता, मानवीयता, उ -संवेदनाएं , बौि क शि यां, पौरािणक, साि
वक गुण , मानवीय दृि कोण | भूिमका: भारतीय सािह य म महान रचनाकार ने
मानवीय मू य पर अपने अमू य िवचार से मानव समाज को दशा िनदश दए ह |
डॉ.नर कोहली ारा रिचत ‘महासमर’ भी एक ऐसा महा उप यास है, जो जीवन क े
ता को कहता है , जीवन क सतत साधना , उसका काश ,मानव को देव व क आभा से
भर कर उसे मानवीयता के गुण और मू य से न केवल प रिचत कराता है , वरन
उसे काय
प म प रिणत करने क ओर अ सर भी करता है | मनु य इस सृि का सव े ाणी
है | भु ने उसे िवचारने , समझने और िनणय क यो यता दी है , जो उसे अ य
ािणय से पृथक करती है | कहते ह – ‘प यतीित पशु:’ अथात केवल देखने वाला
पशु है , िजसम अनुभूित क यो यता नही है | ले कन िजसम उ सवदनाएं ह ,
बौि क शि यां ह , वह मनु य है | मनु य म लिलत कला का समावेश है | कसी
भी समाज क आधारिशला उसके मानवीय मू य होते ह | सामािजक होने के कारण
मनु य को सेवा, शांित, परमाथ, ेम, मधुरता, दृढ़ता, एकता, वतं ता, स य,
िनभयता, समता, सहयोग, िव बंधु व आ द मानवीय मू य का िवकास अपने अंदर
करना ही पड़ेगा | मानवीय मू य से संप ि ही सुदृढ़ रा और सश समाज क रचना
कर सकता है | िव ेषण: हमारी पौरािणक एवं वै दक सं कृित आ द काल से
मानवतावादी दृि कोण देती आई है | हमारे जीवन मू य को िनदिशत करते म हम
इस दशा क ओर ही े रत करते ह | उदहारण हेतु तुत है गाय ी म :- “ॐ भूभव:
व: ति वतुवयिनयम भग देव य धी मिह धीयो यो न: चोदयात |” अथात : ‘ भु ाण
सा ॐ धरो अंतर म दुःख को हरे जो े मंगल म वयम तेज़ जो पाप नाशी परा मा
करे बुि स माग गामी सुखा मा |’
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यह वह म है - िजसे येक भारतीय जानता है | तो या स देश देता है ! यह
जीवनदायी म ? मानवता का ही तो ! वा तव म या है भारतीय दशन – ‘ परम स ा
को पहचानना व् मानना, वयं के होने का उदे य जानना, और अ याि मक प से
अपने िववेक के वैिश को पहचानते ए व एवं िव क याण के हेतु बनकर जीवन
जीना | यही सू है मानवीयता का | भूलना नह चािहए , क शा म धम, अथ, काम,
मो जीवन के ल य बताये गये ह | अत: जब ल य का अंितम पड़ाव मो ही ह,ै तो
भारतीय मानिसकता को मानवीयता का सू समझने म कोई क ठनाई नह ही होती |
अत: यह वत: हणीय िवषय है | ान ाणी को मनु य का वा तिवक प दान करता है
| ान ही तो उसे मानवता के सोपान का प रचय कराता है | और इसी ान को
ारंिभक अव था म ही ा करके ि
मानवता के थम और उ ात आयाम का पाठ पढता है | महासमर म िपतामह भी म
कु राजकुमार क िश ा क व था क जानकारी लेने के िलए आचाय कृपाचाय के पास
जात ह और उ ह िश ा का मम कहते ह – “ ि य के िलए श - ान भी आव यक है और
श प रचालन का अ यास भी ; क तु उससे भी अिधक आवशयक है ; याय और अ याय
का ान , धम और अधम का िनणय | ि य का श केवल अ याय के ितरोध म ही उठना
चािहए |
ि य य द यायालय के िनणय के िबना श -प रचालन का अ य त हो जायेगा ,
तो वह द यु हो जायेगा|” .वे आगे कहते ह, “म चाहता ँ क चाहे वे यु -िव
ा सीख , चाहे डा म भाग ल, चाहे शा ान ा कर , चाहे ित पधा म त रह ; क
तु इन सब के मा यम
से वे पर पर एक-दूसरे के िनकट आय , ेह करना सीख , दूसरे क
सुख-सुिवधा के िलए याग और बिलदान करना सीख | उनम वाथ-शु यता तथा सिह
णुता का भी िवकास होना चािहय|े अ छे यो ा बनने से पहले वे अ छे मानव
बन उ ह अपना र देकर जा का पालन करने वाल,े अपना सुख-भोग याग , िनबल क
र ा करने वाले ि य बनाना |१ ..” अत: मानव को मानवीयता का म देने वाली
िश ा कतनी अिनवाय है , िजससे वह मू य को हण करता आ अपना और समाज का क
याण और िवकास कर सकता है क तु वतमान कतना द पूण ह,ै जो मनु य क मानवता
वादी िवचारधारा से उसको दूर करने क अनवरत कोिशश करता सा दीखता है | आज
क सबसे बड़ी सम या मू य संकट क ही सम या है | मनु य के जीवन क चताएं ,
उसक जीवन- चया क िनत नई बाधाएं उसे अपने से इतर देखने का समय ही नही
देत | मनु य समाज और प रवार से कटता जा रहा है | उसके अंदर मानवीय
सवदना का ास होता जा रहा है | भय , अकेलेपन , और सामािजक िवडंबना ने
उसके ऊँचे कद को बौना बना दया है | आज हम अपनी सां कृितक धरोहर से दूर
होते जा रहे ह | िजसे हमारे पूवज ने ऋिषय , आचाय और बौि क जन से
लेकर
तैयार कया था और िव को ान का काश दया था| आज जीवन के नैितक, अ याि
मक, धा मक, सां कृितक आ द मू य जो उसे सुसं कृत करते ह और उसके आचरण
को मया दत करते ह , वे िश ा के ार से िमलते नह वरन सवथा उपेि त हो रहे
ह | हम भूलना नह चािहए क हमारे वेद और उपिनषद हम मानवीयता क ही िश ा
देते ह | वै दक वा य म ‘स य िशवम् सु दरम’ के अनुसार आदश मानवीय मू य
क थापना के प म िव के ित क याण क भावना ही ऋिषय का मु य योजन है |
िजसमे िव के क याण का भाव मु य है – “सव भव तु सुिखन: सव स तु
िनरामया:
सव भ ािण प य तु माँ कि द् दुःख भा भावेत ||”.......अथात मानव मू य
क पराका ा यजुवद के तुत म म देखने को िमलती है जहाँ वै दक ऋिष सभी मनु
य एवं ािणय के ित अपनी स ावना करता है | यही नह तेज़ और बल क कामना
(तेजो..सी तेजोमय धेिह.... बल मिस बलं मयी धेिह)| बुि को स माग क और े
रत करने क ाथना (िधयो यो न: चोदयात–) |२
एतेव यह त य जािहर है क हमारे आ द थ मू य-परक नीित एवं आचरण के स े
िनदशक ह | उदाहरण व प ‘भतह र का नीितशतक पूण प से मानव मू य से प रपूण
थ है | नीितकथा , पंचतं तथा िहतोपदेश आ द म भी पश-ुपि य क मनोरंजक कथा
के मा यम से मानव मू य का सरस तथा सरल शैली म वणन कया गया ह ै|
ी म ागवत गीता के १६व अ याय म भी िनभयता , अ तकरण क शुि , ान और
योग क थित , इि य दमन , य , वा याय , तप , सरलता , अ हसा , स य, अ ोध
, शांित, अपैशुन, दयाभाव, लोभ रिहत, कोमलता, ल ा , अचंचलता, तेज़, मा ,
धैय,
पिव ता, ोह न करना, अिभमान रिहत, आ द दैवी साि वक गुण क चचा म मानव
मू य का सार िनिहत है |’३ मानवीय मू य के अनुसार जीवन जीने का अथ यह
नह है क कोई मनु य कमजोर अथवा िनबल है वरन द ता तो तब है जब
बलवान और यो य होने पर भी मा और धैय आ द मानवीय गुण का आचरण कया
जाए | महासमर म एक थान पर पांडव के मानवीयता स ब धी गुण को कहते ए कृ
ण के श द ह, ‘पांडव , उदाहरण है - े
मानव का ,उनक मानवीयता का , जो िवकट िवरोधी प रि थितय म भी अपनी शि
का लाभ न उठाते ए मानवीय गुण के अनु प आचरण कर सकते ह | .. माण यह है
क समथ होते ए भी भीम ने अपनी ह या का य करने वाले दुय धन का वध नह कया
|..... युवराज बन जाने पर भी युिधि र ने धृतरा , दुय धन और उसके सािथय
को अपद थ कर उनक ह या करना तो दूर , उ ह तिनक-सी
ित प ँचाने का भी कोई य नह कया | ुपद को परािजत कर भी पांडव ने
उनका रा य छीनने अथवा उनसे कसी कार का लाभ उठाने क चे ा नह क |
वारणावत जाने के संकट को जानते ए भी अपने िप क आ ा का उ लंघन नह कया |
काि पलय और हि तनापुर म अवसर िमलने पर भी वारणावत कांड का ितशोध लेने
का य नह कया | कु -रा य के बंटवारे के नाम पर खांडव थ पाकर भी न िवरोध
कया, न लोभ दखाया | ौपदी जैसी ी पाकर भी अजुन का धम िव काम नह जागा |
राजा और भाई के मा
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करने पर भी वह ित ा के अनुसार बारह वष के िलए इं थ छोड़ आया |
........ इतनी िवकट प र थितय म , ाण का भय रहने पर भी ,िज ह ने अपना
धम नह छोड़ा , वे कायर नह हो सकते |”४
ि अिधकांशत: पद , ित ा , धन , समृि के पीछे अपने मानवीय मू य क बिल
चढ़ा देता है | आ य है ! सुख सुिवधाएँ कतनी मह वपूण हो जाती ह जीवन के
िलए क ितभा और यो यता का मू य नग य हो जाता है |
युिधि र के राजसूय य ् के समय ी कृ ण को मह ष वेद ास और युिधि र,
तं वामी बनाना चाहते थे पर तु कृ ण कहते ह , “यह स मान आप कुलवृ
िपतामह भी म को तथा आचाय ोण को द |....और जहाँ तक मेरा स ब ध है ,
मेरी इ छा है क आप मुझे िव ान् ा ण और िव के चरण पखारने का काय द |”
युिधि र अवाक ह ..... ‘िव के चरण धोना चाहते ह !....अहंकार का ऐसा
िवगलन | िवनय क ऐसी चरमाव था | कृ ण मनु य नही ह .... मानवीय सीमा और
दुबलता पर ऐसी िवजय कोई मनु य पा सकता है या ?....’ ई र अपने साकार प
से मानव को मानवता का कौन सा पाठ पढ़ाना चाहते ह , समझना कह असंभव है
या ? और संभव भी है या? कसे कहते ह मानवीय मू य?
कृ ण अपने जीवन से मानवता का उ तम उदाहरण देते ह- ि कैसे िजए ?
उसके आदश कैसे ह ? मा और पुर कार कसे और कैसे िमले ! यह सब उदाहरण
उनके एक-एक काय म प रलि त होता है | महान थ गीता जीवन का दशन है, िजसे
मानव य द समझ ले तो मू य को समझने और आचरण म उतारने क कोई चे ा करने क
आव यकता ही न रहेगी |
डॉ.नरे कोहली ने ीकृ ण के जीवन पर एक उप यास रचा ह,ै‘अिभ ान’,िजसम
मानवता क उ ातता का एक उ रण ह,ै कृ ण कहते ह,“बड़ा आदमी वह होता है जो
अपनी पशु-वृितय को याग सके और अपनी साधना, याग तथा तप या से मानव-जाित
के क याण के िलए कोई माग िनकल सके|”५
मानव और मानव क मानवीयता सदैव ही मनु य को देव व क ऊँचाइय पर ले
जाती है | डॉ. कोहली के ही एक ओर उप यास ‘तोड़ो करा तोड़ो’ म जो उ ह ने
वामी िववेकानंद जी के जीवन पर रचा है , उसम वह कहते ह क , “मानवीय मता
क कोई सीमा नही |”६
लेखक डेिवड.जे.पॉल अपना एक अनुभव बताते ह , ‘एक बार म और मेरी प ी
अपनी बे टय के ए रला और इलायना को लेकर िततिलय के सं ाहलय प ंचे | जब
हम यूिजयम प ंचे तो हम वहां हजार िततिलय से िघरे ए थे | सभी अपने ब
रंगी पंख को फडफडा रह थ | मेरी बे टयां रोमांिचत थ | मने युिजयम गाईड
से पूछा , िततिलयाँ कतने व त तक िज दा रहती ह | उसने जवाब दया, दस दन
तक | मने तुरंत कहा, िततिलयां दस दन म या कर सकती ह | मेरी छोटी बेटी
क गयी , चुपचाप कुछ पल के बाद उसने कहा , वे
दुिनया को खुबसूरत जगह बना देती ह | अब हर दन म अपने आप से पूछता ँ
, म कस तरह दुिनया को खुबसूरत जगह बना रहा ँ ? एक लंबी िज दगी अ छी है
, ले कन े िज दगी बेहतर है |’ या खूब ेरक संग है जीवन को उपयोगी-सदो
योगी बनाने क दशा देने वाला !रोमन दाशिनक सेनेका ने एक बार कहा था क
‘जीवन एक नाटक क तरह है, िजसक ल बाई नह अिभनय क े ता मह वपूण होती है|
’यूिनव सटी ऑफ़ कैिलफो नया क ोफेसर स जा युबोिमरसक क रसच बताती है क ‘
े िज दगी संभव है और इसका मापन आपके ारा िजये गये साल से नही होता |
बि क उन गुण पर िनभर करता है , िजनका इ तेमाल अपने जीवन म कया है
|’७
मानवीयता के उदाहरण य त िबखरे िमल जाते ह , िजससे जीवन क सु दरता
बनी रहती है और क याण का माग गितवान रहता है , अव नह होता | जीवन हम
कई अवसर देता है और साथ ही देता है काय करने क शि | अब चुनाव वयं करना
है क काय सकारा मक है या नकारा मक | वाथमय है या परमाथमय |
परमाथ मानवीयता का मु य िस ांत है | शा से भी यही ान वािहत हो रहा
है क जीवन वाह वसुधैव कुटु बकम क मूल अवधारणा के अनुसार ही बहे तो उ म
है |
“दुलभ नह मनुज के िहत,
िनज ैि क सुख पाना, क तु, क ठन है को ट-को ट मनुज को सुखी बनाना |
एक पंथ है, छोड़ जगत को अपने म रम जाओ, खोजो अपनी मुि और िनज को ही
सुखी बनाओ | अपर पंथ ह,ै और को भी िनज िववेक-बल दे कर,
प ँचो वग-लोक म जग से साथ ब त को ले कर | िजस तप से तुम चाह रह े
पाना केवल िनज सुख को , कर सकता है दूर वही तप
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अिमत नर के दुःख को |”८
जीवन का मू य ि से समि क याण है | िजसके िबना जीव क क पना संभव नह
| अत: मानवतादश को हम मुख जीवन मू य क सं ा दे सकते ह | मैिथलीशरण गु
के महाका साकेत म राम और सीता दोन ही मानवतावादी दृि के ंजक पा ह |
राम तो मानव म दैवी स ा क ित ा का आदश लेकर आये ह :
“भव म नव वैभव ा कराने आया नर को ई रता ा कराने आया | स देश नह म
यहाँ वग का लाया, इस भूतल को ही वग बनाने आया ||”९
वा तव म साकेत एक ऐसा महाका है िजसमे मैिथलीशरण गु जी ने अपनी रचना
के ारा जीवन म उ ह त व क मह ा ािपत क है िजनसे मानव का मानव के ित स
ाव बना रहे | उनका मत है क मानवता क र ाथ य द जीवन भी आव यक हो तो
आ त कर देना चािहए | िव िहत तभी संभव हो सकता है जब क :-
“ मनुजता क र ा के हेतु, िनछावर कर दे अपने ाण | जगायेगा जन जन म
भरी , मनुजता को जो मनुज महान िव -र ा िहत उसम शि भरगे िव ंभर भगवान
||”१०
मानवीयता और कसे कहते ह , न केवल शा , वरन हमारा सािह य , हमारे
मूध य रचनाधम अपने श द से िनरंतर यही स देश देते ह |
अगर चाह तो य -त सव ऐसे ेरक संग जीवन क साथकता को कहते और मािणक
करते संग िमल जात ह , केवल िवचार को ही े रत करने क आव यकता है | क तु
वतमान समाज िजस तरह नेक और मानवता के संग से आगाह करता है, वैसे ही कई
िव ूपता को भी अपने म समेटे है |
आज या दशा हो गयी है मनु यता क ? कस र ते पर ि भरोसा करेगा ? धन स
पदा मानवता क धि याँ उड़ाते से लगते ह | आसुरी वृितयां अपने चरम पर ह |
वाथ ने मनु यता के आकाश पर हण क छाया कर दी है | ले कन जीवन क सकारा
मकता मनु य को उसक आशा से पृथक नह होने देती | ि कतना भी दुखी हो,
मरना नह चाहता |
मानव मू य कभी समा नह हो सकते , हाँ कह कह इसका िव ूप प दीखता ह,ै
पर तु जीवन म देव और दानव दोन का अंश बना रहता ही है | वतमान को कोई
कतना भी किलयुग के नाम पर कोस ले पर तु इसी समाज के ही उदाहरण ह जो
मानवता क पौध को सूखने नह देते | स य तो यही है – मानव य द स पूण जगत
के ित ेम व् सेवा भाव से भर जाये ,क याण के िलए जुट जाये , ि म समि का
और समि म ि का िवलय हो जाये , तो और मानवता या है ?
इसी वष २०१७ अग त माह म मुंबई म तबाही क सीमा तक बा रश ई | कई लोग
जहाँ थे वही ँ फंस गये | अपने कायालय से घर के िलए िनकले लोग घर न प
ँच कर रा त म ही बंधे रह गये | घर म पानी भर गया | .. ‘शहर क लाइफ
लाइन उपनगरीय ेने बंद हो गय | सड़क पर पानी भर गया | अ पताल तक म पानी
भर गया और लोग को कमर तक पानी का सामना करना पड़ा |’ कतना भयावह है |
यह सोचना ही क कब अपने गंत पर प ंचगे ? और प ंचगे भी या नह ? ऐसी
भयानक ाकृितक आपदा के समय ,... ‘लोग ने अपने दल और घर के दरवाजे यहाँ
वहां फंसे लोग के िलए खोल दए | अपने टॉयलेट इ तेमाल करने क इजाजत दी
और गम चाय लोग को िपलाई | यायलय म कोट म लोग के ठहरने के िलए खोल दए
गये | रेलवे टेशन ने अनाज के आिखरी दाने तक लोग को फ़ूड सव कया | यहाँ
तक क कोई चाज तक नह िलया | मं दर , गुर ार और मि जद के दरवाजे सभी के
आ य के िलए खोल दए गये |’११
जब िजसे आवशयकता हो उस समय प ंचाई गयी सहायता ही मानवता क ोतक है |
मनु य को, अपना म, अपना कम दोन ही िबना वेद बहाए उ चेतना क और नह ले
जा सकता | मानव म मानव बनने के गुण उसक िश ा के साथ ही आरंभ हो जाते ह
| वयं क और दूसर क र ा , स मान और ित ा का ान महापु ष बनने म सहायक
होता ह,ै य द शैशव से ही िश ा के साथ-साथ िमल
जाये | सृि कृित और पु ष – दो भाग से िमल कर बनी है | पु ष क वृित
है वाथ और कृित क वृित है परमाथ | वाथ को गला
कर परमाथ क राह पर चलना तप है | ऐसा भाव करना क जीवन का येय
पर-उपकार ही है , अपने मन क मिलनता से ऊपर उठकर
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मा करना और जो क देते ह , उ ह ेह देना और उनका भला करना , अपने आप
म एक तप या ही तो है | कृित अपने शांत अि त व से श दहीन होकर यही स
देश मनु य को िनरंतरता से देती आ रही है -
“तरबर तास िबलबीय , बारह मॉस फल त | सीतल छाया गहर फल, पंशी केिल
करंत ||”१२ वृ का सेवा काय बारह मॉस अनवरत चलता है | ित एक के िलए
छाया , फल, पंिछय के िलए बसेरा िबना कसी भेदभाव के उपल ध होता है | स
पूण कृित मानवीयता का स देश ित ण अपने मूक काय से दे रही है | धम ,अथ,
काम, मो क चरमाव था वयं को ही तो पाना है , मन को ही तो जीतना है | ी
गु थ साहेब म गु नानक देव जी ारा रिचत जपुजी साहेब क २८ पौड़ी म उधृत
कया है , ‘मन जीते जग जीत’ |
‘मन के इस प के िवषय म भी यजुवद म उ लेख है – “येन कमायपसो मनीिषणी
य े रायाि त िवदथेष धीरा: य पूव य मंत: जानां त मे मन: शुव संक पम तु
||”१३
जीवन के मू य म मानवीयता का थान सव प र है | रा के संत , भ , महान
बुि जीवी इसी त य का अनुमोदन करते ह | संत कबीर का तो सम त जीवन ही
मानवीयता का दपण है | कबीर दशन पर डॉ.रामजीलाल ‘सहायक’ क पु तक म शुभ
कामना देते ए त कालीन (१९६१) मु यमं ी (उ र देश ) ी च भानुगु ने
मानवता िवषयक अपने उ ार को इस कार उ ा टत कया , “पूण िव क सभी हलचल का
एक व , मानव के पावन और प रशु प का थाप य , समाज के सव कृ क याणमय व प
का िनमाण तथा समाज के क याण के िलए िन काम भाव से कम करने का मह व
संपादन | या ान , या योग , या भि और या कमयोग, इन सभी साधना-माग का उ
े य है-मानव को स ा मानव बनाना , वकत म िन काम भाव से लगे रहना तथा
उसे अपने स य व प को पहचानने म समथ बनाना | िन काम भाव से सविहत के
काय म लगे रहने से ही मानव को अपने स य , िन य, मु व प के दशन हो सकते
ह |”१४
उपसंहार: सामियक दृि से वतमान के प रदृ य बदल रहे ह | मानव कह बेहद
मानवीय होकर संवेदनशील हो गया है और कह वाथ होकर घोर किलयुग का वहन
करता है |१५ समय क पुकार है , स य युग िवचार म है , आचार म है , िशवम्
म है ,सु दरम म है और यही स य है | कोई भी युग अपने आचरण से आकार लेता
है | फर य न मानवीयता को कूट कूट के मनु य म भर कर ऐसे संसार क प रक
पना और सरंचना का यास कर | हम तो उदाहरण क भी आवशयकता नह हमारे थ ,
संत ,पूवज ऐसी िवरासत दे गये ह क केवल पदिच ह पर चलने का काय बाक है |
स दभ सूची: नर कोहली, महासमर खंड २ : अिधकार ,पृ ४३ | ऋ वेद -३.६२.१०|
डॉ.राजकुमार महाजन,लेख: संकलन:सं कृत सािह य म मानव मू य,पृ १९ | नर
कोहली, महासमर खंड ४ : धम , पृ १९८ | नर कोहली, अिभ ान,पृ ९१ | नर
कोहली, तोड़ो करा तोड़ो,खंड १, िनमाण,पृ १९१| लेख: े ता के सू : आहा िज
दगी पि का: िसत बर २००९ अंक , पृ २१ | रामधारी सह दनकर,कु े ,स म सग
,पृ ८९ | मैिथलीशरण गु ,साकेत: अ म सग ,पृ ३३४,३३५, | मैिथलीशरण गु
,साकेत: ादश सग :पृ २८ | एन.रघुरामन.,‘देने क वृित से अमीर बनता है
आपका शहर’,दैिनक भा कर समाचार प ,३१ अग त २०१७ अंक )| कबीर ंथावली ,
पृ १९६| (यजुवद ३४/२) रामजीलाल सहायक, कबीर दशन,पृ ११ | लेख- एक मु ी
चांदनी संजोती आधी दुिनया ,आहा िज दगी पि का, माच २०१२ अंक, पृ २०
|
मंजू अरोरा अनुसंिध स-ु कला एवं भाषा िवभाग,लवली ोफेशनल यूिनव सटी
, फगवाड़ा, पंजाब.