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तवाथ सू ितीय अयाय Presentation Developed By: ीमतत सारिका छाबड़
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PowerPoint Presentation · 2020. 5. 30. · Title: PowerPoint Presentation Author: Vikas Jain Created Date: 5/30/2020 8:50:55 AM

Mar 10, 2021

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  • तत्त्वार्थ सतू्रद्वितीय अध्याय

    Presentation Developed By: श्रीमतत सारिका छाबड़ ा

  • ☸उपयाोगाो लक्षणम्॥8॥☸जीव का लक्षण उपयाोग है ।

    ☸स द्विववधाोऽष्ट-चतुर्ोथदः॥9॥☸वह 2 अाैि 8 प्रकाि का है ।

  • लक्षण वकसो कहतो हैैं?

    अनोक ममली हुई वस्तुअाोैंमोैं सो

    वकसी एक वस्तुकाो पृर्ककिनो वालो

    होतु काोलक्षण कहतो हैैं

  • लक्ष्य अाैि अलक्ष्य• जजसका लक्षण वकया जाय उसो लक्ष्य कहतो हैैं ।उदा.- चावल

    लक्ष्य

    •लक्ष्य सो मर्न्न सर्ी पदार्थ अलक्ष्य कहलातो हैैं । उदा. – दाल, मक्का अादद

    अलक्ष्य

    लक्ष्य

    लक्ष्य

    अलक्ष्य

  • उदाहिण

    लक्ष्य – शक्कि

    लक्षण -ममठास

    लक्ष्य – जीव

    लक्षण –चोतना

    लक्ष्य – पुद्गल

    लक्षण –स्पशथ,िसादद

  • लक्षणअात्मर्ूत

    वस्तु को स्वरूप मोैं ममला हुअा हाो

    जैसो – अग्नि की उष्णता

    अनात्मर्ूत

    वस्तु सो ममला हुअा न हाो,उससो पृर्क हाो

    जैसो – ड़ैंड़ो वालो पुरुष का दैंड़

  • लक्षणार्ासजाो यर्ार्थ लक्षण नहीैं हाोनो पि र्ी लक्षण को समान प्रततर्ाससत हाोता है, उसो लक्षणार्ास कहतो हैैं ।

    सदाोष लक्षण काो लक्षणार्ास कहतो हैैं ।

  • लक्षणार्ास

    अव्याति अततव्याति असैंर्व

  • अव्याप् त लक्षणार्ास

    जाो लक्षण लक्ष्य को एकदोश मोैं िहता है, सम्पणूथ लक्ष्यर्तू पदार्थ मोैं नहीैं िहता है उसो अव्याति लक्षणार्ास ्कहतो हैैं ।

    जैसो – गाय का लक्षण सफो द या पशु का लक्षण सीैंग

  • अततव्याप् त लक्षणार्ासजाो लक्षण, लक्ष्य अाैि अलक्ष्य दाोनाोैं मोैं पाया जाय उसो अततव्याति लक्षणार्ास कहतो हैैं ।

    जैसो गाय का लक्षण सीैंग

  • असैंर्व लक्षणार्ास

    लक्ष्य मोैं लक्षण की असैंर्वता काो असैंर्व दाोष कहतो हैैं ।

    मनुष्य का लक्षण सीैंग, जीव का लक्षण रूप

  • दाोष बताइयो☸जजसमो को वलज्ञान हाो उसो जीव कहतो हैैं ।☸जजसमो मतत-श्रुत ज्ञान हाो उसो जीव कहतो हैैं ।☸जाो अमुततथक हाो उसो जीव कहतो हैैं ।☸पुद् गल का लक्षण ज्ञान है ।☸जीव का लक्षण उपयाोग है ।

  • उपयाोगचैतन्यानुववधायी परिणाम उपयाोग: ।चैतन्य को सार् सैंबैंध िखनो वाला जीव का परिणामज्ञान-दशथन का व्यापाि/ कायथ

  • चोतन

    जीव द्रव्य

    लक्ष्य

    चैतन्य

    गुण

    ज्ञान-दशथन

    उपयाोग

    पयाथय

    लक्षण

  • उपयाोगजीव का जाो र्ाव

    वस्तु काो ग्रहण किनो को मलए प्रवृत्त हाोता है

    उसो उपयाोग कहतो हैैं ।

    यह अात्मा का अात्मर्तू लक्षण हैैं

  • प्रश्न- उपयाोग अस्स्र्ि हाोनो सो जीव का लक्षण नहीैं बन सकता ?

    उत्ति- उपयाोग सामान्य काो ग्रहण किनो पि वह जीव का लक्षण बन

    जाता है ।

    जाना पेन

    जाना हाथ

    जाना सूर्य

    जाना गार्

    उपयोग

  • उपयाोगज्ञानाोपयाोग

    साकाि

    अैंतमुथहूतथ काल तक मतत, श्रुत, अवधध अाैि मन:पयथय ज्ञान अपनो-अपनो ववषय काो ववशोष रूप सो ग्रहण कितो

    हैैं

    दशथनाोपयाोग

    तनिाकाि

    चक्षुदशथन, अचक्षुदशथन अर्वा अवधधदशथन को िािा अववशोषरूप सो पदार्थ का सामान्य ग्रहण

  • साकाि अाैि तनिाकाि

    ☸यहााँ अाकाि सो मतलब लम्बाई चाैड़ ाई नहीैं है☸बप्कक जैसा पदार्थ हाोता है वैसा ज्ञान मोैं ज्ञात हाोना अाकाि है ।

    ☸तनिाकाि मोैं पदार्थ काो ववशोषता सो सद्वहत नहीैं जाना जाता, जबवक साकाि मोैं ववशोषता सद्वहत पदार्थ ज्ञात हाोता है ।

  • ववशोष

    छद्मस्र् को दशथनाोपयाोग को पश्चात ्ज्ञानाोपयाोग हाोता है ।

    वकन्त ुको वली र्गवान को दशथन अाैि ज्ञानाोपयाोग दाोनाोैं सार् मोैं हाोतो हैैं ।

  • ☸सैंसारिणाो मुक्ताश्च॥10॥☸जीव सैंसािी अाैि मुक्त 2 प्रकाि का है ।

    ☸समनस्काऽमनस्काः॥11॥☸सैंसािी जीव मन सद्वहत अाैि मन िद्वहत हाोतो हैैं ।

  • सैंसािीसैंसिण किो अर्ाथत् जाो परिभ्रमण किो

    5 परिवतथन रूप जाो पिावतथन किो

    हि जीव का सैंसाि उसको अन्दि को माोह िाग िोष र्ाव ही हैैं ।

  • सैंसाि

    4 गतत मोैं परिभ्रमण

    पैंच पिावतथन

    जन्म मिण रूप सैंसाि

    माोह िाग िोष परिणाम

  • सूत्र मोैं सैंसािी का ग्रहण पहलो काोैं वकया है?

    1. सैंसािी जीवाोैं को बहुत र्ोद प्रर्ोद हैैं ।

    2. सैंसािपवूथक माोक्ष हाोता है ।

    3. सैंसािी अवस्र्ा प्रत्यक्ष ददखाई दोती है जबवक मुक्त अवस्र्ा पिाोक्ष है, अप्राि है ।

  • सैंसारिण: अाैि मुक्ता: दाोनाोैं मोैं बहुवचन अलग-अलग काोैं मलया?

    सैंसािी बहुत हैैं अाैि मुक्त जीव र्ी बहुत हैैं, इसो बतानो को मलए दाोनाोैं ही बहुवचन मलए ।

  • ☸सैंसारिणस्त्रसस्र्ाविाः॥12॥सैंसािी जीव त्रस अाैि स्र्ावि को र्ोद सो 2 प्रकाि को हैैं

    ☸पृमर्व्य तोजाो-वायु-वनस्पतयः स्र्ाविाः॥13॥पृथ्वी , जल, अग्नि, वायु अाैि वनस्पतत यो स्र्ावि जीव हैैं

    ☸िीप्न्द्रयादयस्त्रसाः॥14॥2 इप्न्द्रय सो लोकि 5 इप्न्द्रय तक को जीव त्रस हैैं

  • सैंसािी जीव

    स्र्ावि

    १ इप्न्द्रय

    पृथ्वी जल अग्नि वायु वनस्पतत

    साधािण प्रत्योक

    त्रस

    २ इप्न्द्रय ३ इप्न्द्रय ४ इप्न्द्रय ५ इप्न्द्रय

    सैंज्ञी असैंज्ञी

  • स्र्ावि

    ☸पृथ्वी☸जल ☸अग्नि☸वायु☸वनस्पतत

  • वनस्पतत

    साधािण जजस शिीि को स्वामी अनैंत जीव हाोतो हैैंसूक्ष्म

    बादि

    प्रत्योक जजस शिीि का स्वामी एक जीव हाोता है बादि

  • 5 स्र्ाविाोैं मोैं सो प्रत्योक को 4-4 र्ोद•पृथ्वी सामान्यपृथ्वी• ववग्रह गतत का जीव जाो पृथ्वी मोैं जन्म लोनो जा िहा हैपृथ्वीजीव•पृथ्वी शिीि सद्वहत जीवपृथ्वीकाग्नयक•पृथ्वी शिीि, जजसमो सो जीव तनकल गया हैपृथ्वीकाय

  • ☸पञ्चोप्न्द्रयाणण ॥15॥ इप्न्द्रयााँ 5 हाोती हैैं ।☸द्विववधातन ॥16॥वो 2 प्रकाि की हैैं ।

    ☸तनवृथत्त्यपुकिणो द्रव्योप्न्द्रयम् ॥17॥तनवृथत्तत्त अाैि उपकिण द्रव्योप्न्द्रय हैैं ।☸लब्धध्युपयाोगा ैर्ावोप्न्द्रयम् ॥18॥लस्ब्धध अाैि उपयाोग र्ाव इप्न्द्रय हैैं ।

  • इप्न्द्रय

    द्रव्योप्न्द्रय

    शिीि नामकमथ को उदय सोबननोवालो शिीि को मचह्न-ववशोष

    र्ावोप्न्द्रय

    मततज्ञानाविण कमथ को क्षयाोपशम सो उत्पन्न हाोनो वाली ववशुणि अर्वा उस ववशुणि सो उत्पन्न हाोनो वाला

    उपयाोगात्मक ज्ञान

  • द्रव् योप्न्द्रय

    तनवृथत्तत्त

    जजन प्रदोशाोैं को िािाववषयाोैं काो जानतो हैैं

    उपकिण

    जाो तनवृथत्तत्त कोसहकािी, तनकटवतीथ हैैं

  • तनवृथत्तत्त- जजनको िािा िचना की जाती हैतनवृथत्तत्त

    अभ्यैंति

    अात्मप्रदोशाोैं का अाकाि

    बाह्यपाैद्गमलक इैंदद्रय का अाकाि

  • उपकिण-जजसको िािा तनवृथत्तत्त का उपकाि वकया जाता है

    उपकिण

    अभ्यैंति

    नोत्र मोैं काला, सफो द मैंड़ल

    बाह्यनोत्र की पलकोैं , र्ाैैंहोैं

  • र्ावोप्न्द्रय

    लस्ब्धध

    मततज्ञानाविणादद कमथ को क्षयाोपशम सो उत् पन् न

    ववशुणि, उघाड़

    उपयाोग

    ववशुणि (लस्ब्धध) सोउत् पन् न अात्मा काप्रवतथनरूप ज्ञान

  • ज्ञान की प्रगट प्राि शमक्त लस्ब्धधइस शमक्त का प्रयाोग उपयाोग

    इस उपयाोग मोैं सहकािी साधन द्रव्य इप्न्द्रय

    द्रव्य इप्न्द्रय को मलयो सहकािी उपकिण

  • ☸स्पशथन-िसन-घ्राण-चक्षुः-श्राोत्राणण॥19॥स्पशथन, िसना, घ्राण, चक्षु अाैि कणथ यो 5 इप्न्द्रयााँ हैैं ।

    ☸ स्पशथ-िस-गन्ध-वणथ-शब्धदास्तदर्ाथ:।20॥स्पशथ, िस, गैंध, वणथ अाैि शब्धद यो उनको ववषय हैैं ।

  • स्पशथन िसना घ्राण

    चक्षु कणथ

    इप्न्द्रय

  • • ववषयइप्न्द्रय

    •8 प्रकाि का स्पशथस्पशथन

    •5 प्रकाि का िसिसना

    •2 प्रकाि की गैंधघ्राण

    •5 प्रकाि का रूपचक्षु

    •शब्धद तर्ा 7 प्रकाि का स्विकणथ

  • स्पशथ, िस, गैंध अाैि वणथ ताो पुद् गल को

    गुण हैैं ।अावाज व शब्धद पुद् गल

    की पयाथय है ।

  • मन की गणना इप्न्द्रयाोैं मोैं काोैं नहीैं की गई है?

    मन अन्य इप्न्द्रयाोैं को समान तनयत स्र्ानीय नहीैं है

    तर्ा उस मन का तनममत्त पाकि चक्षु अादद इप्न्द्रयाैं ववषयाोैं मोैं व्यापाि किती हैैं ।

  • इप्न्द्रयाोैं की सहायता किना ही मन का प्रयाोजन है या अाैि र्ी कुछ प्रयाोजन है? यह

    अगलो सूत्र मोैं बतातो हैैं-

    ☸श्रुतमतनप्न्द्रयस्य ॥21॥☸मन का ववषय श्रुत है ।

  • श्रुत

    श्रुतज्ञान का ववषयर्ूत पदार्थ

  • श्रुत श्राोत्रोैंदद्रय का ववषय है वह मन का ववषय कैसो हाो सकता है?

    ☸श्रुत काो श्राोत्रोैंदद्रय का ववषय माननो पि मततज्ञान का प्रसैंग अाएगा,

    ☸जबवक मततज्ञान हाोनो को बाद हाोनो वाला मचन्तन वह श्रुत है अाैि उसो यहााँ मलया गया है

  • श्रुतज्ञान सो जानो हुए पदार्ाोों काो मन जानता है ताो का मततज्ञान सो जानो हुयो पदार्ाोों काो मन

    जानता है की नहीैं?

    ☸मन को जाननो याोग्य श्रुत ही है एोसा नहीैं है

  • श्रुत ज्ञान मन को तनममत्त सो ही हाोता है या अन्य इप्न्द्रयाोैं को तनममत्त सो र्ी हाोता है?

    ☸श्रुत ज्ञान को वल अतनप्न्द्रय (मन) को तनममत्त सो ही हाोता है

  • ☸वनस्पत्यन्तानामोकम्॥22॥पृथ्वीकाय सो लोकि वनस्पततकाय तक को जीवाोैं की एक

    स्पशथन इप्न्द्रय हाोती है

    ☸कृमम-वपपीमलका-भ्रमि-मनषु्यादीनामोकैकविृातन॥23॥कृमम, चीैंटी, र्ाँविा अाैि मनुष्य अादद को एक एक इप्न्द्रय

    अधधक हाोती है

  • र्ोद

    १ इप्न्द्रय• स्पशथन

    २ इप्न्द्रय• स्पशथन, • िसना

    ३ इप्न्द्रय• स्पशथन, • िसना, •घ्राण

    ४ इप्न्द्रय• स्पशथन, • िसना,•घ्राण, •चक्षु

    ५ इप्न्द्रय

    • स्पशथन,• िसना,•घ्राण, •चक्षु,• कणथ

  • सैंणज्ञनः समनस्काः॥24॥

    ☸मन सद्वहत जीवाोैं काो सैंज्ञी कहतो हैैं ।

  • मन• द्वहत अद्वहत का ववचाि,शशक्षा अाैि उपदोश ग्रहण किनो की शमक्त सद्वहत ज्ञान ववशोषर्ाव मन

    •हृदय स्र्ान मोैं ८ पैंखुदड़ अाोैं वालो कमल को अाकाि समान पुद्गल वपण्ड़द्रव्य मन

  • सैंज्ञी का कि सकता?

    द्वहत का ग्रहण अाैिअद्वहत कात्याग

    इच्छापवूथक हार् पैि

    अादद चलानोकी विया

    वचन अर्वा चाबकु अाददको िािा

    उपदोश ग्रहणकि सको

    श्ाोक अाददका पाठ -उत्ति दो सको

    उसका जाो नाम िक्खागया हाो बुलानो पि अा सको , उन्मुख हाो

  • सैंज्ञी

    नािकी मनुष्य दोवसैंज्ञी पचोैंदद्रय ततयोंच

    असैंज्ञी

    1,2,3,4 अाैि 5 इप्न्द्रयअसैंज्ञी

  • को वली र्गवान सैंज्ञी है की असैंज्ञी?

    ☸उनको द्रव्य मन पाया जाता है वकन्तु उसका व्यापाि अाैि उस सम्बैंधधत कमथ का अर्ाव हाो गया हैइसीमलए वो सैंज्ञी एवैं असैंज्ञी दाोनाोैं ही नहीैं है ।

  • जजस समय जीव पूवथ शिीि काो छाोड़ कि अाया शिीि धािण किनो जाता है

    तब उसको मन ताो िहता नहीैं है वफि वह कैसो गमन किता है?

    इसको समाधान को मलए अगला सूत्र कहतो हैैं-

  • ववग्रह-गताै कमथ-याोगः॥25॥

    ☸ववग्रह गतत मोैं कामाथण काय याोग हाोता है ।

  • ववग्रह गतत• शिीि को मलए जाो गतत हाोती है उसो ववग्रह गतत कहतो हैैं ।ववग्रह = दोह,

    • जजस अवस्र्ा मोैं नाोकमथ पुदगलाोैं का ग्रहण नहीैं हाोता वह ववग्रह है अाैि एोसी गतत ववग्रह गतत हाोती है ।

    वव+ग्रह = ववरूिग्रहण,

    •माोड़ ो वाली गतत काो ववग्रह गतत कहतो हैैं ।ववग्रह = माोड़ ा,

  • कमथयाोग

    कामाथण वगथणाअाोैं को ग्रहण को तनममत्त सो अात्म प्रदोशाोैं मोैं परिस्पन्दन हाोता है जजसो कमथ याोग कहतो हैैं ।

    यह याोग ससफथ ववग्रह गतत मोैं ही पाया जाता है

  • ☸ववग्रह गतत मोैं जीव इस कमथ याोग को िािा ही जीव नवीन कमाोों काो ग्रहण किता है अाैि

    ☸मृत्यु स्र्ान सो अपनो जन्म लोनो को स्र्ान तक जाता है ।

  • ☸अनुश्रोणणः गततः॥26॥ववग्रह गतत मोैं जीव अाैि पुद् गलाोैं की गतत अाकाश की

    पैंमक्त को अनुसाि हाोती है ।

    ☸अववग्रहा जीवस्य॥27॥ मुक्त जीव की गतत माोड़ ो िद्वहत हाोती है ।

  • यहााँ ताो जीव का अधधकाि है ताो पुद् गल का ग्रहण काोैं वकया?

    ☸अागो ‘अववग्रहा जीवस्य’ सूत्र मोैं जीव का उक लोख वकया है इससो पता चलता है की यहााँ ससफथ जीव की ही गतत नहीैं बातो है ।

  • ववशोष

    ☸सर्ी जीव अाैि पुद् गल की गतत श्रोणी को अनुसाि नहीैं हाोती ह,ै मुक्त जीव अाैि शुि पुद् गल पिमाणु की गतत अनुश्रोणी हाोती है ।

    ☸शोष को मलए काोई तनयम नहीैं है ।

  • प्र. सूत्र 27 मोैं मुक्त जीव की गतत बताई है यह कैसो ज्ञात हुअा?

    ☸अगलो सूत्र मोैं ‘सैंसािीण:’ शब्धद का प्रयाोग वकया जजससो ज्ञात हुअा की इस सूत्र मोैं मुक्त जीव की गतत बताई है ।

  • ववग्रहवती च सैंसारिणः प्राक्चतुभ्यथ:॥28॥

    ☸सैंसािी जीवाोैं की चाैर्ो समय सो पहलो ववग्रहगतत( माोड़ ो वाली) हाोती है अाैि वबना माोड़ ो वाली गतत र्ी हाोती है

  • ❖ ❖

  • ववशोष – वकतनी र्ी दिूी हाो यदद जीव, पुद् गल वबना माोड़ ो की गतत कि िहा है ताो उसमो एक ही समय लगोगा

  • अनाहािक

    अाहािक

  • अाहािक

    अनाहािक

    अनाहािक

    2

  • एकसमयाऽववग्रहा॥29॥

    ☸वबना माोड़ ो वाली गतत मोैं एक समय लगता है, इसी काो ऋजुगतत र्ी कहतो हैैं वह ववग्रहगतत नहीैं हाोती है।

  • एकैं िाै त्रीन्वाऽनाहािकः॥30॥

    ☸ववग्रहगतत मोैं जीव एक समय, दाो समय अर्वा 3 समय तक अनाहािक िहता है

  • सम्मूछथनगर्ाोथपपादा जन्म॥31॥

    ☸जन्म 3 प्रकाि का है- सम्मूछथन, गर्थ, उपपाद ।

  • जन्म

    सम्मूछथन गर्थ उपपाद

  • •माता वपता को िज-वीयथ सो उत्पत्तत्त हाोनागर्थ•सैंपुट शय्या या उष्टर ादद मुखाकाि याोतन मोैं अैंतमुथहूतथ काल मोैं ही जीव का उत्पन्न हाोनाउपपाद

    •सब अाोि सो पिमाणु ग्रहण कि शिीि कीिचना हाोनासम्मूछथन

  • ☸जिायुजाण्ड़जपाोतानाैं गर्थः॥33॥☸जिायुज, अैंड़ज अाैि पाोत इन 3 प्रकाि को

    प्राणणयाोैं को गर्थ जन्म हाोता है☸ दोव-नािकाणामुपपादः॥34॥

    ☸दोव अाैि नािवकयाोैं का उपपाद जन्म हाोता है☸शोषाणाैं सम्मूछथनम्॥35॥

    ☸शोष जीवाोैं का सम्मूछथन जन्म हाोता है

  • गर्थ जन्म को 3 प्रकािपाोत

    • याोतन सो तनकलतो हीचलना अादद की सामथ्यथ सो सैंयुक्त है वह जीव पाोत कहलाता है।

    • ससैंह, नोवला अादद

    जिायुज•प्राणी को शिीि को ऊपि जाल समान अाविण -माैंस, लहू जजसमोैं ववस्तािरूप पाया जाता है एोसा जाो जिायु, उसमोैंउत्पन्न जीव जिायजु कहलाता है।

    •गाय, हार्ी अादद

    अैंड़ज•शुि, लहूमय तर्ा नख को समान कदठन अाविण सद्वहत, गाोल अाकाि काधािक वह अण्ड़, उसमोैं उपजनो वाला जीव अैंड़ज कहलाता है।

    •चील, कबूति अादद

  • जन्म र्ोद स्वामीसम्मूछथन

    एकोैं दद्रय

    ववकलो प्न्द्रय

    पैंचोप्न्द्रय ततयोंच

    लस्ब्धध अपयाथ तमनुष्य

    गर्थपाोत

    जिायजु

    अैंड़ज

    उपपाददोव

    नािकी

  • समचत्त-शीत-सैंवतृाः सोतिा ममश्राश्चैकश-स्तद्याोनयः॥32॥

    ☸समचत्त, शीत, सैंवृत्त इनको उकटो अमचत्त, उष्ण, वववतृ अाैि इन तीनाोैं को ममश्र अर्ाथत्समचत्तामचत्त, शीताोष्ण अाैि सैंवृतवववृत यो याोनी को 9 र्ोद हैैं

  • याोतन

    जीव का उपजनो का स्र्ान वह याोतन है।

    ममश्ररूप हाोकि अाैदारिकादद नाोकमथवगथणारूप पद्ु गलाोैं सो सद्वहत बैंधता है जीव जजसमोैं, वह याोतन है।

  • याोतन

    अाकृतत

    उत्पत्तत्त स्र्ान की अाकृतत को अाधाि पि र्ोद

    गुण

    उत्पत्तत्त स्र्ान को स्पशाथदद गुण को अाधाि पि र्ोद

  • अाकाि याोतन

    शैंखावतथ याोतन गर्थ तनयम सो वववजजथत है, गर्थ िहता ही नहीैं है

    कूमाोथन्नत याोतनतीर्ोंकि वा सकलचिवतीथ वा

    अधथचिवतीथ, नािायण, प्रततनािायण वा बलर्द्र उपजता है

    वैंशपत्र याोतन अवशोष जन उपजतो हैैं, तीर्ोंकिादद नहीैं उपजतो

  • गुण याोतन

    समचत्त अमचत्त समचत्तामचत्त शीत उष्णशीताोष्ण सैंवृत वववृत

    सैंवृतवववृत

  • समचत्त

    अात्मा को चैतन्य रूप परिणाम ववशोष काो मचत्त कहतो हैैं ।

    जाो मचत्त को सार् िहता है वह समचत्त कहलाता है ।

  • जन्म अाैि याोतन मोैं का र्ोद ह?ै

    ☸याोतन अाधाि अाैि जन्म अाधोय है ।

  • • चोतन को सार् जाो िहो, वो समचत्त हैैं अर्ाथत ्जीव सद्वहत याोतन• जैसो अालू, गाजि अाददसमचत्त

    •चोतन सो िद्वहत याोतन•जैसो गोहूाँ को बीजअमचत्त

    • चोतन अाैि पुद् गल सद्वहत उत्पत्तत्त स्र्ान• जैसो माता का गर्थसमचत्तामचत्त

    • जजन पुद् गलाोैं मोैं शीत स्पशथ प्रकट हैशीत

    • जजन पुद् गलाोैं मोैं उष्ण स्पशथ प्रकट हैउष्ण

    •शीत अाैि उष्ण एोसो उर्यरूप पुद् गल स्कैं धशीताोष्ण

  • •जाो पुद् गल स्कैं ध दोखनो मोैं नहीैं अातो, जजनका अाकाि गु त हैसैंवृत

    •जाो पुद् गल स्कैं ध प्रकट अाकाि काो मलए है, दोखनो मोैं अाता हैवववृत

    • कुछ प्रकट अाैि कुछ अप्रकट पुद् गल स्कैं धसैंवृतवववृत

  • जन्म प्रकाि मोैं समचत्त अादद याोतनयााँ

    सचित्त अचित्त सचित्ताचित्त

    उपपाद ✓

    गर्भ ✓

    सम्मूर्भन ✓ ✓ ✓

  • जन्म प्रकाि मोैं शीत अादद याोतनयााँ

    शीत उष्ण शीतोष्ण

    उपपाद ✓ ✓

    गर्भ ✓ ✓ ✓

    सम्मूर्भन ✓ ✓ ✓

  • जन्म प्रकाि मोैं सैंवृत अादद याोतनयााँसंवतृ चववतृ संवतृ-चववतृ

    उपपाद ✓

    गर्भ ✓

    सम्मूर्भन ✓ ✓

    -एकेचरिय ✓

    -चवकलचेरिय ✓

    -पंिचेरिय ✓

  • वकस याोतन मोैं काैन जीव जन् म लोता है ?जीव याोतन

    दोव व नािकी अमचत्त शीत व उष् ण सैंवृत्तगर्थज—मनषु् य व ततयोंच समचत्तामचत्त

    तीनाोैं प्रकाि

    सैंवृतवववृतसम्मूच् छथन मनुष् य वपैंचोप्न्द्रय ततयोंच

    तीन प्रकाि (समचत्त, अमचत्त व

    ममश्र)

    वववृतववकलो प्न्द्रयएको प्न्द्रय (पृथ् वी, वायु, प्रत् योक वनस् पतत) सैंवृत

    अप्ग् न उष् णजल शीत

    साधािण वनस् पतत समचत्त तीनाोैं प्रकाि

  • ➢ Reference : श्री गाोम्मटसाि जीवकाण्ड़जी, श्री जैनोन्द्रससिान्त काोष, तत्त्वार्थसतू्रजी

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