पीडीए ईबुक – रचनाकार.ऑग की तु तत ोवगन यादव की कतवताएँ कतवता स ं ह : बचे हुए समय म म ु झे साथ दो. मुझे साथ दो मेरे साथी मुझे हाथ दो मेरे साथी म इस धरती पर वग बसाउँ म इस धरती पर रामराय लाउँा वे सर उठाये चले आ रहे ह पशु से बदतर पाषाणी चले आ रहे ह नजर उठा के देखो तो सही घटाय तम की घनी छा रही है साँस मे घुटन बढती जा रही है साथ को साथ दो मेरे साथी साज पर आवाज दो मेरे साथी म इस धरती पर सूयग बनकर दमक ु ा
hindi kavita sangraha bache huae samay me - by govardhan yadav
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Transcript
पीडीएफ ईबक ndash रचनाकारऑरग की परसततत
रोवरगन यादव
की
कतवताए
कतवता सगरह बच हए समय म
मझ साथ दो
मझ साथ दो मर साथी मझ हाथ दो मर साथी म इस धरती पर सवरग बसाउ म इस धरती पर रामराजय लाउरा व सर उठाय चल आ रह ह पश स बदतर पाषाणी चल आ रह ह नजर उठा क दखो तो सही घटाय तम की घनी छा रही ह सासो म घटन बढती जा रही ह साथ को साथ दो मर साथी साज पर आवाज दो मर साथी म इस धरती पर सयग बनकर दमक रा
म पाषाणी उनकी मोमो म ढल दरा जजनदरी स मौत दर ककतनी मौत स दर ककतनी जजनदरी यही कछ दर ह ना कक वही कछ दर ह ससरग सासो का कोरा करमसचय ह मझको य सास द दो साथी मझको य सास द दो साथी म परचणड परलय बनकर ररजरा म नस-नस म उनकी डर भर दरा ककतनी ही होती ह खलकर बात जब भी आती ह कछ ऎसी रात समलकर एक होत ह ऎस जस नीर कषीर म एक दसर आज ककसी न आचल थामा ह आज ककसी न नजर उठाया ह उठती नजर उठा ही दरा उठत हाथ मरोड ही दरा मझ साथ दो मर साथी मझ हाथ दो मर साथी मझकॊ उन हाथॊ की जररत ह मझको उस हाथॊ की जररत ह मझ खन दो मर साथी मझ साथ दो मर साथी बस अपना एक मसकराना ह पवन कह दो हर कली स कक वह तयार रह घोर घमणड कर तरान आन वाला ह ररन म घोर काल बादल घघरर कौन जान कबदासमनी-कासमनी का होरा नतगन कडक-कडक करचमक-चमक कर व भरना चाहरी डर नस-नस म पर इसस तझ कया आती तो रहरी हरदम घडडया तम की और कभी समलरा समसलनद आसकत रकत का
खखल सर क टको क बीच मसकराना ह जजनदरी म अपना बसएक मसकराना ह
अब तम आयी लहरो पर इठलाती बलखाती धप बस ऐस ही छा जाता तमहारा यौवन रप कमलाकर को पाकर जस खखल पडा कमल याद आत ही बस हस पडा ददल पकषकषयो का ककललोल
ररझान वाल रान लरता रह-रह कर द रही मझको तान मथर रघत स चलती इठलाती मदमाती परवाई लहरो पर इठलाती बलखाती लरता अब तम आयी बचनी न दलराया जब मन पहली बार तमह दखा था ददल म मीठा ददग दबाय घनत दखा करता था सपन न जान ककतनी ही बार बचनी न दलराया था धडकन हई कई बार तज अभी तक नही जान पाया था लरी ददल की बढती रही सास बरग सी जमती रही सवपन मर सजान आय़ी हो तोदवार पर कयो खडी रह रई
जजनदरी भी मसकरा दरी परीत क रीत मझ द दो तोम उमर भर राता रह परीत ही मझ द दो तो म जजनदरी भर सवारता रह जब म तमहारी सरहद म आया था याद कर तो कछ याद न आया था एक अजब खामोशी व खमारी थी जो मझ पर अब तक छाय ह खामोशी क राज मझ द दो कक म चन की बसी बजाता रह
रीत नय-नय राता रह रीत नय-नय रनरनाता रह तम तभी स अपन हो जब चाद तार भी न थ य जमी आसमान भी न थ तम तभी स साथ हमार थ रीतो क बदल जजनदरी भी मार लोरी तो मझ तघनक भी रम न रहरा कयोकक मझ मालम ह कक रीतॊ क बहान नयी जजनदरी लकर तम दवार मर जरर आओरी
अधरो पर सलख दो इन अधरो पर सलख दो एक सहाना सा नाम हो ना जाय अनबबहायी पीडा helliphelliphelliphellip बदनाम
सपनॊ न नयनो को नीर ही ददया ह चदा न चकोरी कॊ पीर ही ददया ह वदना ह मीरा तो मरहम ह शयाम इन अधरो पर सलख दो सनदर सा एक नाम
दखरी अलसाई रत जरी अखखया भनसार पनघट पर छडरी सखखया बार-बार पछरी सजना का नाम इन अधरो पर सलख दो सहाना सा एक नाम
पर-पर दीप जलाय ह पर-पर दीप जलाय ह किर भी ठोकर खा ही जाती ह य पजन सार की सार भद पल भर म खोल जात ह कहा कई ह बार नटवर स कक इतनी रात बीत न छडा कर तान अपनी lsquo कक म हो जाऊ अधीर बावली कासलदी क तट पर न जा ककस झरमट म घछपकर करत आख समचौनी मालम ककतनी वयाकल होती ह म और भर आत नयना पलभर म किर चपक - चपक आकर
मझको व बाहो म भर लत सहमी-सहमी सी रह जाती म सारा की सारा रससा पीकर बाहो क बधन का सख ककतना पयारा-पयारा त कया जान पहर बीत जाती पल म और मन ही मन रह जाती ककतनी ही सारी बात सखी-य़ दीपावसलया ककतनी पयारी-पयारी न जान ककतना तम हर लती ह ऎस ही उस नटवर की मधर समघत ककतन अलौककक सवपन ददखा जाती ह किर समझ नही मझको य पडता ह य जर मझ कयो बावरी-बावरी कहता ह
जल जल दीप जलाए सारी रात जल जल दीप जलाय सारी रात हर रसलया सनी सनी हर छोर अटाटप अधरा भटक न जाय पथ म आन वाला हमराही मरा झलस- झलस दीप जलाय सारी रात घटाय जब घघर-घघर आती मरा मन ह घबराता हा-ददखता नही कोई सहारा
कषकषजततज म आख लराय हर कषण तरी इनतजारी म सससक-सससक दीप जलाय सारी रात आशाओ की पी पीकर खाली पयाली य जर जीवन रीता ह य जीवन बोझ कटीला ह राहो क शल कटील ह घतस पर यह चलता दम भरतता ह तडर तडफ़र दीप जलाय सारी रात लौ ही दीपक का जीवन सनह म ही जसथर जीवन बझन को होती ह रह रह घतस पर आधी शोर मचाती एक दरस को अखखया अकलाती जल जल दीप जलाय सारी रात
दीपक माटी का तम हो सोन की वादटका तो म ह ननहा दीपक माटी का तम परभात क साथ समल अलख जरान आयी हो जजसक रव म कोई कवव रोता ह या हसता ह मरा असताचल का साथ मानो भारी घनदरा लाया ह जजसका कण कण भी आखो म आज सोता ह
दघनया भी ककतनी बौराई ह या किर कोई पारलपन ह कोई कहता समटटी सोना हो रया कोई कहता सोना समटटी हो रया यदद य अनतर एकाकी हो जाय तो दघनया घनववगकार हो जाय
कयो कर मरा आरन महक रया ह अचानक यदह तमस हई भट थी अनायास ही य अखखया समल लाचार हई थी कयो कर तम तभी स मझ याद आ रह हो अलहड यौवन कयो कर कछ खोया खोया सा ह और चचलता कयोकर रहरी चपपी साध ह
कयोकर तभी स यह एक नया पररवतगन ह अजञातभय स काप उठ थ हाथ मर जब मन छडा वीणा नवीना को था एक नया सवर पाया था जजस न चाहकर भी पाया था कयोकर अब रोम-रोम मर रीत तमहार रनरनान लर ह अलसाय सपनो न ली अब एक नई अरडाई ह बदल बदलकर रप घनत नय मन को मर रदरदान लर ह कयो कर सपन मर बहक बहक रय ह बार की हर डाली डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नई रवार बाट रहा कयोकर मरा आरन महक महक रया ह
छोटा सा सदश जा उड जा र उस ओर जहा मर सावररया रहत ह जो हरदम मर उर म बसत ह लकर य छोटा सा सनदश कक बबना तमहार लरता जीवन सना-सना आ म तमको उनकी पहचान बताऊ सावरी-सावरी सी सरत होरी खयालो म डब-डब स होर
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
म पाषाणी उनकी मोमो म ढल दरा जजनदरी स मौत दर ककतनी मौत स दर ककतनी जजनदरी यही कछ दर ह ना कक वही कछ दर ह ससरग सासो का कोरा करमसचय ह मझको य सास द दो साथी मझको य सास द दो साथी म परचणड परलय बनकर ररजरा म नस-नस म उनकी डर भर दरा ककतनी ही होती ह खलकर बात जब भी आती ह कछ ऎसी रात समलकर एक होत ह ऎस जस नीर कषीर म एक दसर आज ककसी न आचल थामा ह आज ककसी न नजर उठाया ह उठती नजर उठा ही दरा उठत हाथ मरोड ही दरा मझ साथ दो मर साथी मझ हाथ दो मर साथी मझकॊ उन हाथॊ की जररत ह मझको उस हाथॊ की जररत ह मझ खन दो मर साथी मझ साथ दो मर साथी बस अपना एक मसकराना ह पवन कह दो हर कली स कक वह तयार रह घोर घमणड कर तरान आन वाला ह ररन म घोर काल बादल घघरर कौन जान कबदासमनी-कासमनी का होरा नतगन कडक-कडक करचमक-चमक कर व भरना चाहरी डर नस-नस म पर इसस तझ कया आती तो रहरी हरदम घडडया तम की और कभी समलरा समसलनद आसकत रकत का
खखल सर क टको क बीच मसकराना ह जजनदरी म अपना बसएक मसकराना ह
अब तम आयी लहरो पर इठलाती बलखाती धप बस ऐस ही छा जाता तमहारा यौवन रप कमलाकर को पाकर जस खखल पडा कमल याद आत ही बस हस पडा ददल पकषकषयो का ककललोल
ररझान वाल रान लरता रह-रह कर द रही मझको तान मथर रघत स चलती इठलाती मदमाती परवाई लहरो पर इठलाती बलखाती लरता अब तम आयी बचनी न दलराया जब मन पहली बार तमह दखा था ददल म मीठा ददग दबाय घनत दखा करता था सपन न जान ककतनी ही बार बचनी न दलराया था धडकन हई कई बार तज अभी तक नही जान पाया था लरी ददल की बढती रही सास बरग सी जमती रही सवपन मर सजान आय़ी हो तोदवार पर कयो खडी रह रई
जजनदरी भी मसकरा दरी परीत क रीत मझ द दो तोम उमर भर राता रह परीत ही मझ द दो तो म जजनदरी भर सवारता रह जब म तमहारी सरहद म आया था याद कर तो कछ याद न आया था एक अजब खामोशी व खमारी थी जो मझ पर अब तक छाय ह खामोशी क राज मझ द दो कक म चन की बसी बजाता रह
रीत नय-नय राता रह रीत नय-नय रनरनाता रह तम तभी स अपन हो जब चाद तार भी न थ य जमी आसमान भी न थ तम तभी स साथ हमार थ रीतो क बदल जजनदरी भी मार लोरी तो मझ तघनक भी रम न रहरा कयोकक मझ मालम ह कक रीतॊ क बहान नयी जजनदरी लकर तम दवार मर जरर आओरी
अधरो पर सलख दो इन अधरो पर सलख दो एक सहाना सा नाम हो ना जाय अनबबहायी पीडा helliphelliphelliphellip बदनाम
सपनॊ न नयनो को नीर ही ददया ह चदा न चकोरी कॊ पीर ही ददया ह वदना ह मीरा तो मरहम ह शयाम इन अधरो पर सलख दो सनदर सा एक नाम
दखरी अलसाई रत जरी अखखया भनसार पनघट पर छडरी सखखया बार-बार पछरी सजना का नाम इन अधरो पर सलख दो सहाना सा एक नाम
पर-पर दीप जलाय ह पर-पर दीप जलाय ह किर भी ठोकर खा ही जाती ह य पजन सार की सार भद पल भर म खोल जात ह कहा कई ह बार नटवर स कक इतनी रात बीत न छडा कर तान अपनी lsquo कक म हो जाऊ अधीर बावली कासलदी क तट पर न जा ककस झरमट म घछपकर करत आख समचौनी मालम ककतनी वयाकल होती ह म और भर आत नयना पलभर म किर चपक - चपक आकर
मझको व बाहो म भर लत सहमी-सहमी सी रह जाती म सारा की सारा रससा पीकर बाहो क बधन का सख ककतना पयारा-पयारा त कया जान पहर बीत जाती पल म और मन ही मन रह जाती ककतनी ही सारी बात सखी-य़ दीपावसलया ककतनी पयारी-पयारी न जान ककतना तम हर लती ह ऎस ही उस नटवर की मधर समघत ककतन अलौककक सवपन ददखा जाती ह किर समझ नही मझको य पडता ह य जर मझ कयो बावरी-बावरी कहता ह
जल जल दीप जलाए सारी रात जल जल दीप जलाय सारी रात हर रसलया सनी सनी हर छोर अटाटप अधरा भटक न जाय पथ म आन वाला हमराही मरा झलस- झलस दीप जलाय सारी रात घटाय जब घघर-घघर आती मरा मन ह घबराता हा-ददखता नही कोई सहारा
कषकषजततज म आख लराय हर कषण तरी इनतजारी म सससक-सससक दीप जलाय सारी रात आशाओ की पी पीकर खाली पयाली य जर जीवन रीता ह य जीवन बोझ कटीला ह राहो क शल कटील ह घतस पर यह चलता दम भरतता ह तडर तडफ़र दीप जलाय सारी रात लौ ही दीपक का जीवन सनह म ही जसथर जीवन बझन को होती ह रह रह घतस पर आधी शोर मचाती एक दरस को अखखया अकलाती जल जल दीप जलाय सारी रात
दीपक माटी का तम हो सोन की वादटका तो म ह ननहा दीपक माटी का तम परभात क साथ समल अलख जरान आयी हो जजसक रव म कोई कवव रोता ह या हसता ह मरा असताचल का साथ मानो भारी घनदरा लाया ह जजसका कण कण भी आखो म आज सोता ह
दघनया भी ककतनी बौराई ह या किर कोई पारलपन ह कोई कहता समटटी सोना हो रया कोई कहता सोना समटटी हो रया यदद य अनतर एकाकी हो जाय तो दघनया घनववगकार हो जाय
कयो कर मरा आरन महक रया ह अचानक यदह तमस हई भट थी अनायास ही य अखखया समल लाचार हई थी कयो कर तम तभी स मझ याद आ रह हो अलहड यौवन कयो कर कछ खोया खोया सा ह और चचलता कयोकर रहरी चपपी साध ह
कयोकर तभी स यह एक नया पररवतगन ह अजञातभय स काप उठ थ हाथ मर जब मन छडा वीणा नवीना को था एक नया सवर पाया था जजस न चाहकर भी पाया था कयोकर अब रोम-रोम मर रीत तमहार रनरनान लर ह अलसाय सपनो न ली अब एक नई अरडाई ह बदल बदलकर रप घनत नय मन को मर रदरदान लर ह कयो कर सपन मर बहक बहक रय ह बार की हर डाली डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नई रवार बाट रहा कयोकर मरा आरन महक महक रया ह
छोटा सा सदश जा उड जा र उस ओर जहा मर सावररया रहत ह जो हरदम मर उर म बसत ह लकर य छोटा सा सनदश कक बबना तमहार लरता जीवन सना-सना आ म तमको उनकी पहचान बताऊ सावरी-सावरी सी सरत होरी खयालो म डब-डब स होर
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
खखल सर क टको क बीच मसकराना ह जजनदरी म अपना बसएक मसकराना ह
अब तम आयी लहरो पर इठलाती बलखाती धप बस ऐस ही छा जाता तमहारा यौवन रप कमलाकर को पाकर जस खखल पडा कमल याद आत ही बस हस पडा ददल पकषकषयो का ककललोल
ररझान वाल रान लरता रह-रह कर द रही मझको तान मथर रघत स चलती इठलाती मदमाती परवाई लहरो पर इठलाती बलखाती लरता अब तम आयी बचनी न दलराया जब मन पहली बार तमह दखा था ददल म मीठा ददग दबाय घनत दखा करता था सपन न जान ककतनी ही बार बचनी न दलराया था धडकन हई कई बार तज अभी तक नही जान पाया था लरी ददल की बढती रही सास बरग सी जमती रही सवपन मर सजान आय़ी हो तोदवार पर कयो खडी रह रई
जजनदरी भी मसकरा दरी परीत क रीत मझ द दो तोम उमर भर राता रह परीत ही मझ द दो तो म जजनदरी भर सवारता रह जब म तमहारी सरहद म आया था याद कर तो कछ याद न आया था एक अजब खामोशी व खमारी थी जो मझ पर अब तक छाय ह खामोशी क राज मझ द दो कक म चन की बसी बजाता रह
रीत नय-नय राता रह रीत नय-नय रनरनाता रह तम तभी स अपन हो जब चाद तार भी न थ य जमी आसमान भी न थ तम तभी स साथ हमार थ रीतो क बदल जजनदरी भी मार लोरी तो मझ तघनक भी रम न रहरा कयोकक मझ मालम ह कक रीतॊ क बहान नयी जजनदरी लकर तम दवार मर जरर आओरी
अधरो पर सलख दो इन अधरो पर सलख दो एक सहाना सा नाम हो ना जाय अनबबहायी पीडा helliphelliphelliphellip बदनाम
सपनॊ न नयनो को नीर ही ददया ह चदा न चकोरी कॊ पीर ही ददया ह वदना ह मीरा तो मरहम ह शयाम इन अधरो पर सलख दो सनदर सा एक नाम
दखरी अलसाई रत जरी अखखया भनसार पनघट पर छडरी सखखया बार-बार पछरी सजना का नाम इन अधरो पर सलख दो सहाना सा एक नाम
पर-पर दीप जलाय ह पर-पर दीप जलाय ह किर भी ठोकर खा ही जाती ह य पजन सार की सार भद पल भर म खोल जात ह कहा कई ह बार नटवर स कक इतनी रात बीत न छडा कर तान अपनी lsquo कक म हो जाऊ अधीर बावली कासलदी क तट पर न जा ककस झरमट म घछपकर करत आख समचौनी मालम ककतनी वयाकल होती ह म और भर आत नयना पलभर म किर चपक - चपक आकर
मझको व बाहो म भर लत सहमी-सहमी सी रह जाती म सारा की सारा रससा पीकर बाहो क बधन का सख ककतना पयारा-पयारा त कया जान पहर बीत जाती पल म और मन ही मन रह जाती ककतनी ही सारी बात सखी-य़ दीपावसलया ककतनी पयारी-पयारी न जान ककतना तम हर लती ह ऎस ही उस नटवर की मधर समघत ककतन अलौककक सवपन ददखा जाती ह किर समझ नही मझको य पडता ह य जर मझ कयो बावरी-बावरी कहता ह
जल जल दीप जलाए सारी रात जल जल दीप जलाय सारी रात हर रसलया सनी सनी हर छोर अटाटप अधरा भटक न जाय पथ म आन वाला हमराही मरा झलस- झलस दीप जलाय सारी रात घटाय जब घघर-घघर आती मरा मन ह घबराता हा-ददखता नही कोई सहारा
कषकषजततज म आख लराय हर कषण तरी इनतजारी म सससक-सससक दीप जलाय सारी रात आशाओ की पी पीकर खाली पयाली य जर जीवन रीता ह य जीवन बोझ कटीला ह राहो क शल कटील ह घतस पर यह चलता दम भरतता ह तडर तडफ़र दीप जलाय सारी रात लौ ही दीपक का जीवन सनह म ही जसथर जीवन बझन को होती ह रह रह घतस पर आधी शोर मचाती एक दरस को अखखया अकलाती जल जल दीप जलाय सारी रात
दीपक माटी का तम हो सोन की वादटका तो म ह ननहा दीपक माटी का तम परभात क साथ समल अलख जरान आयी हो जजसक रव म कोई कवव रोता ह या हसता ह मरा असताचल का साथ मानो भारी घनदरा लाया ह जजसका कण कण भी आखो म आज सोता ह
दघनया भी ककतनी बौराई ह या किर कोई पारलपन ह कोई कहता समटटी सोना हो रया कोई कहता सोना समटटी हो रया यदद य अनतर एकाकी हो जाय तो दघनया घनववगकार हो जाय
कयो कर मरा आरन महक रया ह अचानक यदह तमस हई भट थी अनायास ही य अखखया समल लाचार हई थी कयो कर तम तभी स मझ याद आ रह हो अलहड यौवन कयो कर कछ खोया खोया सा ह और चचलता कयोकर रहरी चपपी साध ह
कयोकर तभी स यह एक नया पररवतगन ह अजञातभय स काप उठ थ हाथ मर जब मन छडा वीणा नवीना को था एक नया सवर पाया था जजस न चाहकर भी पाया था कयोकर अब रोम-रोम मर रीत तमहार रनरनान लर ह अलसाय सपनो न ली अब एक नई अरडाई ह बदल बदलकर रप घनत नय मन को मर रदरदान लर ह कयो कर सपन मर बहक बहक रय ह बार की हर डाली डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नई रवार बाट रहा कयोकर मरा आरन महक महक रया ह
छोटा सा सदश जा उड जा र उस ओर जहा मर सावररया रहत ह जो हरदम मर उर म बसत ह लकर य छोटा सा सनदश कक बबना तमहार लरता जीवन सना-सना आ म तमको उनकी पहचान बताऊ सावरी-सावरी सी सरत होरी खयालो म डब-डब स होर
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
ररझान वाल रान लरता रह-रह कर द रही मझको तान मथर रघत स चलती इठलाती मदमाती परवाई लहरो पर इठलाती बलखाती लरता अब तम आयी बचनी न दलराया जब मन पहली बार तमह दखा था ददल म मीठा ददग दबाय घनत दखा करता था सपन न जान ककतनी ही बार बचनी न दलराया था धडकन हई कई बार तज अभी तक नही जान पाया था लरी ददल की बढती रही सास बरग सी जमती रही सवपन मर सजान आय़ी हो तोदवार पर कयो खडी रह रई
जजनदरी भी मसकरा दरी परीत क रीत मझ द दो तोम उमर भर राता रह परीत ही मझ द दो तो म जजनदरी भर सवारता रह जब म तमहारी सरहद म आया था याद कर तो कछ याद न आया था एक अजब खामोशी व खमारी थी जो मझ पर अब तक छाय ह खामोशी क राज मझ द दो कक म चन की बसी बजाता रह
रीत नय-नय राता रह रीत नय-नय रनरनाता रह तम तभी स अपन हो जब चाद तार भी न थ य जमी आसमान भी न थ तम तभी स साथ हमार थ रीतो क बदल जजनदरी भी मार लोरी तो मझ तघनक भी रम न रहरा कयोकक मझ मालम ह कक रीतॊ क बहान नयी जजनदरी लकर तम दवार मर जरर आओरी
अधरो पर सलख दो इन अधरो पर सलख दो एक सहाना सा नाम हो ना जाय अनबबहायी पीडा helliphelliphelliphellip बदनाम
सपनॊ न नयनो को नीर ही ददया ह चदा न चकोरी कॊ पीर ही ददया ह वदना ह मीरा तो मरहम ह शयाम इन अधरो पर सलख दो सनदर सा एक नाम
दखरी अलसाई रत जरी अखखया भनसार पनघट पर छडरी सखखया बार-बार पछरी सजना का नाम इन अधरो पर सलख दो सहाना सा एक नाम
पर-पर दीप जलाय ह पर-पर दीप जलाय ह किर भी ठोकर खा ही जाती ह य पजन सार की सार भद पल भर म खोल जात ह कहा कई ह बार नटवर स कक इतनी रात बीत न छडा कर तान अपनी lsquo कक म हो जाऊ अधीर बावली कासलदी क तट पर न जा ककस झरमट म घछपकर करत आख समचौनी मालम ककतनी वयाकल होती ह म और भर आत नयना पलभर म किर चपक - चपक आकर
मझको व बाहो म भर लत सहमी-सहमी सी रह जाती म सारा की सारा रससा पीकर बाहो क बधन का सख ककतना पयारा-पयारा त कया जान पहर बीत जाती पल म और मन ही मन रह जाती ककतनी ही सारी बात सखी-य़ दीपावसलया ककतनी पयारी-पयारी न जान ककतना तम हर लती ह ऎस ही उस नटवर की मधर समघत ककतन अलौककक सवपन ददखा जाती ह किर समझ नही मझको य पडता ह य जर मझ कयो बावरी-बावरी कहता ह
जल जल दीप जलाए सारी रात जल जल दीप जलाय सारी रात हर रसलया सनी सनी हर छोर अटाटप अधरा भटक न जाय पथ म आन वाला हमराही मरा झलस- झलस दीप जलाय सारी रात घटाय जब घघर-घघर आती मरा मन ह घबराता हा-ददखता नही कोई सहारा
कषकषजततज म आख लराय हर कषण तरी इनतजारी म सससक-सससक दीप जलाय सारी रात आशाओ की पी पीकर खाली पयाली य जर जीवन रीता ह य जीवन बोझ कटीला ह राहो क शल कटील ह घतस पर यह चलता दम भरतता ह तडर तडफ़र दीप जलाय सारी रात लौ ही दीपक का जीवन सनह म ही जसथर जीवन बझन को होती ह रह रह घतस पर आधी शोर मचाती एक दरस को अखखया अकलाती जल जल दीप जलाय सारी रात
दीपक माटी का तम हो सोन की वादटका तो म ह ननहा दीपक माटी का तम परभात क साथ समल अलख जरान आयी हो जजसक रव म कोई कवव रोता ह या हसता ह मरा असताचल का साथ मानो भारी घनदरा लाया ह जजसका कण कण भी आखो म आज सोता ह
दघनया भी ककतनी बौराई ह या किर कोई पारलपन ह कोई कहता समटटी सोना हो रया कोई कहता सोना समटटी हो रया यदद य अनतर एकाकी हो जाय तो दघनया घनववगकार हो जाय
कयो कर मरा आरन महक रया ह अचानक यदह तमस हई भट थी अनायास ही य अखखया समल लाचार हई थी कयो कर तम तभी स मझ याद आ रह हो अलहड यौवन कयो कर कछ खोया खोया सा ह और चचलता कयोकर रहरी चपपी साध ह
कयोकर तभी स यह एक नया पररवतगन ह अजञातभय स काप उठ थ हाथ मर जब मन छडा वीणा नवीना को था एक नया सवर पाया था जजस न चाहकर भी पाया था कयोकर अब रोम-रोम मर रीत तमहार रनरनान लर ह अलसाय सपनो न ली अब एक नई अरडाई ह बदल बदलकर रप घनत नय मन को मर रदरदान लर ह कयो कर सपन मर बहक बहक रय ह बार की हर डाली डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नई रवार बाट रहा कयोकर मरा आरन महक महक रया ह
छोटा सा सदश जा उड जा र उस ओर जहा मर सावररया रहत ह जो हरदम मर उर म बसत ह लकर य छोटा सा सनदश कक बबना तमहार लरता जीवन सना-सना आ म तमको उनकी पहचान बताऊ सावरी-सावरी सी सरत होरी खयालो म डब-डब स होर
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
जजनदरी भी मसकरा दरी परीत क रीत मझ द दो तोम उमर भर राता रह परीत ही मझ द दो तो म जजनदरी भर सवारता रह जब म तमहारी सरहद म आया था याद कर तो कछ याद न आया था एक अजब खामोशी व खमारी थी जो मझ पर अब तक छाय ह खामोशी क राज मझ द दो कक म चन की बसी बजाता रह
रीत नय-नय राता रह रीत नय-नय रनरनाता रह तम तभी स अपन हो जब चाद तार भी न थ य जमी आसमान भी न थ तम तभी स साथ हमार थ रीतो क बदल जजनदरी भी मार लोरी तो मझ तघनक भी रम न रहरा कयोकक मझ मालम ह कक रीतॊ क बहान नयी जजनदरी लकर तम दवार मर जरर आओरी
अधरो पर सलख दो इन अधरो पर सलख दो एक सहाना सा नाम हो ना जाय अनबबहायी पीडा helliphelliphelliphellip बदनाम
सपनॊ न नयनो को नीर ही ददया ह चदा न चकोरी कॊ पीर ही ददया ह वदना ह मीरा तो मरहम ह शयाम इन अधरो पर सलख दो सनदर सा एक नाम
दखरी अलसाई रत जरी अखखया भनसार पनघट पर छडरी सखखया बार-बार पछरी सजना का नाम इन अधरो पर सलख दो सहाना सा एक नाम
पर-पर दीप जलाय ह पर-पर दीप जलाय ह किर भी ठोकर खा ही जाती ह य पजन सार की सार भद पल भर म खोल जात ह कहा कई ह बार नटवर स कक इतनी रात बीत न छडा कर तान अपनी lsquo कक म हो जाऊ अधीर बावली कासलदी क तट पर न जा ककस झरमट म घछपकर करत आख समचौनी मालम ककतनी वयाकल होती ह म और भर आत नयना पलभर म किर चपक - चपक आकर
मझको व बाहो म भर लत सहमी-सहमी सी रह जाती म सारा की सारा रससा पीकर बाहो क बधन का सख ककतना पयारा-पयारा त कया जान पहर बीत जाती पल म और मन ही मन रह जाती ककतनी ही सारी बात सखी-य़ दीपावसलया ककतनी पयारी-पयारी न जान ककतना तम हर लती ह ऎस ही उस नटवर की मधर समघत ककतन अलौककक सवपन ददखा जाती ह किर समझ नही मझको य पडता ह य जर मझ कयो बावरी-बावरी कहता ह
जल जल दीप जलाए सारी रात जल जल दीप जलाय सारी रात हर रसलया सनी सनी हर छोर अटाटप अधरा भटक न जाय पथ म आन वाला हमराही मरा झलस- झलस दीप जलाय सारी रात घटाय जब घघर-घघर आती मरा मन ह घबराता हा-ददखता नही कोई सहारा
कषकषजततज म आख लराय हर कषण तरी इनतजारी म सससक-सससक दीप जलाय सारी रात आशाओ की पी पीकर खाली पयाली य जर जीवन रीता ह य जीवन बोझ कटीला ह राहो क शल कटील ह घतस पर यह चलता दम भरतता ह तडर तडफ़र दीप जलाय सारी रात लौ ही दीपक का जीवन सनह म ही जसथर जीवन बझन को होती ह रह रह घतस पर आधी शोर मचाती एक दरस को अखखया अकलाती जल जल दीप जलाय सारी रात
दीपक माटी का तम हो सोन की वादटका तो म ह ननहा दीपक माटी का तम परभात क साथ समल अलख जरान आयी हो जजसक रव म कोई कवव रोता ह या हसता ह मरा असताचल का साथ मानो भारी घनदरा लाया ह जजसका कण कण भी आखो म आज सोता ह
दघनया भी ककतनी बौराई ह या किर कोई पारलपन ह कोई कहता समटटी सोना हो रया कोई कहता सोना समटटी हो रया यदद य अनतर एकाकी हो जाय तो दघनया घनववगकार हो जाय
कयो कर मरा आरन महक रया ह अचानक यदह तमस हई भट थी अनायास ही य अखखया समल लाचार हई थी कयो कर तम तभी स मझ याद आ रह हो अलहड यौवन कयो कर कछ खोया खोया सा ह और चचलता कयोकर रहरी चपपी साध ह
कयोकर तभी स यह एक नया पररवतगन ह अजञातभय स काप उठ थ हाथ मर जब मन छडा वीणा नवीना को था एक नया सवर पाया था जजस न चाहकर भी पाया था कयोकर अब रोम-रोम मर रीत तमहार रनरनान लर ह अलसाय सपनो न ली अब एक नई अरडाई ह बदल बदलकर रप घनत नय मन को मर रदरदान लर ह कयो कर सपन मर बहक बहक रय ह बार की हर डाली डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नई रवार बाट रहा कयोकर मरा आरन महक महक रया ह
छोटा सा सदश जा उड जा र उस ओर जहा मर सावररया रहत ह जो हरदम मर उर म बसत ह लकर य छोटा सा सनदश कक बबना तमहार लरता जीवन सना-सना आ म तमको उनकी पहचान बताऊ सावरी-सावरी सी सरत होरी खयालो म डब-डब स होर
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
रीत नय-नय राता रह रीत नय-नय रनरनाता रह तम तभी स अपन हो जब चाद तार भी न थ य जमी आसमान भी न थ तम तभी स साथ हमार थ रीतो क बदल जजनदरी भी मार लोरी तो मझ तघनक भी रम न रहरा कयोकक मझ मालम ह कक रीतॊ क बहान नयी जजनदरी लकर तम दवार मर जरर आओरी
अधरो पर सलख दो इन अधरो पर सलख दो एक सहाना सा नाम हो ना जाय अनबबहायी पीडा helliphelliphelliphellip बदनाम
सपनॊ न नयनो को नीर ही ददया ह चदा न चकोरी कॊ पीर ही ददया ह वदना ह मीरा तो मरहम ह शयाम इन अधरो पर सलख दो सनदर सा एक नाम
दखरी अलसाई रत जरी अखखया भनसार पनघट पर छडरी सखखया बार-बार पछरी सजना का नाम इन अधरो पर सलख दो सहाना सा एक नाम
पर-पर दीप जलाय ह पर-पर दीप जलाय ह किर भी ठोकर खा ही जाती ह य पजन सार की सार भद पल भर म खोल जात ह कहा कई ह बार नटवर स कक इतनी रात बीत न छडा कर तान अपनी lsquo कक म हो जाऊ अधीर बावली कासलदी क तट पर न जा ककस झरमट म घछपकर करत आख समचौनी मालम ककतनी वयाकल होती ह म और भर आत नयना पलभर म किर चपक - चपक आकर
मझको व बाहो म भर लत सहमी-सहमी सी रह जाती म सारा की सारा रससा पीकर बाहो क बधन का सख ककतना पयारा-पयारा त कया जान पहर बीत जाती पल म और मन ही मन रह जाती ककतनी ही सारी बात सखी-य़ दीपावसलया ककतनी पयारी-पयारी न जान ककतना तम हर लती ह ऎस ही उस नटवर की मधर समघत ककतन अलौककक सवपन ददखा जाती ह किर समझ नही मझको य पडता ह य जर मझ कयो बावरी-बावरी कहता ह
जल जल दीप जलाए सारी रात जल जल दीप जलाय सारी रात हर रसलया सनी सनी हर छोर अटाटप अधरा भटक न जाय पथ म आन वाला हमराही मरा झलस- झलस दीप जलाय सारी रात घटाय जब घघर-घघर आती मरा मन ह घबराता हा-ददखता नही कोई सहारा
कषकषजततज म आख लराय हर कषण तरी इनतजारी म सससक-सससक दीप जलाय सारी रात आशाओ की पी पीकर खाली पयाली य जर जीवन रीता ह य जीवन बोझ कटीला ह राहो क शल कटील ह घतस पर यह चलता दम भरतता ह तडर तडफ़र दीप जलाय सारी रात लौ ही दीपक का जीवन सनह म ही जसथर जीवन बझन को होती ह रह रह घतस पर आधी शोर मचाती एक दरस को अखखया अकलाती जल जल दीप जलाय सारी रात
दीपक माटी का तम हो सोन की वादटका तो म ह ननहा दीपक माटी का तम परभात क साथ समल अलख जरान आयी हो जजसक रव म कोई कवव रोता ह या हसता ह मरा असताचल का साथ मानो भारी घनदरा लाया ह जजसका कण कण भी आखो म आज सोता ह
दघनया भी ककतनी बौराई ह या किर कोई पारलपन ह कोई कहता समटटी सोना हो रया कोई कहता सोना समटटी हो रया यदद य अनतर एकाकी हो जाय तो दघनया घनववगकार हो जाय
कयो कर मरा आरन महक रया ह अचानक यदह तमस हई भट थी अनायास ही य अखखया समल लाचार हई थी कयो कर तम तभी स मझ याद आ रह हो अलहड यौवन कयो कर कछ खोया खोया सा ह और चचलता कयोकर रहरी चपपी साध ह
कयोकर तभी स यह एक नया पररवतगन ह अजञातभय स काप उठ थ हाथ मर जब मन छडा वीणा नवीना को था एक नया सवर पाया था जजस न चाहकर भी पाया था कयोकर अब रोम-रोम मर रीत तमहार रनरनान लर ह अलसाय सपनो न ली अब एक नई अरडाई ह बदल बदलकर रप घनत नय मन को मर रदरदान लर ह कयो कर सपन मर बहक बहक रय ह बार की हर डाली डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नई रवार बाट रहा कयोकर मरा आरन महक महक रया ह
छोटा सा सदश जा उड जा र उस ओर जहा मर सावररया रहत ह जो हरदम मर उर म बसत ह लकर य छोटा सा सनदश कक बबना तमहार लरता जीवन सना-सना आ म तमको उनकी पहचान बताऊ सावरी-सावरी सी सरत होरी खयालो म डब-डब स होर
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
दखरी अलसाई रत जरी अखखया भनसार पनघट पर छडरी सखखया बार-बार पछरी सजना का नाम इन अधरो पर सलख दो सहाना सा एक नाम
पर-पर दीप जलाय ह पर-पर दीप जलाय ह किर भी ठोकर खा ही जाती ह य पजन सार की सार भद पल भर म खोल जात ह कहा कई ह बार नटवर स कक इतनी रात बीत न छडा कर तान अपनी lsquo कक म हो जाऊ अधीर बावली कासलदी क तट पर न जा ककस झरमट म घछपकर करत आख समचौनी मालम ककतनी वयाकल होती ह म और भर आत नयना पलभर म किर चपक - चपक आकर
मझको व बाहो म भर लत सहमी-सहमी सी रह जाती म सारा की सारा रससा पीकर बाहो क बधन का सख ककतना पयारा-पयारा त कया जान पहर बीत जाती पल म और मन ही मन रह जाती ककतनी ही सारी बात सखी-य़ दीपावसलया ककतनी पयारी-पयारी न जान ककतना तम हर लती ह ऎस ही उस नटवर की मधर समघत ककतन अलौककक सवपन ददखा जाती ह किर समझ नही मझको य पडता ह य जर मझ कयो बावरी-बावरी कहता ह
जल जल दीप जलाए सारी रात जल जल दीप जलाय सारी रात हर रसलया सनी सनी हर छोर अटाटप अधरा भटक न जाय पथ म आन वाला हमराही मरा झलस- झलस दीप जलाय सारी रात घटाय जब घघर-घघर आती मरा मन ह घबराता हा-ददखता नही कोई सहारा
कषकषजततज म आख लराय हर कषण तरी इनतजारी म सससक-सससक दीप जलाय सारी रात आशाओ की पी पीकर खाली पयाली य जर जीवन रीता ह य जीवन बोझ कटीला ह राहो क शल कटील ह घतस पर यह चलता दम भरतता ह तडर तडफ़र दीप जलाय सारी रात लौ ही दीपक का जीवन सनह म ही जसथर जीवन बझन को होती ह रह रह घतस पर आधी शोर मचाती एक दरस को अखखया अकलाती जल जल दीप जलाय सारी रात
दीपक माटी का तम हो सोन की वादटका तो म ह ननहा दीपक माटी का तम परभात क साथ समल अलख जरान आयी हो जजसक रव म कोई कवव रोता ह या हसता ह मरा असताचल का साथ मानो भारी घनदरा लाया ह जजसका कण कण भी आखो म आज सोता ह
दघनया भी ककतनी बौराई ह या किर कोई पारलपन ह कोई कहता समटटी सोना हो रया कोई कहता सोना समटटी हो रया यदद य अनतर एकाकी हो जाय तो दघनया घनववगकार हो जाय
कयो कर मरा आरन महक रया ह अचानक यदह तमस हई भट थी अनायास ही य अखखया समल लाचार हई थी कयो कर तम तभी स मझ याद आ रह हो अलहड यौवन कयो कर कछ खोया खोया सा ह और चचलता कयोकर रहरी चपपी साध ह
कयोकर तभी स यह एक नया पररवतगन ह अजञातभय स काप उठ थ हाथ मर जब मन छडा वीणा नवीना को था एक नया सवर पाया था जजस न चाहकर भी पाया था कयोकर अब रोम-रोम मर रीत तमहार रनरनान लर ह अलसाय सपनो न ली अब एक नई अरडाई ह बदल बदलकर रप घनत नय मन को मर रदरदान लर ह कयो कर सपन मर बहक बहक रय ह बार की हर डाली डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नई रवार बाट रहा कयोकर मरा आरन महक महक रया ह
छोटा सा सदश जा उड जा र उस ओर जहा मर सावररया रहत ह जो हरदम मर उर म बसत ह लकर य छोटा सा सनदश कक बबना तमहार लरता जीवन सना-सना आ म तमको उनकी पहचान बताऊ सावरी-सावरी सी सरत होरी खयालो म डब-डब स होर
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
मझको व बाहो म भर लत सहमी-सहमी सी रह जाती म सारा की सारा रससा पीकर बाहो क बधन का सख ककतना पयारा-पयारा त कया जान पहर बीत जाती पल म और मन ही मन रह जाती ककतनी ही सारी बात सखी-य़ दीपावसलया ककतनी पयारी-पयारी न जान ककतना तम हर लती ह ऎस ही उस नटवर की मधर समघत ककतन अलौककक सवपन ददखा जाती ह किर समझ नही मझको य पडता ह य जर मझ कयो बावरी-बावरी कहता ह
जल जल दीप जलाए सारी रात जल जल दीप जलाय सारी रात हर रसलया सनी सनी हर छोर अटाटप अधरा भटक न जाय पथ म आन वाला हमराही मरा झलस- झलस दीप जलाय सारी रात घटाय जब घघर-घघर आती मरा मन ह घबराता हा-ददखता नही कोई सहारा
कषकषजततज म आख लराय हर कषण तरी इनतजारी म सससक-सससक दीप जलाय सारी रात आशाओ की पी पीकर खाली पयाली य जर जीवन रीता ह य जीवन बोझ कटीला ह राहो क शल कटील ह घतस पर यह चलता दम भरतता ह तडर तडफ़र दीप जलाय सारी रात लौ ही दीपक का जीवन सनह म ही जसथर जीवन बझन को होती ह रह रह घतस पर आधी शोर मचाती एक दरस को अखखया अकलाती जल जल दीप जलाय सारी रात
दीपक माटी का तम हो सोन की वादटका तो म ह ननहा दीपक माटी का तम परभात क साथ समल अलख जरान आयी हो जजसक रव म कोई कवव रोता ह या हसता ह मरा असताचल का साथ मानो भारी घनदरा लाया ह जजसका कण कण भी आखो म आज सोता ह
दघनया भी ककतनी बौराई ह या किर कोई पारलपन ह कोई कहता समटटी सोना हो रया कोई कहता सोना समटटी हो रया यदद य अनतर एकाकी हो जाय तो दघनया घनववगकार हो जाय
कयो कर मरा आरन महक रया ह अचानक यदह तमस हई भट थी अनायास ही य अखखया समल लाचार हई थी कयो कर तम तभी स मझ याद आ रह हो अलहड यौवन कयो कर कछ खोया खोया सा ह और चचलता कयोकर रहरी चपपी साध ह
कयोकर तभी स यह एक नया पररवतगन ह अजञातभय स काप उठ थ हाथ मर जब मन छडा वीणा नवीना को था एक नया सवर पाया था जजस न चाहकर भी पाया था कयोकर अब रोम-रोम मर रीत तमहार रनरनान लर ह अलसाय सपनो न ली अब एक नई अरडाई ह बदल बदलकर रप घनत नय मन को मर रदरदान लर ह कयो कर सपन मर बहक बहक रय ह बार की हर डाली डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नई रवार बाट रहा कयोकर मरा आरन महक महक रया ह
छोटा सा सदश जा उड जा र उस ओर जहा मर सावररया रहत ह जो हरदम मर उर म बसत ह लकर य छोटा सा सनदश कक बबना तमहार लरता जीवन सना-सना आ म तमको उनकी पहचान बताऊ सावरी-सावरी सी सरत होरी खयालो म डब-डब स होर
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
कषकषजततज म आख लराय हर कषण तरी इनतजारी म सससक-सससक दीप जलाय सारी रात आशाओ की पी पीकर खाली पयाली य जर जीवन रीता ह य जीवन बोझ कटीला ह राहो क शल कटील ह घतस पर यह चलता दम भरतता ह तडर तडफ़र दीप जलाय सारी रात लौ ही दीपक का जीवन सनह म ही जसथर जीवन बझन को होती ह रह रह घतस पर आधी शोर मचाती एक दरस को अखखया अकलाती जल जल दीप जलाय सारी रात
दीपक माटी का तम हो सोन की वादटका तो म ह ननहा दीपक माटी का तम परभात क साथ समल अलख जरान आयी हो जजसक रव म कोई कवव रोता ह या हसता ह मरा असताचल का साथ मानो भारी घनदरा लाया ह जजसका कण कण भी आखो म आज सोता ह
दघनया भी ककतनी बौराई ह या किर कोई पारलपन ह कोई कहता समटटी सोना हो रया कोई कहता सोना समटटी हो रया यदद य अनतर एकाकी हो जाय तो दघनया घनववगकार हो जाय
कयो कर मरा आरन महक रया ह अचानक यदह तमस हई भट थी अनायास ही य अखखया समल लाचार हई थी कयो कर तम तभी स मझ याद आ रह हो अलहड यौवन कयो कर कछ खोया खोया सा ह और चचलता कयोकर रहरी चपपी साध ह
कयोकर तभी स यह एक नया पररवतगन ह अजञातभय स काप उठ थ हाथ मर जब मन छडा वीणा नवीना को था एक नया सवर पाया था जजस न चाहकर भी पाया था कयोकर अब रोम-रोम मर रीत तमहार रनरनान लर ह अलसाय सपनो न ली अब एक नई अरडाई ह बदल बदलकर रप घनत नय मन को मर रदरदान लर ह कयो कर सपन मर बहक बहक रय ह बार की हर डाली डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नई रवार बाट रहा कयोकर मरा आरन महक महक रया ह
छोटा सा सदश जा उड जा र उस ओर जहा मर सावररया रहत ह जो हरदम मर उर म बसत ह लकर य छोटा सा सनदश कक बबना तमहार लरता जीवन सना-सना आ म तमको उनकी पहचान बताऊ सावरी-सावरी सी सरत होरी खयालो म डब-डब स होर
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
दघनया भी ककतनी बौराई ह या किर कोई पारलपन ह कोई कहता समटटी सोना हो रया कोई कहता सोना समटटी हो रया यदद य अनतर एकाकी हो जाय तो दघनया घनववगकार हो जाय
कयो कर मरा आरन महक रया ह अचानक यदह तमस हई भट थी अनायास ही य अखखया समल लाचार हई थी कयो कर तम तभी स मझ याद आ रह हो अलहड यौवन कयो कर कछ खोया खोया सा ह और चचलता कयोकर रहरी चपपी साध ह
कयोकर तभी स यह एक नया पररवतगन ह अजञातभय स काप उठ थ हाथ मर जब मन छडा वीणा नवीना को था एक नया सवर पाया था जजस न चाहकर भी पाया था कयोकर अब रोम-रोम मर रीत तमहार रनरनान लर ह अलसाय सपनो न ली अब एक नई अरडाई ह बदल बदलकर रप घनत नय मन को मर रदरदान लर ह कयो कर सपन मर बहक बहक रय ह बार की हर डाली डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नई रवार बाट रहा कयोकर मरा आरन महक महक रया ह
छोटा सा सदश जा उड जा र उस ओर जहा मर सावररया रहत ह जो हरदम मर उर म बसत ह लकर य छोटा सा सनदश कक बबना तमहार लरता जीवन सना-सना आ म तमको उनकी पहचान बताऊ सावरी-सावरी सी सरत होरी खयालो म डब-डब स होर
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
कयोकर तभी स यह एक नया पररवतगन ह अजञातभय स काप उठ थ हाथ मर जब मन छडा वीणा नवीना को था एक नया सवर पाया था जजस न चाहकर भी पाया था कयोकर अब रोम-रोम मर रीत तमहार रनरनान लर ह अलसाय सपनो न ली अब एक नई अरडाई ह बदल बदलकर रप घनत नय मन को मर रदरदान लर ह कयो कर सपन मर बहक बहक रय ह बार की हर डाली डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नई रवार बाट रहा कयोकर मरा आरन महक महक रया ह
छोटा सा सदश जा उड जा र उस ओर जहा मर सावररया रहत ह जो हरदम मर उर म बसत ह लकर य छोटा सा सनदश कक बबना तमहार लरता जीवन सना-सना आ म तमको उनकी पहचान बताऊ सावरी-सावरी सी सरत होरी खयालो म डब-डब स होर
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
कछ खोय-खोय स रहत होर रो-रोकर य अखखया न जान ककतनी लाचार हई ह अरमा ककतन लाचार हय ह ररमहल बन रया धसर कदटला हा-तझको य कस बतलाऊ य माना तम शाघत क पररचायक हो एक काम मरा छोटा सा य करना मन क मीत अरर समल जायतो कहना बबना तमहार लरता य जीवन सना-स कल तक मन जो सवपन सजोय थ घनस ददन मझस पछा करत ह ददल नही कहतापर मन का सनदह दर जाकर कया व मझको भल रय होर या उनको भी मरी सधध आती होरी जीवन- मरण का परशन होरा जो तम लकर आओर सनदश बस पान को एक छोटी सी पाती बठी रहरीराहो म अखखया छाती
कस राऊ और रवाऊ र तम कहत हो रीत सनाओ तो कस राऊ और रवाऊ र मर दहरदा पीर जरी ह तो कस राऊ और रवाऊ र आशाऒ की पी-पीकर खाली पयाली म बद-बद को तरसा ह उममीदॊ का सहरा बाध म दवार-दवार भटका ह तम कहत हो राह बताऊ
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
तो कस राह बताऊ र मन एक वयथा जारी ह कस हमराही बन जाऊ र ररो-रर म ररी घनय़घत नटी कया-कया दषय ददखाती ह पातो की हर थरकन पर मदमाती-मसताती ह तम कहत हो रास रचाऊ तोकस नाच और नचाऊ र मन मयर ववरहा रजजत ह कस नाच और नचाऊ र ददन दनी सास बाटता सपन रात द आया ह मन म थोडी आस बची ह तन म थोडी सास बची ह घतस पर तमन सरसभ मारी तोकस-कस म बबखराऊ र तम कहत हो रीत सनाऊ तो कस राऊ और रवाऊ र
छलक रहा रर लाल-लाल
आकाश क भटट म लराई आर लाल-लाल जजसम ईधन झोक ददयारोल-रोल लाल-लाल कढाह म उबल रहा छलकर रहा लाल-लाल छलक रहा लाल-लालटपक रहा लाल-लाल टपक रहा लाल-लाल सख स पड पर जजस हमन तमन कहाटस लाल-लाल
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
झर रह टस लाल-लाल हवा क मसत झोको पर झर रह टस लाल-लाल हो रई परत लाल-लाल बासरी बजाता नदलाल नाच रह गवाल-बाल नाच रह गवाल-बाल घोला रर लाल-लाल भर-भर मारी वपचकारीकर ददयो चीर लाल-लाल कर ददयो चीर लाल-लाल हो रय सब लाल-लाल भर- भर मारा ह जब रर लाल लाल रलाल छा रया रर लाल-लालछा रई धध लाल-लाल नाच रही रोवपया बहाल नाच रह नद क लाल
परीत क छद अधर पर खखल परीत क छद मसकान बनकर सजन अब कौन सी वयथा मन की बचन हो रह रई मौन पलको की सज पर
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
महक उठ सपन एक याद बनकर सजन अब कौन टीस रह रई रलहार बनकर घटाय सावन की पलकॊ म ससमट रह रई मक बनकर सजन अब कौन सी वयथा रह रई पयास बनकर अलकॊ म बाधकर मलयज हौल स शनय अब ससार हआ सजन अब कौन हार हार कर रह रई कणठहार बनकर
कपसील बादल काधो पर वववशताओ का बोझ हथली स धचपकी- बदहसाब बदनाम डडधिया ददल पर आशकाओ-कशकाओ क- ररत जहरील नार घनसतज घनराह पील पक आम की तरह लटकी सरत
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
और सखी हडडडयो क ढाचो क- रमलो म बोई रई आशाओ की नयी-नयी कलम और पाच हाथ क कचच धार म लटक-झलत - कपसील बादल जो आशवासनो की बौझार कर तासलयो की रडरडाहट क बाद किर एक लब अरस क सलय रायब हो जात ह और कलपनाओ का कलपतर रलन-रलन क पहल ही ठठ होकर रह जाता ह
म अपना ईमान नही बचरा पथ पर धररकर चाह कचला जाऊ पर अपना ईमान- नही बचरा धड स कट कर चाह शीश धरर पर अपना ईमान नही बचरा अपन ही जन
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
सवाथगससविवश पर-पर पर रहर रडड खोद रह दबकर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा हर रली-रली चौराहो पर पाखजणडयो क अडड ह चादी क चनद ससकको पर खरीद रह ईमान खड मदाग काया चाह बबक जाय य नकली पतल पर अपना इमान नही बचरा ददल क काल तन क उजल
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
ववषधर बन कर चाह लाख रन पटक तडर-तडर मर जाना चाहरा पर अपना ईमान नही बचरा य धरती राम रहीम की ह य धरती राधी की ह य धरती उन वीरॊ की ह जजनक रकत स ससधचत आज खडा आजादी का पौधा ह आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर आज क सभकमर अपनी पजा करवाना चाह धड स कट कर चाह भजा धरर पर म अपन हाथ नही जोडरा म अपना ईमान नही बचरा
अपनी माटी का कया होरा धरती पर पलन वाला धरती पर रलन वाला मानव कछ सोच रहा बठ रररी क झोको पर अपनी माटी को भल रहा खबर नही ह उसको अपनपन कीजनधन की ओ-आसमा पर समपाघत सा ऊचा उडन वालो रर तमन सोचा होता अपन कोमल पखो का कया होरा हर रली-रली चौराहो पर पाखडडयो क अडड ह तन - मन लीलाम हो रहा
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
चादी क चद ससकको पर अब सटजो तक शष रही अब आम सभाओ तक शष रही मानव स मानवता की चचागए ओ मानवता क भकषक बनन वालो रर तमन सोचा होता राधी क सपनो का कया होरा हाट बाट म बबकन वाली राम परघतमाए हमन तमन लाख खरीदी होरी क ठी माला लकर हमन तमन लाख दआए बाटी होरी कवल शबदो ही शबदो म हमन जी भर राम रमाया न बदली काया ब बदली माया ओ दानव स मानव बनन वालो रर तमन सोचा होता राम की मयागदा का कया होरा हर सबह हर शाम कवल धचताओ का घरा ह कब ककसको बरबाद कर कब ककसको आबाद कर और कवल बस कवल अपनी ही परभता का बखान कर और दानवता का माटी म दभ भर र अपनी माटी को दमभ ददखान वालो रर तमन सोचा होता अपनी इस माटी का कया होरा
तम तम मर उदबोधन क झील ककनार रमसम-रमसम सी- बठी-बठी िलो क पाखो स कोमल-कोमल हाथॊ स मर जीवन- घट म घोल रही हॊ सममोहन ह दहलता सी तर बाला
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन धचरकाल काल स साध रहा ह अपन अतर तल म बठा-बठा अपन तल को माप रहा ह ककससलत अरमानो क आचल म- सलपटी-सलपटी तम कयो मन क अवरठन को सौरभ स सोख रही हो ह क चन सी कचनार कासमनी बोलो- बोलो तम कौन तोडो- तोडो ह मौन घनवगसना कससमत- भावनाओ की- मथररघत म बहकर म ददरत को माप रहा ह जीवन की कडडयो स- कडडया जोड रहा ह तम असभल ससत- शषक अधरो स परीघत क रस घोल रही हो ह कनदन सी रतनार कासमनी बोलोबोलो तम कौन तोडॊ तोडॊ ह मौन
पाखरी रलाब की मरा भी एक बार था बार म एक रलाब था लाल-लाल वोलाल था मर चमन का ताज था दश का वह रमान था वो जवाहरलाल था जजस पर हम नाज था ऎसा वो रलाब था
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
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पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
एक घटा थी उमड रई एक परलय जरा रई वकत भी मचल रया मौत न अधर धर होठ पर रलाब क चम- चम वो रई झम-झम वो रई बार क रलाब स लौट क जब आया होश था वकत को ससहर-ससहर वो रया काप-काप वो रया एक घटा थी थम रई दहम सी वो जम रई रदन- चीतकार था नयन थ भर-भर मौत क डर-डर हय कसा य रबार था कसा य उतार था कसा य मोड था चमन-चमन उजड रया बारवा करसल रया मौत की ढलान स कसा य खल था कसा य मल था वकत ह करसल रहा और एक ढलान पर सोच और कछ रहा चल और कछ रहा पाख-पाख झर रई
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
शाख-शाख झक रई पात-पात झर रई लाल एक रलाब की कसा य रमान था कसा य खयाल था धरर जहा-जहा भी कतरा-ए रलाब क जार-जार ह रई अनत म बहार की महक-महक ह रई ददरनत म रलाब की एक रल म थी समायी एक शजकत बरमह की उस शजकत को परणाम ह उस रतनरभाग को परणाम ह उस दवदत को परणाम ह आज भी महक रही- लाल पाखडी रलाब की
परीत क अधर पर खखल परीत क छद न बन पाय मखररत मसकान न जान वयथा कौन सी दबी उठी बचन रह रई मौन सज पर पलको की झलक सजील सवपन घनपट अनजान समली मझ आह क साथ टीस रलहार बन रई मौन
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
घटाय सावन की उमडी ससमट आई पलको की कोर न जान धचर अतजपत की पयास रल कॊ र ध रही ह कौन अलस कनतल म मलयज की रध का वास नही समलता चरा कर ल रया कौन बताता नहीरहता ह मौन उमर भर रही जजसस अनजान पररधचता बन बठी ह कौन
लाघ रई धप यौवन की दहलीज लाघ रई धप डाली स टट बबखर रय रल सपनॊ की अमराई नही बौरायापन मसताती कोककला राह रई भल यौवन की दहलीज लाघ रई धप सनी पयालो की रहराई
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
रीत पलको क पमान सससक रही मधबाला पीकर आस खार क रन की खनकार हो रई अथगहीन पाव बधी पायल हो रई मौन यौवन की दहलीज लाघ रई धप न जान ककतनी ह बाकी जीवन म और सास और न जान ककतनी भरनी ह यदह आह थम रय पाव थम रई छाव उमर की ढलान लरा रई दाव यौवन की दहलीज लाघ रई धप
दीप रीत सखी री एक दीप बारना तम उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम सार दीप जल ह सखी री सखी री दजो दीप बाररयो तम
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
उस दीप क नाम जजस दीप क सहार हम जर दखती ह सखी री सखी री तीजॊ दीप बाररयो तम उस माटी क नाम जजस माटी स बनो ह य दीप सखी री सखी री चौथो दीप बाररयो तम उन दीपो क नाम जो तरानो स टकरा रय थ और बझकर भी भर रय जर म अनधरनत दीपो का उजयारा सखी री शरीमती शकनतला यादव
अपना ववशवास नही कया मझ पर अपना ही ववशवास नही जो कवल कवल सपना था आज वह कवल अपना ह अब तक थी तम आखो की परछाई हो अब मर धडकन की तरणाई कया यह अपना एक नया इघतहास नही भरती सासो सासॊ म पराण तरी य मादक मसकान मदहोश हो उठा पाकर
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
म तरा वह सनदर पयार कया यह आप का वरदान नही हसो क पखो स भी कोमल आखो की कजराई कोमल ककतना नशा इन वासती अरो म खखली अरणाई मानो उदयाचल म अब अपन को अपना ही होश नही खब सरा पी ह मन भरकर इन पयालो स बबधा चका ह असल अपन को इन पासो स मर सख की मादकता खडी दवार पर आज अचानक कस समलन परहर क इस कषण को पान म मन तन क ककतन उतपात सह कया मझ पर अब भी ववशवास नही
लरन मीत का दीप जलाओ लरन मीत का दीप जलाओ तो म दवार तमहार आऊ म मौसम बन छा जाता ह हर रल लदी डाली पर तम अपलक दखती रही दर कषकषघतज पर तम सपनो का मधमास रचाओ तो म मधप बन रली तमहार आऊ
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
बात कभी चली तो याद कर सलया रप कभी बहका तो पलको म आज सलया कभी बदसलया रकी-रकी सी तो मह सा बरसा ददया तम यादो की जजीर बनाओ तो म बधा-बधा चला आऊ यह कम सच भी नही कक म ननहा दीपक माटी का यह उतना ही सच सही कक तम हो सोन की वादटका इस इस अनतरतम को दर हटाओ तो म दवार तमहार आऊ
याद तमहारी आय़ी जब - जब याद तमहारी आयी बरबस ही य नयना भर-भर आय छत की मडर स दर उठती रोधली लाज की मारी ऊ षा लाली सी घछतराती लरता अब तम आयीतब तम आयी बरबस ही खवाबो की लहराई
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
डाल पर अमआ क रडरडान की आवाज मन क सोय तत म किर एक ककरण अलसाई
जब भी तमहार रप क बादल छाय बरबस ही य नयना भर-भर आय
बाध लो इस पयार को ककतनी मादक और सजीली इन होठो की लाली ककतनी पयारी-ह आली रच लो इनको अब वपया मनभावन आवन को वरना य बहकता-बहकता नवरर सा बबखर जायरा ककतना नशीला
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
ककतना मदमाता तमहारा य यौवन रप लरती सहावनी सावन सी धप साज लो इसको थाम लो इनको वरना य मचलता-मचलता ददरनत म बबखर जायरा ककतनी भयानक और शात भी छा जाती ह तम की हाला कक बस सभव ह जयोघत-जवाला बाध लो इस पयार को मन क धारो स वरना य बबखरता-बबखरता बाजार हो जायरा
परघतमा पाषाणी आशाओ क दीप जलाय म आया ह इस दवार - चोला बदल-बदल कर पर तम को कछ भी याद नही अपनी पजा का आराधय- तमही को माना ह मन अपन जीवन का सार तमही को जाना ह मन ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला अरमानो क पषपो को अशकॊ क तारो म रथ रलहार पहनाय थ तमको
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
पर ओ पाषाणी परघतमा तमको कछ भी याद नही खब सना ह मन तर घर दर अवशय ह पर अधर नही ह इसी वासत तर दवार ठहरा ह अब रीत चक- आशाओ क पयाल अब सख चक- अशको क लहरात सारर पर ओ पाषाणी परघतमा हआ न हलचल अब भी तझम ककसी और क अब जाकर दवार खटखटाऊ य ना होरा मझस बची-कची सासॊ क मनसब अब इसी दवार छोडा जाता ह अर आराधय तमही को माना ह अपना मन आज नही तोकल अवशय ही परी होरी मरी सरल आराधना आऊरा किर इसी दवार म चोला बदल-बदलकर ओ पाषाणी परघतमा जडता की आधारसशला
नदी क डश-डाट अशात मन लकर जब म- ककसी नदी क तट पर जाता ह तो लहरो का नतगन रदरदा सप ष और कलरव सनकर मरा भी जी चाहता ह कक दो-चार कववता सलख डाल
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
नदी की कलकल की घनरनतर आती - आवाज को सनकर सहसा धयान दफ़तर म लर- साउनडर की तरर जाता ह जजसस लरातार- डश-डाट डश-डाट- घनरनतर बजता रहता ह इसका मतलब तो हम परायः सभी- घनकाल लत ह लककन नदी क साउनडर स घनकलती- कल-कल की धवघन का मतलब हम कवल अपनी समझ स घनकाल पात ह अलर-अलर जजसका कोई वरीकरण नही होता और न ही इसका कोई मसनजर खबर लकर दवार-दवार भटकता ह
लरता ह लरता ह आज तम बहत उदास हो अलहड सददली बयार क झोको न रह सह मन क सयम को जी भर क उडाया ह आज लरता ह आज मन कही खोया-खोया सा ह
बखबर स बबखर- बबखर य कशक तल न जोडा रया आज घनखरा रलाब
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
लरता ककसी घनषठर सपन न तोडा ह मन लरता ह ककससलत अरमानो को लर रई पतझर की नजर ह मन-पराण कयो ववकल बचन ह कयोकर छट जाती ह धीरज की डोर आओ भी मर सपनो की ठडी छाव तल
तर मर सपन शायद एक रर ह लरता ह सचमच तम आज बहत उदास हो
समाजवाद मथन दव और दानवो न- मथा सारर वयथग ही वपसता रहा वासकक समला कया शाघत-शाघत की- चलती रही चख-चख रायदा उठाया शषशायी न अपना और दवरण का कराया आज इसी करम म हो रहा समाजवाद मथन मसका घनजशचत ही-
वररषठ पायर कछ चमच चाट जायर मठा समाज क नाम चढाकर
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
ररीबी हटाओ ररीबी हठाओ कवल दो शबद और छह अकषर मरर कस कोर भाषणॊ स नही कोर परचारो स नही कवल दहलसमलकर हम उिम -साहस -धयग -बवि-शजकत और पराकरम इन छः ददवयासरो को अपन हाथॊ म लकर सभी छह राकषसो को पलभर म मार सकर इनकी नाभी म अमतक ड ह तो यह हमारा कोरा भरम होरा
ररीबी इनकी नजरो म नता- ररीबी हटाओ इस ददशा म हम बहत कछ परयास करना बाकी ह शायद ररीब रसट ररीबी आफ़टरवडगस डॉकटर ररीबी कोई खास मजग नही लककन इसकी दवा माकट म उपलबध नही
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
मनोवगयघनक - ररीबी एक छत की बबमारी खासकर इसस परशान ह दौलतमद वयापारी ररीबी एक भददा सा शबद जो मरी डडकशनरी म नही इजनजनीयर एक लबी खाई जजस पर पल नही बन सकता ससिातवादी खटमल खाट छोडन पर वववश ह और हम ह कक नीद खलती नही अवसरवादी लाडा मर चाह लाडी
पाल रह नारराज हम असरल परयतन करन क- आदी हो रय ह अचछी स अचछी लचछदार बात करन म- मादहर हो रय ह कोई हमारी सन या न सन हम सनान क शौककन हो रय ह आसन आशवासनभाषण अनमोदन
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
अब हमारी पररपाटी हो रई ह कछ ददनो स चरागया ह शौक हमन अपन ही आरन म बना डाली ह बाबी और पाल रह नारराज बस कवल एक कमी ह उसम वह हम दखकर र सकारता ह पर हमारा भी अटल ववशवास ह एक न एक ददन तो वह मान ही जायरा इसीसलय हमन - उस काघतल को- रोज दध वपलान की ठान ली ह
धमग पररवतगन एक ददन समाजवाद - मच पर खडा ररीब पकष का- जमकर समथगन कर रहा था
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
शायद वह - रामराजय लान क चककर म था जनता न उस खब उछाला उस रल स लराया यहा तक उसक पर भी पड दसर ददन एक दमदार नता न उस दावत पर बलाया सकाच वपलाया और मरगमससलम भी खखलाया तीसर ददन
दश क सभी समाचार परो न बड-बड अकषरो म खबर परकासशत की कक समाजवाद न - अपना धमग पररवतगन कर सलया ह
मरा जीवन कवल- मठठी भर- उजाला ही तो मर पास ह यदद वह म तमह द द तो म कही का नही रहरा नही नही -
यह कदावप नही हो सकता कभी नही हो सकता
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
उसक एक-एक शबद मझ अकषरतः याद ह परघतशोध की जवाला- मझ बार-बार उकसाती ह कक म उसका मह नोच ल पर म उसका कछ भी- बबराड नही पाता ह कयोकक उसकी बद मठठी म सससक रहा होता ह मरा जीवन
परसव पीडा परसव पीीडा की छटपटाहट क बाद जब एक कवव न जनम ददया एक कववता को तो पयार स उसका नाम रखा - शाघत जब दसरी को जनम ददया तो नाम ददया काघत और तीसरी को जनम ददया तो नाम रखा
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
आकघत ठीक इसी तरह राजनीघत क साथ रदी रघतकरीडा करत हय कछ छलो न जनम ददया अशाघत-ववकघत- इसी का दषपररणाम ह कक न जजय चन ह और न मर चन ह यान कक सब बचन ह
तम घनत नतन ससरार करो क चन सी कचनार कासमनी कनक परभा सा तज ऊ षा आकर लाली मल द चाद सी बबददया माथ जड द चमक उठरी दह सखी री तम घनत नतन ससरार करो जब -जब भी ह रल खखल जड स व ह आन जड मलयाचल जब मचल उठ आचल स वह उलझ पड तो महक उठरी दह
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
सखी री तम घनत नतन ससरार करो घटाय काली घघर-घघर आय चातक- मन भरमाय पी-पी की सन टर सखी वयाकल मन घबराय सखी री तम अब थामो धीरज डोर कसलदी क तट पर दखो वपया खड ह जौन बसी क धन पर दखो तोड रह ह मौन सखी री तम घनत नतन असभसार करो सखी री तम घनत -नतन ससरार करो लॊ आ रय बादल उमड-उमड कर घमड-घमड कर लॊ आ रय बादल नभ पर छा रय बादल हवाओ न की अरवानी मयर-पर नाच बसानी लचकती डासलयो न ककया -झककर असभवादन उमड-उमड कर घमड-घमड कर आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल
पयास चातक म पराण भर याचक कषक न हाथ जोड
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
दटन-दटन दटनदटना उठी वषभ की रलहार घदटया लो सररम बबखरत आ रय बादल उमड-घमड आ रय बादल लो नभ पर छा रय बादल तपस की हवस न थ वसनधरा क छीन पराण अब वही बादल बन अमत की रवार बाट रहा सवरग-धरा को जोड रहा बादल बन तार-तार आओ हम सब समलकर खब मनाय बदो का तयोहार नतगन करत रजगन करत लो आ रय बादल नभ पर छा रय बादल
हसताकष सख भी नही पाय थ अभी सख क हसताकषर कक बाढ न दनादन - जड ददय चाट आदमी क राल पर पता नही इन दो पाटो क बीच कब तक वह अपनी सखी हडडडया वपसवाता जायरा हम कोर आशवासनॊ क ढर पर बठ ह व हमार ससर पर आसन सलय बठ ह व घनत नय आसमा स बात करत ह और हम रोज रात म सपनो क जाल बना करत ह इन दो अतरालो क बीच आदमी और ककतना धररता जायरा पता नही-पता नही कब वह सडक पर चलना सीख पायरा
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
अपन आरन म उनहोन लरा रख ह कलपतर सराघट भी सदा उनक पास रहता ह मनकादद अपसराय भी चरणो म बठा ककया करती ह व घनत नय पकवान उडात ह और यहा सखी रोटी भी नसीब नही होती चाद सी ददखन वाली य रोटी और ककतन दर होती जायरी पट और रोटी कक दरी और ककतनी बढती जायरी व यमना क ककनार बठ ह और ररा म पाप धोत ह और हम कवल नाम सनकर भवसारर स पार उतरन की सोचत ह पता नही यह बदरचाल कब तक चली जायरी सना ह हमन कक उनहोन अपनी पीढी-दर-पीढी का कर सलया इतजाम ह और हम पसॊ -पसॊ क सलय दर-दर भटका ककय करत ह यदद मारन की जजद की तो बदल म समलती ह रोसलया पता नही आदमी कब तक आर और पानी पीता जायरा
चदन सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम मन की य पीडा अब सही नही जाय तन की य तपन अब सही नही जाय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
दहकत हय बदन पर सलख दो चदन सा एक नाम सखखयो क घर मझको ह छड नाम को तर महदी स जोड हा तन-मन पर सलख दो मर शीतल सा एक नाम इन होठॊ पर सलख दो एक सहाना सा नाम अपनो स लरन लर हो दखा ह हमन तमह सपनो की राव म पीपल की ठडी छाव म तभी स न जान कयो तम अपनो स लरन लर हो सपन सजील अब सजन लर ह बदल-बदलकर घनत रप नए मन को मर रदरदान लर ह
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
तभी स न जान कयो मझ सपन अचछ स लरन लर ह अलहड यौवन कछ खोया-खोया सा ह और चचलता रहरी चपपी साध ह कयो कर यह एक नया पररवतगन ह तभी स न जान कयो मरा मन रीत तमहार रनरनान लरा ह बार की हर डाली -डाली झल रई यौवन क भार स समलकर इनस पवन झकोरा एक नयी रवार बाट रहा तभी स न जान कयो मरा आरन महक- महक रया ह लो आ रए ददन बहार क सपनो क बनन क फ़लो को चनन क गीत गनगनान क सलोन दिन आ गय लो आ गए दिन मनहार क कललयो क मल म फ़फ़र भी अकल म वासती गीत गान क सतरगी दिन आ गए
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
लो आ गए दिन बहार क फ़ागनी दिडॊलो म झलन को जी चाह बाध मलयज पावो म उडन को जी चाह लो आ गए दिन पयार क रप क लसगार क हास क पररहास क रठन मनान क चमतकारी दिन आ गए लो आ गय दिन रपहल ससार क वाद भारतीय यारी की परघतकषा म एक यान अडा खडा था ककस भजककस न भज इसी उआपोह म मामला ठड बसत म पडा था एक नता न सोचा काश अरर वह- अतररकष म जा पाता तो चाद ससतारो का वभव नजदीक स दख पाता उसन अधीर होकर
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
अपन पीए को बलाया और अपना दखडा रो सनाया तमही बताओ समर जो भी इस अतररकष म जायरा वह भला वहा कया कर पायरा जसा जायरा वसा ही वावपस लौट आयरा काश अरर म जा पाता तो चाद ससतारो की हसीन वाददयो म कछ वाद बो आता वस तो हमन इस धरती पर भाषावाद- जाघतवाद-परातवाद-अवसरवाद-रटवाद और न जान ककतन ही वादो को सरलतापवगक पनपाया ह किर मझ चाद-ससतारो स कया लना-दना व आज भी तमहार ह कल भी तमहार रहर बस मार एक ददली इचछा थी कक म चाद ससतारो की बजर भसम म कछ नए वाद बो आता
जीवन क शनय जीवन क य शनय- कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम- कया कभी भर पायर य आस कछ ऎस आस ह जो घनस ददन बहत ही जायर ददॊ स मरा कछ- ररशता ही ऎसा ह य बहत और बहत ही जायर जीवन क य शनय कया कभी भर पायर ररसत घावो क जखम
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
कया कभी भर पायर आशाए कवल- सवपन जराती ह पलको की सीवपयो स जो वकत-बवकत लढक जाया करती ह सपनो क राजमहल
खणडहर ही होत ह पल भर म बन जाया करत ह और पलभर म ढह जाया करत ह आशाए कया कभी सभी परी हो पाती ह सपन सजील सभी कया कभी सच हो पात ह ववशवास
सोन का मर ह आर-पीछपीछ-आर दौडाय़ा करता ह जीवन भर भटकाया करता ह अशोक की छाया तो होती ह किर भी शोकाकल कर जाता ह जीवन का यह ववशवास कया कभी जी पाता ह जीवन क शनय कया कभी भर पात ह धन-माया सब मरीधचकाए ह पयास दर पयास बढाया करती ह रात तो रात ददन म भी
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
सवपन ददखा जाती ह न राम ही समल पात ह न माया ही समल पाती ह धन-दौलत-वभव कया सभी को रास आत ह जीवन क य शनय कया कभी भर पात ह रल खखलर रलशन-रलशन कया कभी रल लर पायर जीवन कवल ऊसर भसम ह शल ही लर पायर पावो क तलओ को कवल हसत जखम ही समल पायर शल कभी कया रल बन खखल पायर जीवन की उजाड बसती म कया कभी वसत बौरा पायरा जीवन एक लालसा ह वरना कब का मर जाता जीवन जीन वाला मर-मर कर आखखर जीन वाला मर ही जाता ह पर औरो क खाघतर जीनवाला न जान ककतन जीवन जी जाता ह और अपना आलोक अखखल ककतन ही शनयो म भर जाता ह वरना य शनय शनय ही रह जात य रीत थरीत ही रह जात जीवन क य शनय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
कभी-कभी ही भर पात ह पावो क हसत जखम कभी-कभी ही भर पात ह आमरमजरी की हाला आमर मजरी की पीकर हाला कोककला तझको य कणठ समला ह रदक-रदक कर इस डाली स उस डाली तन सममोहन का जाल बना ह अलसाई शरमायी कसलयो न अब अपना घघट खोला ह मदहास मादक धचतवनयन स असलयो को आमरण भजा ह यौवन की रररी लाद कसलया झीनी डाली पर डोल रही ह पवन झकोरो क दहडॊलो पर अपन उनमादो को तौल रही ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलो का ढढता रहा आदमी बतरतीब खवाबॊ को सजाता रहा आदमी होठॊ पर नकली मसकान ओढता रहा आदमी दखन म ककतना खश नजर आता ह आदमी पर सलहार म घसकर रोता रहा आदमी दघनया की तमाम खसशया पान को आदमी आदसमयो का काम तमाम करता रहा आदमी
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
धन - दौलत शोहरत पान को आदमी आदसमयो क शहर जलाता रहा आदमी बदहवास यहा-वहा भारता रहा आदमी इनसाघनयत की दौड म हारता रहा आदमी अपन ही पयादो स मात खाता रहा आदमी सच जाघनय ककतना बदनसीब ह आदमी तमाम जजनदरी चलता रहा आदमी अपनी ही लाश ढोता रहा आदमी शहर रलॊ क ढढता राहा आदमी और काटॊ की नोक चलता रहा आदमी ह दीपमासलक ह दीपमासलक- जरमर कर द रहन अरम अधकार पथ को आलोककत कर द ह दीपमासलक जरमर कर द रोज नया सरज ऊर किर भी पावन धरती ककरणो को तरस
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
शोवषत-पीदढत जन नव -परकाश को तरस ह दीपमासलक अधधयारी कदटयो को आलोककत कर द घतल-घतल कर रला सरज पजशचम क भाल स कासलख सी मल रया उ षा क राल पर तल-अतल -ववतल जड- चतन म त ककरणो का सारर भर द ह दीपमासलक जरमर जर कर द सतररी परकाश ककरण सतररी परकाश ककरणो का नव ववतान सा छाया सरज चाद ससतारो का वभव पथवी न करर पाया सचमच सकधचत सवरग बचारा इस पावन धरती स हारा ददया भट म उसन जर को अनधरनत ददपॊ का उजयारा आलोक मरा नाम ह ददन भर का थका हारा सरज
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
रात भर ससताता रहा और बनता रहा ककरणॊ का जाल म मजततका क दीप सा जलता रहा रात भर पथ आलोककत करता रहा रात भर तो जल जाना ही मरा काम ह आलोक मरा नाम ह आलोक मरा नाम ह
खोया बचपन सबह स राशन की लाइन म खडा बालक जब शाम को घर पहचा तो उसकी मा न उस पदहचानन स इकार कर ददया कयोकक जब वह सबह घर स चला था तो बचचा था दोपहर म वह जवान हआ और साझ ढल जब वह लौटा तो बढा हो चका था सडको पर परररभन हो चौराहॊ पर हो चीर हरण शशव क तर य ददन ह
तो भरी जवानी म कया होरा
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
मन त उदास कयो धरती का अधकार काप जाता ह नव-परभात की ननही ककरणो स ददल और ददमाक रौशन हो जात ह जब गयान रट पडता ह ह मन करर त उदास कयो उठ सरज सा जार मन क सोय तत खद-ब-खद जार जायर मजजल खद चलकर कदमॊ स सलपट जायरी अरसतय बन कर तो दख
ववधयाचल खद सर झकायरा यह कलयर ह सतजर तो नही
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
थोडा सा शरम तो त कर घर-घर ररा बह सकती ह ह मर मन किर त उदास कयो सददयो स बद पड ह वद पराण क पनन बरसो स तरस रह साकार होन को राधी क सपन सदर सा एक राव बसाकर उन सपनो की बधरया त महका खसशयो का सोना उरल त रोज सबह दखरा ह मर मन किर त उदास कयो वादा- नय वाद लान का हमन राधी क सवणीम सपनो को उनकी रामराजय की ववशाल कलपनाओ को बदकर रखा ह एक कबर क माघनद राजघाट म और घनत नय मखौट आकर रलॊ की बसल चढा जात ह और दो समनट का मौन रखकर तघनक रदगन झका कर मन ही मन कह जात ह बापहम शसमिदा ह तर उपदशॊ का
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
अमततलय वचनो स इतनी जयादा बढ रई ह रररषठता कक सास लना भी दभर हो रया चलकर आना तो बडी बात थी तनकर हो र ह तब सी तोद खर आज हम पनः कसम खात ह कक तर सपनो को हम हवा म यदह तरन नही दर वस तो हमन पर दश म पीट ददया ह डडडोरा कक हमन एक नही अनको वादो को इस भसम म पनपाया ह जस परजावाद-दशवाद जाघतवादजनवाद-परातवाद अवसरवाद-रटवाद हम वादा करत ह आपस और भी नए-नए वाद लान की
बच हय समय म ----------------------------------- आर पानी बच हए समय म म बच हए समय म म बचाकर रखना चाहता ह बचा कर रखना चाहता ह थोडी सी आर थोडा सा पानी ताकक कर सक हवन बजलक एक समची नदी मन की अतल रहराई तक ताकक धो सक
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
-जमा कचरा-कडा मली कथडी और और भी उन तमाम चीजो को बझा सक पयास जो रलाती ह ववदवष-घणा और नररत उन तमाम और घनखर सक आक ठ पयास क ठो की दमक सक तपकर जो पयास थ क दन सा वपछली कई सददयो स हवा समय बच हए समय म बच हए समय म स म बचाकर रखना चाहता ह म चराना चाहता ह थोडी सी हवा थोडा सा समय ताकक लोर बचा सक ताकक सवार सक अपन आप को घटन स जीवन उन सबका और ल सक - जो समय की दौड स - थोडी सी राहत भरी सास कर ददए रय थ बाहर जो सददयो पहल और छोड ददए रए थ - दबा ददय रय थ तपत रधरसथान म भारी चटटान क नीच घतल-घतल कर मरत रहन और घतल-घतल जलत रहन क सलय अधरो पर सलख दो इन अधरो पर ललख िो चिन सा एक नाम सपनो न ननो को नीर ही दिया ह चिा न चकोरी कॊ पीर ही दिया ह विना ह मीरा तो मरहम ह शयाम िखगी अलसाई रत- जगी अखखयाा
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
भनसार पछगी सखखयाा पछगी हरिम साजन का नाम शवासो की जोगन का रकस रकगा अमबर का धरती पर शीश झकगा राधा ह पयासी - रठा ह शयाम पयार का पौधा साथ रहना तमह रवारा नही और चाहती हो बचा रह परम बस एक ही उपाय ह कक तम बन जाओ धरती और म बन जाऊ आकाश बाह हमारी आपस म जडी रहरी और बना रहरा अतर भी शायद इस तरह जीववत बचा रह सकरा पयार का पौधा
एक लडकी एक लडकी बड भनसार जार जाती ह जारन क साथ ही चौका-बासन झाड-पोछा कर नहाती ह और बलती ह रोदटया और घनपटाती जाती ह व सार काम जो ववमाता दवारा बतलाय जात ह उस दना पडता ह दो-चार कप पयाली चाय तब जाकर वह छोड पाती ह बबसतर ददन क गयारह बजत-बजत ककताबो क रठठर का बोझ और ददल और ददमाक म तनावो को लाद सकल क सलय घनकल पडती ह रासत म कछ टपोरी टाइप क लडक
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
उस आता दख रोक लत ह रासता कछ शोहद- सीदटया बजाकर अपन वहा होन का अहसास करात ह डरी-डरी सहमी-सहमी सी वह लडकी चपचाप अपनी रदगन नीच ककय नापती ह सकल का रासता सकल का माहौल भी कछ सार-सथरा नही होता कछ ददल र क मासटर भी उसक जजसम म चभोत ह अपनी नजरो क तीर न जान ककतन ही चकरवयहॊ म घघरत-घघरात और उनह कशलता स तोडत हय लौट पडती ह अपन घर क सलय घर की ओरती क नीच खडी होकर अपनी अघनयबरत हो आयी सासो को घनयबरत करन लरती ह और शककरया अदा करती ह आकाश म टर दवताओ को और घस पडती ह लाकषारह म दर रात तक खटती रहन क सलय रारनी दोह रात हई कसररया ददन हआ मराल आ वसनत क आरनॠतए हई घनहाल अमआ की ठडी छाव तलउतरी कया बारात लका-घछपी क ददन हय भल-भलया रात कसलया चटकीरल बनीरलॊ म बना परार बठ रध क रालीच पर ॠतए पढ ककताब बौर खाय बौराई कोयल राती मीठ रीत
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
बोली सात सरो की बासरी जीवन ह अनमोल आरन-आरन बासनती नाचमद-मद मसकाए मन जोरी बठा नददया तीरअपना आपा खोय खशब की चौपाइया बाच रल सजान बहक-बहक स आन लरसपन घनपट अजान कल तक था सरदी का मौसमॠतए थी मररर छल छबीली नार न तोड सभी ररर चतषपददया पलाश करर महका वासती परवाई ह रीत की अमराई म मादकता इठलाई ह पलाश करर दहका वासती परवाई ह दह की सखी नदी म किर बाढ आयी ह जरल-जरल महआ महक सत कबीरा बहक-बहक छोड छाड अब जोर की बात रचन लर ह छलछद
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
अर-अर म चर बज सास-सास मदर मन मयरा झमकर नाच तोडकर सार अनबध राल-राल खखल रलमोहर और आखॊ म छाए मकरद रलो स रायब हए जस खशब क अनबध खशब-खशब हक उठ टस-टस आर न जान ककस राल को छक लौट आया मधमास कारज पर नदी कया बही डब रई शबदो की नररी रोरी आस स धचठठी सलख हा - ककतनी ह मजबरी सना अवसर पाकर मन पर रहा न काब थोडी सी खचातानी म टटा सयम का तराज महका -महका सा मन ह बहकी-बहकी सी चाल न जान ककस बात म मचा बडा धमाल कोयल न पाघत सलखी वासती क नाम सन सरसॊ पीली भई टस क हय रलाबी राल
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
बालम कयो न आए जी घर म पसरा सननाटा और यादो क साय जी धचदठया सलख-सलख हार रयी म बालम कयो न आए जी आसमान म खखली चादनी और आरन म रतरानी जी बहकी-बहकी हवा चली और कोयल भी चहकी जी उड-उड जाय सयम की चनरसख कस पाऊ जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी ददन तो जस-तस कट जाता कटती नही कलटी रात जी
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
याद आती रह-रहकर मझको तमहारी वो नशीली बात जी रहा न अब तन पर काबमन दहचकोल खाए जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी आओ भी अब आ भी जाओ अब न चलरी मनमानी जी हो तम मर ददल क राजा और म तमहारी महरानी जी आसमान स झाक बदररयाजान कया सदशा लायी जी धचदठया सलख-सलख हार रयी मबालम कयो न आए जी एक नदी मर अतःसथल म बहती ह एक नदी तापती जजस म महससता ह अपन भीतर जजसका शीतलपववर और ददवयजल बचाय रखता ह मरी सवदनशीलता खोलक दराओजरलो और पहाडॊ क बीच बहती यह नदी बझाती ह सब की पयास
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
और तारती ह भवसारर स दषटॊ को इसक तटबधो पर खलत ह असखय बचच जसरया नहाती ह और परष धोता ह अपनी मलीनता इसक ककनार पनपती ह सभयताए और लोक ससकघतया लती ह आकार लोकरीतॊ लोक धनॊ पर मादर की थापो पर दटमकी की दटसमक-दटसमक पर धथरकता रहता ह लोकजीवन
मा म
काली घटाओ को-
बरसन स रोक सकता ह
चमचमाती बबजली को-
हथली म थाम सकता ह
शोर मचात-दहाडत समदर पर-
सरपट दौड लरा सकता ह
तरानो का रख-
पलभर म-
मोड सकता ह
पहाडॊ को झका सकता ह
म वह सब कर सकता ह
लककन
ममता की मरत-
करणा की सारर और दयामयी मा पर
कोई कहानी नही सलख सकता
--
पररचय
नाम--रोवधगन यादव
वपता- सवशरीसभककलाल यादव
जनम सथान -मलताई(जजला) बतलमपर
जनम घतधथ- 17-7-1944 सशकषा - सनातक
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय
तीन दशक पवग कववताऒ क माधयम स सादहतय-जरत म परवश दश की सतरीय पर-पबरकाओ म रचनाओ का अनवरत परकाशन आकाशवाणी स रचनाओ का परकाशन करीब पचचीस कघतयो पर समीकषाए कघतया महआ क वकष ( कहानी सिह ) सतलज परकाशन पचकला(हररयाणा) तीस बरस घाटी (कहानी सिह) वभव परकाशन रायपर(छर) अपना-अपना आसमान (कहानी सिह) शीघर परकाशय एक लघकथा सिह शीघर परकाशय