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EDITOR EDITOR EDITOR EDITOR - - - - PUBLISHER : SNEH THAKORE PUBLISHER : SNEH THAKORE PUBLISHER : SNEH THAKORE PUBLISHER : SNEH THAKORE VASUDHA VASUDHA VASUDHA VASUDHA A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI ON ON ON ON Year 8, Issue 32 Year 8, Issue 32 Year 8, Issue 32 Year 8, Issue 32 Oct. Oct. Oct. Oct.-Dec., 2011 Dec., 2011 Dec., 2011 Dec., 2011 kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka vsu2a vsu2a vsu2a vsu2a s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur v8R Ð - A.k ËÊ, AK3Ubr-idsMbr ÊÈÉÉ
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kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5kakEneDa se p/kaixt saihiTyk ... 32.pdf · Year 8, Issue 32Year 8, Issue 32 Oct.Oct.----Dec., 2011Dec., 2011Dec., 2011 kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5kakEneDa

Jul 30, 2020

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    Year 8, Issue 32Year 8, Issue 32Year 8, Issue 32Year 8, Issue 32

    Oct.Oct.Oct.Oct.----Dec., 2011Dec., 2011Dec., 2011Dec., 2011

    kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5kakEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5kakEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5kakEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka

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    s.padn v p/kaxns.padn v p/kaxns.padn v p/kaxns.padn v p/kaxn Sneh #akurSneh #akurSneh #akurSneh #akur

    vvvv8888RRRR ÐÐÐÐ ---- AAAA....kkkk ËËËËÊÊÊÊ,,,, AAAAKKKK3333UUUUbbbbrrrr----iiiiddddssssMMMMbbbbrrrr ÊÊÊÊÈÈÈÈÉÉÉÉÉÉÉÉ

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    dIpavlI s.dexdIpavlI s.dexdIpavlI s.dexdIpavlI s.dex Sneh #akurSneh #akurSneh #akurSneh #akur

    dIye se dIya jlata cl kr Apne mn me. ]jala

    dUsro. ko ]jala deta cl mn ke tm ko hrne vala dIp jlata cl

    dIye se dIya jlata cl| bna de lO kI 0esI p.iKt s.sar me.

    jgmga ]#e hr 6r-µar n 3U3e kwI lO kI kƒI jltI rhe Aivrl, Aq~D dIye se dIya jlata cl| Amavs kI [s rat ko bna de tU pUnm kI rat n 7oƒna 0k wI µar

    jlana hr cOq3 pe Pyar kI lO dIye se dIya jlata cl|

    dIpavlI kI sa>z ko ]#a le tU bIƒa in*kam kmR ka jla kr Apne mn ka dIya hr buze dIye ko jlata cl hr icrag_ me. roxnI krta cl dIye se dIya jlata cl|

    dIvalI hE Tyohar ivjyoLlas ka A.2kar pr p/kax ka A)anta pr )an ka bura{ pr AC7a{ ka

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    vaTsLy-dIp jlata cl, AaTm-Sv+p JyoitmRy krne vala

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    Aawar-dIp jlata cl, dIye se dIya jlata cl| kr Apne mn me. ]jala

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    dIye se dIya jlata cl| dIye se dIya jlata cl||

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pयार के रस म पगी-रची। पै]रस को लगा

    Xक यह bटूड ट यूZनयन का हॉल नह�ं, अलाद�न क� जादईु गुफ़ा थी। सभी कुछ तो था यहा ँपर एक मbत और यादगार

    शाम के $लए $सवाय अ@वक के, अ@वक जो कह� ं4दखाई ह� नह� ंदे रहा था। मंच पर होने का पूरा आनंद उठात ेXकशोर-

    Xकशो]रयL से खुद को छुपाती-बचाती बेचैन वह तुरंत ह� बाहर आ गई।

    "4दवाल�-मेला देखने चल रहे हो ना अ@वक। बोलो अ@वक, चल रहे हो ना, सभी तो हF वहा ँपर?"

    शोर-शराबे से दरू अपने कमरे म गाना सनुत ेअ@वक से पै]रस पलट-पलटकर पूछे जा रह� थी पर अ@वक तो

    मानो सबसे परे मनपसंद bवर-लह]रयL म डूब संगीत-समाBध ले चुका था। सार� आतुरता, मेला सब कुछ भूल मंh-

    मrुधा-सी पै]रस वह� ंज़मीन पर ह� उसके सामने बैठ गई और चुपचाप एकटक देखने लगी। डूबत ेसूरज क� गुलाबी

    सनुहर� आभा म नहाया, आँख बंद Xकए संगीत का आनंद लेता अ@वक और भी यादा अलग और Bचh-सा सुंदर 4दख

    रहा था, अपने नाम-सा ह� @वभोर और संकिHपत। मेपल वnृ क� घनी पिWतयL से छन-छनकर आती धूप ने कमरे म

    हर द�वार, हर वbतु पर रंगमंच के पद-सा मनोहार� और रहbयमय u^य अंXकत कर 4दया था। |खड़क� के ेम को खुद

    म समेटे धूप क� आड़ी Zतरछ XकरनL बीच गुँथी पिWतया ँसुर और लय क� ताल पर परछाई बनी चारो तरफ़ Bथरक रह�

    थी ंऔर शाम के इस सुरमई धुधँलके म अ@वक एक बार Xफर उसे इस दZुनया का नह�,ं देवदतू-सा अलौXकक लगा,

    उसके हर सपने को पूरा करने म समथ�, इतना सुंदर Xक खुद को रोको ना, पीछे ना हटो तो उसे तो >यार तक Xकया जा

    सकता था। अपनी इस बेतुक� सोच से बचने के $लए पै]रस ने आँख बंद कर ल�,ं पर बंद आँखL म भी तो वह� बैठा

    मुbकुरा रहा था। हारकर पै]रस ने खुद से लड़ना छोड़ 4दया, बुराई भी Kया थी इसम ये ]र^त े@वpयालय के इ�ह� ं4दनL

    म ह� तो जड़ु पात ेहF, अ@वbमरणीय �ेम-कहाZनयL से @वpयालय क� bमा]रकाएँ भर� पड़ी हF। उसके अपने मा-ँबाप भी

    तो यह� ं$मले थे, मालकLस के आरोह-अवरोह पर तैरत ेसुर अंZतम झंकार से गुज़र चुके थे और $सतार एक बहुत ह�

    घुमावदार और नाजुक मीड़ लेकर कब का थम चुका था। एकटक देखने क� अब अ@वक क� बार� थी। हमेशा चहकती

    रहने वाल� पै]रस यL गमुसमु और चुपचाप भी तो कम आकष�क नह� ंलग रह� थी।

    'कहा ँखो गई पै]रस?' अ@वक ने आवाज़ द�।

    'कह� ंभी तो नह�ं, बस अपनी पालतू BचQड़या से बात कर रह� थी।' सोच क� चुटक� भर-भर अपने संगमरमर�

    गालL पर संqया का सारा गुलाल मलती पै]रस हड़बड़ाकर जग गई।

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pताह ह� तो था और ]रेशर स>ताह का Kया मतलब है, चारL चंद 4दनL म ह� अछ तरह से जान चुके थे, रोज़ एक

    नई पाट, एक नई एसो$सयेशन, एक नया हंगामा। गंभीर पढ़ाई म डूबने के पहले बचपन और यादL को खुद से अलग

    करने का एक अनूठा और बेXफg यूरो@पयन अंदाज़। अरे आज तो 4दवाल� है ना, Sको मF अभी कपड़ ेबदलकर आता हँू,

    पहले हम सब $मलकर पूजा कर गे Xफर 4दवाल� मेले म चल गे। सSुBचपूण� नए कपड़L म गणेश और लGमी क� �Zतमा

    के आगे द�प जलाता, नहाया-धोया अ@वक और भी यादा ओजbवी और सौzय लगा पै]रस को। यह� नह� ंअ@वक ने

    $मh-मंडल� को मा ँके हाथ क� bवा4दjट $मठाई और खाना भी लाकर 4दए। साZनया और oपम तो तुरंत ह� खाने पर

    टूट पड़,े पर पै]रस 4हरनी-सी बड़ी-बड़ी आँखL से पूछ रह� थी, 'Kया मF भी एक 4दया जला सकती हँू अ@वक।'

    'KयL नह� ं ज़oर....' >यार और �शंसा से उसक� तरफ़ देखत े हुए अ@वक तुरंत ह� अंदर गया और एक

    धूपबWती उसक� फैल� हथे$लयL पर लाकर रख द�। अभी तो बस इससे ह� काम चला लो पै]रस, मेरे पास बस एक ह�

    4दया था। लौटकर हम सब $मलकर बहुत सारे 4दए जलाएँगे और फुलझQड़या ँभी चलाएँगे, मा ँने वह भी तो रख द� हF

    मेरे साथ। यह मेर� पहल� 4दवाल� है जब मF घर पर नह� ंहँू। मा ँतो बहुत ज़ोर-शोर से 4दवाल� मनाती हF। घंटे डढ़े घंटे

    तो पूजा क� तैयार� और मोमबिWतया ँव 4दए जलाने म ह� लग जात ेहF। सबके $लए कपड़,े उपहार, हतL ख़र�दार� और

    तैया]रया ँह� चलती रहती हF हमार� भी। तुzहारे Xgसमस क� तरह हम 4हदंओु ंका भी तो यह बड़ा Wयोहार है।

    ' उस 4दन राम चौदह वष� के बनवास के बाद अयोqया से वापस लौटे थे ना?' पै]रस बीच म ह� बात काट

    कर बोल पड़ी'........'अरे पै]रस तुम तो मेरे से भी यादा जानती हो।'

    oपम ए$शयन होने के बावजूद भी कुछ न जानने क� वजह से एक अजीब-सी श$मदगी महसूस कर रहा था।

    अ@वक उसक� मन:िbथZत समझ सकता था, �ाय: उसके सभी भारतीय $मhL का यह� हाल था। ऐसा नह� ंथा

    Xक उ�ह भारत और भारतीयता के �Zत आकष�ण नह� ंथा, बस जी@वका क� आपाधापी म डूबे मा ँबाप के पास इतना

    समय ह� नह� ंहोता था Xक दो $मनट पास बैठत,े उ�ह भारत, भारतीय संbकृZत के बारे म बता या समझा पात।े मा ँ

    बाप के साथ बैठकर फुरसत से दो बात करना तो दरू, अKसर उनके दश�न तक दलु�भ हो जात े थे sबचारL के $लए।

    अ@वक का मन दद� और सहानुभूZत से भर आया।

    'अगर तुम लोग चाहो तो अगले वष� मेरे घर चल सकत ेहो 4दवाल� पर। खुद ह� देख लेना 4दवाल� कैसे मनाई

    जाती है और आइ एम ^योर मा ँभी बहुत खुश हLगी तुम सबसे $मलकर।'

    'पर उसम तो अभी पूरा एक साल बाक� है अ@वक', पै]रस क� आवाज़ Zनराशा म डूबी हुई थी।

    व ेबात कर ह� रहे थे Xक फ़ोन क� घंट� बज पड़ी। लाइन पर मा ँह� थीं।

    'पूजा कर ल� अ@वक बेटा।'

    'हा ँमा,ँ मेरे कुछ $मh भी हF यह� ंपर और हम सब $मलकर 4दवाल� मेला देखने जा रहे हF। 4दवाल� के बारे म

    सब कुछ जानने को बहुत ह� उWसुक हF ये लोग।'

    'अगर ऐसी बात हF तो, इन सबको लेकर घर ह� आ जा न। हम सब 4दवाल� $मलकर मनाएँगे।'

    अ@वक क� आँख खुशी से चमकने लगी,ं 'पूछता हँू माँ।'

    इस आमंhण पर सभी खुश थे और Zन^चय यह हुआ Xक क slज और लंडन क� घंटे भर क� दरू� कुछ भी

    यादा नह�।ं पहले मेला Xफर मा ँके साथ 4दवाल�।

    पर मेले का भीड़ भरा माहौल चारL $मhL को दस $मनट से भी यादा न रोक पाया। सभी का कहना था Xक

    यह तो बस एक बाज़ार जैसा है स कोई भी एक और पाट। उ�ह तो पारंप]रक भारतीय अंदाज़ म 4दवाल� मनानी हF

    और चारL अ@वक के घर मा ँके साथ 4दवाल� मनाने चल पड़।े अशोक के पWतL म गुँथी फेयर� लाइट और उनके बीच

    बीच छोट�-छोट� घं4टया,ँ नीच ेकर�ने से माला-सी सजी 4दयL क� लंबी कतार और सामने �वेश pवार पर ह� फूलL क�

    घूमती रंगोल� के बीच कमल के आकार क� द�>त मोमबWती, लGमी के bवागत म सजे सँवरे घर के बंदनवार ने न�ह�ं-

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pयार से गpगp माँ ने चारL को गले से लगा $लया। बचLके $लए ह� नह�ं, अ@वक क� मा ँके

    $लए भी यह एक अभूतपूव� अनुभव था, हषा�Zतरेक से छलके आसुओ ंको और खुद को सँभालती वह बस इतना ह� कह

    पाई, 'खूब खुश रहो, मा ँबाप का नाम रौशन करो। चलो तुम अब सब हाथ मुँह धोकर तरोताज़ा हो लो तब तक मF खाना

    गरम करती हँू, sबbतर पर तुम तीनL के $लए कुछ नए कपड़ ेहF, जHद�से पहनकर आओ। 4दवाल� क� पूजा नए कपड़ े

    पहन कर ह� क� जाती है। मा ँकह रहे हो तो बात भी माननी पड़गेी, मुझ ेअछा लगेगा।'

    'जoर मा,ँ पर पहले हम खाना गरम करने और खाने क� मेज़ लगाने म आपक� मदद कर गे Xफर आप जैसे

    चाहोगी वैसे ह� 4दवाल� मनाएँगे।' आदतन मजबूर सदय पै]रस एक बार Xफर तुरंत ह� बोल पड़ी थी और Xफर तो

    चारL बचL ने 'हा,ँ मा ँआप अब आराम क�िजए बाक� का काम अब हम कर गे।' क� एक bवर तुमलु घोषणा कर द�।

    आनन-फानन बातL-बातL म ह� सारा खाना गरम होकर कब खाने क� मेज़ पर पहँुचा Xकसी को पता भी न

    चल पाया और अगले पाँच $मनटL म ह� अ@वक oपम साZनया और पै]रस चारL ह� मा ँ के 4दए भारतीय कपड़L म

    जलत े हुए 4दए से जगमग थे। सबने $मलकर लGमी क� मूZत� पर फूल चढ़ाए और Xफर खील बताश ेभी। कौन-सी

    $मठाई खाई जाए कौन-सी छोड़ी जाए Zन^चय करना एक क4ठन समbया हो चल� थी उनके $लए, बार-बार मा ँका

    >यार भरा आ8ह और साथ म बेहद सल�के से सजा अZत bवा4दjट भोजन। बाहर छूटत ेअनार और चकर� म यादा

    जोश था या इन पाँचL के मन म , आज तो शायद भगवान भी यह Zन^चय नह� ंकर पात।े

    'हमारे भारत म तो घर भर के $मठाई बनती है और अगले 4दन सब $मलने-जुलने वालL और गर�बL म बाँट�

    जाती है, गाना-बजाना, $मलना-जुलना सभी कुछ चलता रहता है इन तीन-चार 4दन। पहले धन-तेरस, Xफर छोट� बड़ी

    4दवाल�, पड़वा और भैयादजू, पूरे पाँच 4दन का Wयोहार है यह। नए कपड़,े |खलौने, खूब मौज मbती रहती है बच ेबड़ े

    सभी क�। मा ँबचL के से जोश से बोले जा रह� थीं। कमरे म लौटत ेह� मा ँने ढोलक और हारमोZनयम Zनकाल $लए।

    अ@वक तबले पर मा ँहारमोZनयम पर। गाने-बजाने क� महXफल ऐसी चल� Xक सुबह ह� हो जाती अगर मा ँबीच म ह� न

    रोक देती,ं 'अरे........अभी तो हम ताश भी खेलने हF। ताश? सबके मुँह आ^चय� से खुले हुए थे। हाँ, आज के 4दन ताश

    भी तो खेलत ेहF। गंभीर और भार� भरकम समझी जाने वाल� भारतीय सयता का यह एक नया और अनूठा पहल ूथा

    पै]रस के $लए।

    'कोई भी खेल मा?ँ'

    ''नह�,ं तीन पWती।

    'तीन पWती Kया?'

    oपम, पै]रस और साZनया तीनL आ^चय�-चXकत एक-साथ ह� बोलपड़।े 'यू मीन बैग पर यह तो जुआ है माँ।'

    'नह�ं, जआु तब कहा जाएगा जब हम अपनी सामय� से यादा दावँ पर लगा द और हार जीत बदा�̂ त करने

    लायक न रह । अपना नुकसान कर ल । हर चीज़ के दो पहल ूहोत ेहF, इस खेल से हम सीखत ेहF Xक लालच से कैसे बचा

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pत कर सकता है.

    आव^यक नह� ं है Xक उसके $लए कोई पारzप]रक तैयार� करनी पड़,े वह सीधे वेब या इंटरनेट से @व^व भर के

    सूचनातंhL के ज़]रये दZुनया के सामने होगा. उसका केवल सूचनाWमक �दश�न उसके भावी अथ�दायी �दश�नL का पथ-

    �शbत करने वाला है. यह एक आकिbमक या @वbमयकार� घटना नह� ं है अ@पतु तजेी से बदलत ेजा रहे @व^व क�

    जoरतL के मुताsबक उसक� अपनी जoरत भी वर�यता के gम म बहुत आगे आ चुक� है.

    लोक-इकाई क� एक सzपदा लोक-भाषा है, लोक-इकाई क� दसूर� सzपदा लोक गीत या लोक गाथा या लोक

    नWृय था, लोक नाटक के साथ-साथ लोक कला, लोक कथा लोक �bतुZतकरण के अ�य पn तथा अंतत: अनेक

    आयामL से पुjट @वशदतायुKत लोक संbकृZत है. अथा�त ्आज लोक इकाई का सब-कुछ य4द �bतुत Xकया जा सके तो

    वह महWतम आकष�ण के oप म लोक@�यता के नए मानदंड bथा@पत करने म सnम है.

    यह प]रu^य इतना सामय�वान है Xक हम 4ह�द� म उसे य4द सामने लाएँ तो वह अपनी अतु nमताओ ंसे

    न $सफ़� अपने लोकbवoपL का प]रचय देगा अ@पतु वह 4ह�द� क� अ�य सीमाओ ंका भी @वbतार करेगा और उसे

    हा$शये से उठाकर मुkयधारा के oप म bथा@पत कर डालेगा. अ�य सीमाओ ंके अ�तग�त हम भाषा के सम8 वैभव के

    साथ जड़ुी मह�नताओ ंको भी Bगन सकत ेहF. यह तो Zन@व�वाद है Xक लोक-भाषाओ ंसे 4ह�द� को न $सफ़� शद-सzपदा

    क� सम@ृw �ा>त हुई है, बिHक लोक शै$लयL का वै@वqय अनेकाथ~ गुणधम� के oप म हा$सल हुआ है. इसी संदभ� म कहा

    जा सकता है Xक लोकजीवन म प]रत उदार संगीतमय @व�यास का संbपश� भी $मला है. उलटकर य4द हम आज

    लोक-भाषाओ ंक� अपनी Zनजी सामय�युKत शिKत पर चचा� कर तो पाय गे Xक लोक-भाषाओ ंम @वbमयकार� शिKत है

    जो लोक संbकृZत के सभी oपाकारL म संचा]रत रहती है. मोटे तौर पर लोक संbकृZत ह� वह आधार है जहा ँ से हम

    लोक-भाषाओ ं के वैभव पर चचा� कर सकत ेहF और यह आ^विbत भी पा सकत ेहF Xक लोक सbंकृZत क� चमWकृZत

    मुkयधारा म अपने oपांकन नैसBग�क oप म Zन$म�त करती रहती है. 4ह�द� को @वरासत म यह आधार $मला ह� है

    और इसी का फल है Xक 4ह�द� के @वकास म भा@षक वै$शjय तथा सजृनाWमक रचाव का वै@वqय अपने ह� ढंग का

    अलग वै@वqय है.

    4ह�द� को लोक-भाषाओं ने अनेक bतरL पर सzप�न Xकया है. लोक जीवन का अपना एक अलग-

    सा संवेpय है. वह अलग-सा संवेpय लोक रस के oप म अपने बहुआयामी bवoप म रहत े 4ह�द� क�

    रचनाWमक शै$लयL का अ$भ�न 4हbसा बना है. यशbवी क@व अ�ेय िजस गुण को भाषा के सजृनेWतर

    �योजन का 4हbसा bवीकार करत ेहF, वह वाbतव म लोक bवभाव से जड़ुा है और वह अनेक अ�य �कारL

    से संbकृZत क� गुणध$म�ता को उदार oप म

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pयारे छ: बच ेरखे हुए थे. हर बच ेको ममता से सहलात ेहुए, भरा�ई हुई आवाज़

    म जेसी ने कहा, 'थFक यू तारा, तुमने मेरे $लए Xकतनी बड़ी जो|ख़म उठाई.'

    'मF अब चलती हँू. पाक� म जाकर ]रक� क� मzमी के साथ बैठती हँू और ]रक� तुमसे $मलने

    आयेगा. तुzह अगर Xकसी चीज़ क� जoरत हो तो बताओ, ]रक� के हाथ भेज देती हँू.'

    'ना तारा, मुझ े कुछ नह�ं चा4हये. तुzह पता है Xक मुझे स त हुKम है Xक अbपताल म जो

    बेbवाद खाना $मलता है, वह� खाना मF sबना $शकायत के खा लूँ . बस, आज का कोई अख़बार भेज देना.'

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pयार से सँभाल रह� है, उसका जेसी से Kया ]र^ता हो सकता है? ऐसे अनेक सवालL के उWतर पाने क�

    मेर� िज�ासा �बल हुई. जेसी या ]रक� से पूछकर िज�ासा का समाधान हो सकता था, मगर बात शुo भी

    कoँ तो कैसे! इस उलझन म सोच ह� रह� थी Xक जी भर के bनान का आनंद लेकर, धुले हुए कपड़ े

    पहनकर, तरोताजा होकर, बाल सँवारता हुआ ]रक� बाथoम से बाहर आया और हँसत े हुए जेसी क� ओर

    देख कर बोला, 'तुमसे $मलने के $लए आने का यह सबसे बड़ा फ़ायदा है.' जेसी क� कॉट के पास रखी कुस~

    पर बैठ कर, जेसी का हाथ अपने हाथ म लेत ेहुए ]रक� बड़ी आWमीयता से बोलने लगा, 'जेसी, मF जHद ह�

    हमारा Zनवास-bथान याZन Xक सुरंग छोड़ कर अपने गाँव वापस जा रहा हँू. मzमी के $लए गाँव जाना

    बहुत जoर� है और इसके sबना मेरे पास न दसूरा पया�य है न उपाय. मzमी बूढ़� हो गई है और मF भी तो

    जवान नह�ं रहा. बीस साल का समय बीता, सुरंग के अँधेरे म रहत ेहुए. इस लंबे अरसे म मेर� उzमीद ,

    सपने, आशा-आकांnाएँ, सब कुछ सुरंग के उस कोने ने सँभाल कर रखे. �यूयॉक� शहर ने मुझ ेकभी भूखा

    तो नह�ं रखा, पेट पालने के $लए काम तो $मलता रहा. परंतु, उस रोज़गार ने Xकराए के मकान लेने क�

    औक़ात कभी नह�ं द�.' उसी समय नस� आई और कुछ जाँच कराने के $लए जेसी को ले गयी. ]रक� ने

    जेसी के वापस आने के इंतजार म अख़बार खोला और अचानक हमार� नज़र $मल�.ं ]रक� मुbकुराया. उस

    मुbकुराहट का फ़ायदा लेकर मFने ]रक� को अ$भवादन Xकया और कहा, 'आप, तारा, जेसी, सुरंग, मzमी,

    sबHल� के बच,े इन सब के बारे म मेर� उWसुकता इस हद तक बढ़ गई है Xक आपक� Zनजी िज़ंदगी के

    बारे म कुछ भी पूछने का अBधकार न होत े हुए भी 4हzमत करके बस एक ह� सवाल पूछना चाहँूगी Xक

    आपक� मzमी जेसी से $मलने KयL नह�ं आयीं?'

    हो सकता है काफ� अरसे के बाद, ]रक� से Xकसी ने आWमीयता से बात क� हो, वह 4दल खोल कर

    मुझसे बात करने लगा.

    'राbत ेपर $मल� बेनाम कुZतया को मFने मzमी नाम 4दया है. कुWतL को अbपताल म लाने क�

    इजाज़त नह�ं है, इस$लए मzमी पाक� म तारा के साथ बैठ है. मेर� िज़ंदगी म सच े 4दल से और

    ईमानदार� से अगर Xकसी ने मुझ ेभावनाWमक और मान$सक सहारा 4दया है, तो वह मेर� मzमी ने. उसी

    के साथ का असर था Xक सरंुग के अँधेरे, गीले ठड ेकोने म भी मFने रोशनी और गरमाहट का अनुभव

    Xकया. मF यह मानता हँू Xक 'सरकार� शेHटस�' क� सु@वधा यहाँ के हर

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pत देश म जेसी, मF, तारा और हमारे जैसे न जाने

    और Xकतने ह� लोग मज़बूरन सुरंग म या बेघर बन कर रहत ेहF. शाद�, गहृbथी, बच,े ये िज़ंदगी के आम

    सुख, हम $सफ़� सपने म ह� अनुभव करत ेहF. जीना अZनवाय� है, पर�तु जीने के $लए अनुकूल प]रिbथZतयL

    का अभाव है. अब दे|खये, @पछले बीस साल से मFने यह�

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pलािbटक, कनbतर लगा कर $सफ़� सोने के $लए और

    थोड़ा-सा सामान रखने के $लए बनाई हुई जो जगह थी, वह था जेसी का घर. दसूर� तbवीर उसक� खोयी

    हुई sबHल� क� थी. तीसर� तbवीर म sबHल� के छ: बच ेथे. चौथी तbवीर से मेरा प]रचय करात ेहुए जेसी

    ने कहा, 'तारा, ]रक�, ]रक� क� मzमी और sबHल� के बच!े यह है मेरा प]रवार और $मh-प]रवार. सूटकेस

    म रखे कपड़ ेऔर थोड़ा-बहुत जो सामान है, बस यह� है मेर� इस दZुनया म कमायी हुई धन-दौलत. मF

    बी.ई. हँू, अछ इंजीयन]रगं फम� म मेर� नौकर� है मगर यह महँगी बीमार� मेरे शर�र पर आgमण Xकये

    हुए है. जानता हँू, मेरा हाथ पकड़कर ये बीमार� सीधे मुझ े bवग� म ले जाएगी.'....संभाषण का Sख

    तकल�फ़देह होने लगा है, इसका अहसास होत ेह� मFने उसे रोका और कहा, 'जेसी, rयारह बज चुके है, मेरे

    ख़याल से अब तुzह आराम करना चा4हये.'

    'न, मुझ ेमत रोको, मुझ ेबोलने दो. जानती हो, मुझ ेगले का कै�सर है. कुछ ह� 4दनL बाद मेरा

    ऑपरेशन होगा. डॉKटरL का कहना है, शायद उसम मेर� आवाज़ खो जाएगी. अगर मेर� आवाज़ नह�ं रह� तो

    मशीन का उपयोग करके मF बोल तो सकँूगा परंतु भावना के हर रंग का इज़हार करने वाल� bवाभा@वक

    आवाज़ वह नह�ं होगी.' एक बार Xफर जेसी क� आँख नम हुM. जेसी बोलता ह� जा रहा था - 'तुमसे एक

    बात कहँू. इस �यूयॉक� शहर म जीत ेहुए मFने अनुभव Xकया क� अं8ेजी भाषा म अगर सबसे महँगा शद

    कोई है तो वो है 'हैलो'. Xकसी को हैलो कहत ेह� उzमीद बे4हसाब बढ़ने लगती हF. आज तुमसे बात करत े

    हुए न जाने KयL राहत $मल�, अपनापन महसूस हुआ, सची आWमीयता का अनुभव Xकया मFने. इसके $लए

    आपका 4दल से ध�यवाद. खूब सार� बात करने को जी चाहता है. मगर Kया कoँ, यादा बात क� ं तो

    कै�सर से पागल नस वदेनाओं के घुघँo पहन कर ताडव नWृय करने लगती हF. 4दमाग चकराने लगता है,

    वेदना असहनीय हो जाती है. तब दहाड़ कर BचHलाने को जी चाहता है. Xफर लगता है, कह�ं ऐसा न हो Xक

    एक-आध नस ह� चटक जाए और खेल ह� ख़Wम हो जाए. सुरंग के अँधेरे म घर क� और अपने शर�र क�

    द�नता का कभी अहसास नह�ं हुआ. परंतु, यहाँ क� रोशनी म शर�र क� यह हालत अपनी ह� आँखL से देखी

    नह�ं जाती. मेरे $लए जoर �ाथ�ना करना Xक ऑपरेशन का दद� मF 4हzमत से सह सकँू. तुमसे इतनी सार�

    बात क�ं मगर जानबूझकर तुzहारा नाम नह�ं पूछा. KयLXक संयोग से अगर दोबारा मुलाक़ात हो भी गयी तो

    मशीन के सहारे तुzह पुकारने के $लए मF तैयार नह�ं हँू. तुमने जो अपनापन 4दखाया इसका मुझ ेसंतोष है.

    मेर� अपनी आवाज़ खोने से पहले इस आवाज़ म तारा के $लए मF एक ख़ास टेप बनाऊँगा. वह जब जी

    चाहे मेर� आवाज़ म मुझ ेसनु-देख सकेगी.' मेरा हाथ हाथL म लेकर जेसी ने हा4द�क ध�यवाद Xकया और

    sबbतर पर लेट गया. आँख मूँद कर 'गडु-नाइट' कहत ेहुए कॉट, sबछौना, उस पर sबछ सफ़ेद चादर, नरम

    तXकया, आरामदेह कzबल, नाइट-लैzप क� धीमी नील� रोशनी का सुख अनुभव करत ेहुए वह Zन�ा-देवी को

    बुलाने लगा, अपनी ख़ुद क� आवाज़ म !

    गहर� नींद म सोये हुए ए]रक को एक नज़र देख कर मF उस कमरे से बाहर आयी. ख़यालL म इस

    कदर खो गयी थी Xक कब $ल¢ट म पाँव रखे, पता ह� नह�ं चला. Xकसी एक बटन पर उँगल� रखी, $ल¢ट

    क� र¢तार बढ़�. $ल¢ट Sक�, दरवाजा खुला और मFने बाहर क़दम रखा. इद�-Bगद� नज़र डाल� तब पता चला

    Xक बेखयाल� म मF अbपताल के टैरस पर पहँुच गई हँू. इमरज सी के व¤त अKसर डॉKटर और पेश ट को

    हे$लकॉ>टर से लाया जाता है, इस$लए वहाँ एक हेल�पैड बनाया हुआ था. अनायास चारL ओर नज़र घुमाM.

    �यूयॉक� शहर रोशनी म जगमगा रहा था. अटलां4टक सम�ुदर का पानी उस रोशनी म नहा रहा था. दरू

    कह�ं खड़ा था, हाथ म �योZत $लए, शान से bवतंhता क� देवी का बुत. bवतंhता क� देवी के हाथ क�

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pत अपनी

    पुर� वाल� कोठ बेच द�. पWनी मणृा$लनी ने अपने समbत आभूषण बेच 4दये. १९०१ म bथा@पत इस

    @वpयालय म क@व पढ़ाने का काय� करत े थे और पWनी @वpयालय क� पाठशाला से लेकर सार�

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pत होने के उपरांत १९१५ म अं8ेजL क� सरकार ने क@व को 'सर' क� उपाBध से @वभू@षत Xकया Xक�तु चार वष� के उपरा�त १९१९ म ज$लयाँवाला बाग के बब�र गोल�काडं के बाद क@व ने

    अं8ेज सरकार के अमानु@षक अWयाचार का @वरोध करत ेहुये 'सर' क� उपाBध वापस कर द�. नोबल पुरbकार �ा>त रचना गीतांज$ल के साथ उनक� समbत रचनाओं म एक महान सा4हWयकार

    का 4दrदश�न होता है. उ�हLने २००० हजार से अBधक क@वताएँ $लखीं एव ंउनके उप�यासL ने बंगला एव ं

    भारतीय भाषाओं के सा4हWय को एक नयी 4दशा द�. 'गोरा' उनका अुत उप�यास है. 'नौका डूबी', 'चौखेर

    वाल�', 'नjट नीड़' आ4द उनक� अ�य eेjठ कृZतयाँ हF. उनके उप�यासL म 'घरे बा4हरे', 'राजहष�', 'योगायोग',

    'बाँसुर�', 'दोबन', 'शशेेर' आ4द उनके उWकृjट उप�यास हF. रवी��नाथ टैगोर के नाटकL म नWृयगीत ना4टका

    'चंडा$लका' आज भी भारत म सबसे �यादा मंBचत Xकये जाने वाल� नWृयना4टका है.

    उनके नाटकL म 'डाकघर', 'राजा', 'मुKतधारा', 'रKत करबी' आ4द के मंचन तथा उनके 4ह�द� एवं अ�य भारतीय भाषाओं म मंBचत न होने का सबसे बड़ा कारण रवी��नाथ टैगोर क� मWृयु के बाद शांZत

    Zनकेतन रहा िजसके पास उनक� समbत रचनाओं का कॉपीराइट था. अब यह कॉपीराइट समा>त हो गया है

    और रवी��नाथ ठाकुर के इन eेjठ नाटकL को सभी भाषाओं म मंBचत Xकया जा सकता है. रवी��नाथ टैगोर टैगोर ने अपने $लखे सभी नाटकL का मंचन अनेक बार Xकया और वह bवयं

    उनम अ$भनय करत े रहे एवं उनम अनेक च]रhL के पाh बने. वbतुत: भारतीय रंगमंच के इZतहास म

    उनका अभूतपूव� योगदान रहा है. 'चंडा$लका' स4हत उनक� अनेक रचनाओं म आज से एक शताद� से पूव� द$लत @वमश� एवं नार�-मुिKत अ$भयान के gांZतकार� @वचार @वpयमान हF.

    वbतुत: क@व और कला म सज�नाWमक �Zतभा का �bफुरण आयु और काल क� सीमाओं से परे है, यह कथन रवी��नाथ टैगोर ने सWय $सw कर 4दया. उ�हLने ६३ वष� क� आयु म Bचh बनाने �ारंभ Xकये

    एवं Bचhकला को मौ$लक का

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pपल पैरL म डाल� और सनुील के पीछे सीQडया ँउतरने लगी। भला हो करवाचौथ का

    िजसके कारण वह सुबह सुबह तैयार हो गई थी वना� नाइट� म ह� साथ चल पड़ती।

    सनुील इस सोच म डूबा था, Xक उसने कौन सा गनुाह कर 4दया Xक पु$लस थाने म पेशी हो रह� है। थाने का

    नाम सनु कर तो अछो-अछL के पसीने छूट जात े है तो सनुील ठहरा एक आम आदमी, जो सुबह ऑXफस Zनकल

    जाता है, शाम को घर आकर अपने बीवी बचL के साथ तक ह� जीवन सी$मत है। अड़ोस-पड़ोस म Kया हो रहा है, कोई

    सरोकार नह�ं, उसके थाने के नाम पर होश ह� गमु हो चुके थे। थाना घर के पास ह� था, पु$लस जीप म मुि^कल से दो

    $मनट लगे हLगे, लेXकन ऐसा लग रहा था Xक दो साल से पु$लस जीप म बैठा है और थाना है Xक आने का नाम ह� नह� ं

    ले रहा है। थाने पहँुच कर चुपचाप एक मज़ु]रम क� तरह हाथL को बाँधकर $सपाह� के पीछे पीछे चलने लगा।

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pयार से हाथL को सहलात ेहुए कहा।

    "तुzहे याद है श$म�ला हमार� शाद� पहले हुई थी, KयLXक डाKटर साहब क� �ेिKटस शुo म ढ�ल� चल रह� थी,

    उनक� बाद म हुई थी। भाभीजी से $मलने जात ेथे, हमारा यह� bकूटर लेकर। हम अपना �ो8ाम बदल लेत ेथे, ऑटो म

    या बस म सफर करत ेथे, लेXकन डाKटर सभुाष को कभी bकूटर के $लए मना नह� ंXकया। आज वह अपनी �ेम क�

    Zनशानी को oपयL के पलड़ ेम तोल रहे हF। Kया आदमी इतना बदल जाता है, oपये और शोहरत पाने के बाद।" कहत े

    कहत ेसनुील भावुक हो गया।

    श$म�ला को पहल� बार अहसास हुआ Xक छोट�-छोट� बातL को लेकर सनुील Xकतना भावुक हो उठता है। वह

    अपने बचपन और संवेदनाओ ं से Xकतना गहरा जड़ुा है। उसके $लये माया क� दौड़ नह� ंमन का ठहराव अBधक

    महWWवपूण� है। वह भाई साहब के यार से ह� सह�

    bकूटर बदलकर मोबाइक लेने का अनुरोध Xकया है सनुील से। Kया उस बात का भी सनुील को बुरा लगा होगा? सनुील

    ने भले ह� काय�nेh म धीमी �गZत क� है लेXकन वह एक अछा इनसान है, अछा पZत है, अछा @पता है। उसने

    प]रवार के साथ सुंदर पल sबताए हF और सबको खुश करने के �यWन Xकये हF।

    कुछ सोचकर वह bटोर म गई और उस बKसे को Zनकाल लाई िजसम सनुील के बचपन क� याद थीं। बKसे म

    कुछ कंच ेसँभाल कर अभी भी रखे हुए थे। एक बार सनुील ने कहा था Xक वह अपने बेटे को कंच ेखेलना $सखाएगा।

    लेXकन वह बात हवा होकर रह गई। बेटे को कंच ेखेलना नह� ं$सखाया उसने। श$म�ला ने उWतर म कहा था Xक कंच ेबीत े

    हुए समय क� चीज़ हो चुके हF। यह जमाना कंच ेका नह� ंXgकेट का है। बचL को Xgकेट $सखाओ। पुराने जमाने के

    खेल कोई नह� ंखेलता।

    लेXकन आज क� घटना ने श$म�ला को सनुील के अतम�न को समझने का अवसर 4दया था। उसे लगा Xक

    ]र^त ेकेवल इनसानL के बीच नह� ंहोत।े कुछ वbतुओ ंसे भी इनसान ]र^त ेबनाता है। शायद वbतुओं के साथ बनाए

    गए ]र^त,े इनसानी ]र^तL से अBधक गहरे होत ेहF...शायद इस$लये Xक वbतुएँ हम आहत नह� ंकरतीं। उसे लग रहा था

    Xक भावनाWमक लगाव वाल� ऐसी चीज़L क� Zनदंा करना या उ�ह छोड़ने को मजबूर करना अमानवीयता है। सनुील का

    कंचL के साथ घना ]र^ता है... हर दद� पर सनुील कंचL क� याद का मरहम लगाता है... ठक है कंचL का खेल पुराना हो

    गया पर हर पुरानी चीज़ बुर� नह�ं होती.ं.. और 4दखाव ेक� दौड़?...वह कौन सी अछ चीज़ है, िजसके $लये लोग अपना

    सुख-चैन बरबाद करत ेहF और दसूरL के �Zत संवेदनशीलता खो बठैत ेहF।

    इनसान क� उx Xकतनी भी हो जाये बचपन समा>त नह� ंहोता। वह बड़>पन का 4हbसा बनकर जी@वत रहता

    है। उस बचपन को हमेशा कह� ंजी@वत रखना जoर� है। केवल अपने $लये नह�.ं..मानवीयता के नात ेभी...उसे सींचत े

    रहना ज़oर� है। श$म�ला ने सनुील को सामा�य करने के $लए कंचL का बKसा Zनकाला।

    सनुील थोड़ा bवbथ हो कर कुस~ पर बैठ कर सड़क क� आवा-जाह� देख रहा था।

    "श$म�ला, देखो अंकुश क� bकूल बस आ गई।" कह कर एक छोटे बच ेक� तरह कूदता फाँदता सनुील

    सी4ढ़या ँउतर कर अपने बेटे अंकुश को लेने bटॉप तक गया। बाप बेटे को बZतयात ेदेख कर श$म�ला क� Bचतंा दरू हुई।

    मा ँके हाथL म बKसा देख कर अंकुश ने पूछा - "इसम Kया है।"

    "बKसा खोलकर खुद देखो।"

    "अरे यह तो कंचL का बKसा है।" दो कंच ेहाथ म लेकर अंकुश बोला।

    "आज पापा तुzह कंच ेखेलना $सखाएँग ।" श$म�ला ने एक >यार भर� मुसकान के साथ कहा। Xफर सनुील क�

    ओर देखकर बोल� अंकुश को खाना |खला दो, मF तब तक पूजा क� तैयार� कर लूँ। आज सारे 4दन त तो हुआ ह� है थाने

    क� भाग दौड़ म रात का खाना तक नह� ंबना है।

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 pत Xकया है वीएच आ^चय�जनक है. पृवी का आकार और मण, चं� आ4द 8हL-

    उप8हL एवं तारL क� गZत, सWताइस नnh, सूय� और चं�8हण आ4द के @वषय म उनका @वचार और

    गणना Xकतनी अचूक है यह भारतीय पंचांग �णाल� से �कट है. वह �णाल� आज भी आधुZनक युग म भी

    मा�य है और सट�क भी. पृवी चपट� है या गोल, इसक� जानकार� जब @व^व को नह�ं थी तब यहाँ आय�

    भ ने पृवी के मण का $सwा�त �Zतपा4दत Xकया था. �योZतष म 4हदंओुं ने संसार को बहुत अमूHय

    रWन भ ट Xकए हF, वेल� का मत है, 'ईसा से हज़ारL वष� पूव� 4हदं ुवै�ाZनक oप से 8ह गणना करत े थे.

    लाइ>लेस के अनुसार ईसा के ३००० हजार वष� पूव� 8हL का bथान.' (१ @वकला) तक Zनकाल लेत ेथे.

    भारतीय संbकृZत म य� Xgया �ामा|णक oप से फल �दान करने वाल� मनी गई है. य� वेदL

    का मुkय �Zतपाpय @वषय है और �योZतष को वेदL का नेh माना गया है. भाbकराचाय� ने $सwा�त

    $सwा�त $शरोम|ण म कहा है - वेदL म य�L का वण�न है और य� काल के आBeत है, इस$लए िजसम

    काल का वण�न हो वह �योZतषशाbh वेद अंग कहलाता है.

    जम�न के �$सw @वpवान थीबL का कहना है Xक य�L का ठक समय जानने के $लए ह� आय ने

    सबसे पहले �योZतषशाbh के सGूम uिjटकोण क� आव^यकता हुई. (The want of some rule by which to

    fix right time for the sacrifies gave the first impulse to astronomical observations) यह बात sबHकुल

    सWय है Xक य� कैसे भी हL उनम काल क� संBधयL क� आव^यकता होती है. संBध के $लए दसूरा शद है

    पव�. गाँठ, जोड़ अथवा संBध को पव� कहत ेहF. �ाय: साँय क� संBध म हवन होता है. पn क� संBध, मास

    क� संBध, ऋतु क� संBध, चातुमा�bय क� संBध, दोनL अयनL क� संBध पर ह� य�-हवन होत ेहF. यह� सब

    संBधयाँ पव� कहलाती हF. इंका सGूम �ान sबना �योZतष के सzभव नह�ं है.

    वेदL म ऋतुओं के अनुसार १२ मह�नL के नाम 4दए हF, इसका ताWपय� है Xक मह�नL क� संBधयL

    को वह जानत ेथे, नह�ं तो कैसे जानत ेXक आगामी माह �ारzभ हो रहा है. वेदL म इसी तरह दोनL अयनL

    का वण�न है.

    ऐतरेय lाmमण क� भू$मका ने मा4ट�न हाग ने $लखा है, 'जो य� वष� भर चलता है वह सौर जगत ्

    क� वा@ष�क प]रgमा को दशा�ता है. यह य� दो बराबर भागL म बाँट 4दया जाता है, िजसका �Wयेक भाग

    तीस अंशL म छ:-छ: मास का होता है. दोनL के मqय म जो दोनL अयनL (उWतरायण, दnणायन) को का

    है उसे '@वषुवान' का 4दन कहत ेहF. इससे �ात होता है Xक 4ह�दओुं को दोनL अयनL और वष� के समा>त

    होने वाले 4दन का सGूम �ान था.

    कुछ पा^चाWय @वpवानL का कहना है Xक सायन गणना आय क� देन नह�ं है KयLXक �ाचीन

    भारतीय सा4हWय म रा$शयL के नाम नह�ं हF. बारह रा$शया,ँ उनके वषृ, मेषा4द oप और ३६५ 4दन ६ घंटे

    का वष� भारतीयL को पता नह�ं था. आय� लोग च�� वष� और नnh वष� जानत ेथे, इस$लए उ�ह २००० वष�

    म एक मह�ना पीछे |खसकना पड़ता था. उनको @वषुवत वWृत तथा Zतय�KWव का �ान नह�ं था. यहाँ के

    �ाचीन सा4हWय म मेष, वषृ आ4द नाम से नह�ं $मलत.े

    यह बात सWय है Xक भारत के �ाचीन सा4हWय म मेष, वषृ जैसे रा$शयL के नाम नह�ं $मलत.े

    रा$शयL के नाम वेदL म अ�य नामL से व|ण�त हF. वेदL म बारह आ4दWयL के नाम व|ण�त हF. शतपथ म

    आया है Xक बारह आ4दWय हF, ये सबको देत ेहF इस$लए इनका नाम आ4दWय है.

  • vsu2a

    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

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    v8R 8, A.k 32 AK3Ubr-idsMbr 2011 p

  • दोहे सभुाष ऋतजु

    तीन� ताप� से तपे, यह माया क� बाट,

    जगत ्म��थल, मनुज मगृ, स�गु� तुम रस घाट.

    बँधी भि#त क� जब सु$ढ़, चरण कमल से डोर,

    उठ, दया क� बादर., नाचा मन का मोर.

    एक बाँह माया गहे, और दसूर. राम,

    एक ओर बहु क3ट ह4, एक ओर आराम.

    मानव पंथी, ल8य ह9र, नेक पंथ :�थान,

    मंगलमय है यादर, उर अवधपुर, मन सेवक हनुमान,्

    और आ@मAप मB, बसे राम भगवान.

    घट-घट मB बैठे Dमले, जब से मुझको राम,

    तब से हर तन हो गया, मेरा तीरथ धाम.

    अFर-अFर रिGम है, शIद-शIद है द.प,

    आ>दनाम मोती सखे, साँस-सासँ है सीप.

    महल� मB जKमB बहुत, LकKतु रहे कंगाल,

    :ेम भि#त Mबन कब हुआ, कोई मालामाल.

    राजे महराजे बहुत, रहे LकKतु कंगाल,

    राम रतन धन से हुई, मीरा मालामाल.

    लख चौरासी कोस जब, चलते ह4 ये पाँव,

    तब Dमलती है मुि#त क�, मंिज़ल :भ ुका गाँव.

    दो चरण� मB हो गयी, दो चरण� क� बात,

    चरणामतृ क� कर गये, स�गु� जी बरसात.

  • Sneh #akur kI p/kaixt puStke.Sneh #akur kI p/kaixt puStke.Sneh #akur kI p/kaixt puStke.Sneh #akur kI p/kaixt puStke.

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