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Hindi A (Mock Test) Grade IX...सर द च र व यजतत क चररत र क प रभ व उसक सम पकय म आ व ग पर ह ह बजकक सम

Mar 25, 2020

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Page 1: Hindi A (Mock Test) Grade IX...सर द च र व यजतत क चररत र क प रभ व उसक सम पकय म आ व ग पर ह ह बजकक सम

#GrowWithGreen

Grade IXHindi A(Mock Test)

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वार्षिक परीक्षा

कक्षा – नौवी

र्वषय – ह िंदी

समय – 3 घंटे अधिकतम अंक – 80

सामान्य निरे्दश –

1. इस प्रश्ि पत्र में चार खंड है। 2. चारों खंडों के प्रश्िों के उत्तर रे्दिा अनिवायय है। 3. यथा संभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः र्दीजिए।

खिंड – क (अपहित बोध)

प्रश्ि – 1. निम्िलिखखत गदयांश को पढ़कर दर्दए गए प्रश्िों के उत्तर र्दीजिए – 8

चररत्र-भ्रष्ट व्यजतत का समाि में कोई स्थाि िहीं होता। उसे प्रत्येक व्यजतत अपमाि की दृजष्ट से रे्दखता है। सच्चररत्रता ही व्यजतत के माि, आर्दर, यश और सुख की एकमात्र कंुिी है। चररत्र के र्दो अथय हैं - एक तो शरीर के संयम को चररत्र कहत ेहैं; र्दसूरा, व्यजतत के सदव्यवहारों का िाम चररत्र है। अपिी पत्िी के प्रनत प्रमे (सत्प्रेम) और अिुरजतत चररत्र का पहिा गुण है। साथ ही अन्य िाररयों पर माता और बहि की दृजष्ट रखिा चररत्र के पहिे गुण का र्दसूरा रुप है। चररत्र का र्दसूरा अथय सदव्यवहार है। चररत्रवाि ्व्यजतत रै्दनिक िीवि में छोटी-से-छोटी बात पर ध्याि रे्दते हैं। आि समाि में ऊपर से चररत्रवाि दर्दखिे वािे व्यजतत बहुत हैं। अिेक पाप करिे वािे ऊपर से ऐसे आडम्बरपूणय स्वरुप दर्दखिाएँगे जििसे िगेगा कक वे बडे चररत्रवाि हैं, परन्तु उिकी अंतरात्मा इतिी र्दषूित होती है कक तया कहें, दर्दि भर ररश्वतखोरी, चोरबाजारी, झूठ और वासिा में डूबे रहेंगे और शाम को मंदर्दर पर िाकर ग्यारह रुपए का प्रसार्द चढ़ायेंग;े वहाँ पुिारी िी एक बडी-सी मािा िािािी के गिे में डाि र्देंगे और िािािी गिी-चौराहे पर 'भगतिी' के िाम से िमस्कार और अलभवार्दि स्वीकारते हुए घर िौटेंगे। अब आप जरा सोधचए कक िब केवि सच्चररत्रता के आडम्बर मात्र से मिुष्य इस प्रकार की प्रनतष्ठा पा िेता है, तो वास्तषवक सच्चररत्रता से तया कुछ िहीं पा सकेगा? आचरण की पषवत्रता के महत्त्व एवं प्रभाव को प्रर्दलशयत करिे वािे ऐसे कई उर्दाहरण लमि िाएँगे जििमें एक या बहुत थोडे से सर्दाचारी व्यजततयों के कारण मात्र उिके पररवार की िहीं बजकक रे्दश और िानत की उन्िनत हुई है और वे सम्माि के लशखर पर पहँुच गए।

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सर्दाचारी व्यजतत के चररत्र का प्रभाव उसके सम्पकय में आिे वािे िोगों पर ही िहीं बजकक समाि के बहुत बडे भाग पर पडता है और उससे िैनतक, सामाजिक तथा राष्रीय उत्थाि होता है। ऐसे सर्दाचारी व्यजतत पर कोई भी िानत या राष्र गवय से अपिा मस्तक ऊँचा कर सकते हैं। सच्चररत्रता वह िि है जिसके सामिे िि, सम्पषत्त, ऐश्वयय सब तुच्छ हैं। षवदया, िि और शजतत का सर्दपुयोग भी सर्दाचारी व्यजतत हीं कर सकता है। यदर्द ये ही चीिें ककसी षववेकहीि र्दषु्ट मिुष्य को प्राप्त हो िाएँ तो र्दोिों दवारा ककस प्रकार उिका सर्दपुयोग और र्दरुुपयोग होगा, इसके अन्तर को स्पष्ट करते हुए संस्कृत की एक सूजतत में कहा गया है - “षवदया षववार्दाय, ििं मर्दाय, शजतत: परेिां पररपीडिाय।” प्रश्ि – 1 चररत्र के र्दो अथय कौि से हैं? (2) प्रश्ि – 2 चररत्र भ्रष्ट व्यजतत की तया र्दशा होती है? (2) प्रश्ि – 3 आि के िोगों की असलियत तया है? (2) प्रश्ि – 4 'सच्चररत्रता' शब्र्द से मूिशब्र्द अिग कीजिए। (1) प्रश्ि – 5 गदयांश का उधचत शीियक बताइए। (1) प्रश्ि – 2. निम्िलिखखत पदयांश को पढ़कर दर्दए गए प्रश्िों के उत्तर र्दीजिए – 7 समर निदंय है िमयराि पर कहो शांनत वह तया है? िो अिीनत पर जस्थत होकर भी बिी हुई सरिा है। सुख समदृधि का षवपुि कोि संधचत कर कि बि छि से। ककसी क्षुधित का ग्रास छीि, िि िँूट ककसी निबयि से। जियो और िीिे र्दो। सब समेट प्रहरी बबठिाकर कहती कुछ मत बोिो शांनत-सुिा बह रही ि इसमें गरि क्रांनत का घोिो। दहिो-डुिो मत, हृर्दय रतत अपिा, मुझको पीिे र्दो अचि रहे साम्राज्य शांनत का प्रश्ि-1 कषव िमयराि से ककसकी बात कर रहा है (1) प्रश्ि-2 सुख समदृधि का कोि ककससे भरा िािा बताया गया है? (1)

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प्रश्ि-3 िहाँ शांनत का अमतृ बह रहा हो उसमें तया िहीं घोििा चादहए? (2) प्रश्ि-4 'जियो और िीिे र्दो' को चररताथय करिे के लिए तया आवश्यक है? (2) प्रश्ि-5 'षवपुि' शब्र्द का शब्र्दाथय बताइए। (1)

खिंड - ख प्रश्ि – 3. निम्िलिखखत शब्र्दों से उपसगय और प्रत्यय अिग कीजिए – (2)

खुशबूर्दार, सुरक्षक्षत, स्वततं्रता, पररश्रमी

प्रश्ि – 4 उधचत स्थाि पर सही उपसगय या प्रत्यय िगाकर वातय निमायण कीजिए – (2)

योग, ध्वनि, खंड, क्षत्र

प्रश्ि – 5 निम्िलिखखत समस्तपर्दों का षवग्रह कर समास का िाम बताइए – (3)

यथासंभव, सदिमय, शरणागत

प्रश्ि – 6 निमजन्िखखत काव्यांश में प्रयुतत अिंकार का िाम बताइए – (2)

(क) हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में, ब्याह हुआ रािी बि आई िक्ष्मीबाई झाँसी में, रािमहि में बिी बिाई खलुशयाँ छाई झाँसी में,

(ख) किक किक ते सौगुिी, मार्दकता अधिकाय। वा खाये बौराए िर, वा पाये बौराये।

प्रश्ि – 7 श्िेश अिकंार तथा उपमा अिंकार का एक-एक उर्दाहरण र्दीजिए – (2)

प्रश्ि – 8 अथय के आिार पर निम्िलिखखत वातयों का भेर्द बताइए – (3)

(क) अब तक रोहि की परीक्षा समाप्त हो चुकी होगी। (ख) तुम कक्षा से बाहर चिे िाओ। (ग) कमय करते रहो; फि की इच्छा मत करो।

खिंड – ग

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प्रश्ि – 9 निम्िलिखखत गदयांश को पढ़कर दर्दए गए प्रश्िों के उत्तर र्दीजिए – (2+2+1)

यह कैसा आर्दमी है, िो खरु्द तो फटे िूते पहिे फोटो खखचा रहा है, पर ककसी पर हंस भी रहा है! फोटो ही खखचािा था, तो ठीक िूते पहि िेते, या ि खखचाते. फोटो ि खखचािे स ेतया बबगडता था. शायर्द पत्िी का आग्रह रहा हो और तुम, ‘अच्छा, चि भई’ कहकर बैठ गए होंगे. मगर यह ककतिी बडी ‘रेिडी’ है कक आर्दमी के पास फोटो खखचािे को भी िूता ि हो. मैं तुम्हारी यह फोटो रे्दखते-रे्दखते, तुम्हारे तिेश को अपिे भीतर महसूस करके िैसे रो पडिा चाहता हंू, मगर तुम्हारी आंखों का यह तीखा र्दर्दय भरा व्यंग्य मुझे एकर्दम रोक रे्दता है. तुम फोटो का महत्व िहीं समझते. समझते होते, तो ककसी से फोटो खखचािे के लिए िूते मांग िेते. िोग तो मांगे के कोट से वर-दर्दखाई करते हैं. और मांगे की मोटर से बारात निकािते हैं. फोटो खखचािे के लिए तो बीवी तक मांग िी िाती है, तुमसे िूते ही मांगते िहीं बिे! तुम फोटो का महत्व िहीं िािते. िोग तो इत्र चुपडकर फोटो खखचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ िाए! गंरे्द-से-गंरे्द आर्दमी की फोटो भी खुशबू रे्दती है! टोपी आठ आिे में लमि िाती है और िूते उस िमािे में भी पांच रुपये से कम में तया लमिते होंगे. िूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है. अब तो िूते की कीमत और बढ़ गई है और एक िूते पर पचीसों टोषपयां न्योछावर होती हैं. तुम भी िूते और टोपी के आिुपानतक मूकय के मारे हुए थे. यह षवडंबिा मुझे इतिी तीव्रता से पहिे कभी िहीं चुभी, जितिी आि चुभ रही है, िब मैं तुम्हारा फटा िूता रे्दख रहा हंू. तुम महाि कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवतयक, िािे तया-तया कहिाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा िूता फटा हुआ है!

(क) व्यजतत ककस पररजस्थनत में फोटो खखचंवा रहा है ? (ख) टोपी और िूते में अधिक कीमत ककसकी होती है ? फोटो खखचंवािे वािा व्यजतत ककसे कीमती मािता

है ? (ग) टोपी ककसका प्रतीक है ?

प्रश्ि – 10 निम्िलिखखत प्रश्िों के उत्तर र्दीजिए – (2+2+2+2)

(क) िवारा के िवाब के साथ अपिे पाररवाररक संबंिों को िखेखका िे आि के संर्दभय में स्वप्ि िैसा तयों कहा है? (ख) ''तुम पररे्द का महत्व ही िहीं िाित,े हम पररे्द पर कुबायि हो रहे हैं।'' – पंजततयों में निदहत व्यंग को स्पष्ट

कीजिए। (ग) 'कहासा की ओर' पाठ के आिार पर बताइए कक उस समय का नतब्बती समाि कैसा था? (घ) िेखखका उर्दूय-फारसी तयों िही ंसीख पाईं?

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प्रश्ि – 11 निम्िलिखखत पदयांश को पढ़कर दर्दए गए प्रश्िों के उत्तर र्दीजिए – (2+2+1)

मेघ आए बडे बि-ठि के सँवर के। आग-ेआग ेिाचती-गाती बयार चिी, र्दरवाि-ेखखडककयाँ खुििे िगीं गिी-गिी, पाहुि ज्यों आए हों गाँव में शहर के। मेघ आए बडे बि-ठि के सवंर के। पेड झुक झाँकिे िगे गरर्दि उचकाए, आंिी चिी, िूि भागी घाघरा उठाये, बाँकी धचतवि उठा, िर्दी दठठकी, घंूघट सरके। मेघ आए बडे बि-ठि के सँवर के। बूढे़ पीपि िे आग ेबढ़कर िुहार की, ‘बरस बार्द सुधि िीन्हीं’ – बोिी अकुिाई िता ओट हो ककवार की, हरसाया ताि िाया पािी परात भर के। मेघ आए बडे बि-ठि के सँ वर के।

(क) कषवता में पाहुि ककसे कहा गया है ? पाहुि का स्वागत ककस प्रकार ककया गया ? (ख) मेघ के आगमि का तया प्रभाव पडा ? (ग) मेघ के आगमि पर बूढे़ पीपि िे तया ककया ?

प्रश्ि – 12 निम्िलिखखत प्रश्िों के उत्तर र्दीजिए – (2+2+2+2)

(क) कषव के अिुसार आि हर दर्दशा र्दक्षक्षण दर्दशा तयों हो गई है? (ख) बंर्द दवार की साँकि खोििे के लिए ििदयर्द िे तया उपाय सुझाया है? (ग) ब्रिभूलम के प्रनत कषव का प्रेम ककि-ककि रूपों में अलभव्यतत हुआ है? (घ) सुषविा और मिोरंिि के उपकरणों से बच्चे वंधचत तयों हैं?

प्रश्ि – 13 ''िेखखका की मा ँपरंपरा का निवायह ि करत ेहुए भी सबके दर्दिों पर राि करती थी।'' इस कथि के आिोक में िेखखका की मा ँकी षवशेिताए ँलिखखए। (4)

अथवा

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आि माटी वािी बुड्ढे को कोरी रोदटया ँिहीं रे्दगी - इस कथि के आिार पर माटी वािी के हृर्दय के भावों को अपिे शब्र्दों में लिखखए।

खिंड – घ

प्रश्ि – 14 दर्दए गए षवियों में से ककसी एक षविय पर अिुच्छेर्द लिखखए – (10)

(क) "काकह करे सो आि कर" अथवा समय का सर्दपुयोग

• समय का महत्व • समय िीवि के लिए आवश्यक • िाभ

(ख) सत्संगनत सब षवधि दहतकारी

• संत्सगी का अथय, संत्सगनत दहतकारी कैस े• सुसंगनत सब सुखों का मूि

(ग) घर बािक की प्रारजम्भक पाठशािा होती है। (

• माता-षपता प्रथम लशक्षक, षवदयािय में लशक्षक की भूलमका • लशक्षक का र्दानयत्व • छात्रों का भी पररवार तथा समाि के प्रनत र्दानयत्व

प्रश्ि – 15 अपिे क्षेत्र में बबििी आपूनतय की कमी को र्दशायिे हेतु संपार्दक को पत्र लिखखए। (5)

अथवा िुम्रपाि करिे वािे भाई को इसके र्दोिों का उकिेख करते हुए पत्र लिखखए।

प्रश्ि – 16 आि के बच्चों के व्यवहार पर र्दो सहेलियों के मध्य बातचीत/संवार्द लिखखए। (5)

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उत्तर पत्र खिंड - क

उत्तर – 1. (क) शरीर का संयम और सदव्यवहार (ख) समाि में कोई स्थाि िहीं होता (ग) आडंबरपूणय िीवि (घ) चररत्र (ड) सच्चररत्रता उत्तर – 2 (क) अिीनत की (ख) छि, बि और कि से (ग) क्राजन्त गरि (घ) शांनत का साम्राज्य

(ड) बहुत बडा

खिंड - ख

उत्तर – 3

खुशबूर्दार, सुरक्षक्षत, स्वतंत्रता, पररश्रमी

उपसगय मूि शब्र्द प्रत्यय खुश बू र्दार सु रक्षा इत स्व तंत्र ता परर श्रम ई

उत्तर – 4

अलभ + योग = अलभयोग, प्रनत + ध्वनि = प्रनतध्वनि, खंड + इत = खंडडत, क्षत्र + इय = क्षबत्रय

उत्तर – 5

(क) यथासंभव – जितिा संभव हो (अव्ययीभाव समास)

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(ख) सदिमय – सत ्है िो िमय (कमयिारय समास) (ग) शरणागत – शरण में आगत (तत्पुरुि समास)

उत्तर – 6

(क) साथ सगाई - 'स' वणय की आवनृत एक से अधिक बार होिे के कारण यहाँ अिुप्रास अिंकार है।

बिी बिाई - 'ब' वणय की आवनृत एक से अधिक बार होिे के कारण यहाँ अिुप्रास अिंकार है।

(ख) प्रस्तुत पंजततयों में 'किक' शब्र्द की आवनृत र्दो बार हुई है और र्दोिों ही बार यह र्दो अथों में प्रयुतत हुआ है। पहिे 'किक' का अथय ितुरा है तथा र्दसूरे 'किक' का अथय सोिा है।

उत्तर – 7

श्िेश अिंकार - रदहमि पािी राखखए बबि पािी सब सूि। पािी गए ि उबरै मोती मािस चूि।। उपमा अिंकार - सागर-सा गंभीर ह्रर्दय हो, धगरी-सा ऊँचा हो जिसका मि।

उत्तर – 8

(क) संरे्दहवाचक वातय (ख) आज्ञावाचक वातय (ग) षविािवाचक वातय

खिंड – ग

उत्तर – 9

(क) फोटो खखचंवािे वािा व्यजतत खुर्द फटे िूते पहिे हुए है परंतु ककसी और पर व्यंगपूणय हँसी हँस रहा है। इच्छा ि होते हुए भी वह शायर्द अपिी पत्िी के आग्रह पर फोटो खखचंवा रहा है। (ख) यहाँ पर िूते का आशय समदृधि से है तथा टोपी माि, मयायर्दा तथा इज्ित का प्रतीक है। वैसे तो इज़्ित का महत्व सम्पषत्त से अधिक है। परन्तु आि की पररजस्थनत में इज़्ित को समाि के समदृि एवं प्रनतजष्ठत िोगों के सामिे झुकिा पडता है। फोटो खखचंवािे वािा व्यजतत टोपी अथायत इज़्जत को महत्वपूणय मािता है।

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(ग) टोपी माि, मयायर्दा तथा इज्ित का प्रतीक है।

उत्तर – 10

(क) पहिे दहरं्द-ुमुजस्िम को िेकर इतिा भेर्दभाव िहीं था। दहरं्द ुऔर मुजस्िम र्दोिों एक ही रे्दश में प्रेम पूवयक रहते थे। स्वतंत्रता के पश्चात ्दहरं्द ुऔर मुजस्िम संबन्िों में बर्दिाव आ गया है। आपसी फूट के कारण रे्दश र्दो दहस्सों में बँट गया − पाककस्ताि मुजस्िम प्रिाि रे्दश के रुप में प्रनतजष्ठत है तथा दहरं्दसु्ताि में दहरं्दओंु का वचयस्व कायम है। ऐसी पररजस्थनत में दहरं्द ुतथा मुजस्िम र्दो अिग-अिग िमों के िोगों का पे्रमपूवयक रहिा स्वप्ि समाि प्रतीत होता है। (ख) यहाँ पररे्द का सम्बन्ि इज़्ित से है। िहाँ कुछ िोग इज़्जत को अपिा सवयस्व मािते हैं तथा उस पर अपिा सब कुछ न्योछावर करिे को तैयार रहते हैं, वहीं र्दसूरी ओर समाि में कुछ ऐसे िोग भी हैं जििके लिए इज़्जत महत्वहीि है। (ग) उस समय नतब्बती समाि में िानत-पानँत, छुआ-छूत िहीं था, औरतों के लिए परर्दा प्रथा का प्रचिि भी िहीं था, अपररधचत व्यजतत को वे अपिे घर में आिे रे्द सकते थ ेपरन्तु चोरी के भय से ककसी लभखमंगे को घर में घुसिे िहीं रे्दते थे। वहाँ आनतथ्य सत्कार अच्छी तरह से ककया िाता था। (घ) उर्दूय-फारसी में रुधच िहीं होिे के कारण िेखखका को यह भािा कदठि िगी। इसी कारण से िखेखका उर्दूय-फारसी िहीं सीख पाईं।

उत्तर – 11

(क) प्रस्तुत कषवता में मेघ को पाहुि कहा गया है। मेघ रूपी पाहुि के आिे पर हवा िाचते-गाते हुए चििे िगती है मािो उिका स्वागत कर रही है। (ख) मेघ के आगमि से र्दरवाजे-खखडककयाँ खुििे िगे। हवा के तेज बहाव के कारण आँिी चििे िगती है जिससे पेड अपिा संतुिि खो बैठते हैं, कभी उठते हैं तो कभी झुक िाते हैं। िूि रुपी आँिी चििे िगती है। हवा के चििे से संपूणय वातावरण प्रभाषवत होता है - िर्दी की िहरें भी उठिे िगती है, पीपि का पुरािा वकृ्ष भी झुक िाता है, तािाब के पािी में उथि-पुथि होिे िगती है। अन्तत: बबििी कडकती है और आसमाि से मेघ पािी के रुप में बरसिे िगते हैं। (ग) मेघ के आगमि पर बूढे़ पीपि िे आगे बढ़ कर उिकी िुहार की अथायत उिका स्वागत ककया।

उत्तर – 12

(क) आि िीवि कहीं भी सुरक्षक्षत िहीं है। इसका कारण समाि में बढ़ती दहसंा तथा असंतोि की भाविा है। आि का समाि षवज्ञाि के बढ़ते खतरिाक प्रभावों से भी अछूता िहीं है। आि हर वस्तु के र्दो पक्ष होते हैं। िहाँ एक तरफ षवज्ञाि िे समाि को प्रगनतशीि बिाया है वहीं र्दसूरी तरफ षवज्ञाि दवारा बिाई गई

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अत्यािुनिक हधथयार मािव िीवि के लिए खतरिाक है। दहसंा तथा आतंक आि चारों दर्दशाओं में फैि चुका है। अब मतृ्यु की एक दर्दशा िहीं है बजकक संसार के हर कोिे में मौत मँडरा रही है। (ख) कवनयत्री के अिुसार ईश्वर को अपिे अन्त:करण में खोििा चादहए। जिस दर्दि मिुष्य के हृर्दय में ईश्वर भजतत िागतृ हो गई अज्ञािता के सारे अिंकार स्वयं ही समाप्त हो िाएँगे। िो दर्दमाग इि सांसाररक भोगों को भोगिे का आर्दी हो गया है और इसी कारण उसिे ईश्वर से खरु्द को षवमुख कर लिया है, प्रभु को अपिे हृर्दय में पाकर स्वत: ही ये साँकि (िंिीरे) खुि िाएँगी और प्रभु के लिए दवार के सारे रास्ते लमि िाएँगे। इसलिए सच्चे मि से प्रभु की साििा करो, अपिे अन्त:करण व बाह्य इजन्ियों पर षविय प्राप्त कर हृर्दय में प्रभु का िाप करो, सुख व र्दखु को समाि भाव से भोगों। यही उपाय कषवयत्री िे सुझाए हैं। (ग) रसखाि िी अगिे िन्म में ब्रि के गाँव में ग्वािे के रूप में िन्म िेिा चाहते हैं ताकक वह वहाँ की गायों को चराते हुए श्री कृष्ण की िन्मभूलम में अपिा िीवि व्यतीत कर सकें । श्री कृष्ण के लिए अपिे पे्रम की अलभव्यजतत करते हुए वे आगे व्यतत करते हैं कक वे यदर्द पशु रुप में िन्म िें तो गाय बिकर ब्रि में चरिा चाहते हैं ताकक वासुरे्दव की गायों के बीच घूमें व ब्रि का आिंर्द प्राप्त कर सकें और यदर्द वह पत्थर बिे तो गोवियि पवयत का ही अंश बििा चाहेंगे तयोंकक श्री कृष्ण िे इस पवयत को अपिी अगँुिी में िारण ककया था। यदर्द उन्हें पक्षी बििे का सौभाग्य प्राप्त होगा तो वहाँ के कर्दम्ब के पडेों पर निवास करें ताकक श्री कृष्ण की खिे क्रीडा का आिंर्द उठा सकें । इि सब उपायों दवारा वह श्री कृष्ण के प्रनत अपिे पे्रम की अलभव्यजतत करिा चाहते हैं। (घ) सुषविा तथा मिोरंिि के उपकरणों से वंधचत होिे का एक मात्र कारण समाि में व्याप्त वगय षवभेर्द है। निम्िशे्रणी के बच्चों की आधथयक जस्थनत खराब है। अपिे पररवार का भरण-पोिण करिे के लिए वे आय का जररया मात्र बिकर रह गए हैं। िहाँ िीषवका के लिए आधथयक तंगी हो वहाँ मिोरंिि के सािि तथा िीवि के अन्य सुख-सुषविाओं की ककपिा करिा भी असंभव िाि पडता है।

उत्तर – 13

उिकी सबसे बडी षवशेिता थी कक वे एक ईमािर्दार स्त्री थीं। वे कभी झूठ िहीं बोिती थीं कफर चाहे ककतिा कडवा सच ही तयों ि हो। ये उिके चररत्र की बडी षवशेिता थी। यही कारण है कक घर के सभी िोग उिका आर्दर करते थे।

अथवा

माटी वािी का उसके पनत के अिावा अन्य कोई िहीं है। र्दसूरे उसका पनत अत्याधिक वदृि होिे के कारण बीमाररयों से ग्रस्त है, उसका िीवर खराब होिे के कारण उसका पाचिततं्र भी भिी-भाँनत से काम िहीं करता है। इसलिए वह निणयय िेती है कक वह बाजार से प्याि िेकर िायेगी व रोटी को रुखा रे्दिे के बिाए उसको प्याि की सब्िी बिाकर रोटी के साथ रे्दगी इससे उसका असीम पे्रम झिकता है कक वह उसका इतिा ध्याि रखती है कक उसे रुखी रोदटयाँ िहीं रे्दिा चाहती।

खिंड - घ

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उत्तर – 14

(क) शतेसषपयर का कथि है - ''मैंिे समय को बबायर्द कर दर्दया और अब समय मुझे बबायर्द कर रहा है।" स्पष्ट है कक संसार में सबसे अमूकय वस्तु समय है। इसे िष्ट करिे वािा स्वयं िष्ट हो िाता है। समय ककसी के अिीि िहीं रहता है। िो मिुष्य समय का महत्त्व िहीं समझता, वह िीवि में असफि रहता है। इनतहास साक्षी है कक जिि िोगों िे समय का सर्दपुयोग िहीं ककया वे जिंर्दगी में षपछड गए। ईश्वर एक बार में एक ही क्षण रे्दता है और र्दसूरा क्षण रे्दिे से पूवय उस क्षण को िे िेता है। समय का र्दरुुपयोग करिे वािा षवदयाथी ही परीक्षा में अिुतीणय होता है। समय का सर्दपुयोग िीवि में सफिता की कंुिी है।

इनतहासषवज्ञ धगब्बि िे 'रोम साम्राज्य का पति' िामक ऐनतहालसक ग्रंथ लिखिे में अपिे िीवि के बीस बहुमूकय विय िगाए थ।े समय के इसी सर्दपुयोग के कारण धगब्बि षवश्वषवख्यात हुआ। गाँिी िी समय का बहुत आर्दर करते थे। उिका एक क्षण भी व्यथय िहीं बीतता था। गाँिी िी कहा करते थे, "दर्दि लमत्रों के वशे में हमारे सामिे आते हैं, और प्रकृनत की अमूकय भेंट िाते हैं। अगर हम उिका सर्दपुयोग ि करें तो वे चुपचाप िौट िाएँगे।" निकम्मा और निठकिा व्यजतत समय बीत िािे पर लसर िुिता है और हाथ मिता रहा िाता है। यह निजश्चत है कक जिस कायय को हम तत्काि पूरा िहीं कर सकते, उसके पूरा होिे में संरे्दह है। इस संबंि में कबीर िे भी कहा है -

काजकह करै सो आि कर, आि करै सो अब।

पि में परिै होयगी, बहुरी करैगो कब।।

अत: कहा िा सकता है कक िीवि में सफिता का मूिमंत्र है - समय का सर्दपुयोग।

(ख) अच्छे मिुष्य की संगत (साथ) को सत्संगनत कहा िाता है। संगनत ही उसके व्यजततत्व निमायण को प्रभाषवत करती है। संगनत का प्रभाव मिुष्य पर अवश्य पडता है। अच्छी संगनत में रहकर मिुष्य का चाररबत्रक षवकास होता है, उसकी बुदधि पररष्कृत होती है और उसका मि शुदि होता है। बुरी संगत हमारे भीतर के र्दािव को िागतृ करती है। शुति िी िे ठीक ही कहा है – कुसंग का ज्वर बडा भयािक होता है। र्दिुयि का साथ पग-पग पर हानि रे्दता है। अपमाि और अपयश रे्दता है। हमें प्रयास करके सज्ििों का साथ प्राप्त करिा चादहए, तयोंकक 'शढ सुिरदह सत्संगनत पाए'। अंगुलिमाि, वाकमीकक िैसे अिेक उर्दाहरण हमारे सामिे हैं। षवशेि रुप से षवदयाधथययों को सत्संगनत का महत्त्व समझािा चादहए, तयोंकक वे अपररपतव अवस्था में होते हैं और कच्ची लमट्टी के समाि उन्हें ककसी भी रुप में ढािा िा सकता है। निष्किय तौर पर हम यह कह सकते हैं कक मिुष्य को अपिे अरं्दर अच्छाई को बिाए रखिे के लिए हमेशा अच्छे िोगों के साथ संगनत करिी चादहए। इससे हमारे अंर्दर की किुिता र्दरू होती है तथा हमारा चररत्र प्रकाशमाि होता है।

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(ग) छात्र िब लशक्षा संस्था में अध्ययि करता है तो वह षवदयाथी या छात्र कहिाता है। अध्ययि, धचतंि, मिि दवारा षवदया अजियत करिा षवदयाथी का र्दानयत्व है। इस र्दानयत्व को पूरा करिे में अध्यापक का बहुत बडा हाथ होता है। आि का षवदयाथी समाि में रहता है। पररवार से कुछ सीखिे के बार्द गिी मौहकिे के वातावरण में साँस िेता है। उसके बार्द वह षवदयािय के आँगि में िाता है। षवदयािय में अध्यापक उस ेलशक्षा रे्दता है। एक अच्छा अध्यापक चाहता है कक उसका छात्र अिुशालसत, चररत्रवाि, बुदधिमाि और पररश्रमी बिे। एक लशक्षक का व्यजततत्व सािारण िहीं होता। उसके कंिों पर पूरे समाि का भार होता है। यदर्द षवदयाथी अच्छे होंगे तो समाि भी अच्छा होगा। लशक्षक केवि पुस्तकों का ज्ञाि ही िहीं रे्दता वरि ्िीवि में सफिता प्राप्त करिे के षविय में रास्ता भी दर्दखाता है। उन्हें सत्कायय करिे की प्रेरणा रे्दता है। एक अच्छा अध्यापक एक बडा कारीगर होता है। िो कोयिे से निकिे हीरे िैसे छात्र को तराशकर मूकयवाि हीरा बिा रे्दता है। उसके गुणों को समाि के सामिे रखता है। अथायत सािारण से छात्र को भी पररश्रमी, बुदधिमाि व योग्य बिा रे्दता है। उसी तरह एक छात्र का कत्तयव्य होता है अपिे लशक्षक की बातों को ध्याि से सुििा, उिकी आज्ञा का पािि करिा, षवदयािय के अिुशासि को बिाए रखिा, कक्षा में पढ़ाए पाठ को तो पढ़िा ही साथ ही ज्ञािोपािि की अन्य पुस्तकों को भी पढ़िा। लशक्षक के लिए आवश्यक है कक छात्र के साथ सहयोग बिाए रखे। पाठ को रुधचकर बिाए ताकक छात्र पूरी तरह उसमें रुधच िे सके। आिकि अध्यापकों िे लशक्षा को व्यवसाय बिा लिया है। कक्षा में उपजस्थत िहीं रहते और ज़्यार्दा पैसे िेकर ट्यूशि पढ़ाते हैं और छात्रों को ऐसा करिे के लिए मिबूर करते हैं। अत: आि की आवश्यकता है छात्र की अरािकता व अिुशासिहीिता रोकिे के लिए छात्र और अध्यापक र्दोिों ही अपिे-अपिे कत्तयव्यों का पािि ठीक से करें। ताकक उिके संबंि अच्छे बिे रहें। छात्र िो आिकि अध्यापकों का आर्दर करिा भूि गए हैं वे कर सकें । वाणी से मिुर बोििे तथा व्यवहार में लशष्टता बिाए रखें। अध्यापक का षवदयाथीयों को 'आत्मशजतत' की पहचाि करािे में सक्षम होिा चादहए। अत: यह सब तभी संभव है िब षवदयािय में गुरुकुि िैसा शातं वातावरण हो, स्वालभमािी, तेिस्वी व तपस्वी अध्यापक हो और राििीनत से लशक्षा र्दरू हो।

उत्तर – 15 मोती बाग, िई दर्दकिी। दर्दिांक : ............ सेवा में, संपार्दक महोर्दय, रै्दनिक दहरं्दसु्ताि, कस्तूरबा गाँिी मागय, िई दर्दकिी षविय: बबििी आपूनतय की कमी को बतािे हेतु पत्र। श्रीमाि िी, मैं आपके िोकषप्रय समाचार पत्र दवारा शहर में उत्पन्ि बबििी संकट की ओर ध्याि दर्दिाकर, इससे होिे वािी कदठिाईयों का षववरण बबििी अधिकाररयों और सरकार तक पहँुचािा चाहता हँू। कृपया अपिे समाचार पत्र में इसे उधचत स्थाि पर प्रकालशत करके अिुग्रदहत करें।

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हर साि की तरह इस साि भी गमी का प्रकोप बहुत है। हमारे क्षेत्र में गमी के आगमि के साथ ही बबििी का संकट उत्पन्ि हो िाता है। पूरे दर्दि में कुछ ही घंटे बबििी आती है। बाकी समय पर हमारे क्षेत्र से बबििी की पूनतय बंर्द कर र्दी िाती है। घरों में बबििी ि होिे के कारण बहुत सारी समस्याएँ उत्पन्ि हो िाती है। घर में रह रहे िोगों का तो गमी से बुरा हाि हो िाता है। रात में बबििी ि होिे के कारण बच्चों की पढ़ाई भी िहीं हो पाती। िोगों के िीवि में इससे बहुत बुरा असर पड रहा है। बबििी िहीं होती तो पािी की सप्िाई भी िहीं हो पाती है। हमिे इस तरफ बबििी षवभाग के सभी उच्च अफसरों का ध्याि दर्दिािा चाहा परन्तु उिकी अिरे्दखी वैसी की वैसी बिी हुई है। कृपया करके अपिे समाचार पत्र में इसे छाप कर बबििी षवभाग व सरकार को इस ओर ध्याि दर्दिवािे का प्रयास करें ताकक हमारा क्षते्र इस समस्या से छुटकारा पा सके। िन्यवार्द, षविय

अथवा

िई दर्दकिी। दर्दिांक: ........... षप्रय कमि, बहुत स्िेह! तुमसे बहुत दर्दिों से सम्पकय ि होिे के कारण तुम्हें पत्र लिख रहा हँू। कुछ समय पहिे मेरी मुिाकात तुम्हारे करीबी लमत्र से हुई। उसके दवारा मुझे ज्ञात हुआ कक तुमिे िूम्रपाि करिा आरम्भ कर दर्दया है। यह िािकर मुझे बहुत कष्ट हुआ। तुम एक बुदधिमाि व समझर्दार षवदयाथी हो। तुम्हें इस बात का ज्ञाि होिा चादहए कक िूम्रपाि करिे से बहुत तरह की बीमाररयों का सामिा करिा पडता है। िमू्रपाि करिे से व्यजतत के फेफडों में बीमाररयों का खतरा बिा रहता है। जिससे तपेदर्दक (टी.बी) व र्दमा िैसी बीमाररयाँ शरीर में घर बिा िेती हैं। आरंभ में तुम्हें इसके र्दिुपररणाम ििर िहीं आएँगे परन्तु िीरे-िीरे यह तुम्हारे शरीर व िीवि को खोखिा बिा रे्दगा। तुम्हारे इस कायय से माता-षपता को भी बडा र्दखु होगा। अत: तुम्हें चादहए कक तुम इस व्यसि को छोड र्दो। इस व्यसि को छोडिे के लिए सुबह उठकर व्यायाम व योगा करो। संयम से काम िो तभी तुम स्वयं का दहत कर पाओगे। योगा तुम्हारा मिोबि बढ़ाएगा तथा व्यायाम से तुम स्वयं को तरोताजा महसूस करोगे। व्यायाम व योगा से िूम्रपाि का र्दषु्प्रभाव भी कम हो िाता है। सही समय पर उठाया गया कर्दम िीवि को िई दर्दशा रे्दता है। मैं आशा करता हँू कक तुम अपिे बडे भाई की बात मािते हुए र्दबुारा िूम्रमाि िहीं करोगे। तुम्हारा बडा भाई, रषव

उत्तर – 16

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(र्दो पुरािी सहेलियाँ बगीचे में बैठ कर बातें करती हैं।) भैरवी – रािा! तया सोच रही हो? रािा –भैरवी! कि मैंिे कुछ बच्चों को वदृि व्यजतत से िडते रे्दखा। भैरवी – तया! बच्च े वदृि से िड रहे थे? रािा – हाँ, बच्चे िड रहे थे। उि िडकों के व्यवहार पर मुझे शमय आ रही थी। उम्र में चौर्दह-पंिह साि के रहे होगें। आि के बच्चे बडों का आर्दर करिा भूि गए हैं। भैरवी – हाँ, यह तो तुमिे सही कहा है। तुम र्दरू कहाँ िा रही हो, अपिे घर में रे्दखो ि। पहिे हम माता-षपता के आगे कुछ िहीं बोिते थे। िेककि हमारे बच्च ेतो साथ-साथ िवाब रे्दते हैं। रािा – सही कहा! मेरा बेटा भी ऐसे ही करता था। एक दर्दि मैंिे उस ेऐसी सजा र्दी है कक सीिा हो गया है। भैरवी – तया ककया तू िे? रािा – मैंिे उसे घर की साफ-सफाई का काम पकडा दर्दया। भैरवी – साफ-सफाई का काम तयों? रािा – उसिे मुझे कहा कक आप पूरे दर्दि घर में तया करती हो? उसकी बात मुझे बहुत बुरी िगी। मैंिे सोचा कक यदर्द आि इसकी सोच को िहीं बर्दिा, तो यह सारी जिरं्दगी भर यही सोच रखगेा। अतः मैंिे उसे एक दर्दि पूरे घर की जजम्मेर्दारी सौंप र्दी। भैरवी – कफर तया हुआ? रािा – कुछ िहीं उसिे मेरे आगे हाथ िोड लिए। यह हमारी जजम्मरे्दारी बिती है कक बच्चों को सही गित का फकय बताएँ और उिमें अच्छे संस्कार भरें। भैरवी – बडा अच्छा उपाय था। मैं माि गई तुम्हें। अब मैं भी अपिे बेटे को सुिारँूगी। रािा – रे्दर आए िेककि र्दरुुस्त आए।