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www.afeias.comIMPORTANT NEWSCLIPPINGS (23-Jan-18)
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Date: 23-01-18
He’s so unevolved
Can India afford an education minister who wants to put learning
in unscientific chains?
TOI Editorials Thanks to the spread of modern education since
Charles Darwin published On the Origin of Species one and a half
centuries ago, the scientific temper has also spread all across the
globe. But by no means has it been a victory march all the way. For
example, nearly half of Americans embrace the creationist view that
God created humans just as they are today, sometime in the last
10,000 years. But in India where Hinduism is a much less codified
belief system than Semitic religions, many different narratives of
creation coexist. Here this anti-evolution folly hadn’t yet
assaulted the ease of doing science. That peace has now been
shattered by Union minister Satyapal Singh, who has demanded that
Darwin’s theory of evolution be banished from school and college
curricula because it is “scientifically wrong”. As proof, the good
minister says our ancestors never reported seeing an ape turn into
a man. If we adopt this line of thinking we might as well abandon
the pursuit of science, and chain ourselves within the cognitive
limits of what our ancestors told us. At this rate Singh will not
only ignite young minds; he might spark explosions that turn them
into mush. It’s ironic that Singh happens to be Union minister of
state for human resources, in charge of our IITs and other
institutions. Top scientists have expressed alarm at his
prognostications. It’s tempting to argue that his presence in the
Union Cabinet points to a general deficiency of talent among NDA
ministers. But at the very least it’s fair to say that education is
a low priority and receives stepmotherly treatment from NDA, as it
has from previous governments. It’s not surprising that our schools
and universities are in such parlous condition, as attested to by
the ASER report released last week no less than by poor global
rankings of our universities.
Date: 23-01-18
दावोस म किठन प्र न उपि थत करेगी कमाई की गैर-बराबरी
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देश के अमीर की आय म िपछले साल होने वाली बढ़ोतरी 20.9 लाख करोड़ पए
है जो िक देश के सालाना बजट के बराबर है।
सपंादकीय
िव व आिथर्क मंच की सालाना दावोस बैठक से ठीक पहले आक्सफैम नामक
अिधकार की अंतररा ट्रीय सं था ने अपने सवक्षण म भारत म िपछले साल कमाई
के दौरान उ प न बेइंतहा गैर-बराबरी की िचतंाजनक त वीर प्र तुत की है,
िजसका प्रभाव वहां िनवेश की बड़ी उ मीद लेकर गए भारत के प्रधानमंत्री
और उनके प्रभावशाली प्रितिनिधमंडल पर पड़ सकता है।आक्सफैम का सवक्षण
बताता है िक 2017 म होने वाली कमाई का 73 प्रितशत धन देश के िसफर् एक
प्रितशत लोग के हाथ म किद्रत हुआ है और देश की आधी आबादी यानी 67 करोड़
लोग की कमाई म महज एक प्रितशत की विृद्ध हुई
है। देश के अमीर की आय म िपछले साल होने वाली बढ़ोतरी 20.9 लाख करोड़
पए है जो िक देश के सालाना बजट के बराबर है।
कमाई म होने वाली यह गैर-बराबरी इसिलए भी च काती है, क्य िक 2016
के मुकाबले इसम बहुत अंतर आया है। उस साल देश के एक प्रितशत लोग के
पास देश की कुल कमाई का 58 प्रितशत िह सा गया था, जबिक वैि वक अनुपात
50 प्रितशत का था। दिुनया के दस देश के 70,000 लोग पर िकए गए सवक्षण म
इस साल का वैि वक अनुपात 82 प्रितशत का है जो और भी िचतंा बढ़ाने वाला
है।बड़ ेलाव-ल कर के साथ दावोस पहंुचे मोदी सरकार के िलए यह सवक्षण
किठन प्र न खड़ ेकरेगा, क्य िक उस स मेलन म िनवेश की उ मीद होती है तो
दिुनया म बढ़ती असमानता को िमटाने पर चचार् भी होती है। भारत म बढ़ती
असमानता के आंकड़ पर तब से बहस िछड़ी हुई है जब से दिुनया के मशहूर
अथर्शा त्री और ‘कैिपटल इन वटी फ टर् सचुरी’ जैसी पु तक िलखने वाले
थामस िपकेटी ने इस ओर यान खींचा है।
अब आक्सफैम की ओर से आए उसी तरह के आंकड़ पर देश म बहस तेज होगी।
सामािजक तर पर देश के िविभ न तबक म कभी आरक्षण, तो कभी वािभमान के नाम
पर फूटते असंतोष और बढ़ती िहसंा लोग की बेचैनी के प्रमाण ह।मोदी सरकार
के पास िसफर् एक बजट पेश करने का अवसर है और इस असमानता को कम करने का
कोई ठोस उपाय िदख नहीं रहा है। थामस िपकेटी और आक्सफैम ने असमानता की
बढ़ती खाई को घटाने के िलए कॉप रेट टैक्स बढ़ाने और कंपिनय के प्रमुख के
वेतन की सीमा तय करने का सुझाव िदया है। सवाल है िक क्या सरकार उस
िदशा म कोई कदम उठा पाएगी?
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Date: 23-01-18
अराजकता का प्रदशर्न सपंादकीय
‘पद्मावती‘ से ‘पद्मावत‘ म त दील हुई िफ म का िजस िहसंक और अराजक
तरीके से िवरोध जारी है, उससे िवरोध करने वाले संगठन के साथ-साथ
संबंिधत रा य सरकार की भी बदनामी हो रही है। अब तो ऐसा लगता है िक
संकीणर् राजनीितक कारण से उन संगठन को जानबूझकर हवा दी जा रही है, जो
िफ म के िखलाफ सड़क पर उतरकर हुड़दंग मचा रहे ह। आिखर क्या कारण है िक
चुनाव वाले रा य म ही िफ म का यादा िवरोध हो रहा है ? िनःसंदेह सवाल
यह भी है िक इन रा य की सरकार उ पात मचा रहे संगठन के िखलाफ िकसी तरह
की कारर्वाई क्य नहीं कर रहीं ? यह िकतना उिचत है िक कुछ वयंभू संगठन
के नेता घूम-घूम कर िहसंा फैलाने की धमकी देते रह ? बेहतर होगा िक इस
मामले म कद्र सरकार भी अपनी सिक्रयता िदखाए, क्य िक भाजपा शािसत रा य
म ही यादा अराजकता देखने को िमल रही है। कद्र सरकार को रा य को आव यक
िनदश देने म देर नहीं करनी चािहए क्य िक िफ म ‘पद्मावत‘ का िवरोध करने
वाले संगठन कानून एवं यव था का खुला उपहास उड़ा रहे ह। िफ म के िवरोध म
िनयम-कानून को धता बताते हुए तोड़फोड़ एवं आगजनी करने की खुली धमकी
देना, एक िक म की गुंडागदीर् ही है। स य समाज म िकसी को भी यह शोभा
नहीं देता िक वह अपनी आहत भावनाओं का हवाला देकर सड़क अथवा अ य
सावर्जिनक थल पर आम लोग को आतंिकत करने का काम करे। िफ म ‘पद्मावत‘ के
िवरोध म अराजकता फैला रहे संगठन यिद यह सोच रहे ह िक उनकी बेजा हरकत
से देश-दिुनया उ ह सही मान लेगी या िफर उनके प्रित सहानुभूित से भर
जाएगी, तो ऐसा िब कुल भी नहीं होने वाला। कुतकर् के साथ मनमानी करने
वाले समूह-संगठन सदैव आलोचना और अपयथ के पात्र बनत ेह।
ससर बोडर् से अनुमित िमलने और सुप्रीम कोटर् की ओर से िफ म के
िवरोध को आधारहीन ठहराए जाने के बाद इसका कोई औिच य नहीं रह जाता िक
करणी सेना अथवा ऐसे ही अ य संगठन जोर-जबरद ती से िफ म के प्रदशर्न को
रोकने की कोिशश कर। आिखर जब ‘पद्मावत‘ के िनमार्ता, िनदशक समेत िजन
लोग ने इस िफ म को देखा है, व ेबार-बार कह रहे ह िक िफ म म ऐसा कुछ
नहीं है, िजससे िकसी को आपि त हो, तब यह रट लगाने का क्या मतलब िक हम
यह िफ म वीकार नहीं ? सबसे हा या पद और िविचत्र यह है िक ऐसा कहने
वाले वे ह, िज ह ने न तो िफ म देखी है और न ही उसकी िवषय व तु के बारे
म जानते ह। यह िकसी कुतकर् से कम नहीं िक रानी पद्मावती का िचत्रण
नहीं िकया जा सकता। आिखर जब पावर्ती, दगुार्, सीता आिद पर िफ म या
धारावािहक बन सकते ह, तो रानी पद्मावती पर िफ म क्य नहीं बन सकती? िफ
म का िहसंक िवरोध भारतीय समाज की गलत छिव पेश करने के साथ ही िफ मकार
और अ य कलाकार की क पनाशीलता की हद तय करने वाला काम है। आिखर कोई क
पनाशीलता को बंधक बनाने का काम कैसे कर सकता है? यान रहे िक जो समाज
ऐसे काम करता है, वह अवनित की ओर तो जाता ही है, उपहास का पात्र भी
बनता है।
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जािदिल
सपंाद
िववाहकद्रीयदिलतकद्रीयसे शाजाित
नौकरीमिजिव यसफलमिहलजातीवा त
अब िलयाह यानहीं सामनजाएंगह, उन
ित नहीं लत से शादी
दकीय
ह के बाद जय िव यालय त से शादी कय िव यालय शादी की और ित प्रमाण
पत्र क
री के 21 सालटे्रट ने जाचं
यालय ने उसेलता न िमलनला नहीं हो सी है। यायालयतव म इससे ए
दसूरी जाितया है। िकंतु पहा अनुसूिचत जथा, क्य िक ने आने के गी।अ
छा होगउनके साथ िरय
बदलती दी करने पर
जाित न बदलेसे बखार् त ए
कर ले तो वह म 21 वष कीइसके आधार के आधार पर
ल के बाद सुनच के बाद िलखस नौकरी से ने पर सव चसकती है. आमय ने इसे
नकएक दौर का अ
य म शादी कहले से िज ह जाित के दसूरेसमाज की पबाद न जानेगा िक
यायायायत बरतते
र मिहला द
ल जाने का सएक िशिक्षका क दिलत नहीं की सेवा समा पर अनुसूिचर उसे
पंजाब क
नीता के िखलखा िक जाितबखार् त कर च यायालय म धारणा यहीकार िदया है
अंत हो रहा है
करने वाली लपित की जािरे लाभ उनने पंरपरानुसार उन े कहां-कहां ालय
म इससेहुए उ ह बख
दिलत नही ं
सव च यायाकी अपील परहोगी क्य िकत हो गई। द
चत जाित का के पठानकोट
लाफ यह िशकाित प्रमाण पत्र िदया। उसनेका दरवाजा ी रही है िक मतो
शादी के है।
लड़िकयां पहले ित का प्रमाण उठाए ह तो उ ह पित कीलोग िकसके
स संबंिधत पुनखार् तगी की ज
होगी।
ालय का फैसर फैसला देते क जाित ज मदरअसल, मामप्रमाण पत्र प्र म
कद्रीय िव
ायत दजर् की गलत है।उस
न े इसके िखलखटखटाया थमिहला िजस बाद मिहलाओ
से यह जानण पत्र िमल गयउ ह दोषी मी जाित का प्र बारे म िशनिवर्चार
यािचकजगह सेवािनवृ
IM
सला युगांतकार हुए कहा है म से िनधार्िरतमला एक अग्रवप्रा त कर
िलयव यालय म न
गई िक वह सका जाित प्रमलाफ पहले इलथा।.जािहर है, जाित के पु षओं की
बदली
नगी िक उनकीया है और उसमान लेना भी प्रमाण पत्र दे शकायत करगे चका
दायर हो।विृ त दी जा स
PORTANT NE
ारी सािबत होिक कोई साम
त होता है। इसवाल लड़की कया। उसकी शकै्षनौकरी िमल ग
अग्रवाल जाितमाण पत्र िनरइलाहाबाद उ च ऐसा प्रमाणष से िववाह की गई
जाितय
की जाित वही सके आधार पउिचत नहीं ह
द िदया गया। और िकतन।अभी तक जोसकती है।
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Date
ोगा। सव च मा य जित कीसके आधार पका था, िजसनेक्षिणक योग्यगई।
ित की है।बुलंदर त कर िदयच यायालय
णपत्र पान ेवालकरती है उसीयां असंवैधािनक
रहेगी िजसमपर वो कहीं नहोगा।इसम उन वा तव म न की लगी जो मिहलाएं
नौ
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e: 22-01-18
यायालय नेकी मिहला यिदपर मिहला कीन ेजाटव लड़केयता और उसके
दशहर के िसटीया गया।कद्रीय और वहां सेली वह अकेलीी जाित की होक हो
गई ह
म उ ह ने पदैनौकरी कर रहीनका कोई दोषइस फैसले केहुई नौकिरय
नौकरी कर रही
m8)
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न ेिद की के के
टी य से ली हो ह।
दा हीं ष के यां हीं
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Date: 22-01-18
अनदेखी पड़ी भारी अवधेश कुमार
यह आजाद भारत के इितहास का पहला अवसर है जब िकसी िवधान सभा के एक
साथ 20 िवधायक की सद यता लाभ के दोहरे पद के कारण चली गई हो।हालांिक
चुनाव आयोग ऐसा ही फैसला करेगा इसे लेकर पूरे प्रकरण की जानकारी रखने
वाले िकसी भी तट थ यिक्त को शायद ही कोई संदेह रहा हो। आम आदमी पाटीर्
आज जो भी तकर् दे, उसके नेताओं को अगर इसका आभास नहीं था तो िफर मानना
चािहए िक वो अपने वारा िनिमर्ंत िकसी ख्वाब की दिुनया म रह रहे थे।िजस
ढंग से िद ली उ च यायालय ने 8 िसत बर 2016 को 21 िवधायक के संसदीय
सिचव की िनयुिक्त को र कर िदया था और जो िट पिणयां की थी ंउ हीं से
साफ हो रहा था िक इन िवधायक की सद यता कभी भी जा सकती है। यायालय ने
अपने आदेश म कहा िक िनयम को ताक पर रख कर ये िनयुिक्तयां की गई
थीं।िकसी मुख्यमंत्री को संसदीय सिचव िनयुक्त करने का आिधकार है और
होना भी चािहए लेिकन जो भी होगा वह संवैधािनक प्रावधान के अनु प ही
होगा।केजरीवाल ने यहा ंप्रावधान की अनदेखी करके िनयुिक्त की थी और आज
उसी का पिरणाम उनके िवधायक एवं वयं उ ह ऐसा पिरणाम भुगतना पड़ा है। यह
तो संयोग किहए िक उनको 70 सद य की िवधान सभा म 66 सीट हािसल थी, िजसम
से 20 के चले जाने के बावजूद बहुमत कायम रहता है, अ यथा सरकार भी जा
सकती थी।संिवधान का अनु छेद 102 (1) (ए) प ट करता है िक सांसद या
िवधायक ऐसा कोई दसूरा पद धारण नहीं कर सकता, िजसम अलग से वेतन, भ ता
या अ य कोई लाभ िमलत ेह ।
लाभ के पद की याख्या पर काफी बहस हो चुकी है।इसिलए इस मामले म बहुत
यादा िकंतु-परंतु की गुंजाइश नहीं ह. इसके अलावा संिवधान के अनु छेद
191 (1)(ए) और जन प्रितिनिध व कानून की धारा 9 (ए) के अनुसार भी लाभ
के पद म सांसद -िवधायक को अ य पद लेने का िनषेध है।इन सब प्रावधान का
मूल वर एक ही है, आप यिद सांसद या िवधायक ह तो िकसी दसूरे लाभ के पद
पर नहीं रह सकते या यिद आप िकसी लाभ के पद पर ह तो सांसद या िवधायक
नहीं हो सकते।आम आदमी पाटीर् तकर् दे रही है िक िजन िवधायक को ससंदीय
सिचव बनाया गया उनको न कोई बंगला िमला, न गाड़ी, न अ य सुिवधाएं। यानी
जब उ ह ने कोई लाभ िलया ही नहीं तो िफर उनको दोहरे लाभ के पद के तहत
सजा कैसे दी जा सकती है? पहली नजर म यह तकर् सही भी लगता है।तो िफर
चुनाव आयोग ने यह फैसला क्य िकया? आयोग को पता है िक अगर िबना िकसी
ठोस आधार के फैसला करेगा तो वह रा ट्रपित के यहां क जाएगा या िफर
यायालय म िनर त हो जाएगा।चुनाव आयोग ने इतना लबंा समय िलया है तो
जािहर है िक उसने इस पर पूरा िवमशर् िकया और िफर आ त हो जाने के बाद
ही सद यता र करने की िसफािरश कर दी।ऐसे कई रा य ह, जहां संसदीय सिचव
का पद लाभ के पद के दायरे के अंदर है तो कुछ रा य ऐसे ह जहां यह बाहर
है. िद ली म इ ह लाभ के पद के दायरे म रखा गया है। िद ली म 1997 म
िसफर् दो पद (मिहला आयोग और खादी ग्रामो योग बोडर् के अ यक्ष) ही लाभ
के पद से बाहर थे. 2006 म नौ पद इस ेणी म रखे गए।
पहली बार मुख्यमंत्री के संसदीय सिचव पद को भी शािमल िकया गया
था।इसके अनुसार भी िद ली म मुख्यमंत्री केवल एक संसदीय सिचव रख सकते
ह।साफ है िक केजरीवाल ने 21 िवधायक की िनयुिक्त करते समय इस बात का
यान नहीं रखा।मई 2012 म पि चम बंगाल सरकार ने भी संसदीय सिचव की
िनयुिक्त को लेकर िवधेयक पास िकया था।
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इसकेयायठीक 21 िओर
इसकेसंसदीिववादमकसरा यअनसुपटेल लायावापसहै। इसंसदीगई?
तो इपाटीर्,नेता उनकेकोई
कमिकरण
आधानजरंआसाहािसल
क बाद ममता यालय ने सरकसे समझने किवधायक को से वकील रिव
क समानांतर िदीय सिचव कोद बढ़ा तो िदसद संसदीय सयपाल नजीब सार रा
ट्रपित ल ने 100 पृा गया। चुनावस कर िदया। इस मामले मदीय सिचव के
इस मामले की जो राजनीितके पक्ष म ब
क िवधायक आव यकता न
मजोर सरुण जोनालग
ार डाटा म हुईरदाज करना हान है। हालािंकल िकया जा
ा बनजीर् ने 2कार के िवधेयकके िलए जरा संसदीय सिचिव द्र कुमार
ने
िद ली के एकको लाभ का पद ली सरकार सिचव के पदजंग के पास ने चुनाव
आठ का जवाबव आयोग इस वैसे भी िद ल
म उप रा यपक पद का लाभ
की यही वाभित म नये माबनाए रखने केथायी प से नहीं थी।
रक्षा तंत्र डा, सह-सं
ई सधमारी वही बेहतर होगिक द िट्र यून सकता है, आ
20 से यादा क को असवंैध पूरे प्रसंग किचव िनयुक्त न ेयािचका
दाय
क वकील प्रशांपद का मामला23 जून, 20
द को लाभ के भेज िदया ग
आयोग से सलाब िदया और ब जवाब से संली िवधान सपाल से अनमुभ का पद
मा
भािवक पिरणिापदंड थािपतके िलए थोक उनके नेतृ व
त्र से लीकथापक, इंटर
वा तव म हुई,गा। अ छा ह म रचना खैआम लोग म
िवधायक कधािनक ठहरा को संक्षपे म रिकया था। इसयर की थी।इ
ात पटेल ने 1ला बताया था 015 को िवधानक पद से छूट गया।उप रा याह
मांगी। चनुबताया िक मे
सतु ट हुआ औसभा म कोई िमित भी नहीं ानती ही नहीं
ित है।आप िवत करने के ि भाव म संसव के प्रित िन
क होती सरनेट फ्रीडम फ
, तो िकतनी होगा िक हमखरैा के इस खम कुछ जाग
को संसदीय सिदया। तो केजरखना ज री सके िखलाफ ह ने इस िनय
9 जून 2015और 21 िवधान सभा म लट िदलाना था।यपाल न ेइसेनाव आयोग
नमेरे यािचका लऔर उसके अनुिवधेयक पेश ली गई थी। थी तो िफर
िवधायक का िलए आई थीसदीय सिचव बिन ठावान रहगे
सूचनाओंफाउंडशेन
भयावह होगीम अभी छोटी-खुलासे के बादकता बढ़ी है
IM
सिचव िनयुक्तजरीवाल न ेइहै। 13 माचर् िद ली उ च युिक्त की संवै
5 को रा ट्रपितधायक की सदलाभ का पद सिवधेयक पास
स रा ट्रपित केने यािचका दालगाए जान े केनसुार रा ट्रपितकरने के
पूवर् आप वयं यह िवधेयक
पद जाना हीी, उसका ह बनाना पड़ा। गे, इसिलए उ
ओं का आ
ी, इसका आक-छोटी परेशािनद िक महज है। मगर इस
PORTANT NE
त िकया। बावइस उदाहरण क 2015 को के यायालय मवैधािनकता पर
ित के पास याद यता र कसंशोधन िवधेयस करा कर 2क पास भेज िदायर करने
वाके बाद असवंै
ित को सलाह ि उप रा यपालिवचार किरए
क लाने की आ
ी था।इसे िवड ऐसा हो गयकेजरीवाल क
उ ह ने यह क
आधार
कलन मुि कलिनय की चचार्500 पये म मसले पर ज
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वजूद इसके कका भी यान केजरीवाल सरम रा ट्रीय मुिर सवाल उठाय
यािचका दायर करने की मांगयक लाई। इस4 जून 2015िदया। िनधार्िराले से
जवाब वैधािनक तरीकेिदया। रा ट्रपिल से अनुमितए, केजरीवाल आव यकता
क्य
ड बना ही कया िक िवधायको यह उ मीदकदम उठाया अ
Date
ल है, इसिलए चार् कर, िज हम आधार काजो प्रितिक्रया
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कोलकता उ च नहीं रखा।इसेरकार ने अपनेिक्त मोचार् कीया था।
की थी। इसमग की थी। जबस िवधेयक क5 को इसे उपिरत प्रिक्रया के
मांगा। प्रशांतके से िवधेयकित ने िवधेयकित का प्रावधानसरकार अगरय
महसूस की
कहगे एक ऐसीयक को अपनेद नहीं थी िकअ यथा इसकी
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इसे िफलहालह समझना भीा पूरा डाटाबेसा आई है, वह
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च से ने की
म ब का प के त क क न र की
सी ने िक की
ल भी स ह
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अपेिक्षत ही थी। पहले तो िकसी तरह की सधमारी को िसरे से खािरज िकया
गया, िफर खैरा और द िट्र यून के िखलाफ एफआईआर दजर् कर दी गई।
बहरहाल, आधार अिधिनयम की धारा 59 उन तमाम गितिविधय को एक तरह से मा
यता दे देती है, जो बाकी कानूनी प्रावधान म गैर-कानूनी ह। अभी कई रा य
अपने टेट रेिजडट डाटा ह स (एसआरडीएच) के िलए धमर् व जाित जैसी िनतांत
िनजी सूचनाएं इकट्ठा करने को उ सुक ह। ये ह स बायोिमिट्रक से तो जुड़
ेह, पर इसे रा य का कानून संरक्षण नहीं देता। यूआईडीएआई तो आधार
नामांकन म ऐसा पहले से ही करता रहा है। उधर, आंध्र प्रदेश सब कुछ आधार
से जोड़ चुका है। यहां तक िक मामूली टै्रिफक चूक भी इसम दजर् है। वहां
पुिलस भी अपरािधय व गुमशदुा ब च की पहचान करने के िलए बायोिमिट्रक का
इ तेमाल कर सकती है। ऐसे म, चुनाव के दौरान मतदाता पहचान पत्र के साथ
यिद िनजी सूचनाएं शािमल हो गईं, तो वे वाकई काफी संवेदनशील हो
जाएंगी।
इसम दो राय नहीं है िक आधार का इको-िस टम काफी यापक है। इसका
प्रसार नंदन नीलेकिण जैसे यूआईडीएआई के पूवर् सद य और आईि प्रट जैसे
िथकं टक, खोसला लै स जैसी िनजी कंपिनयां, ओिम यार और आईडीइनसाइट जैसी
िरसचर् सं थाएं, एयरटेल, िजयो और पेटीएम जैसी सिवर्स कंपिनयां, भारतीय
रा ट्रीय भुगतान िनगम तक है। दभुार्ग्य से यूआईडीएआई इस इको-िस टम का
एक कमजोर रखवाला सािबत हुआ है, और िजस तरह िस टम लगातार कमजोर पड़ता जा
रहा है, उस वजह से इसकी सूचनाओं म सध कोई भी लगा सकता है। हमारा
लोकतंत्र भले सामािजक िचतंाओं को तव जो देता है, पर सधमारी को
प्रािधकरण एक सामा य हादसा मानता है और पीिड़त की िचतंा पर गौर नहीं
करता।
साल 2014 म नंदन नीलेकिण ने खुद ही गलती से अपना आधार िडटेल जािहर
कर िदया था। ऐसा आधार काडर् का फोटो पो ट करने के दौरान हुआ था। तब उ
ह ने अपने आधार नंबर को तो ढक िदया था, पर क्यूआर कोड को िछपाना वह
भूल गए। उसम उनका फोन नंबर, ज मितिथ और घर का पता दजर् था। आज भी कई
वेबसाइट पर वह त वीर उपल ध है। अगर नीलेकिण जैसे प्रभावशाली शख्स
इंटरनेट से अपनी गोपनीय सूचनाएं नहीं िछपा पाए ह, तो एक सामा य यिक्त
इसम िकतना सफल हो पाएगा, यह समझा जा सकता है? वा तव म, एक आधार नंबर
से आप कई तरह की सूचनाएं हािसल कर सकते ह। *99*99# डायल करके आप यह
आसानी से जान सकते ह िक आधारधारक की सि सडी िकस बक म जमा हो रही है। इ
डने की वेबसाइट से आधारधारक का नाम, उसकी गैस-उपभोक्ता आईडी और बक म
जमा होने वाली सि सडी पता कर सकते ह। जािहर है, इन तरकीब से िकसी का
लेखा-जोखा पाया जा सकता है।
यूआईडीएआई के पास अपने इको-िस टम की सुरक्षा- यव था को परखने की भी
क्षमता नहीं है। इस िस टम म 300 से अिधक लाइससधारक एजिसयां ह, िजनकी
पहंुच मखु्य डाटाबेस तक तो है ही, उनके पास सीिमत अिधकार के साथ लाइसस
देने और दसूरे डाटा के साथ उसे जोड़ने का भी अिधकार है। नतीजतन, हर कुछ
स ताह म एक नई सधमारी की घटना सामने आती है। ‘कारण’ लॉग के द तावेज यह
तो बतात ेह िक सुिखर्य म आई सधमारी की घटना कैसे हुई, पर ऐसी सधमारी
से, िजनसे हम अंजान ह, हमारी सूचनाएं िकस तरह गलत हाथ वारा इ तेमाल की
जा रही ह, यह कौन जानता है? हमारे सैिनक की सूचनाएं भी आधार डाटाबेस म
दजर् ह। जािहर है, आधार रा ट्रीय सुरक्षा को खतरे म डाल सकता है।
सरकार ऐसी सधमारी की आशकंाओं को रोकने की िदशा म सिक्रयता िदखाए।
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आशंकाओं के िनराधार तकर् नंदन नीलेकिण, चेयरमनै, इ फोिसस
यह संभव नहीं िक िचत और पट, दोन आपकी ही हो। अथर्शा त्री इसे
‘समझौता’ कहते ह। आप हर वक्त दो िवरोधी मत के बीच संतुलन िबठाते ह।
मसलन, 18वीं सदी के अंत तक या तो आप चार पिहय वाली घोड़ागाड़ी की सवारी
कर सकते थे, जो धीरे-धीरे, लेिकन आपको एक सुिवधाजनक यात्रा कराती, या
िफर घोड़ ेकी पीठ की सवारी करते थे, िजसम आप मंिजल तक तेज तो पहंुच
जाते, पर वह सफर अकेले (और परेशानी म) कटता। 1912 तक यह त वीर बनी
रही। शिुक्रया अदा कीिजए हेनरी फोडर् का िक अब हम तजे गित से भी
यात्रा कर सकते ह और सुकूनदेह भी। यही वजह है िक समाज ने नई तकनीक को
हमेशा हाथ -हाथ अपनाया है, क्य िक वे समझौते की ि थित को बदल देती
ह।आधार का इ तेमाल जैसे-जैसे बढ़ा है, कुछ लोग िविभ न सेवाओं से इसे
‘जोड़ने’ को लेकर अपनी िचतंा जािहर करते रहे ह। उनका डर यह था िक आधार
जैसे यूनीक पहचान को अलग-अलग डाटाबेस से जोड़ने से उपयोगकतार् की
िनगरानी और उसके बारे म तमाम जानकािरयां सावर्जिनक हो सकती ह। जॉजर्
ऑरवेल के उप यास 1984 की त वीर और ‘पेनॉि टकॉन’ (1791 म जेरेमी बे थम
वारा प्र तािवत एक गोलाकार जेल, िजसके कद्र म िसपाही का कक्ष हो और
उसके चार तरफ कैिदय का। यानी सब कुछ पारदशीर् हो) की कहानी याद िदलाई
जाती रही। मगर ये सभी िचतंाएं िनराधार ह, और दु प्रचार भी।
पल-भर के िलए एक अ य पहचान, मोबाइल नंबर का उदाहरण लेते ह। एक शहरी
मोबाइल धारक, िजसके पास एयरटेल का नंबर है, आमतौर पर अपने मोबाइल नंबर
को कैब की बुिकंग के िलए ओला से, खाने का ऑडर्र देने के िलए जोमैटो से
और मैसेज के िलए वा सएप से ‘िलकं’ करता है। मगर क्या इससे एयरटेल को
यह पता होता है िक वह शख्स कहां जा रहा है, क्या खा रहा है या िकससे
चैट कर रहा है? नहीं। ऐसा इसिलए, क्य िक ‘िलकं करना’ यानी जोड़ना
एकतरफा प्रिक्रया है। आधार के साथ भी ठीक ऐसा ही होता है। आधार जारी
करने वाला भारतीय िविश ट पहचान प्रािधकरण (यूआईडीएआईर्) यह कतई नहीं
जानता िक आपने अपने आधार को कहां िलकं िकया है और क्य ?
िफर भी, मान ल िक िकसी िवरल मामले म यिद ओला, जोमटैो और वा सएप आपस
म सांठ-गांठ कर लेते ह और आपका डाटा साझा कर लेते ह, तो व ेडाटा को
‘िलकं’ आपके मोबाइल नंबर से ही कर सकगे। बेशक आज ऐसी तकनीक उपल ध है
िक आप कैब को बलुाने, खाने का ऑडर्र देने और सदेंश भेजने के िलए कई
तरह के िसम काडर् और मोबाइल फोन ले सकते ह, पर यह अ यावहािरक ही होगा।
सवाल है िक इस ‘समझौते’ से कैसे पार पाया जाए? इसका जवाब ‘टोकनाइजेशन’
तकनीक है। यह दरअसल, संवेदनशील सूचनाओं को यूनीक पहचान-संकेत म बदलने
की प्रिक्रया है, िजसम सुरक्षा से कोई समझौता िकए िबना तमाम
जानकािरयां सहेज ली जाती ह। हमारे िलए टोकनाइजेशन का अथर् है, जोमैटा,
ओला और वा सएप के िलए वत: अलग-अलग मोबाइल नंबर होना। इसके अलावा, यिद
आप चाह, तो खुद का एक आभासी मोबाइल नंबर भी तैयार कर सकते ह।
यूआईडीएआईर् ने 2010 म आधार के शु आती िदन म ही टोकनाइजेशन की बात कही
थी, पर तब इसे ऐसा िवचार माना गया, िजसने समय-पूवर् ज म ले िलया था।
मगर अब इसका वक्त आ गया है। टोकनाइजेशन की घोषणा कर दी गई है, िजससे
आधार की िनजता और सुरक्षा बढ़ गई है।
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पहलानहीं को अशख्सको ‘जकर ियवहै। यजा सये फीआधाचेहरे गया
अ छीत वीगया नंबर तरह एफबीनंबर संभावसमझदेना कम
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यह एक तरह सकेगा। वचुर्अफीचर कुछ हदार पा सकते की पहचान एक और
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छी बात है िकीर साफ नही ंहै, जबिक वे को िजन सेवटोकनाइजेशन
बीआई के एक होते ह, क्यवना कायम हैझने की ज रतऐसी कोिशश है
क्या?
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torial disqualificaday on a bin
त ई-केवाईसी जब तक िक से एक टोकन
हीं होगी। इससेकगी। इसके ।बावजूद इसकेतमाल कर सक का आपका अल आईडी
पानद तक आधार ह। बस, इसकेको भी एक िदम है।
क बहस-मुबाहस की जाती। व भी भारतीयवाओं से िलकंन से पहले आक एजट के
हविक इससे दसह। यूआईडीएआत है िक विर है, जो लगात
ocess
fication of
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का िकया गयकानूनन ऐसान यानी आईसे आपके आधिलए आधार के यिद आप कते ह।
इसके छद्म आधार नन ेया इसे बद म शु से रके िलए उ ह िवक प के
स म उपयोगआधार को ब
य की िनजता क करने की बआधार से जुड़ावाले से बतायस गुना अिधकआई जनता
कीिरत प्रमाणीकरतार मजबूत ब
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या है। इस का करना ज रीईडी नंबर देन ेधार नंबर का नंबर रखने व
यूआईडीएआई तहत वकैि पनंबर होगा औदलने के िलएरहे ह। यहां तिकसी का पिप
म शािमल
गकतार्ओं की िबहस के कद्र के िलए नकुबात मने कहीा था। हाल मया गया
है िकक डाटाबेस जड़ुकी िचतंाओं कोरण की सुिवधबन रही है। न
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elhi from thn of the Ele
कारण अब आपरी न हो। दसू की बनाई गखलुासा तो नवाले शख्स कोई की इस
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ि पक प से 1और आधार नंए आपको लैपतक िक िजनकेिरचय देना होल करने की
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िनजता को लेम रखकर द
कसानदेह हो सही, उससे भी म यूयॉकर् टाइक सामािजक सड़ा होता है।आो
समझता है,धा के साथ 1.नौ वष म आ
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आपके आधार नसरी यव था गई है। यह आनहीं ही होगा, को अपने तईं
ोकनाइजेशन 16 अंक की नबर के िवकपटॉप या कं यके पास घर नहोगा। इसी
तरघोषणा की गई
लेकर चचार्एं कदरअसल अ यसकते ह। मसआपकी िनजतइ स म प्रकािसुरक्षा
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आधार की सरंच िजसके िलए.3 अरब भारतआधार को लेक
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नंबर से जुड़ी आधार इ तमेआईडी दिुनया स थाएं भी कुछ नहीं
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आधार प्रमई है, जो सम
की जाती ह, य तमाम अहमसलन, इस लेखजता का मसलिशत एक लेखनंबर से कहीं
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सूचना तब तमाल करने वाम िकसी दसूसाठं-गांठ से रना होगा। ससंतु ट
नहीं होसी आईडी बन हर जगह इरत नहीं होगी िबना िकसी मािणत करने मावेशन
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पर दखुद है म मसल से ख की शु आतला उसी तरह ख म अमेिरकीअिधक खतरहै
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सब कुछ वतोते, तो तीसरीनाई जा सकतीइ तेमाल िकयी।समावेशन केमा य पते
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www.afeias.comIMPORTANT NEWSCLIPPINGS (23-Jan-18)
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AAP, and some former election commissioners, have challenged the
manner in which the disqualification has taken place and the
alleged disregard of due process in the action. The issues they
have flagged call for wider discussion. The legislators who have
been disqualified for holding an “office of profit” were appointed
as legislative secretaries by the Delhi government in 2015. In
2016, the Delhi High Court set aside the appointments, and the AAP
pleaded before the EC that the matter was now void. On June 23,
2017, however, the EC said because the MLAs held the post at the
time of appointment, the case will continue. Since June last year,
there has been no hearing of the matter. Many states, such as
Rajasthan and Karnataka, allow legislators to be appointed as
parliamentary secretaries. There is, however, a precedent to back
the EC’s decision: Jaya Bachchan was disqualified from the Rajya
Sabha for her holding the post of the chairman of UP Film
Development Council and the disqualification was upheld by the
Supreme Court in 2006. But in the case of Sonia Gandhi, her
chairmanship of the National Advisory Council was exempted by an
amendment to the Parliament Prevention of Disqualification Act,
1956. The Delhi Assembly too tried to amend the Delhi Members of
Legislative Assembly (Removal of Disqualification) Act in 2015 to
expand the exemption to parliamentary secretaries. However, the
amendment was not approved by the President — bills passed by the
Delhi legislature do not have the force of “law” unless approved by
the Lieutenant Governor and the Centre. Whether or not the EC’s
decision is in accordance with the spirit of the law is a matter
for the courts to decide. But beyond the immediate debate, there is
a larger question at hand over two conflicting constitutional
principles that have played out at regular intervals in Delhi’s
politics since 2015: The letter of the law and the role of the
elected legislature. In most other states, an act by the
legislature would have resolved the “office of profit” issue.
Article 239AA, which deals with the distribution of powers between
the Centre and the Delhi government, remans contentious, though the
high court had ruled in the LG’s favour. The disqualified MLAs were
elected to office for a full term and the “office of profit” they
held ceased to exist in 2016. In this context, the action of EC, an
institution admired for its impartial conduct, appears far too
disproportionate.
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Capacity building for primary health care
A pluralistic and integrated medical system remains a solution
worth exploring
Aparna Manoharan and Rajiv Lochan are involved with the IKP
Centre for Technologies in Public Health;Rajiv Lochan is MD and CEO
ofThe Hindu Group A contentious element of the National Medical
Commission (NMC) Bill 2017 — an attempt to revamp the medical
education system in India to ensure an adequate supply of quality
medical professionals — has been Section 49, Subsection 4 that
proposes a joint sitting of the Commission, the Central Council of
Homoeopathy and the Central Council of Indian Medicine. This
sitting, referred to in Subsection 1, may “decide on approving
specific bridge course that may be introduced for the practitioners
of Homoeopathy
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and of Indian Systems of Medicine to enable them to prescribe
such modern medicines at such level as may be prescribed.” Missing
the reality The debates around this issue have been ranging from
writing-off the ability of Ayurveda, yoga and naturopathy, Unani,
Siddha and homoeopathy (AYUSH) practitioners to cross-practise to
highlighting current restrictions on allopathic practitioners from
practising higher levels of caregiving. However, these debates miss
the reality: which is a primary health system that is struggling
with a below-par national physician-patient ratio (0.76 per 1,000
population, amongst the lowest in the world) due to a paucity of
MBBS-trained primary-care physicians and the unwillingness of
existing MBBS-trained physicians to serve remote/rural populations.
Urban-rural disparities in physician availability in the face of an
increasing burden of chronic diseases make health care in India
both inequitable and expensive.Therefore, there is an urgent need
for a trained cadre to provide accessible primary-care services
that cover minor ailments, health promotion services, risk
screening for early disease detection and appropriate referral
linkages, and ensure that people receive care at a community level
when they need it. Issue of cross-prescription The issue of AYUSH
cross-prescription has been a part of public health and policy
discourse for over a decade, with the National Health Policy (NHP)
2017 calling for multi-dimensional mainstreaming of AYUSH
physicians. There were 7.7 lakh registered AYUSH practitioners in
2016, according to National Health Profile 2017 data. Their current
academic training also includes a conventional biomedical syllabus
covering anatomy, physiology, pathology and biochemistry. Efforts
to gather evidence on the capacity of licensed and bridge-trained
AYUSH physicians to function as primary-care physicians have been
under way in diverse field settings, and the call for a structured,
capacity-building mechanism is merely the next logical step. The
4th Common Review Mission Report 2010 of the National Health
Mission reports the utilisation of AYUSH physicians as medical
officers in primary health centres (PHCs) in Assam, Chhattisgarh,
Maharashtra, Madhya Pradesh and Uttarakhand as a human resource
rationalisation strategy. In some cases, it was noted that while
the supply of AYUSH physicians was high, a lack of appropriate
training in allopathic drug dispensation was a deterrent to their
utilisation in primary-care settings. Similarly, the 2013 Shailaja
Chandra report on the status of Indian medicine and folk healing,
commissioned by the Ministry of Health and Family Welfare, noted
several instances in States where National Rural Health
Mission-recruited AYUSH physicians were the sole care providers in
PHCs and called for the appropriate skilling of this cadre to meet
the demand for acute and emergency care at the primary level. Our
own experience at the IKP Centre for Technologies in Public Health
shows that there is hope. Here, the focus has been on deploying a
capacity-building strategy using AYUSH physicians upskilled through
a bridge-training programme, and the use of evidence-based
protocols, supported by technology, to deliver quality,
standardised primary health care to rural populations. Protocols
cover minor acute ailments such as fever, upper respiratory tract
infections, gastrointestinal conditions (diarrhoea, acidity),
urological conditions, as well as proactive risk-screening. The
Maharashtra government has led the way in implementing bridge
training for capacity-building of licensed homoeopathy
practitioners to cross-prescribe.
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As anchors Capacity-building of licensed AYUSH practitioners
through bridge training to meet India’s primary care needs is only
one of the multi-pronged efforts required to meet the objective of
achieving universal health coverage set out in NHP 2017. Current
capacity-building efforts include other non-MBBS personnel such as
nurses, auxiliary nurse midwives and rural medical assistants,
thereby creating a cadre of mid-level service providers as anchors
for the provision of comprehensive primary-care services at the
proposed health and wellness centres. Further, the existing
practice of using AYUSH physicians as medical officers in
guideline-based national health programmes, a location-specific
availability of this cadre to ensure uninterrupted care provision
in certain resource-limited settings, as well as their current
academic training that has primed them for cross-disciplinary
learning hold promise. These provide a sufficient basis to explore
the proposal of bridging their training to “enable them to
prescribe such modern medicines at such level as may be
prescribed”. Ensuing discussions will be well served to focus on
substantive aspects of this solution: design and scope of the
programme, implementation, monitoring and audit mechanisms,
technology support, and the legal and regulatory framework. In the
long run, a pluralistic and integrated medical system for India
remains a solution worth exploring for both effective primary-care
delivery and prevention of chronic and infectious diseases.