कॉच की बरनी और दो कप चय एक बोध कथा
क ॉच की बरनी और दो कप च य
एक बोध कथा
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से ऩा ऱेने की इच्छा होती है, और हमें ऱगने ऱगता है कक ददन के चौबीस घॊटे भी कम ऩड़ते हैं ! उस समय ये बोध कथा, "काॉच की बरनी और दो कऩ चाय" हमें याद आती है !
उन्होंने छात्रों से ऩछूा - क्या बरनी ऩरूी भर गई? आवाज आई... हाॉ जी...!
दर्शनर्ास्त्त्र के एक प्रोफेसर कऺा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कक वे आज जीवन का एक महत्वऩूणश ऩाठ ऩढाने वाऱे हैं ! उन्होंने अऩने साथ ऱाई एक काॉच की बडी बरनी (जार) टेबऱ ऩर रखा और उसमें टेबऱ टेननस की गेंदे डाऱने ऱगे और तब तक डाऱत ेरहे जब तक कक उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीॊ बची.
कफर प्रोफेसर साहब ने छोटे-छोटे कॊ कर उसमें भरने र्ुरु ककये, धीरे-धीरे बरनी को दहऱाया तो काफी सारे कॊ कर उसमें जहाॉ जगह खाऱी थी, समा गये.
कफर से प्रोफेसर साहब ने ऩूछा, क्या अब बरनी भर गई है,
छात्रों ने एक बार कफर हाॉ जी.. कहा !
अब प्रोफेसर साहब ने रेत की थैऱी से हौऱे-हौऱे उस बरनी में रेत डाऱना र्ुरु ककया, वह रेत भी उस जार में जहाॉ सॊभव था बैठ गई, अब छात्र अऩनी नादानी ऩर हॉसे...! कफर प्रोफेसर साहब ने ऩूछा, क्यों अब तो यह
बरनी ऩूरी भर गई ना ? हाॉ जी.. अब तो ऩूरी भर गई है..सभी ने एक स्त्वर
में कहा..
अब सर ने टेबऱ के नीचे से चाय के दो कऩ ननकाऱकर उसमें की चाय जार में डाऱी, चाय भी रेत के बीच में स्स्त्थत थोडी ी़ सी जगह में सोख ऱी गई...!
प्रोफेसर साहब ने गॊभीर आवाज में समझाना र्ुरु ककया - इस काॉच की बरनी को तुम ऱोग अऩना जीवन समझो... टेबऱ टेननस की गेंदे सबसे महत्वऩूणश भाग अथाशत भगवान, ऩररवार, बच्चे, ममत्र, स्त्वास्त््य और र्ौक हैं, छोटे कॊ कर मतऱब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा ी़ मकान आदद हैं, और रेत का मतऱब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगड ेहै…!
अब यदद तुमने काॉच की बरनी में सबसे ऩहऱे रेत भरी होती तो टेबऱ टेननस की गेंदों और कॊ करों के मऱये जगह ही नहीॊ बचती, या कॊ कर भर ददये होत ेतो गेंदे नहीॊ भर ऩात,े रेत जरूर आ सकती
थी...! ठीक यही बात जीवन ऩर ऱागू होती है... यदद तुम छोटी-छोटी बातों के ऩीछे ऩड ेरहोगे और अऩनी ऊजाश उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे ऩास
मुख्य बातों के मऱये अधधक समय नहीॊ रहेगा...मन के सखु के मऱये क्या जरूरी है ये
तुम्हें तय करना है।
अपने बच्चों के स थ खेऱो, बगीचे में प नी ड ऱो, सुबह पत्नी के स थ घमूने ननकऱ ज ओ, घर के बेक र स म न को ब हर
ननक ऱ फें को, मेडडकऱ चेक-अप करव ओ..टेबऱ टेननस गेंदों की फफक्र पहऱे
करो, वही महत्वपरू्ण है... पहऱे तय करो फक क्य जरूरी है... ब की सब तो रेत है…
छ त्र बड ेध्य न से सुन रहे थे…!
अचानक एक ने ऩूछा, सर ऱेककन आऩने यह नहीॊ बताया कक "चाय के दो कऩ" क्या हैं ? प्रोफेसर मुस्त्कुराये, बोऱे.. मैं सोच ही रहा था कक अभी तक ये सवाऱ ककसी ने क्यों नहीॊ ककया ... इसका उत्तर यह है कक, जीवन हमें ककतना ही ऩररऩणूश और सॊतुष्ट ऱगे, ऱेककन अऩने खास ममत्र के साथ दो कऩ चाय ऩीने की जगह हमेर्ा होनी चादहये ।
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