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पर्ितिलप् यिधकार अिधिनयम, 1957 (1957 का अिधिनयम सखं् याकं
14)1
[4 जनू, 1957]
पर्ितिलप् यिधकार स ेसबं िविध को सशंोिधत और समिेकत
करन ेके िलए अिधिनयम
भारत गणराज् य के आठव वषर् म संसद ् ारा िनम् निलिखत रूप म यह
अिधिनयिमत हो :—
अध् याय 1
पर्ारिम् भक 1. संिक्षप् त नाम, िवस् तार और पर्ारम् भ—(1) यह
अिधिनयम पर्ितिलप् यिधकार अिधिनयम, 1957 कहा जा सकेगा ।
(2) इसका िवस् तार सम् पूणर् भारत पर ह ै।
(3) यह उस तारीख2 को पर्वृ होगा िजसे केन् दर्ीय सरकार शासकीय
राजपतर् म अिधसूचना ारा िनयत करे ।
2. िनवर्चन—इस अिधिनयम म जब तक िक संदभर् से अन् यथा अपेिक्षत न
हो,—
(क) “अनुकूल” से अिभपेर्त ह—ै
(i) िकसी ना कृित के संबंध म उस कृित का अना कृित म
संपिरवतर्न,
(ii) िकसी सािहित् यक कृित या कलात् मक कृित के संबंध म उस कृित का
सावर्जिनक पर्स् तुतीकरण के रूप म या अन् यथा ना कृित म
संपिरवतर्न,
(iii) िकसी सािहित् यक या ना कृित के संबंध म उस कृित का कोई
संक्षेपण या उस कृित का कोई रूपांतर िजसम कथा या घटनाकर्म को पूणर्त:
या मुख् यत: ऐसे िचतर् के माध् यम से दशार्या जाता ह ैजो िकसी पुस् तक
या समाचारपतर्, पितर्का या वैसी ही सामियकी म पुनरुत् पादन के िलए
उपयुक् त पर्कार के ह , 3***
(iv) िकसी संगीतात् मक कृित के संबंध म उस कृित का कोई िवन् यास या
पर्ितलेखन, 4[और] 4[(v) िकसी कृित के संबंध म, उस कृित का ऐसा उपयोग,
िजसम उसका पुनिवन् यास या कर्मांतरण
अन् तवर्िलत ह;ै]
(ख) 5[“वास् तु कृित”] से ऐसा कोई भवन या संरचना िजसका स् वरूप या
िजसका िडजाइन कलात् मक हो अथवा ऐसे भवन या संरचना के िलए कोई माडल
अिभपेर्त ह;ै
(ग) “कलात् मक कृित” से अिभपेर्त ह—ै
(i) कोई रंगिचतर्, मूित, रेखािचतर् (िजसके अन् तगर्त आरेख,
मानिचतर्, चाटर् या रेखांक भी ह)ै, कोई उत् कीणर् या फोटोगर्ाफ, चाह
ेऐसी िकसी कृित म कलात् मक गुण हो या न हो,
(ii) कोई 5[वास् तु कृित], और
(iii) कलात् मक िशल् पकािरता की कोई अन् य कृित,
(घ) “रचियता” से अिभपेर्त ह,ै—
(i) िकसी सािहित् यक या ना कृित के संबंध म उस कृित का रचियता,
(ii) िकसी संगीतात् मक कृित के संबंध म, संगीतकार,
1 इस अिधिनयम का िवस् तार 1962 के िविनयम सं० 12 की धारा 3 तथा
अनुसूची ारा गोवा, दमण और दीव पर; 1963 के िविनयम सं० 6 की धारा 2 तथा
अनुसूची 1 ारा दादरा और नागर हवेली पर और 1963 के िविनयम सं० 7 की
धारा 3 तथा अनुसूची 1 ारा पांिडचेरी पर िकया गया ह ैऔर भारत के
राजपतर्, असाधारण, भाग 2, खंड 3 (ii) म पर्कािशत अिधसूचना सं० का० आ०
226(अ), तारीख 27-4-1979 ारा (27-4-1979 से) िसिक् कम राज् य म
पर्वतर्न म लाया गया । 2 21 जनवरी, 1958, दिेखए अिधसूचना सं० का० िन०
आ० 269, तारीख 21 जनवरी, 1958, भारत का राजपतर्, असाधारण, भाग 2, खंड
3, पृ० 167 । 3 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा (10-5-1995 से)
“और” शब् द का लोप िकया गया । 4 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा
(10-5-1995 से) अंत:स् थािपत । 5 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2
ारा (10-5-1995 से) “वास् तुकलाकृित” के स् थान पर पर्ितस् थािपत
।
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(iii) फोटोगर्ाफ से िभन् न िकसी कलात् मक कृित के संबंध म,
कलाकार,
(iv) िकसी फोटोगर्ाफ के संबंध म, फोटोगर्ाफ ख चने वाला व् यिक् त,
1[(v) िकसी चलिचतर् िफल् म या ध् वन् यंकन के संबंध म, िनमार्ता;
और
(vi) िकसी ऐसी सािहित् यक, ना , संगीतात् मक या कलात् मक कृित के
संबंध म, जो कम् पयूटरजिनत ह,ै वह व् यिक् त जो उस कृित का सृजन कराता
ह;ै
2[(घघ) “पर्सारण” से—
(i) बेतार िवसारण के िकसी माध् यम से, चाह ेवह संकेत, ध् विन या
दशृ् य िबम् ब के एक या अिधक रूप म हो; या
(ii) तार से,
सावर्जिनक रूप से संसूिचत करना अिभपेर्त ह ैऔर उसके अंतगर्त पुन:
पर्सारण भी ह;ै]
(ङ) “कलडर वषर्” से जनवरी के पर्थम िदन को पर्ारंभ होने वाला वषर्
अिभपेर्त ह;ै 3[(च) “चलिचतर् िफल् म” से 4*** िकसी दशृ् यांकन की कोई
कृित अिभपेर्त ह ैऔर इसके अन् तगर्त ऐस ेदशृ् यांकन के
साथ कोई ध् वन् यंकन ह ैतथा “चलिचतर्” का यह अथर् लगाया जाएगा िक
उसके अन् तगर्त वीिडयो िफल् म सिहत चलिचतर्की के सदशृ् य िकसी
पर्िकर्या से उत् पािदत कोई कृित ह;ै]
5[(चक) “वािणिज् यक िकराया” के अंतगर्त िकसी लाभिनरपेक्ष पुस्
तकालय या लाभिनरपेक्ष िशक्षा संस् था ारा लाभिनरपेक्ष पर्योजन के िलए
िकसी कंप् यूटर पर्ोगर्ाम, ध् वन् यंकन, दशृ् यांकन या चलिचतर् िफल् म
की िविधपूवर्क अिजत िकसी पर्ित को िकराए पर, प े पर या उधार म दनेा
सिम् मिलत नह ह ै।
स् पष् टीकरण—इस खंड के पर्योजन के िलए िकसी “लाभिनरपेक्ष पुस्
तकालय या लाभिनरपेक्ष िशक्षा संस् था” से ऐसा पुस् तकालय या िशक्षा
संस् था अिभपेर्त ह ैजो सरकार से अनुदान पर्ाप् त करती ह ैया वह आय-कर
अिधिनयम, 1961 (1961 का 43) के अधीन कर के संदाय से छूट पर्ाप् त
ह;ै]
6[(चच) “सावर्जिनक रूप से संसूिचत करना” से िकसी कृित या पर्स्
तुतीकरण की स् थूल पर्ितयां उपलब् ध कराने से िभन् न रूप म संपर्दशर्न
या िवस् तारण करने के िलए िकसी माध् यम से अथवा पर्त् यक्ष रूप से
जनसाधारण ारा चाह ेएक साथ या व् यिक् तगत रूप से चुने गए स् थान और
समय पर, दखेे जाने या सुने जाने या अन् यथा उपभोग करने के िलए, इस बात
को ध् यान म लाए िबना िक जनसाधारण इस पर्कार उपलब् ध कराई गई कृित या
पर्स् तुतीकरण को वास् तव म दखेता ह,ै सुनता ह ैया अन् यथा उसका उपभोग
करता ह ैया नह , उपलब् ध कराना अिभपेर्त ह ै।
स् पष् टीकरण—इस खंड के पर्योजन के िलए, उपगर्ह या केबल के माध् यम
से अथवा युगपद ्संपेर्षण के िकसी अन् य माध् यम से एक से अिधक घर या
िनवास-स् थान को, िजनके अंतगर्त िकसी होटल या होस् टल के आवासीय कमरे
भी ह, संसूचना दनेे को सावर्जिनक रूप से संसूिचत करना समझा
जाएगा;]
(चचक) िकसी संगीतात् मक कृित के संबंध म, “संगीतकार” से अिभपेर्त ह
ैवह व् यिक् त जो संगीत की स् वररचना इस बात को ध् यान म लाए िबना
करता ह ैिक वह उसे आलेखनीय स् वरांकन के िकसी रूप म अंिकत करता ह ैया
नह ;
(चचख) “कम् प् यूटर” के अन् तगर्त कोई इलेक् टर्ािनक या वैसी ही
युिक् त ह ैिजसम सूचना संसाधन सामथ् यर् ह ;
(चचग) “कम् प् यूटर पर्ोगर्ाम” से ऐसा अनुदशे समुच् चय अिभपेर्त ह
ैजो शब् द , कूट शब् द , स् कीम या िकसी अन् य रूप म अिभव् यक् त िकया
जाता ह ैऔर िजसके अन् तगर्त ऐसा कोई यंतर् पठनीय माध् यम ह,ै जो कम्
प् यूटर से कोई िविशष् ट कायर् कराने या कोई िविशष् ट पिरणाम पर्ाप् त
कराने के योग् य हो;
(चचघ) “पर्ितिलप् यिधकार सोसाइटी” से धारा 33 की उपधारा (3) के
अधीन रिजस् टर्ीकृत सोसाइटी अिभपर्ेत ह;ै]
(छ) िकसी व् याख् यान के संबंध म “वाक् पर्स् तुित” के अन् तगर्त
िकसी यांितर्क उपकरण के माध् यम से अथवा 7[पर्सारण] से वाक् पर्स्
तुित भी ह;ै
1 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा (10-5-1995 से) खण् ड (v)
और (vi) के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 2 1983 के अिधिनयम सं० 23 की
धारा 3 ारा (9-8-1984 से) अन् त:स् थािपत । 3 1994 के अिधिनयम सं० 38
की धारा 2 ारा (10-5-1995 से) खंड (च) के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 4
2012 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 2 का लोप िकया गया । 5 2012 के
अिधिनयम सं० 27 की धारा 2 ारा अंत:स् थािपत । 6 2012 के अिधिनयम सं०
27 की धारा 2 ारा पर्ितस् थािपत । 7 1983 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 2
ारा (9-8-1984 से) “रेिडयो िवसारण” के स् थान पर पर्ितस् थािपत ।
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(ज) “ना कृित” के अंतगर्त सुपठन के िलए रचनांश, नृत् यरचनाकृित या
मूक पर्दशर्न ारा मनोरंजन भी ह ैिजसका दशृ् य िवन् यास या अिभनय का
रूप िलिखत रूप म या अन् यथा िनयत ह ैिकन् तु इसके अंतगर्त चलिचतर्
िफल् म नह ह;ै
1[(जज) “अनुिलिपकरण उपस् कर” से कोई ऐसी यांितर्क पर्युिक् त या
युिक् त अिभपेर्त ह ैजो िकसी कृित की पर्ितयां बनाने के िलए पर्युक् त
की जाती ह ैया पर्युक् त िकए जाने के िलए आशियत ह;ै]
(झ) “उत् कीणर्न” के अन् तगर्त िनरेखण, िशलामुदर्ण, काष् ठिचतर्ण,
िपर्ट और वैसी ही अन् य कृितयां ह ैजो फोटोगर्ाफ नह ह;ै
(ञ) “अनन् य अनजु्ञिप् त” से ऐसी अनुज्ञिप् त अिभपेर्त ह ैजो
अनुज्ञिप् तधारी की या अनुज्ञिप् तधारी और उसके ारा पर्ािधकृत व् यिक्
तय को (पर्ितिलप् यिधकार के स् वामी सिहत), सभी अन् य व् यिक् तय का
अपवजर्न करके ऐसा कोई अिधकार पर्द करती ह ै जो िकसी कृित म पर्ितिलप्
यिधकार म समािवष् ट ह ै तथा “अनन् य अनुज्ञिप् तधारी” का अथर् तदनुकूल
लगाया जाएगा;
(ट) “सरकारी कृित” से ऐसी कृित अिभपेर्त ह ैजो िनम् निलिखत ारा या
उनके िनदशे या िनयंतर्ण के अधीन बनाई या पर्कािशत की जाती ह—ै
(i) सरकार या सरकार का कोई िवभाग;
(ii) भारत म कोई िवधान-मंडल;
(iii) भारत म कोई न् यायालय, अिधकरण या अन् य न् याियक
पर्ािधकारी;
2[(ठ) “भारतीय कृित” से ऐसी सािहित् यक, ना या संगीतात् मक कृित
अिभपेर्त ह,ै—
(i) िजसका रचियता भारत का नागिरक ह;ै या
(ii) जो भारत म पर्थम बार पर्कािशत की गई ह;ै या
(iii) िजसका रचियता िकसी अपर्कािशत कृित की दशा म, ऐसी कृित के
बनाए जान ेके समय भारत का नागिरक ह;ै]
3[(ड) “अितलघंनकारी पर्ित” से अिभपेर्त ह—ै
(i) िकसी सािहित् यक, ना , संगीतात् मक या कलात् मक कृित के संबधं
म उसका पुनरुत् पादन जो चलिचतर् िफल् म के रूप म नह ह;ै
(ii) िकसी चलिचतर् िफल् म के सबंंध म, उस िफल् म की ऐसी पर्ित जो
िकसी भी माध् यम से िकसी संचार माध् यम ारा तैयार की जाती ह ै;
(iii) िकसी ध् वन् यंकन के संबंध म, उसी ध् वन् यंकन को सिन् निवष्
ट करने वाला कोई ऐसा अन् य ध् वन् यंकन, जो िकसी भी माध् यम से तैयार
िकया जाता हो;
(iv) िकसी पर्ोगर्ाम या पर्स् तुतीकरण के संबंध म, िजसम इस अिधिनयम
के उपबंध के अधीन कोई पर्सारण पुनरुत् पादन अिधकार या पर्स् तुतकतार्
का अिधकार अिस् तत् व म ह ैऐसे पर्ोगर्ाम या पर्स् तुतीकरण या ध् वन्
यंकन अथवा चलिचतर् िफल् म,
यिद ऐसा पुनरुत् पादन, पर्ित या ध् वन् यंकन, इस अिधिनयम के उपबधं
के उल् लघंन म तैयार िकया जाता ह ैया आयात िकया जाता ह;ै]
(ढ) “व् याख् यान” के अन् तगर्त अिभभाषण, भाषण और पर्वचन भी ह;
4[(ण) “सािहित् यक कृित” के अंतगर्त कंप् यूटर पर्ोगर्ाम, सारिणयां और
संकलन ह िजनके अंतगर्त कंप् यूटर 5[आंकड़ा
आधार] ह;ै] 6[(त) “संगीतात् मक कृित” से संगीत से संयोिजत कोई कृित
अिभपेर्त ह ैऔर इसके अन् तगर्त ऐसी कृित का कोई
आलेखनीय स् वरांकन ह ैिकन् तु इसके अन् तगर्त ऐसे कोई शब् द या ऐसा
कोई कायर् नह आता ह ैजो संगीत के साथ गाने, बोलने या पर्स् तुत करने
के िलए आशियत ह;ै]
1 1984 के अिधिनयम सं० 65 की धारा 2 ारा (8-10-1984 से) अंत:स्
थािपत । 2 1983 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 3 ारा (9-8-1984 से) खंड
(ठ) के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 3 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2
ारा (10-5-1995 से) खंड (ड) के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 4 1994 के
अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा (10-5-1995 से) खंड (ण) के स् थान पर
पर्ितस् थािपत । 5 1994 के अिधिनयम सं० 49 की धारा 2 ारा (15-1-2000
से) “आंकडा संचय” के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 6 1994 के अिधिनयम सं०
38 की धारा 2 ारा (10-5-1995 से) खंड (त) के स् थान पर पर्ितस् थािपत
।
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1[(थ) पर्स् ततुकतार् के अिधकार के संबंध म, “पर्स् तुतीकरण” से
कोई दशृ् य या शर्व् य पर्स् तुित अिभपेर्त ह ैजो एक या अिधक पर्स्
तुतकतार् ारा सीधे पर्स् तुत िकया जाता ह;ै]
2[(थथ) “पर्स् तुतकतार्” के अन् तगर्त कोई अिभनेता, गायक,
संगीतज्ञ, नतर्क, कलाबाज, बाजीगर, जादगूर, सपेरा, व् याख् यान दनेे
वाला व् यिक् त या कोई अन् य व् यिक् त ह,ै जो कोई पर्स् तुतीकरण करता
ह;ै]
3[परन् तु िकसी चलिचतर् िफल् म म िकसी ऐसे व् यिक् त को, िजसका
पर्स् तुतीकरण नैिमि क या आनुषंिगक पर्कृित का ह ैऔर, उ ोग जगत की प
ित के सामान् य अनुकर्म म, िफल् म के आकलन सिहत कह भी अिभस् वीकार नह
िकया जाता ह,ै धारा 38ख के खंड (ख) के पर्योजन के िसवाय, पर्स्
तुतकतार् के रूप म नह माना जाएगा;]
4* * * * *
(ध) “फोटोगर्ाफ” के अन् तगर्त फोटो-िशलामुदर्ण और फोटोगर्ाफी के
सदशृ् य िकसी पर्िकर्या ारा उत् पािदत कोई कृित भी ह ैिकन् तु चलिचतर्
िफल् म का कोई भाग इसके अन् तगर्त नह ह;ै
(न) “प् लेट” के अन् तगर्त ह ै कोई स् टीिरयोटाइप या अन् य प् लेट,
पत् थर, ब् लाक, सांचा, मैिटर्क् स, अंतरक, नेगेिटव 5[अनुिलिपकरण उपस्
करण] या अन् य युिक् त, जो िकसी कृित के मुदर्ण या उसकी पर्ितयां
पुनरुत् पािदत करने के िलए पर्युक् त की जाती ह या पर्युक् त िकए जाने
के िलए आशियत ह तथा कोई मैिटर्क् स या अन् य सािधतर् िजससे कृित की
शर्व् य पर्स् तुित के िलए 6[ध् वन् यंकन] बनाए जाते ह या बनाए जाने
आशियत ह;
(प) “िविहत” से इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत
अिभपर्ेत ह;ै 2[(पप) चलिचतर् िफल् म या ध् वन् यंकन के संबंध म,
“िनमार्ता” से वह व् यिक् त अिभपेर्त ह ैजो कृित तैयार करने म पहल
करता ह ैऔर ऐसा करने का उ रदाियत् व लेता ह;ै] 7* * * * 8* * * *
9[(भ) “रेपर्ोगर्ाफी” से िकसी कृित की फोटो पर्ितिलिपकरण ारा या वैसे
ही माध् यम से पर्ितयां तैयार करना
अिभपेर्त ह;ै
3[(भक) “अिधकार पर्बंधन सूचना” से िनम् निलिखत अिभपेर्त ह,ै—
(क) कृित या पर्स् तुतीकरण की पहचान कराने वाला शीषर्क या अन् य
सूचना ;
(ख) रचियता या पर्स् तुतकतार् का नाम;
(ग) अिधकार के स् वामी का नाम और पता;
(घ) अिधकार के उपयोग से संबंिधत िनबंधन और शत; और
(ङ) ऐसा कोई संख् यांक या कूट शब् द जो उपखंड (क) से उपखंड (घ) म
िनिदष् ट सूचना को िनरूिपत करता ह,ै
िकतु इसके अन् तगर्त उपयोक् ता की पहचान करने के िलए आशियत कोई
युिक् त या पर्िकर्या नह ह;ै]
(भभ) “ध् वन् यंकन” से ऐसा ध् वन् यंकन अिभपेर्त ह ैिजससे ऐसी ध्
विनयां, इस बात को ध् यान म लाए िबना, उत् पािदत की जा सक िक ऐसा ध्
वन् यंकन िकस संचार माध् यम ारा िकया जाता ह ैया वह प ित क् या ह
ैिजससे ध् विनयां उत् पािदत की जाती ह;]
3[(भभक) “दशृ् यांकन” से गितमान िबब या उनकी पर्ितकृितय का, िकसी
संचार माध् यम म िकसी प ित ारा, ऐसा अंकन, िजसके अन् तगर्त िकसी इलैक्
टर्ािनक माध् यम से उसका भंडारण भी ह,ै अिभपेर्त ह ैिजससे उनको िकसी प
ित से बोधगम् य बनाया जा सकता ह,ै पुनरुत् पािदत या संसूिचत िकया जा
सकता ह;ै]
(म) “कृित” से िनम् निलिखत कृितय म से कोई भी अिभपेर्त ह,ै अथार्त्
:—
1 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा (10-5-1995 से) खंड (थ) के
स् थान पर पर्ितस् थािपत । 2 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा
(10-5-1995 से) अन् त:स् थािपत । 3 2012 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 2
ारा अंत:स् थािपत । 4 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा
(10-5-1995 से) खंड (द) का लोप िकया गया । 5 1984 के अिधिनयम सं० 65
की धारा 2 ारा (8-10-1984 से) अन् त:स् थािपत । 6 1994 के अिधिनयम सं०
38 की धारा 2 ारा (10-5-1995 से) “िरकाडर्” के स् थान पर पर्ितस्
थािपत । 7 1983 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 3 ारा (9-8-1984 से) खंड
(फ) का लोप िकया गया । 8 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा
(10-5-1995 से) खंड (ब) का लोप िकया गया । 9 1994 के अिधिनयम सं० 38
की धारा 2 ारा (10-5-1995 से) खंड (भ) के स् थान पर पर्ितस् थािपत
।
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(i) सािहित् यक, ना , संगीतात् मक या कलात् मक कृित;
(ii) चलिचतर् िफल् म,
(iii) 1[ध् वन् यंकन];
(य) “संयुक् त रचियता की कृित” से दो या अिधक रचियता के सहयोग से
उत् पािदत ऐसी कृित अिभपेर्त ह ैिजसम एक रचियता का योगदान अन् य
रचियता या रचियता के योगदान से सुिभन् न नह ह;ै
(यक) “मूित” के अन् तगर्त कास् ट और माडल भी ह । 2[3. पर्काशन का
अथर्—इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए, “पर्काशन” से जनता को कृित की
पर्ितयां दकेर या जनता को
कृित की संसूचना दकेर कोई कृित उपलब् ध कराना अिभपेर्त ह ै।]
4. कृित को कब पर्कािशत या सावर्जिनक रूप स े पर्स् ततु नह समझा
जाएगा—यिद कोई कृित पर्कािशत की जाती ह ै या सावर्जिनक रूप से पर्स्
तुत की जाती ह ै तो उस दशा के िसवाय िजसम वह पर्ितिलप् यिधकार के
अितलंघन से संब हो, उसे पर्ितिलप् यिधकार के स् वामी की अनुज्ञिप् त
के िबना पर्कािशत या सावर्जिनक रूप से पर्स् तुत िकया गया नह समझा
जाएगा ।
5. कृित को कब भारत म पहल ेपर्कािशत समझा जाएगा—भारत म पर्कािशत
िकसी कृित को इस बात के होते हुए भी िक वह साथ ही साथ िकसी अन् य दशे
म भी पर्कािशत की गई ह,ै इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए भारत म पहले
पर्कािशत समझा जाएगा जब तक िक ऐसा अन् य दशे ऐसी कृित के िलए
पर्ितिलप् यिधकार की लघुतर अविध उपबंिधत नह करता और कोई कृित भारत म
और अन् य दशे म साथ ही साथ पर्कािशत हुई समझी जाएगी यिद भारत म
पर्काशन और ऐसे अन् य दशे म पर्काशन के बीच का समय तीस िदन से या ऐसी
अन् य कालाविध से अिधक नह ह ैजैसी कदर्ीय सरकार, िकसी िविनिदष् ट दशे
के संबंध म, अवधािरत करे ।
3[6. कितपय िववाद का पर्ितिलप् यिधकार बोडर् ारा िविनश् चय िकया
जाना—यिद कोई पर्श् न उत् पन् न होता ह ैिक,—
(क) क् या कोई कृित पर्कािशत की गई ह ैया वह तारीख कौन सी ह ैिजसको
कोई कृित अध् याय 5 के पर्योजन के िलए पर्कािशत की गई थी; या
(ख) क् या िकसी कृित के िलए पर्ितिलप् यिधकार की अविध िकसी अन् य
दशे म उस अविध से लघतुर ह ैजो उस कृित के संबंध म इस अिधिनयम के अधीन
उपबिन् धत ह,ै
तो वह धारा 11 के अधीन गिठत पर्ितिलप् यिधकार बोडर् को िनदिशत िकया
जाएगा िजसका उस पर िविनश् चय अंितम होगा :
परन् तु यिद पर्ितिलप् यिधकार बोडर् की राय म, धारा 3 म िनिदष् ट
पर्ितय का िदया जाना या जनता को संसूिचत िकया जाना महत् वपूणर्
पर्कृित का नह ह ैतो उसे उस धारा के पर्योजन के िलए पर्काशन नह समझा
जाएगा ।]
7. जहा ंअपर्कािशत कृित का रचनाकाल काफी िवस् ततृ ह ैवहा ंरचियता
की रािष् टर्कता—जहां िकसी अपर्कािशत कृित की दशा म उस कृित का
रचनाकाल काफी िवस् तृत ह ैवहां उस कृित का रचियता इस अिधिनयम के
पर्योजन के िलए उस दशे का नागिरक या वहां अिधविसत समझा जाएगा िजसका
नागिरक या िजसम अिधविसत वह उस काल के िकसी पयार्प् त भाग के दौरान रहा
था ।
8. िनगम का अिधवास—इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए कोई िनगिमत िनकाय
भारत म अिधविसत समझा जाएगा यिद वह भारत म पर्वृ िकसी िविध के अधीन
िनगिमत ह ै।
अध् याय 2
पर्ितिलप् यिधकार कायार्लय और पर्ितिलप् यिधकार बोडर् 9. पर्ितिलप्
यिधकार कायार्लय—(1) इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए एक कायार्लय स्
थािपत िकया जाएगा जो
पर्ितिलप् यिधकार कायार्लय कहलाएगा ।
(2) पर्ितिलप् यिधकार कायार्लय, पर्ितिलप् यिधकार रिजस् टर्ार के
पर्त् यक्ष िनयंतर्ण के अधीन होगा जो कदर्ीय सरकार के अधीक्षण और
िनदशेन के अधीन कायर् करेगा ।
(3) पर्ितिलप् यिधकार कायार्लय के िलए एक मुदर्ा होगी ।
10. पर्ितिलप् यिधकार रिजस् टर्ार और उप-रिजस् टर्ार—(1) केन्
दर्ीय सरकार एक पर्ितिलप् यिधकार रिजस् टर्ार िनयुक् त करेगी और एक या
अिधक पर्ितिलप् यिधकार उप-रिजस् टर्ार िनयुक् त कर सकेगी ।
(2) पर्ितिलप् यिधकार उप-रिजस् टर्ार, पर्ितिलप् यिधकार रिजस्
टर्ार के अधीक्षण और िनदशेन के अधीन इस अिधिनयम के अधीन रिजस् टर्ार
के ऐसे कृत् य का िनवर्हन करेगा जैसे रिजस् टर्ार समय-समय पर उसे स
पे, और इस अिधिनयम म पर्ितिलप् यिधकार रिजस् टर्ार के
1 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा (10-5-1995 से) “िरकाडर्”
के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 2 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 3 ारा
(10-5-1995 से) धारा 3 के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 3 1994 के
अिधिनयम सं० 38 की धारा 4 ारा (10-5-1995 से) धारा 6 के स् थान पर
पर्ितस् थािपत ।
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6
पर्ित िकसी िनदश के अंतगर्त पर्ितिलप् यिधकार उप-रिजस् टर्ार के
पर्ित िनदश होगा जबिक वह िकन् ह ऐसे कृत् य का उस पर्कार िनवहर्न कर
रहा हो ।
11. पर्ितिलप् यिधकार बोडर्—(1) इस अिधिनयम के पर्ारंभ के पश् चात्
यथाशक् य शीघर्, केन् दर्ीय सरकार पर्ितिलप् यिधकार बोडर् कहलाया जाने
वाला एक बोडर् गिठत करेगी िजसम एक अध् यक्ष तथा 1[दो अन् य] ह गे
।
1[(2) पर्ितिलप् यिधकार बोडर् के अध् यक्ष और अन् य सदस् य को
संदये वेतन और भ े तथा सेवा के अन् य िनबंधन और शत ऐसी ह गी जो िविहत
की जाएं :
परंतु अध् यक्ष या िकसी अन् य सदस् य के न तो वेतन और भ म और न ही
सेवा के अन् य िनबंधन और शत म, उसकी िनयुिक् त के पश् चात् उसके िलए
अलाभकारी कोई पिरवतर्न िकया जाएगा ।]
(3) पर्ितिलप् यिधकार बोडर् का अध् यक्ष ऐसा व् यिक् त होगा जो
2*** िकसी उच् च न् यायालय का न् यायाधीश ह ैया रह चुका ह ैअथवा उच् च
न् यायालय का न् यायाधीश िनयुक् त िकए जाने के िलए अहर् ह ै।
1[(4) कदर्ीय सरकार, पर्ितिलप् यिधकार बोडर् के अध् यक्ष से
परामशर् करने के पश् चात्, पर्ितिलप् यिधकार बोडर् के सिचव और उतन
ेअन् य अिधकािरय और कमर्चािरय की िनयुिक् त कर सकेगी, िजतने पर्ितिलप्
यिधकार बोडर् के कृत् य के दक्षतापूवर्क िनवहर्न के िलए आवश् यक समझे
जाएं ।]
12. पर्ितिलप् यिधकार बोडर् की शिक् तया ंऔर पर्िकर्या—(1)
पर्ितिलप् यिधकार बोडर् को, िकन् ह ऐसे िनयम के अध् यधीन जो इस
अिधिनयम के अधीन बनाए जाएं अपनी पर्िकर्या को स् वयं िविनयिमत करने की
शिक् त होगी िजसके अंतगर्त उसकी बठैक के स् थान और समय िनयत करना भी ह
ै:
परन् तु पर्ितिलप् यिधकार बोडर्, इस अिधिनयम के अधीन अपने समक्ष
संिस् थत िकसी कायर्वाही को मामूली तौर पर उस अंचल म सुनेगा िजसम
कायर्वाही के संिस् थत िकए जाने के समय वह व् यिक् त, जो कायर्वाही
संिस् थत करता ह,ै वास् तव म और स् वच् छेया िनवास करता ह ैया कारबार
चलाता ह,ै अथवा अिभलाभ के िलए वैयिक् तक रूप से काम करता ह ै।
स् पष् टीकरण—इस उपधारा म “अंचल” से राज् य पुनगर्ठन अिधिनयम, 1956
(1956 का 37) की धारा 15 म िविनिदष् ट अंचल अिभपेर्त ह ै।
(2) पर्ितिलप् यिधकार बोडर् अपनी शिक् तय और कृत् य का पर्योग और
िनवर्हन ऐसी न् यायपीठ के माध् यम से कर सकेगा जो पर्ितिलप् यिधकार
बोडर् के अध् यक्ष ारा उसके 3[सदस् य म से गिठत की जाएं] :
4[परंतु यिद अध् यक्ष की यह राय ह ैिक िकसी महत् वपूणर् मामले की
सुनवाई बृह र न् यायपीठ ारा की जानी अपेिक्षत ह ैतो वह उस मामले को
िवशेष न् यायपीठ को िनदिशत कर सकेगा जो पांच सदस् य से िमलकर बनेगी
।]
(3) यिद पर्ितिलप् यिधकार बोडर् के या उसकी िकसी न् यायपीठ के सदस्
य म िकसी ऐसे मामले की बाबत जो उसके समक्ष इस अिधिनयम के अधीन िविनश्
चय के िलए आए, मतभेद हो तो बहुसंख् या की राय अिभभावी होगी :
5[परन् तु जहां ऐसी बहुसंख् या न हो वहां अध् यक्ष की राय अिभभावी
होगी ।]
(4) 6[अध् यक्ष] अपने सदस् य म स ेिकसी को उन शिक् तय म से िकन् ह
का पर्योग करने के िलए पर्ािधकृत कर सकेगा जो उसे धारा 74 ारा पर्द ह
और ऐसे पर्ािधकृत सदस् य ारा उन शिक् तय के पर्योग म िदया गया कोई
आदशे या िकया गया कोई कायर्, बोडर् का, यथािस् थित, आदशे या कायर्
समझा जाएगा ।
(5) पर्ितिलप् यिधकार बोडर् का कोई सदस् य िकसी ऐसे मामले की बाबत
िजसम उसका वैयिक् तक िहत ह ैबोडर् के समक्ष िकसी कायर्वाही म भाग नह
लेगा ।
(6) इस अिधिनयम के अधीन पर्ितिलप् यिधकार बोडर् ारा िकया गया कोई
कायर् या की गई कायर्वाही केवल बोडर् म कोई िरिक् त या उसके गठन म कोई
तुर्िट होने के आधार पर पर्श् नगत नह की जाएगी ।
(7) पर्ितिलप् यिधकार बोडर् को, 7[दडं पर्िकर्या संिहता, 1973
(1974 का 2) की धारा 345 और 346] के पर्योजन के िलए िसिवल न् यायालय
समझा जाएगा तथा बोडर् के समक्ष सभी कायर्वािहयां भारतीय दडं संिहता
(1860 का 45) की धारा 193 और 228 के अथर् म न् याियक कायर्वािहयां
समझी जाएंगी ।
1 2012 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 3 ारा पर्ितस् थािपत । 2 1994 के
अिधिनयम सं० 38 की धारा 5 ारा (10-5-1995 से) “उच् चतम न् यायालय या”
शब् द का लोप िकया गया । 3 2012 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 4 ारा
पर्ितस् थािपत । 4 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 6 ारा (10-5-1995
से) अंत:स् थािपत । 5 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 6 ारा
(10-5-1995 से) परन् तुक के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 6 1994 के
अिधिनयम सं० 38 की धारा 6 ारा (10-5-1995 से) “पर्ितिलप् यिधकार
बोडर्” के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 7 1983 के अिधिनयम सं० 23 की
धारा 6 ारा (9-8-1984 से) कितपय शब् द के स् थान पर पर्ितस् थािपत
।
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7
अध् याय 3
पर्ितिलप् यिधकार 13. कृितया ं िजनम पर्ितिलप् यिधकार अिस् तत्
वशील ह—ै(1) इस धारा के उपबंध और इस अिधिनयम के अन् य उपबंध के अध्
यधीन रहते हुए िनम् निलिखत वग की कृितय म पर्ितिलप् यिधकार का अिस्
तत् व समस् त भारत म होगा, अथार्त् :—
(क) मौिलक, सािहित् यक, ना , संगीतात् मक और कलात् मक कृितयां;
(ख) चलिचतर् िफल् म; और
(ग) 1[ध् वन् यंकन] ।
(2) उपधारा (1) म िविनिदष् ट िकसी कृित म, जो ऐसी कृित से िभन् न
हो िजसको धारा 40 या धारा 41 के उपबंध लागू होते ह, पर्ितिलप् यिधकार
तब तक अिस् तत् व म नह होगा जब तक िक,—
(i) पर्कािशत कृित की दशा म वह कृित भारत म पहले पर्कािशत नह की
जाती या जहां कृित भारत के बाहर पहल ेपर्कािशत की जाती ह ैवहां उसका
रचियता ऐसे पर्काशन की तारीख को अथवा उस दशा म, िजसम रचियता उस तारीख
को मर चुका ह ैअपनी मृत् यु के समय भारत का नागिरक न रहा हो;
(ii) 2[वास् तु कृित] से िभन् न िकसी अपर्कािशत कृित की दशा म,
उसका रचियता कृित की रचना की तारीख को भारत का नागिरक न हो या भारत म
अिधविसत न हो; और
(iii) 2[वास् तु कृित] की दशा म, वह कृित भारत म िस् थत न हो ।
स् पष् टीकरण—संयुक् त रचियता की कृित की दशा म, इस उपधारा म
िविनिदष् ट पर्ितिलप् यिधकार पर्द करने वाली शत उस कृित के सब रचियता
को पूरी करनी ह गी ।
(3) पर्ितिलप् यिधकार का अिस् तत् व िनम् निलिखत म नह होगा :—
(क) कोई चलिचतर् िफल् म यिद उस िफल् म का कोई पयार्प् त भाग िकसी
अन् य कृित म पर्ितिलप् यिधकार का अितलघंन हो;
(ख) िकसी सािहित् यक, ना या संगीतात् मक कृित की बाबत बनाया गया
कोई 1[ध् वन् यंकन] यिद उस 1[ध् वन् यंकन] के बनाने म ऐसी कृित म
पर्ितिलप् यिधकार का अितलंघन हुआ हो ।
(4) िकसी चलिचतर् िफल् म या 1[ध् वन् यंकन] म पर्ितिलप् यिधकार,
िकसी ऐसी रीित म पृथक् पर्ितिलप् यिधकार को पर्भािवत नह करेगा िजसकी
या िजसके पयार्प् त भाग की बाबत, यथािस् थित, वह िफल् म या वह 1[ध्
वन् यंकन] बनाया गया हो ।
(5) 2[वास् तु कृित] की दशा म, पर्ितिलप् यिधकार केवल कलात् मक स्
वरूप और िडजाइन की बाबत ही अिस् तत् व म होगा तथा सिन् नमार्ण की
पर्िकर्या या प ितय पर िवस् तृत नह होगा ।
3[14. पर्ितिलप् यिधकार का अथर्—इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए,
“पर्ितिलप् यिधकार” से अिभपेर्त ह ैइस अिधिनयम के उपबंध के अधीन रहते
हुए, िकसी कृित या उसके िकसी पयार्प् त भाग के संबंध म िनम् निलिखत
काय म से िकसी को करने या उसका िकया जाना पर्ािधकृत करने का अनन् य
अिधकार, अथार्त् :—
(क) कृित सािहित् यक, ना या संगीतात् मक कृित की दशा म, जो कम् प्
यूटर पर्ोगर्ाम नह ह,ै—
(i) कृित को िकसी पयार्प् त रूप म पुनरुत् पािदत करना, िजसके अन्
तगर्त इलैक् टर्ािनक माध् यम से िकसी भी संचार माध् यम म उसका भंडारण
ह;ै
(ii) जनता को कृित की ऐसी पर्ितयां उपलब् ध कराना, जो पहले से
पिरचालन म नह ह;
(iii) कृित को सावर्जिनक रूप से पर्स् तुत करना या उसे सावर्जिनक
रूप से संसूिचत करना;
(iv) कृित के संबंध म कोई चलिचतर् िफल् म बनाना या ध् वन् यंकन
करना;
(v) कृित का कोई भाषान् तर तैयार करना;
(vi) कृित का कोई अनुकूलन करना;
(vii) कृित के भाषान् तरण या अनुकूलन के संबंध म ऐसे काय म से कोई
कायर् करना जो कृित के संबंध म उपखंड (i) से उपखंड (vi) म िविनिदष् ट
ह;ै
1 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा (10-5-1995 से) “िरकाडर्”
के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 2 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा
(10-5-1995 से) “वास् तु कलाकृित” के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 3
1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 7 ारा (10-5-1995 से) धारा 14 के स्
थान पर पर्ितस् थािपत ।
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8
(ख) िकसी कम् प् यूटर पर्ोगर्ाम की दशा म,—
(i) खंड (क) म िविनिदष् ट काय म से कोई कायर् करना; 1[(ii) कम् प्
यूटर पर्ोगर्ाम की िकसी पर्ित का िवकर्य करना या उसे वािणिज् यक भाटक
पर दनेा अथवा िवकर्य या
वािणिज् यक भाट पर दनेे की पर्स् थापना करना :
परंतु ऐसा वािणिज् यक भाटक उस कंप् यूटर पर्ोगर्ाम की बाबत लागू नह
होगा जहां स् वयं पर्ोगर्ाम भाटक का आवश् यक उ ेश् य नह ह ।]
(ग) िकसी कलात् मक कृित की दशा म,— 2[(i) कृित को िकसी सारवान् रूप
से पुनरुत् पािदत करना, िजसके अतंगर्त िनम् निलिखत ह,—
(अ) इलैक् टर्ािनक या अन् य साधन ारा िकसी माध् यम म उसका भडंारण;
या
(आ) दो िवमा वाली कृित का तीन िवमा म िचतर्ण ह;ै या
(इ) तीन िवमा वाली कृित का दो िवमा म िचतर्ण ह;ै]
(ii) कृित को सावर्जिनक रूप से संसूिचत करना;
(iii) जनता को कृित की ऐसी पर्ितयां उपलब् ध कराना, जो पहले से
पिरचालन म नह ह;
(iv) कृित को िकसी चलिचतर् िफल् म म सिम् मिलत करना;
(v) कृित का कोई अनुकूलन करना;
(vi) कृित के अनकूुलन के संबंध म ऐसे काय म से कोई कायर् करना जो
कृित के संबंध म उपखंड (i) से उपखंड (iv) म िविनिदष् ट ह;ै
(घ) िकसी चलिचतर् िफल् म की दशा म,—
2[(i) िफल् म की पर्ित तैयार करना, िजसके अंतगर्त—
(अ) उसके भागरूप िकसी िबब का फोटोिचतर् ह;ै या
(आ) इलैक् टर्ािनक या अन् य साधन ारा िकसी माध् यम म उसका भडंारण
ह;ै] 2[(ii) िफल् म की िकसी पर्ित का िवकर्य करना या उसके वािणिज् यक
भाटक पर दनेा अथवा िवकर्य या ऐसे भाटक पर
दनेे की पर्स् थापना करना;]
(iii) िफल् म को सावर्जिनक रूप से संसूिचत करना;
(ङ) िकसी ध् वन् यंकन की दशा म,—
(i) उसको सीन् निवष् ट करने वाला कोई अन् य ध् वन् यंकन करना
3[िजसके अंतगर्त इलटैर्ािनक या अन् य साधन ारा िकसी माध् यम म उसका
भंडारण भी ह ;]
2[(ii) ध् वन् यंकन की िकसी पर्ित का िवकर्य करना या उसे वािणिज्
यक भाटक पर दनेा अथवा िवकर्य या ऐसे भाट पर दनेे की पर्स् थापना
करना;]
(iii) ध् वन् यंकन को सावर्जिनक रूप से संसूिचत करना ।
स् पष् टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए, ऐसी पर्ित के बारे म
िजसका एक बार िवकर्य िकया गया ह ैयह समझा जाएगा िक वह पहले से ही
पिरचालन म ह ै।]
15. िडज़ाइन अिधिनयम, 2000 के अधीन रिजस् टर्ीकृत या रिजस् टर्ी िकए
जाने योग् य िडजाइन म पर्ितिलप् यिधकार के बारे म िवशषे उपबधं—(1) इस
अिधिनयम के अधीन पर्ितिलप् यिधकार का अिस् तत् व िकसी ऐसे िडजाइन म नह
होगा जो 4*** 5[िडजाइन अिधिनयम, 2000 (2000 का 16)] के अधीन रिजस्
टर्ीकृत ह ै।
1 1999 के अिधिनयम सं० 49 की धारा 3 ारा (15-1-2000 से) खण् ड (ii)
के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 2 2012 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 5 ारा
पर्ितस् थािपत । 3 2012 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 5 ारा अंत:स् थािपत
। 4 1983 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 7 ारा (9-8-1984 से) “भारतीय पेटट
और” शब् द का लोप िकया गया । 5 2012 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 6 ारा
पर्ितस् थािपत ।
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9
(2) िकसी ऐसे िडजाइन म, 1*** िडजाइन अिधिनयम, 1911 (1911 का 2) के
अधीन रिजस् टर्ी िकए जाने के योग् य ह ैिकन् तु िजसकी इस पर्कार रिजस्
टर्ी नह की गई ह ैपर्ितिलप् यिधकार तब तरंुत समाप् त हो जाएगा जब कोई
वस् तु िजस पर िडजाइन पर्युक् त िकया गया ह,ै पर्ितिलप् यिधकार के स्
वामी ारा या उसकी अनुज्ञिप् त म िकसी अन् य व् यिक् त ारा िकसी औ ोिगक
पर्िकर्या से पचास से अिधक बार पुनरुत् पािदत की जा चुकी ह ै।
16. इस अिधिनयम म यथा उपबिंधत के िसवाय कोई पर्ितिलप् यिधकार न
होना—कोई व् यिक् त िकसी कृित म, चाह े वह पर्कािशत हो या अपर्कािशत
हो, पर्ितिलप् यिधकार या वैसे ही िकसी अिधकार का हकदार इस अिधिनयम के
या िकसी अन् य तत् समय पर्वृ िविध के उपबंध के अनुसार होने से अन् यथा
नह होगा, िकन् तु इस धारा की िकसी बात का यह अथर् नह लगाया जाएगा िक
वह िकसी न् यास या िवश् वास के भंग को अवरु करने के िकसी अिधकार या
अिधकािरता को िनराकृत करती ह ै।
अध् याय 4
पर्ितिलप् यिधकार का स् वािमत् व और स् वामी के अिधकार 17.
पर्ितिलप् यिधकार का पर्थम स् वामी—इस अिधिनयम के उपबंध के अध् यधीन
रहते हुए िकसी कृित का रचियता उसम
पर्ितिलप् यिधकार का पर्थम स् वामी होगा :
परन् तु—
(क) िकसी ऐसी सािहित् यक, ना या कलात् मक कृित की दशा म, जो उसके
रचियता ारा िकसी समाचारपतर्, पितर्का या वैसी ही सामियकी के स् वत्
वधारी ारा, सेवा या िशकु्षता की संिवदा के अधीन उसके िनयोजन के
अनुकर्म म िकसी समाचारपतर्, पितर्का या वैसी ही सामियकी म पर्काशन के
पर्योजनाथर् बनाई गई हो, उक् त स् वत् वधारी तत् पर्ितकूल िकसी करार
के अभाव म, उस कृित म पर्ितिलप् यिधकार का पर्थम स् वामी होगा जहां तक
िक पर्ितिलप् यिधकार उस कृित के िकसी समाचारपतर्, पितर्का या वैसी ही
सामियकी म पर्काशन से अथवा उसके वैसे पर्काशन के पर्योजनाथर् उस कृित
के पुनरुत् पादन से संब ह,ै िकन् तु अन् य सब बात के िलए रचियता कृित
म पर्ितिलप् यिधकार का पर्थम स् वामी होगा;
(ख) खंड (क) के उपबंध के अध् यधीन यह ह ैिक िकसी व् यिक् त के
अनुरोध पर मूल् यवान पर्ितफल के िलए ख चे गए फोटोगर्ाफ या बनाए गए
रंगिचतर् या िचतर् या उत् कीणर् या चलिचतर् िफल् म की दशा म ऐसा व्
यिक् त, तत् पर्ितकूल िकसी करार के अभाव म, उसम पर्ितिलप् यिधकार का
पर्थम स् वामी होगा;
(ग) सेवा या िशक्षुता की संिवदा के अधीन रचियता के िनयोजन के दौरान
बनाई गई िकसी कृित की दशा म िजसको खंड (क) या खंड (ख) लागू नह होता
िनयोजक, तत् पर्ितकूल िकसी करार के अभाव म, उसम पर्ितिलप् यिधकार का
पर्थम स् वामी होगा;
2[(गग) जनता म िदए गए िकसी अिभभाषण या भाषण की दशा म वह व् यिक् त,
िजसने ऐसा अिभभाषण या भाषण िदया ह ै अथवा यिद ऐसे व् यिक् त ने िकसी
अन् य व् यिक् त की ओर से ऐसा अिभभाषण या भाषण िदया ह ै तो ऐसा अन् य
व् यिक् त, उसम पर्ितिलप् यिधकार का पर्थम स् वामी होगा, इस बात के
होते हुए भी िक, यथािस् थित, वह व् यिक् त, जो ऐसा अिभभाषण या भाषण
दतेा ह ैअथवा, ऐसा व् यिक् त, िजसकी ओर से ऐसा अिभभाषण या भाषण िदया
जाता ह ैऐसे िकसी अन् य व् यिक् त ारा िनयोिजत ह ैजो ऐसे अिभभाषण या
भाषण की व् यवस् था करता ह ैया िजसकी ओर से या िजसके वचन पर ऐसा
अिभभाषण या भाषण िदया जाता ह;ै]
(घ) िकसी सरकारी कृित की दशा म, सरकार, तत् पर्ितकूल िकसी करार के
अभाव म, उसम पर्ितिलप् यिधकार की पर्थम स् वामी होगी;
2[(घघ) ऐसी कृित की दशा म, जो िकसी लोक उपकर्म ारा या उसके िनदशे
या िनयंतर्ण के अधीन तयैार की गई ह ैया पर्थम बार पर्कािशत की गई ह,ै
ऐसा लोक उपकर्म तत् पर्ितकूल िकसी करार के अभाव म, उसम पर्ितिलप्
यिधकार का पर्थम स् वामी होगा ।]
स् पष् टीकरण—इस खंड तथा धारा 28क के पर्योजन के िलए “लोक उपकर्म”
से िनम् निलिखत अिभपेर्त ह—ै
(i) सरकार के स् वािमस् व वाला या उसके िनयंतर्णाधीन उपकर्म;
या
(ii) कंपनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 म याथापिरभािषत
सरकारी कंपनी; या
(iii) िकसी केन् दर्ीय, पर्ांतीय या राज् य के अिधिनयम ारा या उसके
अधीन स् थािपत िकया गया िनगिमत िनकाय;]
(ङ) ऐसी कृित की दशा म िजसको धारा 41 के उपबंध लाग ू होते ह,
संबंिधत अन् तरराष् टर्ीय संगठन उसम पर्ितिलप् यिधकार का पर्थम स्
वामी होगा :
1 1983 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 7 ारा (9-8-1984 से) “भारतीय
पेटट और” शब् द का लोप िकया गया । 2 1983 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 8
ारा (9-8-1984 से) अंत:स् थािपत ।
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10
1[परंतु िकसी चलिचतर् कृित म सिम् मिलत की गई िकसी कृित की दशा म,
खंड (ख) और खंड (ग) म अन् तिवष् ट िकसी बात से धारा 13 की उपधारा (1)
के खंड (क) म िनिदष् ट कृित म रचियता के अिधकार पर पर्भाव नह पड़गेा
।]
18. पर्ितिलप् यिधकार का समनदुशेन—(1) िकसी िव मान कृित म
पर्ितिलप् यिधकार का स् वामी या भावी कृित म पर्ितिलप् यिधकार का होने
वाला स् वामी, पर्ितिलप् यिधकार को या तो पूणर्त: या भागत: और या तो
सामान् यतया या िनबर्न् धन के अध् यधीन और या तो पर्ितिलप् यिधकार की
संपूणर् अविध या उसके िकसी भाग के िलए, िकसी व् यिक् त को समनुदिेशत
कर सकेगा :
परंतु िकसी भावी कृित के पर्ितिलप् यिधकार के समनुदशेन की दशा म,
समुनदशेन तभी पर्भावशील होगा जब कृित अिस् तत् व म आ जाए :
2[परंतु यह और िक ऐसा कोई समनुदशेन तब तक ऐसी कृित के जो अिस् तत्
व म नह थी या उस समय, जब समनुदशेन िकया गया था वािणिज् यक उपयोग म नह
थी समुपयोजन के िकसी माध् यम या ढंग को लागू नह होगा जब तक िक ऐसे
समनुदशेन म कृित के समुपयोजन के ऐसे माध् यम या ढंग के पर्ित िविनिदष्
ट रूप से िनदश न िकया गया हो :
परंतु यह भी िक िकसी चलिचतर् िफल् म म सिम् मिलत सािहित् यक या
संगीतात् मक कृित का रचियता, रचियता के िविधक वािरस या संगर्हण और
िवतरण संबंधी िकसी पर्ितिलप् यिधकार सोसाइटी के िसवाय िकसी िसनेमा हाल
म चलिचतर् िफल् म के साथ सावर्जिनक रूप से कृित को संसूिचत करने से
िभन् न िकसी रूप म ऐसी कृित के उपयोग के िलए पर्ितिलप् यिधकार के
समनुदिेशती के साथ समान आधार पर बांटे जान े वाले स् वािमस् व को
पर्ाप् त करने के अिधकार का समनुदशेन या अिधत् यजन नह करेगा और इसके
तत् पर्ितकूल कोई करार शून् य होगा :
परंतु यह भी िक िकसी ऐसी सािहित् यक या संगीतात् मक कृित का िजसे
ध् वन् यंकन म सिम् मिलत िकया गया हो िकन् तु वह िकसी चिलचतर् िफल् म
का भागरूप न हो, रचियता, रचियता के िविधक वािरस या संगर्हण और िवतरण
संबंधी पर्ितिलप् यिधकार सोसाइटी के िसवाय ऐसी कृित के िकसी उपयोग के
िलए पर्ितिलप् यिधकार के समनुदिेशती के साथ समान आधार पर बांटे जाने
वाले स् वािमस् व को पर्ाप् त करने के अिधकार का समनुदशेन या अिधत्
यजन नह करेगा और इसके पर्ितकूल कोई समनदुशेन शून् य होगा ।]
(2) जहां िकसी पर्ितिलप् यिधकार का समनुदिेशती उस पर्ितिलप् यिधकार
म समािवष् ट िकसी अिधकार का हकदार हो जाता ह ैवहां ऐसे समनुदिेशत
अिधकार के बारे म समनदुिेशती को और समनुदिेशत न िकए गए अिधकार के बारे
म समनुदशेन को इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए पर्ितिलप् यिधकार का स्
वामी माना जाएगा और इस अिधिनयम के उपबंध तद्नसुार पर्भावी ह गे ।
(3) इस धारा म, िकसी भावी कृित म पर्ितिलप् यिधकार के बारे म
“समनुदिेशती” पद के अंतगर्त समनुदिेशती का िविधक पर्ितिनिध ह,ै यिद
समनुदिेशती उस कृित के अिस् तत् व म आने से पहले मर जाता ह ै।
19. समनदुशेन का ढंग—3[(1)] िकसी कृित म पर्ितिलप् यिधकार का कोई
समनुदशेन तब तक िविधमान् य नह होगा जब तक वह िलिखत रूप म और
समनुदिेशती ारा या उसके सम् यक्त: पर्ािधकृत अिभकतार् ारा हस्
ताक्षिरत न हो ।
4[(2) िकसी कृित म पर्ितिलप् यिधकार का समनुदशेन ऐसी कृित को
पिरलिक्षत करेगा तथा समनुदिेशत अिधकार और ऐसे समनुदशेन की कालाविध तथा
राज् यके्षतर्ीय िवस् तार को िविनिदष् ट करेगा ।
(3) िकसी कृित म पर्ितिलप् यिधकार के समनुदशेन म, समनुदशेन के चालू
रहने के दौरान रचियता या उसके िविधक वािरस को 5[संदये स् वािमस् व और
िकसी अन् य पर्ितफल की रकम भी,] िविनिदष् ट की जाएगी और समनुदशेन
पक्षकार ारा परस् पर करार पाए गए िनबंधन पर पुनरीिक्षत, िवस् तािरत या
पयर्विसत िकए जाने के अधीन होगा ।
(4) जहां समनदुिेशती, समनुदशेन की तारीख से एक वषर् की अविध के
भीतर इस धारा की िकन् ह अन् य उपधारा के अधीन उसे समनुदिेशत अिधकार का
पर्योग नह करता ह ैवहां ऐसे अिधकार की बाबत समनुदशेन के बारे म यह
समझा जाएगा िक वह उक् त अविध के अवसान के पश् चात् जब तक िक समनुदशेन
म अन् यथा िविनिदष् ट नह िकया जाता ह,ै व् यपगत हो गया ह ै।
(5) यिद समनुदशेन की अविध किथत नह की जाती ह ैतो उसे समनुदशेन की
तारीख से पांच वषर् समझा जाएगा ।
(6) यिद अिधकार के समनुदशेन का राज् यके्षतर्ीय िवस् तार िविनिदष्
ट नह िकया जाता ह ैतो यह उपधारणा की जाएगी िक उसका िवस् तार भारत के
भीतर ह ै।
(7) उपधारा (2) या उपधारा (3) या उपधारा (4) या उपधारा (5) या
उपधारा (6) की कोई बात, पर्ितिलप् यिधकार (संशोधन) अिधिनयम, 1994 के
पर्वृ होने के पूवर् िकए गए समनुदशेन को लागू नह होगी ।]
1 2012 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 7 ारा अंत:स् थािपत । 2 2012 के
अिधिनयम सं० 27 की धारा 8 ारा अंत:स् थािपत । 3 1983 के अिधिनयम सं०
23 की धारा 9 ारा (9-8-1984 से) धारा 19 उसकी उपधारा (1) के रूप म
पुन:संख् यांिकत । 4 1994 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 8 ारा (10-5-1995
से) उपधारा (2) के स् थान पर पर्ितस् थािपत । 5 2012 के अिधिनयम सं०
27 की धारा 9 ारा पर्ितस् थािपत ।
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1[(8) ऐसी िकसी पर्ितिलप् यिधकार सोसाइटी को, िजसम कृित का रचियता
सदस् य ह,ै पहले से िकसी समनुिदष् ट अिधकार के िनबंधन और शत के
पर्ितकूल िकसी कृित म पर्ितिलप् यिधकार का समनुदशेन शून् य होगा ।
(9) िचलिचतर् िफल् म बनाने के िलए िकसी कृित म पर्ितिलप् यिधकार के
िकसी समनुदशेन स,े िकसी िसनेमा हाल म चलिचतर् िफल् म के साथ सावर्जिनक
रूप से िकसी कृित को संसूिचत करने से िभन् न िकसी रूप म कृित के उपयोग
की दशा म संदये स् वािमस् व और पर्ितफल के समान अंश का दावा करने के
िलए कृित के रचियता के अिधकार पर पर्भाव नह पड़गेा ।
(10) ध् वन् यंकन की िकसी कृित म, जो िकसी चलिचतर् िफल् म के
भागरूप नह ह,ै पर्ितिलप् यिधकार के िकसी समनुदशेन से िकसी रूप म ऐसी
कृित के िकसी उपयोग के िलए संदये स् वािमस् व और पर्ितफल के समान अंश
का दावा करने के िलए िकसी कृित के रचियता के अिधकार पर पर्भाव नह
पड़गेा ।]
2[19क. पर्ितिलप् यिधकार के समनदुशेन की बाबत िववाद—(1) यिद कोई
समनुदिेशती, उसे समनुदिेशत अिधकार का पयार्प् त पर्योग करने म असफल
रहता ह ैऔर ऐसी असफलता समनदुशेक के िकसी कायर् या लोक के कारण नह मानी
जा सकती ह ैतो पर्ितिलप् यिधकार बोडर्, समनुदशेक से िकसी पिरवाद की
पर्ािप् त पर और ऐसी जांच करने के पश् चात् जो वह आवश् यक समझे, ऐसे
समनुदशेन का पर्ितसंहरण कर सकेगा ।
(2) यिद िकसी पर्ितिलप् यिधकार के समनुदशेन की बाबत कोई िववाद उत्
पन् न होता ह ैतो पर्ितिलप् यिधकार बोडर्, व् यिथत पक्षकार से िकसी
पिरवाद की पर्ािप् त पर और ऐसी जांच करने के पश् चात् जो वह आवश् यक
समझे, ऐसा आदशे पािरत कर सकेगा जो वह ठीक समझ,े िजसके अन् तगर्त संदये
िकसी स् वािमस् व की वसूली का आदशे ह ै:
परन् तु पर्ितिलप् यिधकार बोडर् इस उपधारा के अधीन समनुदशेन का
पर्ितसंहरण करने वाला कोई आदशे तब तक पािरत नह करेगा जब तक, िक उसका
यह समाधान नह हो जाता ह ै िक समनुदशेन के िनबंधन उस दशा म िजसम
समनुदशेन रचियता भी ह,ै उसके िलए कठोर ह :
3[परंतु यह और िक इस उपधारा के अधीन समनुदशेन के पर्ितसंहरण संबंधी
िकसी आवेदन के िनपटारे के लंिबत रहने तक पर्ितिलप् यिधकार बोडर्
समनुदशेन के िनबंधन और शत के िकर्यान् वयन के संबंध म, िजसके अंतगर्त
समनुदिेशत अिधकार के उपभोग के िलए संद िकया जाने वाला कोई पर्ितफल भी
ह,ै ऐसा आदशे पािरत कर सकेगा, जो वह ठीक समझे :
परंतु यह भी िक] इस उपधारा के अधीन समनुदशेन के पर्ितसंहरण का कोई
आदशे, ऐसे समनुदशेन की तारीख से पांच वषर् की अविध के भीतर नह िकया
जाएगा ।]
4[(3) उपधारा (2) के अधीन पर्ाप् त पर्त् येक पिरवाद पर पर्ितिलप्
यिधकार बोडर् ारा यथासंभव कायर्वाही की जाएगी और उस मामले म अंितम
आदशे पिरवाद के पर्ाप् त होने की तारीख से छह मास की अविध के भीतर
पािरत करने के पर्यास िकए जाएंगे और उसके अनुपालन म िकसी िवलंब के िलए
पर्ितिलप् यिधकार बोडर् उसके का�