-
अथात मुिनराज ने ह षत होकर कोमल वाणी से कहा क संपूण ौे तीथ का ्जल
ले आओ । फर उ ह ने औषिध, मूल, फूल, फल और पऽ आ द को अनेक मांगिलक
वःतुओं के नाम िगनकर बताये । मुिनने वेद म कहा हआ सब वधान ुबताकर कहा-
नगर म बहत से मंडप सजाओं । फलु समेत आम, सुपार और केले के वृ नगर क
गिलय म चार ओर रोप दो ।
चौदह वष क अविध के उपरा त राम-लआमण-सीता के सकुशल अयो या लौटने पर
भी तीन माताएँ तथा सुहािगन इन ूाकृितक मंगल पदाथ से उनका ःवागत करती ह
।
उपयु वणन से ःप है क पऽ, पुंप, फल, दबू, दह ं, पान, सुपार , जलयु
कलश, फलसमेत वृ के रोपन आ द पदाथ के योग से मानव अपने अभी काय क िस के
िलए, शकुन प से इनका उपयोग योितषशा बता रहा है ।
विभ न पशु-प ी, पदाथ आ द मानव मनोरथपूित होने क शभु सूचना ह नह ं
देते अ पतु अशभु सूचना भी देते ह । भरत निनहाल से अयो या को लौट रहे
हतो उ ह कौए ग द जगह बैठे हएु , तथा ग ा और िसयार बुर तरह से िच लाते
हए ु
गत होते ह । इ ह देखते ह भरत िनकट भ वंय म कसी अ ूय घटना होने के
भय के संऽःत हो रहा था और यह स च भी था क इधर अयो या म राजा दशरथ का
िनधन हो चुका है तथा राम वन चले गए थे ।
रावण के यु के िलए ूःथान करते ह अपशकुन हो रहे थे पर तु रावण गव के
कारण उन पर वचार नह ं करता । ूःथान-काल म होने वाले अपशकुन का वणन
करते हए तुु लसी कहते ह क घोड़े-हाथी उसका साथ छोड़कर िचंघाड़ते हए भाग
ुजाते ह, िसयार, िगध, कौए, गधे श द करने लगते ह; कु े भ कने लगते ह और
उ लू भयानक श द करते हए मान रावण को उसक असफलता और मृ यु का संकेत ुयु
-भूिम म जाने से पूव ह करा देते ह Ð
अथात मुिनराज ने ह षत होकर कोमल वाणी से कहा क संपूण ौे तीथ का ्जल
ले आओ । फर उ ह ने औषिध, मूल, फूल, फल और पऽ आ द को अनेक मांगिलक
वःतुओं के नाम िगनकर बताये । मुिनने वेद म कहा हआ सब वधान ुबताकर कहा-
नगर म बहत से मंडप सजाओं । फु ल समेत आम, सुपार और केले के वृ नगर क
गिलय म चार ओर रोप दो ।
“गोमाय गीध कराल खर रव ःवान बोल हं अित घने । जनु कालदत उलूक बोल
हं बचन परम भयावने ।।ू ” 1
(लंकाका ड, दो-77 के बाद का छंद) गीध का उड़-उड़ कर िसर पर आकर बैठना
भी अिन कर माना जाता है,
वानर ारा य को व वंस होते देख रावण बोिधत होकर जब यु म जाने लगता
है तो उसे ऐसे अपशकुन होते ह Ð
1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, लकंाका ड, प.ृ 777
300
-
“चलत हो हं अित असुभ भयंकर । बैठ हं गीध उड़ाइ िसर ह पर ।।” 1
(लंकाका ड, दो-81, चौ-1)
उधर वभीषण से रावण के नािभकु ड म अमतृ िनवास के रहःय को जानकर जैसे
ह ौीराम ह षत होकर हाथ म वकराल बाण महण करते ह, उसी समय रावण के सम
अनेक ूकार के अपशकुन होने लगते ह जनका तुलसी ने वःततृ वणन कया है ।
बहतु -से गधे, कु े और िसयार रोने लगे; प ी दःखसूचक विचऽ विन ुकरने
लगे; आकाश म जहाँ-तहाँ केतु ूकट हो; दस दशाओं म आग लगने लगी; बना ह
योग के सूयमहण होने लगा; मूितयाँ नेऽ-माग से जल बहाने लगी; आकाश से
वळपात होने लगा; अ यंत ूच ड वायु बहने लगी; पृ वी काँपने लगी तथा बदाल
र , बाल और धूिल क वषा करने लगे ।
इस ूकार हम देखते ह क लोक व ास के अनुसार अपशकुन के िच समझे जाने
वाले व वध अ हतकर ूाकृितक पदाथ का प रचय देते हए तुलसी ने ःप कर ुदया
है क ूकृित के विभ न अंग तो तटःथ भाव से अपने कायम रत होते ह पर तु
पथृक्-पथृक ् अवसर पर उनके पथृक-पथृक काय तथा प को देख कर मानव अपने
शभु-अशभु का अनुमान लगाने लगता है ।
योितषशा म हम देखते है क ौीराम ने वानर सेना के ूःथान के समय कहा
कÐ हे सुमीव ! इस समय सूय आकाश के म य म जा पहँचा है यह वजय ुनाम का
मुहत है । यह यु ूःथाू न के िलए उिचत एवं उ म है । यु आर भ म भी व णत
है क आज उ रा फा गुनी न ऽ है, कल इसका हःतन ऽ से योग होगा य क ये दोन
बमशः आते ह । अतः हे सुमीव ! हम सार सेनाओं से िघरे हए ुआज ह याऽा आर
भ करते ह । इसके अित र शकुन स न धी वःततृ ववेचन भी रामच रतमानस काल म
ूा होता है । शुकन शुभ एवं अशभु दो ूकार के थे । विभ न ूकार एवं अनेक
वध प से शकुन का ान कया गया है । शभु शकुन के अ तगत सूय का मेघ र हत
होना, वायु का धूलर हत, सुखपूवक ूवाह, जल का ःव छ, ःवाद एवं मधुर
होनाु , वृ का फलयु होना, प य का मधुर ःवर व ूस नयु होना, ी का बायां
अंग फड़कना आ द माने गए ह । इसी ूकार अशभु शकुन का भी वणन है । सूय का
का तह न होना, प रमहयु , नीलवण के ध ब से यु होना, च िमा का रा ऽ म न
चमकना, तार का ःव छ मेघ र हत दवस म भी दखाई न देना, आकाश म वलमान प ड
का धरती पर िगरना, स धा का र म धूल से या होना आ द का उ लेख कया गया
है । इस ूकार अनेक ःथल पर योितषशा का वणन ूा होता है ।
1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, लकंाका ड, प.ृ 785
301
-
अतः हम कह सकते है क योितषशा वह अनुमान के आधार पर चल रहा है, क तु
शकुन-अपशकुन के आधार पर ह आने वाली प र ःथित का वणन कर सकते और वह न
बे ूितशत स च साबीत हई है तुलसीदास जी ु Ôरामच रतमानसÕ म इस का ःप उ
लेख देते है । आज हरेक काय योितषशा के आधार पर ह हो रहा है । मानस म
योितषशा ीओंने दघ डया मुहत बड़ा शभु माना है । ु ू और वह यह भी कहते है
क इसम शभु, अशभु होने क कोई संभावना ह नह ं रहती एसा बताया गया है ।
यह कतना व ास दायक शा है । तुलसीदास जी ने तो मानस क शरुआत और अंत भी
योितषशा के आधार पर ह कया है । मानस संपूण होने के बाद अंत म भी
तलुसीदास जी ने Ôौीरामशलाका ू ावलीÕ शीषक देकर हम को योितषशा से प
रिचत कराते ह ।
ौीरामशलाका ू ावली
मानसानुरागी महानुभाव को ौीरामशलाका ू ावली का वशेष प रचय देने क
कोई आवँयकता नह ं ूतीत होती । उसक मह ा एवं उपयोगीता से ूाय सभी
मानसूेमी प रिचत ह गे । अतः नीचे उसका ःव पमाऽ अ कत करके उससे ू ो र
िनकालने क विध तथा उसके उ र-फल का उ लेख कर दया जाता है । ौीरामशलाका
ू ावली का ःव प इस ूकार है Ð
स ू उ ब हो म ु ग ब सु नु ब ध िध इ द र फ िस िस र हं बस ह मं ल न ल
य न अं सुज सो ग सु कु म म ग त न इ ल धा बे नो य र न कु जो म र र र अ
क हो सं रा य पु सु थ सी जे इ ग म* सं क रे हो स स िन त र त र स हुँ
हु ब ब प िच स हं स तु म का T र र म िम मी हा T जा हू ह ं T T ता रा
रे र ह का फ खा जू ई र रा पू द ल िन को जो गो न मु ज यँ ने मिन क ज प
स ल ह रा िम स र ग द मु ख म ख ज म त जं िसं ख नु न को िम िनज क ग धु ध
सु का स र गु ब म अ र िन म ल T न ढ़ ती न क भ ना पु व अ T र ल T ए तु र
न नु वै थ िस हुँ सु हा रा र स स र त न ख T ज T र T T ला धी T र T हू
ह ं खा जू ई रा रे1
1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, ट काकार- हनमुानूसाद पो ार,
प.ृ 972
302
-
इस रामशलाका ू ावली के ारा जस कसी को जब कभी अपने अभी ू का उ र ूा
करने क इ छा हो तो सवूथम उस य को भगवान ौीरामच िजी का यान करना चा हए
। तदन तर ौ ा- व ासपूवक मनसे अभी ू का िच तन करते हए ू ावली के मनचाहे
को क म अँगुली या कोई शलाका रख देना चा हए ुऔर उस को क म जो अ र हो
उसे अलग कसी कोरे कागज या ःलेट पर िलख लेना चा हए । ू ावली के को क पर
भी ऐसा कोई िनशान लगा देना चा हए, जससे न तो ू ावली ग द हो और न ू ो र
ूा होने तक वह को क भूल जाय । अब जस को क का अ र िलख िलया गया है उससे
आगे बढ़ना चा हए तथा उसके नव को क म जो अ र पड़े उसे भी िलख लेना चा हये
। इस ूकार ूित नव अ र क बम से िलखते जाना चा हए और तब तक िलखते जाना
चा हए, जब तक उसी पहले को क के अ रतक अँगुली अथवा शलाका न पहँच जाय ।
पहले को क का अ र ुजस को क के अ र से नवाँ पड़ेगा, वहाँ तक पहँचतेु
-पहँचते एक चौपाई पूर हो ुजायगी, जो ू कता के अभी ू का उ र होगी ।
यहाँ इस बात का यान रखना चा हए क कसी- कसी को क म केवल ÔआÕ क माऽा ÔTÕ
और कसी- कसी को क म दो-दो अ र ह । अतः िगनते समय न तो माऽावाले को क
को छोड़ देना चा हए और न दो अ रवाले को क को दो बार िगनना चा हये ।
जहाँ माऽा का को क आवे वहाँ पूविल खत अ र के आगे माऽा लख लेना चा हए
और जहाँ दो अ र वाला को क आवे वहाँ दोन अ र एक साथ िलख लेना चा हए
।
अब उदाहरण के तौर पर इस रामशलाका ू ावली से कसी ू के उ र म एक
चौपाई िनकाल द जाती है । पाठक यान से देख । कसीने भगवान ौीरामच िजी का
यान और अपने ू का िच तन करते हए य द ू ावली के ु * इस िच से संयु ÔमÕ
वाले को क म अँगुली या शलाका रखा और वह ऊपर बताये बम के अनुसार अ र
िगन-िगनकर िलखता गया तो उ रःव प यह चौपाई बन जायगी Ð
“हो इ ह सो इ जो रा म * र िच रा खा । को क र त क ब ढ़ा वै सा खा
।।”
(दो-51-4)
यह चौपाई बालका ड तगत दोहा-51 का 4 चौपाई है । इसका अथ हैÐ Ôजो कुछ
रामने रच रखा है, वह होगा । तक करके कौन शाखा बढ़ावे ।Õ ू कता को इस उ
रःव प चौपाई से यह आशय िनकालना चा हये क काय होने म स देह है, अतः उसे
भगवान पर छोड़ देना ौयेकर है ।्
303
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इस चौपाई के अित र ौीरामशलाका ू ावली से आठ चौपाइयाँ और बनती ह, उन
सबका ःथान और फलस हत उ लेख नीचे कया जाता है । कुल नौ चौपाइयाँ ह
Ð
1. सुिन िसय स य असीस हमार । पू ज ह मन कामना तु हार ।।
ःथान Ð यह चौपाई बालका ड म दोहा-235 का 4 चौपाई है । इसका अथ हैÐ
Ôहे सीता ! हमार स ची आसीस सनुो, तु हार मनोकामना पूर होगी ।Õ और ौी
सीताजी के गौर पूजन के ूसंगम है । गौर जी ने ौीसीताजी को आशीवाद दया
है ।
फल Ð ू कता का ू उ म है, काय िस होगा ।
2. ू बिस नगर क जे सब काजा । हदयँ रा ख कोसलपुर राजा ।।
ःथान Ð यह चौपाई सु दरका ड म दोहा 4 का 1 चौपाई है । इसका अथ हैÐ
Ôअयो यापुर के राजा ौीरघुनाथजी को दय म रखे हए नगु रम ूवेश करके सब
काम क जये ।Õ और यह सु दरका ड म हनुमानजी के लंका म ूवेश करने के समय
क है ।
फल Ð भगवान का ःमरण करके कायार भ करो, सफलता िमलेगी ।
3. उधर हं अंत न होइ िनबाह ।ू कालनेिम जिम रावन राह ।।ू
ःथान Ð यह चौपाई बालका ड म दोहा 6 का 3 चौपाई है । इसका अथ हैÐ Ôअ
त तक उनका कपट नह ं िनभता, जैसे कालनेिम, रावण और राह का हाल हआु ु Õ
यह आरंभ म स संग वणन के ूसंग म है ।
फल Ð इस काय म भलाई नह ं है । काय क सफलता म संदेह है ।
4. बिध बस सजुन कुसंगत परह ं । फिन मिन सम िनज गुन अनुसरह ं ।।
ःथान Ð यह चौपाई बालका ड म दोहा 2 का 5 चौपाई है । इसका अथ हैÐ
Ôदेवयोग से य द सभी स जन कुसंगित म पड़ जाते ह, तो वे वहाँ भी साँप क म
ण के समान अपने गुण का ह अनुकरण करते ह ।Õ यह आरंभ म ह स संग-वणन के
ूसंग क है ।
फल Ð खोटे मनुंय का सगं छोड़ दो । काय पूण होने म स देह है ।
5. मुद मंगलमय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथराजू ।।
304
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ःथान Ð यह चौपाई बालका ड म दोहा नं. 1 के 4 चौपाई है । संत-समाज पी
तीथ के वणन म है ।
फल Ð ू उ म है । काय िस होगा ।
6. गरल सुधा रपु कर हं िमताई । गोपद िसंधु अनल िसतलाई ।।
ःथान Ð यह चौपाई सु दरका ड म दोहा नं. 4 के 2 चौपाई है ।
ौीहनुमानजी के लंका म ूवेश करने के समय क है ।
फल Ð ू बहत ौे है । काय सफल होगा ।ु
7. ब न कुबेर सुरेस समीरा । रन स मुख ध र काहँ न धीरा ।।ु
ःथान Ð यह चौपाई लंकाका ड म दोहा नं. 7 के 2 चौपाई है । रावण क मृ
यु के प ात म दोदर के वलाप के ूसंग म है ।्
फल Ð काय पूण होने म स देह है ।
8. सुफल मनोरथ होहँ तु हारे ।ु रामु लखनु सुिन भए सुखारे ।।
ःथान Ð यह चौपाई बालका ड म दोहा नं. 236 के 2 चौपाई है । पुंपवा
टका से पुंप लाने पर व ािमऽजी का आशीवाद है ।
फल Ð ू बहत उ म है । काय िस होगा ।ु
इस ूकार रामशलाका ू ावली म कुल नौ चौपाईयाँ बनती है, जनम सभी ूकार
के ू के उ र िमल सकते है । यह एक भरपूर योितषशा ह है । जसम संपूण
योितषशा का समावेश हो जाता है । यह भी माना गया है क संपूण मानस क
रचना भी ौीरामशलाका ू ावली के आधार पर ह हआ है । समम ुÔरामच रतमानसÕ म
पहले से अ त तक योितषशा का ान हम िमलता है ।
अतः हम कह सकते है क आज जनसामा य इस धारणा से ॅिमत है क योितषशा
माऽ भ वंय स ब धी कलादेश करनेवाला शा है क तु योितषशा माऽ भ वंय का
कथन करनेवाला शा ह नह ं है अ पतु इस शा के सं हता, िस ा त आ द ःकंध
ूकृित एवं इसके भौितक वषय के अनेक रहःय का ान उपल ध कराते ह । योितषशा
म जो व वध मह, न ऽ से वृ उ प एवं इन पर व वध मह का आिधप य कहा गया है
।
305
-
5.11 Ôरामच रतमानसÕ म वाःतुशा : वाःतुशा बहत ह बड़ा शा ु है । इसम
गहृ संबधंी पहलुओं पर वःतार से ूकाश
डाला गया है, जैसे भू पर ण, भू शोधन, गहृिनमाण, आंत रक और बाहर
सजावट एवं घर म जल, पेड़, पौधे और वःतुओं आ द क ःथित । य क ॄ ांड म
संचार करती हई ऊजा ुका वाःतुशा म वशेष मह व है । वाःतुशा को जीवन म
अपनाकर जीवन कैसे बदला जा सकता है । इसके िलए वाःतु व ान के नेशनल
चेरमेन तजे ि पाल यागी का कहना है क जस ूकार अनुलोम- वलोम करने से शर
र क आतं रक सफाई होती है, उसी ूकार 6 माह म एक बार घर को नमक डालकर
धोने के बाद ठंडे पानी से धोना चा हए जससे सद और गम ताप प रवतन क वजह
से जमीन पर जमीं नेगे टव एनज ख म हो जाती है यह ू बया ूोसेस ओफ ःशेस
रमूलव कहलाती है । जो ठ क उसी ू बया से िमलती जुलती है जसम एक इंसान
ःट म बाथ के बाद नॉमल बाथ लेकर ःवयं को तरोताजा महससू करता है । वैवा
हक जीवन म भी वाःतुशा का वशेष मह व है । ववाह जैसी संःथा को पूर तरह
से सुर त रखने के िलए एक भवन ह सबसे यादा ज र होता है । य क ववाह के
बाद गोपनीय काय और अंतरंग बात के िलए घर सबसे सुर त शरणाःथल का काय
करते ह । इसिलए उस घर को बनाने म वाःतुशा क सहायता लेना ज र है । आजकल
छोटे या बडे भवन क बनावट पहले के भवन क तुलना म सुंदर और भ य ज र हो
गई है, ले कन मकान को सुंदरता ूदान करने के िलए अिनयिमत आकार को मह व
देने लगे ह । इस कारण मकान बनाते समय जाने अनजाने वाःतु िस ांत को दर
कनार कया जाता है, जससे घर म सकारा मक और नकारा मक ऊजा के बीच असंतुलन
क ःथित पैदा हो जाती है । इस कारण वहाँ रहने वाल के शार रक और मानिसक
रोगी बनने क आशंका होती है । वाःतुशा तो केवल ूकृित म सूय क जीवनदायी,
सकारा मक ऊजा के ौे उपयोग का तर का बताया है, ता क उसे महण करने वाले
ःवःथ, शांितपूवक जीवन जी सक । वह भवन जहाँ ूातः काल के बदले दन क करण
आती ह वहाँ रहने वाल का ःवाः य अ छा नह ं रहता । दोपहर के समय पड़ने
वाली सूय क नकारा मक करण ःवाः य के िलये बहत ुनुकसानकरक ह । यह कारण
है क वाःतुशा म द ण और प म क द वार को ऊँचा रखने का ूावधान दया जाता
है । साथ ह इन दशाओं म उ र और पूव क तुलना म कम से कम आएँ और ईशान दशा
म ःथत जल ोत पर भी यह करण पड़ सक । भवन के ईशान कोण म अिधक खाली जगह
रखने का कारण भी सूय क गित ह है । जब सूय उतरायण होता है तो दोपहर तक
लाभदायक करण पृ वी पर पड़ती है ले कन जब सूय द णायण होता है तो दोपहर
के पूव ह हािनकारक करण पड़नी शु हो जाती है । इसिलए उतरायण काल क सूय क
करण का पूरा लाभ पाने के िलए वाःतुशा म द ण क अपे ा उ र म यादा खाली
जगह छोड़ने क सलाह द गई है ।
306
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यान रहे वाःतुशा एक व ान है । घर क बनावट म ह वाःतु अनुकूल प रवतन
कर वाःतुदोष को दर कया जा सकता है ।ू
5.11.1 वाःतशुा का अथ : वाःतुशा श द वाःतु एव ंशा से यु है । ये
दोन ह श द विश अथ
को बताते ह । वाःतु श द वःतु से िनिमत है जसका अिभूाय है क पदाथ
वशेष क वशेषकला के मा यम से उपयोगी एवं आवँयकता अनु प बताना ।
वाःतु श द संःकृत भाषा का है । इसके आधार पर इसका अथ हैÐ Ôवस त ूा
णनो यऽÕ1 अथात ्जहाँ जस भवन या ःथान म मनुंय अथवा देवता िनवास करते ह,
वह वाःतु है । जन शा म इसका सा गोपांग ववेचन है, वह वाःतुशा है ।
5.11.2 वाःतुशा क प रभाषा : अथशा म कौ ट य ने वाःतु को व ा के अ
तगत ःवीकार करते हए इसम ु
न माऽ भवन अ पतु वा टका, ब ध, सेतु, ू येक ूकार का भवन, तड़ाग, पु
षक रणी आ द को भी समा हत कया है ।2
अमरकोश के अनुसारÐ ÔवेँमभूःÕ अथात गहृभूिमः वाःतु कह जाती है ।
्ÔवेँमभूःÕ और ÔगहृभूिमःÕ गहृ रचनायो य नैिम क भूिम है ।3
वाःतु सं ेप म ईशा या द कोण से ूार भ होकर गहृ िनमाण क वह कला है
जो गहृ क व न, नाश, ूाकृितक उ पात आ द से र ण करती है ।4
इस ूकार सममतः कहा जा सकता है क वाःतुशा ान क वह व ा है जो मानव
जीवन को यव ःथत कर ूकृित के अनु प जीवनधारण को सुखपूवक यतीत करने का
िनदश देती है । इसी शा के ान के आधार पर मानव अपनी चयन क गई भूिम एव ं
ःथान को अपने वचार, ूयोग एवं संयोजन कला से सुखपूवक िनवासयो य बनाता
है । वाःतुशा का उ ेँय मानव जीवन एवं िनवासःथान को यव ःथत एवं सुखपणू
बनाता है । वाःतु का उ ेँय इहलोक एवं परलोक दोन क ूाि है ।
वाःतुशा का वषय ेऽ अित वःततृ है । नारदसं हता म कहा गया है क भवन म
रहने वाले भूःवामी को हर ूकार के भवन शभुफलदायक पुऽ-पौऽा द सुख
1 . वनःपित व ान और भारतीय योितषशा (औषध व ान तथा वाःतुशा स हत),
डॉ. द पाली िम ल, प.ृ 189 2 . कौ ट य अथशा , कौ ट य, प.ृ 78 3 .
अमरकोश, ितवार देवदत, 2.2.19 4 . हलायधु कोष, जोशी यजशंकर, सचूना
वभाग, प.ृ 606
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को बढ़ाने वाला ऐ य, लआमी, धन एवं वैभव को बढ़ाने वाला हो, इसका वचार
वाःतु म कया जाता है । भवन म अ न का ःथान कहाँ हो, जल (व ण) का ःथान
कहाँ हो, पूजा-अचना का ःथल कस दशा म हो, शयनक कस दशा म हो । इसके अित
र भूख ड क आकृित कैसी होनी चा हए इन सभी वषय पर वःतार से िच तन करना
वाःतुकला का वषय ेऽ है । गहृ भवन, उ च ूासाद, दगु, गाँव, नगर, म दर,
देवालय, कूप, तालाब, वापी, मूित िनमाण, ःथाप य कला, विभ न ूकार के म
डप, य शालाएँ, सभागहृ, िश वका, रथ, विभ न ूकार के यान, उ ान, मंच इ या
द का िनमाण करना, ूित ा करना, उनका संशोधन करना वाःतुकला का वषय है ।
कई ःथल पर यह भी कहा गया है क इस विध के ारा भली ूकार से जो वाःतु का
स मान करता है वह मनुंय आरो य, पुऽ, धन, धा या द का लाभ ूा करता है
।
वाःतुशा क उ प कस ूकार कस प म हई यह एक वचारणीय ू ुहै । इस वषय म
मतभेद भी पाए जाते ह । वःतुतः इस कला का मानव जीवन से अित ूाचीन समय
से ह स ब ध रहा है य क मानव जीवन के ूार भक चरण म अ ःथर जीवन यतीत
करता था । वह ःथान-ःथान पर ॅमण करता हआ ूकृित ुूदत पदाथ से ह जीवनयापन
करता था । इस अवःथा म उसने सवूथम प य से गहृ िनमाण स ब धी ूेरणा ली और
गुफा आ द म िनवास कया जस ूकार प ी घास ितनके से अपने घ सले बनाते ह,
उसी ूकार मनुंय ने भी घास-फूस से गहृ िनमाण कया जसका ूित प झोपड़ के प
म आज भी उपल ध है ।
इस ूकार वाःतु क उ प मु यतः दो आधार पर हईु - वृ के अनुकरण पर तथा
िग र गुफाओं के अनुकरण पर । मानव ने जब ूथम गहृ िनमाण कया होगा तब
उसने वृ के शाखा आ द भाग के अनुकरण पर अपने िनवास ःथान को अनेक भाग,
वभाग से यु प ूदान कया ।
5.11.3 ÔमानसÕ म वाःतशुा : वाःतुशा का ता पय नगर, हाट, बाजार,
सरोवर आ द के िनमाण स ब धी
है । गोःवामी जी के Ôरामच रतमानसÕ म सु दर नगर , बाजार तथा भवन के
िनमाण के सकेंत ूसंगानसुार हए है । भवनु -िनमाण स ब धी कुशलता का एक
ँय मानस के बालका ड, जनकपुर -ूसंग म देखने को िमलता है जहाँ अनेक ूकार
के सु दर भवन को देखकर िच िचतक हो उठता है । ेत रंग के राजमहल के सु
दर ार सु ढ दरवाजे तथा बीच म आंगन और उनम म ण-ज डत सोने क जर के पद का
िनदश है । साथ ह गज-बा ज-शाला का ँय भी य है और बहत से शरूवीरु , मंऽी
और सेनापित है । उन सबके घर भी राजमहल-सर खे ह ह । उनका उ लेख बालका ड
म िमलता ह जैसे Ð
308
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“अित अनूप जहँ जनक िनवासू । बथक हं बबुध बलो क बलासू ।। होत च कत
िचत कोट बलोक । सकल भुवन सोभा जनु रोक ।।
धवल धाम मिन पुरट पट सुघ टत नाना भाँित । िसय िनवास सुंदर सदन सोभा
किम क ह जाित ।।
सुभग ार सब कुिलस कपाटा । भपू भीर नट मागध भाटा ।। बनी बसाल बा ज
गज साला । हय गय रथ संकुल सब काला ।।
सूर सिचत सेनप बहतेरे ।ु नपृगहृ स रस सदन सब केरे ।।” 1
(बालका ड, दो-212, चौ-4, दो-213, चौ-1, 2)
भवन के साथ घर, दरवाजे तथा झरोख क चचा गोःवामीजी ने यथाःथान क है
Ð
“िनर ख सहज सुंदर होउ भाई । हो हं सुखी लोचन फल पाई ।। जुबतीं भवन
झरोख ह लागीं । िनरख हं राम प अनुरागीं ।।” 2
(बालका ड, दो-219, चौ-2)
भवन के साथ देव-म दर के िनमाण के संकेत भी तुलसी कृत रामच रतमानस
के बालका ड म िमलते ह जैसे Ð
“सर समीप िग रजा गहृ सोहा । बरिन न जाइ दे ख मनु मोहा ।।” 3
(बालका ड, दो-226, चौ-4, दो-227, चौ-2)
अथात सरोवर के पास िग रजाजी का म दर सुशोिभत है् , जसका वणन कया जा
सकता; देखकर मन मो हत हो जाता है ।
यह िग रजा-गहृ नाम का मं दर हम पुंप-वा टका ूसंग म देखने को िमलता
है । क तु िनमाण संबंधी िनपुणता का कोई संकेत उ ःथल पर नह ं हआ है ।
ुगोःवामी जी के सम-सामियक युग म राजक य उ ान एवं सरोवर का िनमाण
ूचुरता के साथ कया जाता था । पुंप-वा टक तथा उसके म य िनिमत सरोवर वणन
म गोःवामी जी समकालीन वाःतुकला का सु दर प रचय िमलता है Ð
1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, बालका ड, प.ृ 183, 184 2 . वह
, प.ृ 189 3 . वह , प.ृ 195
309
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“म य बाग स सोह सुहावा । मिन सोपान बिचऽ बनाया ।। बमल सिललु सरिसज
बहरंगा । जलखग कूजत गुंजत भृंगा ।।ु
बागु तड़ाग ु बलो क ूभु हरषे बंधु समेत । परम र य आरामु यह जो राम
हु सुख देत ।।” 1
(बालका ड, दो-226, चौ-4, दो-227)
“हनुमानजी सु दरका ड म जब एक वशाल पवत पर चढ़कर उ ह ने लंका देखी ।
तो वे च कत हो जाते है । वह नगर एक वशेष दग के प म बनाया गया है ु ।
बहत ह बड़ा कला हैु , वह अ यंत ऊँचा है, उसके चार ओर समुि से घेरा था ।
सोने का कोट चार ओर व मान था । म णय से भरचक मकान थे । अ छे चौराहे
थे, सु दर बीिथयाँ थीं, अखाड़े थे, बगीचे और सरोवर थे इस ूकार नगर रचना
आधुिनक समय म उिचत लगती है । लंका सुंदर और सुर त थी ।”2 तुलसीदास जी
के श द म Ð
“कनक कोट बिचत मिन कृत सुंदरायता घना । चऊह ट ह ट सुब ट बथीं चा
पुर बहु बिध बना ।। बन बाग उपबन बा टका सर कूप बापीं सोहह ं । नर नाग
सुर गंधब क या प मुिन न मोहह ं ।।” 3
(सु दरका ड, छं-1, 2)
इस नगर म वन, बाग, उपवन और वा टकाएँ एव ंसरोवर, कूप और वा पयाँ थी
तथा सीता क सोध म त पर हनुमानजी ार देखे गये सु दरका ड म ह र म दर का
भी उ लेख मानस म िमलता है ।
“भवन एक पुिन द ख सुहावा । ह र मं दर तहं िभ न बनावा ।।” 4
(सु दरका ड, दो-4, चौ-4)
हनुमानजी ने एक सु दर महल देखा, वहाँ भगवान का एक अलग म दर ्बना हआ
था ।ु
वाःतुकला का एक उदाहरण राजा राम के अयो यापुर -वणन म देखने यो य ह,
जहाँ नगर के उ र दशा म सरयूजी बह रह ह, जनका जल िनमल और गहरा है ।
1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, बालका ड, प.ृ 194 2 . तुलसी-िच
तन: नये आयाम, डॉ. जगद श ूसाद अ नहोऽी, प.ृ 131 3 . वह , सु दरका ड,
प.ृ 660 4 . वह , प.ृ 662
310
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मनोहर घाट बँधे हए हु , कनारे पर जरा भी क चड़ नह ं है । कूछ दर पर
अलग घाट ूहै, जहाँ घोड़ और हािथय के ठ ट-के-ठ ट जल पया करते ह । पानी
भरने के िलये भी बहत से घाट हु , जो बड़े ह मनोहर है । राजघाट बड़े सु
दर और ौे है, सरयूजी के कनारे- कनारे देवताओं के म दर ह, जनके चार ओर
सु दर उपवन है और सरयूजी के कनारे- कनारे सु दर तुलसी जी के झंुड-के
झंुड बहतु -से पेड़ मुिनय ने लगा रखे ह । नगर के बाहर भी परम सु दरता
है । ौी अयो यापुर के दशन करते ह संपूण पाप भाग जाते ह । वहाँ वन,
उपवन, बाविलयाँ और तालाब सुशोिभत ह । इसका उ लेख हम उ रका ड म िमलता ह
Ð
“उ र दिस सरजू बह िनमल जल गंभीर । बाँधे घाट मनोहर ःव प पंक न हं
तीर ।।
द र फराक िचर सो घाटा । जहँ जल पअ हं बा ज गज ू ठाटा ।। पिनघट परम
मनोहर नाना । तहाँ न पु ष कर हं अःनाना ।। राजघाट सब बिध सुंदर बर । म
ज हं तहाँ बरन चा रउ नर ।। तीर तीर देव ह के मं दर । चहँ दिस ित ह के
उपबन सुंदर ।।ु कहँ कहँ स रता तीर उदासी । बस हं यान रत मुिन सं यासी
।।ु ु पुर सोभा कछु बरिन न आई । बाहेर नगर परम िचराई ।। देखत पुर अ खल
अध भागा । बन उपबन बा पका तड़ागा ।।
बापीं तड़ाग अनूप कूप मनोहरायत सोहह ं । सोपान सुंदर नीर िनमल दे ख
सुर मुिन मोहह ं ।। बह रंग कंु ज अनेक खग कूज हं मधुप गुंजारह ं ।
आराम र य पका द खग रव जनु पिथक हंकारह ं । अिनमा दक सुख संपदा रह ं
अवध सब छाइ ।।” 1
(उ रका ड, दो-28-29)
यहाँ हम घाट, मं दर, उपवन, पुर, नगर (बापी), तड़ाग, सोपान आ द का एक
साथ िचऽण िमलता है ।
उपयो भवन , महल , मं दर, उपवन तथा लंका के वै व यपूण आवास के वणन
से यह ःप होता है क भवन िनमाण शा तथा वाःतुशा का व ान अपनी ौे ता पर
था । अंतम हम कह सकते ह क वाःतु का अथ िनवास यो य ःथान है तथा भूिम का
आभूषण वनःपित है । इस ूकार वनःपित व ान के बना वाःतुशा भी अधूरा ह है
।
1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, उ रका ड, प.ृ 861, 862
311
-
5.12 Ôरामच रतमानसÕ म रसायन-शा : रसायनशा व ान क वह शाखा है जसम
पदाथ के संघटन, संरचना, गुण और
रासायिनक ूित बया के दौरान इनम हए प रवतन का अ ययन कया जाता है ।
इसका ुशा दक व यास रस-अयन है, जसका शा दक अथ रस (िव ) का अ ययन है ।
यह एक भौितक व ान है जसम पदाथ के परमाणुओं, अणुओं, बःटल और रासायिनक ू
बया के दौरान मु हए या ूयु हए ऊजा का अ ययन कया जाता है । सं ेप म
रसायन व ान ु ुरासायिनक पदाथ का वै ािनक अ ययन है । रसायन व ान को के
ि य व ान या आधारभूत व ान भी कहा जाता है, य क यह दसरे व ान जैसेू ,
खगोल व ान, भौितक व ान, पदाथ व ान, जीव व ान और भू- व ान को जोड़ता है
। जैसे Ð
उंमा ारा बहतु -सी ठोस वःतुएँ गैस बन जाती ह । गैस का अ ययन ह व ान
क इस शाखा का ूमुख वषय है । इन गैस के िनमाण ॐोत आ द का पता लगाने के
प वै ािनक को ूकृित पर ह िनभर रहना होता है ।
जल म से जब व ुत-धारा गुजरती है तो गैस ूा होती हैÐ ओ सीजन और
हाइसोजन । हाइसोजन गैस को ओ सीजन गैस म जलाने से केवल एक पदाथ बनता है
और वह हे जल । वायु भी ओ सीजन और नाइशोजन गैस का िमौण ूमा णत कया जा
चुका है । जीवन के िलए तथा वःतुओं को जलाने के िलए ओ सीजन गैस अ
यावँयक है । पृ वी पर ूा सभी त व क अपे ा यह अिधक माऽा म उपल ध है ।
ूकाश-सं ेषण (फोटो-िस थेिसज) बया ारा वृ -पौधे काबन डाय साइड को सोखथे
ह और उतनी ह माऽा म ओ सीजन बाहर िनकालते ह । इस ूवृ म ओ सीजन का भ डार
कभी समा नह ं होता । अतः सूय क करण ारा इस गैस को ूा कया जाता है ।
यौिगक प म यह गैस ूाकृितक वनःपितय के अित र ूकृित के पशु-जगत ्च टान
और जल म बाह य से या ुहै । जल म ओ सीजन क कुछ माऽा धुली रहने के कारण
ह जलजीव-ज तु ासो वास बया म इसका उपयोग कर जीवन धारण करते ह ।
काबन और हाइसोजन बहत से यौिगक बनाते ह ज ह हाइसोकाबन का िमौण कहते
ुहै । यह वनःपित तथा जीव-ज तुओं के अवशेष के गलने-सड़ने के फलःव प पृ
वी म एक वशेष ग ध वाले िव के प म पाया जाता है ।
पदाथ के जलने से बनी गैस धुएँ का प धारण कर लेती ह । धुआँ ूायः
पानी क भाप और काबनडाय साइड का िमौण होता है । तुलसी अ न से धुएँ क उ
प का वणन करते ह Ð
“धूम अनल संभव सुनु भाई ।”1
(उ रका ड, दो-105(क), चौ-5) 1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, उ
रका ड, प.ृ 929
312
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धुएँ का रंग काला होता है Ð
धूम कुसंगित का रख होइ ।
धूप के धुएँ से आकाश के काले होने क चचा करते हए भी तुलसी इस त य
को ुसबकता ूदान करना चाहते ह Ð
“धूप धूप नभू मेचक भयऊ । अगर धूप बह जनु अंिधआर ।।ु ” 1
(बालका ड, दो-346, चौ-1, दो-194, चौ-3)
काबनडाय साइड के िमौण के कारण धुएँ म कडुआपन होता है । अतः धुएँ से
लोग क याकुलता और उसक सघनता म एक-दसरे को पहचानने क असमथता का वणन
करते ूह । पर तु सुग धत पदाथ अगर-धूप आ द से िनकलने वाला धुआँ उनके
संसग के कारण अपने कडएपन को याग देता है ु Ð
“धूमउ तजइ सहज क आई । अग ूसंग सुगंध बसाई ।।”2 (बालका ड, दो-9,
चौ-4)
यह धुआँ जल, अ न और पवन के ससंग म जगत को जीवन देने वाले बादल का
्प धारण कर लेता है Ð
“सोइ जल अनल अिनल संधाना । होइ जलद जग जीवन दाता ।।” 3
(बालका ड, दो-6, चौ-6)
विभ न भौितक त व के िमौण से मेघ -स ब धी क व का यह वणन बड़ा त यपरक
है ।
अ न अर ण लकड़ के रगड़ने से आग उ प न होती है । तुलसी रामकथा को ववेक
पी अ न ूकट करने के िलए अर ण बतात ह Ð
“पुिन बबेक पावक कहँ अरनी ।ू ”4 (बालका ड, दो-30(ख), चौ-3)
इस ूकार हम देखते ह क वै ािनक का रसायन-शा स ब धी अ ययन ूकारा तर
से ूकृित के विभ न त व एवं पदाथ के अ ययन पर ह आधार त है । रसायन-शा म
ूकृित के विभ न पदाथ म होने वाले रासायिनक प रवतन और उनके फलःव प
िनिमत एक अ य पदाथ का अ ययन कया जाता है । 1 . ौीरामच रतमानस, सट क
मझला साईज, बालका ड, प.ृ 294, 168 2 . वह , प.ृ 14 3 . वह , प.ृ 10 4
. वह , प.ृ 34
313
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5.13 Ôरामच रतमानसÕ म नीितशा : ÔनीतÕ से ता पय हैÐ समाज व य के उ
थान के िलए िनधा रत मूल व िस ा त
ह । ऐसे नैितक िस ा त कसी भई य अथवा समाज के च रऽ को उठाने के िलए
होते ह । वह नीित के प म जाने जाते ह । Ôरामच रतमानसÕ एक अमर नीित-म थ
है । मानस क रचना नैितक आदश को मूित प देने का सफल ूयास है । लोक-क
याण क भावना इसक ूेरक रह है । नैितक आदश को य गत, सामा जक, राजनीितक,
सांःकृितक सभी धरातल पर अपनाकर तुलसीदास जी ने उ ह यावहा रक साथकता
ूदान क है । जो आदश केवल सै ा तक होते ह, यावहा रक नह ं, उनका नीित क
से कोई मू य नह ं होता । हम नैितक आदश , चरम लआय क ूाि को ह नैितक उ
कष मानते ह । य प नैितक आदश इस अपूण मानव-जीवन म कभी पूण- पेण ूा नह ं
कया जा सकता; य क जतना ह हम उसे ूा करते जाते ह, उतना ह वह ऊँचा उठता
जाता है । फर भी जो लोग नैितक आदश को अपने जीवन म जतना अिधक ूा करते
ह, उतने ह वे मानवीय धरातल से ऊँठे उठते जाते ह । Ôरामच रतमानसÕ ऐसे ह
नैितक आदश का भंडार है और राम के च रऽ म नैितक आदश के चरम प क अिभ य
हई है । राम ह संपूण कथानक के के िएवं ुआधार ह । जस ूकार एक सूय समःत
भूमंडल के अंधकार ितरो हत कर ूकाश से भर देता है उसी ूकार राम के आदश
च रऽ क योित ने समःत च रऽ को योितमय कर दया है । मानस के ारा द गई
नैितक िश ा देश, काल क सीमा से परे ू येक युग के िलये पा रवा रक, सामा
जक, राजनीितक अ यवःथा, जसका वणन उ ह ने किलयुग-ूसंग कया है, ु ध होकर
लोक-क याण क से राम के आदश च रऽ, आदश प रवार, आदश समाज
एवं आदश रा य का िचऽण कया है, ता क सुख एवं शा त का साॆा य ःथा पत
हो सके । इसिलए उ ह ने पाऽ के च रऽ-िचऽण म नैितक उ कृ ता ूदिशत क है ।
तुलसीदास का लआय लोक- हत था । वे य , समाज व रा य के सम ऐसा आदश उप
ःथत करना चाहते थे जसका पालन करने से पा रवा रक वैमनःय, सामा जक
बुराइयाँ दर हो एवं राजनीितक ूसु यवःथा ःथा पत हो सके । इसिलए उ ह ने
पाऽ के च रऽ-िचऽण म नैितक उ कृ ता ूदिशत क है । तुलसीदास का लआय लोक-
हत था । वे य , समाज व रा य के सम ऐसा आदश उप ःथत करना चाहते थे जसका
पालन करने से पा रवा रक वैमनःय, सामा जक बुराइयाँ दर ह एवं राजनीितक
सु यवःथा ःथा पत हो सके । इसीिलए मानस के पाऽ का ूच रऽ-िचऽण नैितक से
अिधक उ कृ , मया दत एवं आदशपूण है । मानस के आदश पाऽ कभी भी मयादा का
उ लंघन नह ं करते, चाहे कैसी भी वषम प र ःथित य न हो । मानस क सबसे बड़
वशेषता यह है क उसम नैितक गुण एवं मू य क केवल सूची नह ं बतलाई गई ।
नीित के केवल उपदेश ह नह ं दये गये; वरन आदश पाऽ ारा उनका पाल् न कर
यवहा रकता ूदिशत क गई है । उसम Ôउपदेश से उदाहरण ौे हैÕ का िस ा त
अपनाया गया है, तथा उपदेश देने और आचरण न करने को हेय बतलाया गया है
।
314
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अिधकांश लोग उपदेश देने म तो चतुर होते ह; पर ःवयं आचरण करने वाले
लोग कम ह होते ह । अतः मानस म नैितक आदश को सजीवता ूदान क गई है, जससे
लोग उ ह अपने जीवन म उतारकर नैितक उ कष ूा कर सक ।
5.13.1 नीित श द क यु प : चतुवद ारकाूसाद शमा के अनुसार Ð “नीित श
द ÔनीÕ धात ुम Ô कतनÕ्
ू यय लगने से बनता है ।”1
जसका अथ हैÐ ले जाने क बया आचार-प ित, लोक या समाज के क याण के िलए
िन द कया हआ आचारु - यवहार ।
अमरकोश के अनुसार संःकृत म नीित श द एक ह अथ के वधायक है । दोन का
उदगम भी ूेरणाथक धातु ÔनीÕ से है ।2
याकरणानुसार Ð इसम ÔअचÕ् ू यय लगने से ÔनीÕ के ÔईÕ को गुण तथा ÔएÕ
को ÔअचÕ आदेश होने पर ÔनयÕ श द िस होता है ।3
Ôभावे यां नÕ् सूऽ से ÔनीÕ धातु म लगे न ् ÔनÕ तथा ÔकÕ का लोप होने
से केवल ÔितÕ ह शेष रहता । धातु ÔनीÕ के साथ संयोग होने से ÔनीितÕ श द
िनंप न होता ।4
इस आधार पर नीित का अथ होगा Ð इहलोक एवं परलोक स ब धी सफलता के
उपाय आ द जसके ारा िस कये जाते ह, वह नीित है ।
5.13.2 नीितशा क प रभाषाएँ : नीितशा को सव च हत का व ान कहा जाता
है । इसको मानवजीवन म
स न हत आदश का व ान भी कह सकते ह । नीितशा क प रभाषाएँ िन निल खत ह
Ð
अरःतू ने कहा है कÐ “नीितशा मानव-जीवन के चरम लआय का अ वेषण है ।
परम- हत लआय है Ð वह लआय जसके सब अ य तथाकिथत लआय वाःतव म साधना है ।
नैितक वचारक इसी परम- हत क खोज म सतत ूय शील ् रहे ह ।”
ड . आर. जाटव ने कहा है कÐ “नीितशा यवहार क अ छाई तथा बुराई का शा
है ।”
1 . संःकृत श दाथ-कौःतभु, चतुवद ारकाूसाद शमा, प.ृ 611 2 . भारतीय
नीित-का य पर परा और रह म, बालकृंण Ôआं कचनÕ, प.ृ 5 3 . संःकृत श
दाथ-कौःतभु, चतुवद ारकाूसाद शमा, प.ृ 611 4 . वह
315
-
ड . आर. जाटव ने कहा है कÐ “नीितशा मानव-जीवन म स न हत आदश का शा
है । यह मनुंय के परम- हत का व ान है ।”1
5.13.3 ÔमानसÕ म नीितशा : Ôरामच रतमानसÕ म नैितक नीित संबधंी वचार
य कया है । नीित से
ता पय समाज व य के उ थान के िलए िनधा रत मू य व िस ा त ह । ऐसे
नैितक िस ा त कसी भी य अथवा समाज के च रऽ को उठाने के िलए होते है ।
वह नीितशा के प म जाने जाते है । तुलसी-सा ह य के अनुशीलन से ात होता
है क उ ह ने िन त ह नीित संबंधी समम सा ह य का गहन अ ययन कया होगा ।
संपूण नैितक आचार को िन निल खत वग म बाँटा गया ह Ð
(1) धम-नीित (2) लोक-नीित (3) राजनीित (4) अथनीित
(1) धम-नीित : धम-नीित के संबंध म तुलसीदास का सारा बोध ा मक है ।
वे सुमित-
कुमित के को पु य-पाप, शभु-अशभु, नीित-अनीित, धम-अधम, याय-अ याय, स
य-अस य, स प - वप आ द जीवन और जगत क बह वध ् ु -मूलकता म देखते ह ।
तुलसी ने धम और नीित संबंधी कोण को समझने के िलए उनके
ा मक कोण को समझना आवँयक है Ð
“सुमित कुमित सब क उर रहह ं । नाथ पुरान िनगम अस कहह ं । जहाँ
सुमित तहँ संपित नाना । जहाँ कुमित तहँ बपित िनदाना ।।”2
(सु दरका ड, दो-390(क), चौ-3)
सुमित-कुमित का ह स य-अस य के का ोत है और स य-अस य सीधे पु य-पाप
से स ब धत है Ôस यÕ ह समःत उ म सुकृत (पु य ) क जड़ है । यह बात
वेद-पुराण म ूिस है ।
“न हं अस य सम पातक पुंजा । िग र राम हो हं क को टक गुंजा ।। स
यमूल सब सुकृत सहाए । बेद पुरान ब दत मनु गाए ।।” 3
(अयो याका ड, दो-27, चौ-3) 1 . नीितशा के ूमुख िस ा त, ड . आर.
जाटव, प.ृ 2, 3 2 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, सु दरका ड, प.ृ
390 3 . वह , अयो याका ड, प.ृ 329
316
-
राम दशरथ के सुकृत और ःनेह क सीमा कहे गये ह । कैकेयी को कुमित कहा
गया है और उसक तक-ौृखंला को कु वचार पी प ी क आंख पर लगी फुल ह को
खोलना बतलाया गया है । दशरथ के अनुसार होनहार-वश ह कैकेयी के मन म कुम
आ बसी । भरत जी भी कैकेयी को कुमित कहकर पुकारते ह और आबोश य करते हए
कहते हु , अर कुमित जब तूने मन म कुमत ठाना, उसी समय तेरे दय के टकड़ेु
-टकड़े य न हो गये । रामु -सीता को भूिम पर सोते देख िनषाद भी कुमित और
उसक स तितय - राग, रोष, ईंया, मद और मोह के ःव न म भी वशीभूत नह ं
होना चा हए । सब वकार से मु होकर सुमित- संचा रणी राम-भ ह वरे य है ।
म दोदर भी रावण को अनीित से वमुख करने के उ ेँय से परामश देती है
।
कुमित-मःतो के म य म धम और नीित का पालन क ठन होता है । नीित-िनपुण
को अनीित तिनक भी नह ं चती । कुमित का स ब ध अशभु से तथा शभु-शू यता
से सहज ह जुड़ जाता है । राम के मंगल-ूःथान से जानक जी को भी शभु शकुन
होने लगे । जानक को जो शकुन होते थे रावण के िलए वे ह , अपशकुन थे ।
इस ूकार आ मक से तुलसी ने नीित धम को य कया है ।
नीित कहती है क मूख, सेवक, कंजूस राजा, कुलटा ी और कपट िमऽ शलू
समान है, पीड़ा देने वाले ह । ौीराम को सुमीव क िमऽता के कारण उसके ह
भाई बािल का वध करना पड़ा । बािल के ू से तो एक बार लगता है क कह ं राम
से अधम, अनथ हो गया । जब बािल ने पूछा Ð
“धम हेतु अवतरेह गोसाई । मारेह मो हं ु ु याध क नाई ।। म बैर सुमीव
पआरा । अवगुन कवन नाथ मो ह मारा ।।” 1
( क ंक धाका ड, दो-82)
बािल के ू म धम का संबंध है, उसका व ास है क िनद ष का वध नह ं हो
सकता अतः भगवान (धम हेतु अवतरेहु) ौीराम भी उसक ू प रिघ से दर नह ं
ूहै । ौीराम मानव अवतार लेकर भी धम क वजा झुकने नह ं देते, इसीिलये
कहते ह Ð
“अनुज बधू भिगनी सतु नार । सुन सठ क या सय ए चार ।।” 2
( क ंक धाका ड, दो-8, चौ-4) 1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, क
ंक धाका ड, प.ृ 635 2 . वह
317
-
अथात ्धम क र ा के िलये जो कया, वह नीित स मत ह कया । समाज म मयादा
क र ा के िलए तथा समाज को कामुकता से परे रखने के िलये ौीराम ने ÔसठÕ
कहकर बािल क िन दा क है । दशनीय है क उपरो म चार याँ प रवार क इकाई क
ह ज ह यिभचार से दर रखकर ह आदश समाज क नैितकता ूा ूक जा सकती है ।
तुलसी ने नैितकता को समाज के उ थान के मूल के प म देखा है । फर बािल
के ू का उ र देते हए कहते ह ु Ð
“इ ह ह कु बलोकई जोई । ता ह बध कछु पाप न होई ।।” 1
( क ंक धाका ड, दो-8, चौ-4)
समाज क नैितकता और च रऽ को बनाए रखने के िलये ौीराम के अनुसार ÔवधÕ
क सजा भी अिधक नह ं है । इसम ÔवधÕ से जुड़े ÔपापÕ के दोष को भी शु कर
दया है अथात उसका वध नैितक है् , नीित पूण है ।
ौी सीताजी क खोज म सभी वानर भगवान ौीराम जी का ःमरण करते हए ुचले क
तु उनम हनुमानजी कृतकाय हए । उ ह ने आकर अपने आरा य को मःतक ुनवाया ।
ूभु ने उ ह िनकट बुलाया और िसर पर हाँथ फराकर अपने हाथ क अँगूठ उ ह द
ओर कहा क तुम अ य वानर को लेकर द ण दशा म जाओ । ःप है क ौीराम सब कुछ
जानते ह क तु लोकोपचार के साथ नीित क मयादा भी उ ह रखनी है ।
रावण क प ी म दोदर राम के सीता ःव प से प रिचत है । वह रावण को
समझाती है क सीता को लौटा दो इसी म तु हारा हत है य क Ð
“ हत न तु हारा स भु अज क ह ।”2
(सु दरका ड, दो-35, चौ-5)
िशव ःवयं राम के भ है, फर वे रावण क सहायता कैसे कर सकते ह, क तु
रावण वापस लौटने को तैयार नह ं है । य क उसका तो संक प है कÐ ूभ ुके
हाथ से ह ूाण यजु, ता क जीवन पी भव तर सकंु ।
सब प र ःथितयाँ उसी के अनुकूल बनती है । ौीराम क वानर सेना समुि
पार आने क सूचना पा कर रावण मं ऽय से मंऽणा करने लगा, क तु कोई उिचत
सलाह नह ं देता ।
1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, क ंक धाका ड, प.ृ 635 2 . वह ,
सु दरका ड, प.ृ 687
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ौीराम के भ भी नीितपूण सलाह देते ह । उन सेना को समुि के पार जाना
और भगवान ःवयं सब भाँित से समथ भी है क तु नीित व नह ं है । वे समुि
को बाण से सुखाने से पूव राःता माँगते ह, अनुरोध करते है, वनय करते ह
। तुलसी के ौीराम धीर गंभीर व ये ता के अनु प काय करने वाले ह । उ ह
ने सागर को ूणाम कया और वनय करने के िलये तट पर कुश आसन बछाकर बैठ गये
। तीन दन तक उ ह ने ूाथना क और तब बोलेÐ भय बनु होइ न ूीित । अथात भय
के ्बीना ूीित नह ं होती । यह एक नीित धम ह है ।
म दोदर ने पित से एक बात और कह ं क Ð “हे ःवामीÐ बैर उसी से करनी
चा हए जसे बु व बल से जीता जा सके ।”1 यानी रावण को यह बताना कतना
वशाल स य है क उसम और ौीराम म कोई समानता नह ं है । इस त य म पित के
शभु क ह कामना है य क म दोदर रा स कुल म ज मी तो भी या ? है तो भारतीय
नार ह । जसका सवःव पित के िलये है, पित ह है । रा स के मखु से राम क
सेना के करतब सुनकर उसका दय हल जाता है तो वह िगड़िगड़ा उठती हैÐ
“तासु बरोध न क जअ नाथा । काल करम जव जाक हाथा ।।”2
(लंकाका ड, दो-5, चौ-5)
उसका भय यथ नह ं है य क पुऽ अ य कुमार के साथ अ य स ब धय को जसने
और जसके दत ने मार दया वह ःवयं कू तना बलशाली होगा । वह शकंाओं के बीच
झूल रह है । जानती है क वे तो भगवान ह ज ह ने िभ न-िभ न प धारण कर हर
कालो से द का नाश कया है और वे ह पृ वी का भार हरने के ुिलये अवत रत
हए ह । उनके हाथ म ु काल, कम और जीव सभी ह । हे नाथ ! उनका वरोध उिचत
नह ं है ।
प ी म दोदर ने अपने पित को बहत तरह से समझा ने क कोिशश क ुक तु
रावण अहं एवं हठ के वश म होकर उसने उसक एक ह बात नह ं मानी । जब कु
भकण ने सीताहरण क सार कथा सुनी तो वह रा स होते हए भी कह उठाु Ð
“जगद बा ह र आिन अब । सठ चाहन क यान ।।” 3
(लंकाका ड, दो-62) 1 . तुलसी के का यादश, डॉ. मालती दबुे, डॉ.
रामगोपाल िसंह, प.ृ 210 2 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, लकंाका ड,
प.ृ 712 3 . वह , प.ृ 762
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कु भकण को इसम अिन दखा, अतः उसने पछताने के भाव से कहा क तुमने
मुझे पहले य नह ं बतायाÐ “हे रा सराज ! तूने अ छा नह ं कया । सा ात
्जगतजननी सीता को चुरा कर तू अब क याण चाहता है । फर भी उसने कहा
Ð
“अजहँ तात यािगु अिभमाना । भजह राम होह ह क यानाु ।।” 1
(लंकाका ड, दो-62, चौ-1)
हे भाई ! अब भी त ूअिभमान को छोड़ ौीराम का ःमरणं कर तो तेरा क याण
िन त है ।
धम-नीित के समथन करने वाले मं ऽय के थोडे मंत य पर ूकाश डालते हए
ुरावण का पुऽ ूहःत रावण को नीित- वरोध न करने क सलाह देता है । पित के
ूितकूल आचरण करने वाली कैकेयी को अमंगल-मूल कहकर िध कारा गया है ।
तुलसीदास ने अनैितकता और पाप के ूित सै ा तक वरोध ह य नह ं कया है,
वरन धम नीित अपनायी है ।्
(2) लोक-नीित : तुलसी क लोक-नीित का आधार है मानव के चा र ऽक वकास
क असीम
संभावनाओं म अटट व ास । इस ूकार तुलसी आःथावाद और आ ःतक वचारक ूहै
। इसी आ ःतकता पर उनका आशावाद टका है । किलयुग का िनराशाजनक और जुगु
सामूलक िचऽ अं कत करने के बाद भी उनके सारे ूय किलयुग म वकृित के ःथान
पर संःकृित क ःथापना करने और मानव तथा समाज के जीवन को ऊ वमुखी बनाने
क दशा म उ मुख है । उनका व ास है क राम-नाम के ःमरण और भ से किलयुग पर
सहज ह वजय पायी जा सकती है ।
तुलसी क लोक-नीित तीन तरह से देखने से सु वधा जनक होगा Ð क) य गत
आचार ख) पा रवा रक आचार ग) सामा जक आचार
क) य गत आचार : तन, मन और आचरण क शु ता ह तुलसी के नीित वषयक िच तन
का
मूल आधार है । तुलसी ने य को स त के ल ण के प म ूःतुत कये ह । स त
कभी भी नीित का याग नह ं करते । वे सरल ःवभाव वाले तथा सभी से ूेम
रखने वाले होते ह । स त का मन करोड़ो व न म भी नीित को नह ं यागता
।
1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, लकंाका ड, प.ृ 762
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क तु ऐसे परोपकार और परमाथ स त वरल भी होते ह, स त वषय- वमुख,
सुशील, गुण-स प न, पर दःख से दःखी तथा पर सखु से सुखीु ु , समबु ,
अजातशऽु, मदह न, वैरा यवान,् लोभ, बोध, भय आ द से मु दयालु, िनंकपट भ
, िनरािभमानी, मानूद, िनंकाम होता है । वह शम, दम और िनयम-शौच, स त ष,
तप, ःवा याय और ई र- ूा णधान तथा नीित से कभी वचिलत नह ं होता और मुख
से कभी कठोर वचन नह ं बोलता । इसके वपर त अस त ईंयालु, िन दा-रत,
कामी, बोधी, अिभमानी, िनदयी, कपट , कु टल और पापी होता है । यह अकारण
शऽु और भलाई करने वाले के साथ बुराई करने वाला होता है । द य झूठा मोर
के ुसमान ऊपर से मधुर भाषी और भीतर से िनमम, परिोह , पर ी, परधन और
परिन दा म आस होता है । ऐसे पापी मनुंय नर शर र धारण कये हए भी रा स ु
है ।
भरत के च रऽ के मा यम से तुलसी ने नैितक आचरण के उ कष का क ितमान
ूःतुत कया है Ð
“िनरविध गुन िन पम पु ष भरतु भरत सम जािन । क हअ सुमे क सेर सम क
बकुल मित सकुचािन ।।” 1
(अयो याका ड, दो-288)
भर ाज ऋ ष ारा आित य- प म सम पत भोग सामिमय म से कसी का भी भरत ने
ःपश तक नह ं कया Ð
“संपित चकई भरतु चक मुिन आयस खेलवार । ते ह िनिस आौम पंजराँ राखे
भा िभनुसार ।।” 2
(अयो याका ड, दो-215)
विध, ह र, हर का पद पाकर भी भरत को राजमद नह ं हो सकता Ð
“भरत ह होई न राजमद बिध ह र हर पद पाइ ।ु कबहँ क काँजी सीकरिन छ
रिसंधु बनसाइ ।।ु ” 3
(अयो याका ड, दो-231)
य गत आचार अथात नीित को हम भरत के पाऽ म ःप देख चुके ् क भरत को
कसी भी ूकार का लोभ, मोह नह ं है ।
ख) पा रवा रक आचार : तुलसी-सा ह य म िशव, बािल-सुमीव, जनक, केवट,
रावण और राम आ द
अनेक य य के प रवार के स दभ ूा है, क तु वशेषता दो प रवार क ह है ।
1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, अयो याका ड, प.ृ 534 2 . वह , प.ृ
476 3 . वह , प.ृ 489
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राम-प रवार और रावण-प रवार । भारतीय पर परा के अनुसार प ी, पुऽ,
सेवक, िशंय के कत यो पर तो वशेष प से ूकाश डाला ह गया है, क तु पित,
पता, माता, ःवामी और गु र के कत य का भी उ लेख कया गया है । प ी के
पितोत पर तुलसी ने वशेष बल दया है । चार ूकार क