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आध निक मैनिली गीनिकाय ओ परपरा/i File No. -CCRT/JF-3/51/2015 COMPLETE PROJECT REPORT For the period ended on 31 ST December 2017. आध निक मैनिली गीनिकाय परपरा Aadhunik Maithili Geetikavya O Parampara चदि मार झा Chandan Kumar Jha Enrollment No: JF20140268 Junior Fellowship-2013-2014 Field:-Literature, Sub Field:-Maithili Scheme for Award of Fellowship to Outstanding Persons in the Field Of Culture for the year 2013-14. Centre for Cultural Resources and Training Ministry Of Culture, Govt. Of India
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2015 - Centre for Cultural Resources and Training · दववाह संस्का_ सम्[न्ी गीत 5. ऋतुसम्[न्ी गीत 6. श्र सम्[न्ी

Jun 28, 2020

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  • आधुनिक मैनिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/i

    File No. -CCRT/JF-3/51/2015

    COMPLETE PROJECT REPORT For the period ended on 31ST December 2017.

    आधुनिक मैनिली गीनिकाव्य ओ परम्परा Aadhunik Maithili Geetikavya O Parampara

    चन्दि कुमार झा Chandan Kumar Jha

    Enrollment No: JF20140268

    Junior Fellowship-2013-2014

    Field:-Literature, Sub Field:-Maithili Scheme for Award of Fellowship to Outstanding Persons in the

    Field Of Culture for the year 2013-14.

    Centre for Cultural Resources and Training

    Ministry Of Culture, Govt. Of India

  • आधुनिक मैनिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/ii

    निषय सूची

    विषय-प्रिेश: पृष्ठ सखं्या- 1-10.

    मानव जीनवमे गीतिकाव्यक महत्व, मैतिली गीति-परम्पराक स्रोि पररचय, आधतुनक मैतिली

    गीतिकाव्यक तवकास परम्पराक पररचय ।

    प्रिम अध्यायः गीनिकाव्यक उद्भि ओ निकास, पृष्ठ सखं्या- 11- 26.

    गीतिकाव्यक उद्भव, गीतिकाव्यक पररभाषा, गीतिकाव्यक तवशेषिा, गीतिकाव्यक भेद, भारिीय

    गीतिकाव्यक परम्परा, जयदेवक गीिगोतवन्द, पातल ििा प्राकृि गीतिकाव्य ।

    वितीय अध्याय: मैविली गीवतकाव्यक परम्परा, पषृ्ठ सखं्या:- 27-55.

    प्राचीन मैतिली गीतिकाव्यक स्रोि-ग्रन्ि, चयाापद, प्राकृि पैंगलम, धूिासमागम आ वर्ारत्नाकर

    आतदमे मैतिली गीतिकाव्य, तवद्यापति पदावली, तवद्यापतिक समकालीन ओ परविी कतव, मैतिली

    गीतिकाव्यक तवकासमे मध्यकालीन नाटकक योगदान, पूवाांचलीय गीतिकाव्य ।

    िृिीय अध्याय : आधुनिक मैनिली गीनिकाव्यक निकास, पृष्ठ सखं्या- 56- 65.

    आधतुनक मैतिली गीतिकाव्यक पषृ्ठभूतम, आधतुनक गीतिकाव्यक उन्मेष, यगुप्रवर्त्ाक कवीश्वर चन्दा

    झा ।

    चिुिथ अध्याय: बीसम शिाब्दीक पूिाथर्द्थक मैनिली गीनिकाव्य,पृष्ठ सखं्या- 66-81.

    पषृ्ठभूतम, मैतिली गीतिकाव्यक राष्ट्रवादी स्वर, मैतिली गीतिकाव्यमे छायावाद,मैतिली गीतिकाव्यमे

    प्रगतिवाद आ प्रयोगवाद ।

  • आधुनिक मैनिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/iii

    पचंम अध्याय : बीसम शिाब्दीक उत्तरार्द्थक मैनिली गीनिकाव्य, पृष्ठ सखं्या- 82- 100.

    मैतिली नव कतविा आ नवगीिक तवकासक पषृ्ठभूतम,नवगीिक उद्भव ओ तवकास, नवकतविा ओ

    नवगीिमे अंिर,नवगीिक तवषयगि वगीकरर्, मैतिली गजल, आधतुनक भति-गीति ।

    षष्ठ अध्याय: समकालीि मैनिली गीनिकाव्य,पृष्ठ संख्या- 101-109.

    एकैसम शिाब्दीमे मैतिली गीतिकाव्य, समकालीन मैतिली गीतिकाव्यक स्वर-वैतवध्य, समकालीन

    मैतिली गजल ।

    सप्तम अध्यायः प्रनिनिनध गीिकार आ गीि-सगं्रह, पृष्ठ सखं्या- 110- 124.

    कतववर जीवन झा, यदनुाि झा “यदवुर”, सीिाराम झा, भवुनेश्वर तसहं 'भवुन', काशीकान्ि तमश्र

    'मधपु', प्रो. ईशनाि झा, आरसी प्रसाद तसहं, उपेन्र ठाकुर 'मोहन', मायानन्द तमश्र, रवीन्रनाि

    ठाकुर, गंगेश गुंजन, माका ण्डेय प्रवासी, शातन्ि समुन, तसयाराम झा 'सरस', बतुिनाि तमश्र,

    जगदीशचन्र ठाकुर 'अतनल', चन्रमतर् आतद ।

    उपसहंार: पृष्ठ सखं्या- 125- 128.

    सहायक ग्रन्ि सूची- पृष्ठ सखं्या- 129-133.

  • आधुनिक मैथिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/1

    विषय-प्रिेश

    गेयता मनुष्यक आदिम प्रवृदत दिक आ गीदतकाव्य मानवक सहजात । मानवीय भावोद्रेकक जतेक

    घदनष्ठ सम्बन्ध गीदतस ँ छैक ततेक वाणीक कोनो आन रूपस ँ नदह । सुख अिवा शोक, दिन्तन अिवा

    हर्षोल्लास, जीवनक प्रत्येक अवस्िामे मनुष्यकँे गीदतक अवलंबन प्राप्त होइत रहल अदछ । हर्षष अिवा दवर्षािक

    क्षणमे, जखन कखनहु मनुष्यक िेतना स्पदन्ित होइत छैक, ओकर ठोर दहलैत छैक, तखन-तखन ओकर सुख

    वा िुुःखानुभूदत गीतेक माध्यमे अदभव्यक्त होइत अदछ । मनुष्य अपन नेना अवस्िाक अिेतनतहुमे गीतक प्रदत

    आकदर्षषत होइत अदछ । पश्चात् जीवनक दवदभन्न अवस्िामे सेहो गीत ओकरा शोकमकु्त करैत छैक,

    सुखानुभूदतक अदभव्यदक्तक क्षमता प्रिान करतै छैक, ओकर दिन्ताकँे दिन्तनमे पररवदतषत करतै छैक, सवोपरर

    जीवन-संघर्षषक सम्बल बनैत छैक ।

    अिाषत् गीदतकाव्यक जन्म मानसक दवशदु्ध भाव-भूदमपर भेल अदछ । ई भाव-भूदम असीम अदछ, अनन्त

    अदछ । इएह कारण दिक जे आदिकदव वाल्मीदकस ँलऽ कऽ आइ धरर कदव लोकदन गीदतक रिना कऽ रहल

    छदि, मिुा एकर भाव-भूदमक नवीनता अक्षणु्ण अदछ ।1 गीदतकाव्य भारतीय वाङ्मयक सवाषदधक प्रिदलत,

    लोकदप्रय, हृियग्राही आ प्रशदंसत दवधाक रूपमे अपन स्िान बनओने अदछ ।

    गीदतकाव्यक इदतहास ओतबे परुान अदछ जतेक मानव-जादतक सभ्यता । मानव जीवनमे एकर महत्ता

    एहीस ँप्रमादणत होइत अदछ जे आदिम यगुस ँआइ धरर मनुष्यक सुख-ि:ुख, आस-नैराश्य, हर्षष-दवर्षाि, उत्िान-

    पतन, आस्िा-अनास्िा, सफलता-असफलता, यगु-जीवनक जदिलता, िीस तिा वेिनाकँे गीत हजारो-हजार

    वर्षषस ँअदभव्यक्त करैत आदब रहल अदछ । अनुकूल वा दवपरीत पररदस्िदतमे, शरीरश्रम दक दवश्रामक्षणमे दकंवा

    संघर्षषक पिपर डेग-डेगपर वा सफलताक आनन्िादतरेकमे, वस्तुतुः जीवनक प्रत्येक मोड़पर गीदत मानव-मनकँे

    अपन सुकोमल ओ कमनीय प्रभावस ँस्पदंित-आनदन्ित करतै रहैत अदछ । एदह प्रकार कहब अदतशयोदक्त नदह

    होयत जे गीदतकाव्य मानव सभ्यताक दवकासक ओ िपषण दिक जादहमे मानव जादतक सुख-ि;ुख, वैयदक्तक

    भाव, संवेग आओर इच्छा-व्यापारक व्यापकता प्रदतदबदंबत होइत अदछ ।

    जीवनमे गीतक महत्वकँे रखेादंकत करतै एलेन लोमैक्स कहने छदि- लोकजीवनक उिय, दवकास एव ं

    समस्त दवस्तारक हतेु गीदत अत्यावश्यक अदछ । ई लोकमे सुरक्षाक भावना दृढ. करैत अदछ । एदहमे लोकक

    जीवन एव ंलोकक भूदम जािू जका ँसमादहत एवं गुदंजत रहैत छैक । ओ लोककँे अपन समिुायमे, अपन स्िानपर

    नािब, पूजा करब, लड़ब अिवा पे्रम करबाक भावनाकँे जगा कऽ तैयार करतै अदछ ।2

  • आधुनिक मैथिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/2

    मनुष्य दवदवध कलादवधा यिा- सादहत्य, संगीत, दित्रकला, मूदतषकला आदिक माध्यमे अपन मनोभाव

    आ दविार संसारक समक्ष प्रस्तुत करैत अदछ । यद्यदप ओ संसारस ँ फराक सोिैत-दविारैत अदछ तिादप

    समाजक समक्ष अपन दविार प्रकि करबाक लेल ओकरा आतुरता रहैत छैक । मानवक सखु-िखुक

    अदभव्यदक्तक इएह अदनवायषता सादहत्यक कारण मानल जाइत अदछ । मानवीय अदभव्यदक्तक दक्षप्रतम ओ

    तीव्रतम माध्यम रूपमे काव्यक उपयोदगता सवष दसद्ध अदछ । कदवतामे जीवन आ जगतक परस्पर रागात्मकता

    अदभव्यक्त होइत अदछ । एकर अदभव्यजंनाक पररदध ततेक सूक्ष्म ओ दवशाल होइत अदछ जादहमे जीवनक

    सवाषदधक प्रभावशाली ओ सदित्र व्याख्या सम्भव होइत अदछ । आ ते ँकदवताकँे शब्ि-जीवन सेहो कहल गेल

    अदछ । एदहमे जीवनक दवदभन्न स्तर, दवदभन्न पररदस्िदत ओ दवदवध अंतिषशाक तीव्रतम अदभव्यदक्त होइत

    अदछ। भावक तीव्रताक आधारपर दवदभन्न सादहदत्यक दवधाक प्रािीनता दसद्ध होइत अदछ । पद्यमे गद्यक अपेक्षा

    अदधक तीव्रानुभूदत होइत अदछ । अतुः पद्यकँे गद्यक अपेक्षा प्रािीन मानल गेल अदछ । तदहना पद्य सादहत्यक

    मध्य गीदतकाव्यक भाव-तीव्रता सवाषदधक होइत अदछ । अतुः गीदतकाव्य प्रािीनतम काव्यप्रकार दिक आ

    लोकगीत गीदतकाव्यक आदि स्वरूप ।3 लैदिन तिा अंगे्रजी सादहत्यक अमेररकी दवद्वान एि.िी.पेक ( Harry

    Thurston Peck ) अपन पोिी Studies In several Literatures’ मे Tennyson’क गीदतकाव्यपर दविार करैत दलखैत छदि- गीदतकाव्य कदवताक सवाषदधक सहज प्रकार होयबाक कारणे दनदश्चत रूपस ँसवषप्रिम

    उत्पन्न भेल, आन-आन िेष्टाजन्य रूप दनदश्चते एकर बाि आ एहीस ँउत्पन्न भेल ।4 ध्यान िेबाक दिक जे श्री

    पेक गीदतकाव्यकँे अन्य काव्यदवधा मध्य मात्र प्रािीनतम नदह मानैत छदि अदपतु ओकरा सभक उद्गम-स्रोत

    सेहो कहैत छदि ।

    सादहत्य रिनाकँे स्िूल रूपस ँिू-भागमे दवभादजत कयल जाइत अदछ- गद्य आओर पद्य-गद्यं पद्यं च

    तविधा । प्रिम अंग ज्ञानक दवस्तारक लेल अनुकूल अदछ तिा िोसरमे भावक प्रभावोत्पािक प्रकाशन होइत

    अदछ । इएह पद्य रिना जखन संगीतमय भऽ जाइत अदछ तऽ गीतक उत्पदत होइत अदछ जतय भावक रागमय

    दवकास होइत छैक । अतुः गीदतकाव्यकँे संगीतक िरम सीमा मानल जाइत अदछ । गीत, संगीत-प्रधान काव्य

    दिक जादहमे कदव अपन रुदिक अनुरूप छन्िक प्रयोग करैत छदि । संगीत छन्िक कारण उत्पन्न होइत अदछ ।

    शब्िक ियन तिा संयोजनस ँसंगीत दवशेर्ष उत्पन्न भऽ जाइत अदछ ।5

    गीदतकाव्यक रागात्मकता ओ लयात्मकताक दवर्षयमे प.ं सुदमत्रानन्िन पतंक मत छदन-रागक अिष

    आकर्षषण दिक । ई ओ शदक्त दिक जकर दवद्यतु स्पशषस ँआकदर्षषत हम शब्िक आत्मा धरर पहुिैँत छी, हमर हृिय

    ओकर हृियस ँदमदल कऽ एकभाव भऽ जाइत अदछ । जादह प्रकार शब्ि एक दिस व्याकरणक कदठन दनयमस ँबद्ध

    होइत अदछ तदहना िोसर दिस रागक आकाशमे दिडै़ जका ँ स्वतंत्रो होइत अदछ । जतय रागक उन्मकु्त

    स्नेहशीलता आओर व्याकरणक दनयमवश्यतामे सामञ्जस्य रहैत अदछ ओतय शब्िक अंग-दवन्यास तिा

    मनोदवकास स्वाभादवक आओर यिेष्ठ रीदतस ँहोइत अदछ ।6

    परमानन्ि शास्त्री गीदतकाव्यकँे रेखादित्रस ँ तुलना करैत एकर वैदशष््टयक दनरूपण कयलदन अदछ-

    गीदतकाव्य एक रेखादित्र दिक जकर अदभव्यदक्तक माध्यम दकछु गनल-िनुल रेखा अदछ । गीदत-दित्रकार

    रेखाक सुदवधानसुार मनमाना प्रयोग नदह कऽ सकैत अदछ । ओकरा सामञ्जस्य आओर संतुलनक लेल पूणषतया

  • आधुनिक मैथिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/3

    सजग रहय पडै़त छैक । एकहुिा रेखाक कमी भेल दक दित्रमे अपूणषता झलकय लगैत अदछ आओर ज ँएकहुिा

    रेखा अदधक भेल त ँदित्रमे दवकृदत आदब जाइत छैक । मात्र संतुदलत संस्पशषस ँदित्रमे जीवन्तता अबैत अदछ ।

    एदहना गीदतकाव्यमे अनुभूदतक अदभव्यदक्त दकछुये संकेतस ँकरय पडै़त अदछ । इएह कारण दिक जे गीदतकाव्यमे

    कदवक मौदलक अनुभूदत धरर पहुिँबामे अदधक व्यवधान नदह होइत अदछ आओर पाठकस ँ ओकर प्रत्यक्ष

    सम्पकष भऽ जाइत छैक ।7

    भारतीय वाङ्मयमे सादहत्य आओर संगीतक सम्बन्ध अिूि अदछ । पाश्चात्य दवद्वान लोकदन सेहो गीदतक

    लयात्मकताकँे एकर प्रधान तत्व मानलदन अदछ । एडगर पो कदवताकँे सौन्ियषक संगीतमय सृदष्ट कहलदन अदछ।8

    वस्तुतुः आदिम यगुमे संगीत, गीदत तिा नृत्यगीतमे भेि नदह छल । मिुा सभ्यताक दवकासक क्रममे एकर भेि

    भेल अदछ । डॉ. जयकान्त दमश्र संगीत ओ गीतक सम्बन्धक दवर्षयमे कहने छदि- "भारतीय संगीतक ग्रन्ि सभमे जे गीदतकाव्यक ििाष िेखैत छी से दवश्वभररक गीदतकाव्यहुक दवकासमे िेखैत छी- की ग्रीसमे, की रोममे,

    ओ की दमस्र िेशमे । सवषत्र गीदतकाव्यक उिय धादमषक सगंीतदहक संग भेल छैक । उदितो छल जे ईश्वरक

    भावनाक रूपमे व्यक्त करैत जे संगीतक दवकास होइत छैक तकर ेफलस्वरूप गीदतकाव्यक जन्म हो । इएह क्रम

    भारतवर्षोमे भेल से बझुाइछ । जखन कखनो अपन िैदनक व्यावहाररक कायष वा िेष्टा सभस ँमनुष्य उठैत छल

    होयत-भाव-दवभोर भऽ संगीतक आधार पबैत छल होयत- त ँस्वाभादवक दिक जे ओ गीत बनबैत छल होयत-

    इएह लोक संगीतक एवं लोकगीतक परम्परा बनबैत छल होयत,...एहीस ँगीदतकाव्यक जन्म भेल होयत ।9

    मानव-सभ्यताक प्रारदंभक अवस्िा, जदहया मनुष्यकँे शब्िक महत्व नदह बूझल छलैक, लय-ताल

    सम्बन्धी अज्ञानता छलैक, तादह समयमे कोनो आवेगमय भावात्मक अवस्िामे जखन ओ दकछु गादब उठल

    होयत, लोकगीतक जन्म ओतदहस ँ भेल अदछ । लोकगीत दवश्वक समस्त दशष्ट-सादहत्यक ओ आधार दिक

    जादहस ँदवलग दवश्वक कोनो भार्षा-सादहत्यक उद्गमक कल्पना नदह कयल जा सकैत अदछ । वस्तुतुः लोकगीत

    मानवक काव्यात्मक अदभव्यदक्तक प्रिम सोपान दिक । लोकगीतक दनमाषण प्रदक्रयामे सवषप्रिम लोकधनुक

    दनमाषण भेल, पछादत ओदहमे शब्ि ओ दविारक महत्व क्रमशुः बढैत गेल ।

    लोकगीतक दवकासक अध्ययनस ँ ई दसद्ध होइत अदछ जे दभन्न-दभन्न भूदम-खण्डमे व्याप्त संस्कृदत,

    धमष, आस्िा, परम्परा आओर दक्रया-कलापक भाव-दित्र रूपमे दवशदु्ध जनतादंत्रक हृियक भावोच्छवासस ँएदह

    गीत सभक जन्म भेल । ई प्रारदम्भक अवस्िामे दलदपबद्ध नदह, अदपतु जनकंठमे प्रवादहत भेल । एदह गीत सभमे

    जतय प्रािीन संस्कृदत आओर जीवन-स्वरूपक िशषन होइत अदछ, ओतदह दिर-नवीन शाश्वत भावधाराक दित्र

    सेहो भेिैत अदछ । इएह जनकाव्य सादहदत्यक इदतहासक पदहल पन्ना दिक । एदह गीत सभक सरलता-तरलता

    एकरा जनकण्ठमे उतारर िैत अदछ । दनरलंकृत होइतहु ँई गीत सभ सहज-सुन्िर अदछ ।10

    दमदिलाक सामादजक एवं सासं्कृदतक जीवनमे गीत-संगीतक परपंरा हजारो वर्षषस ँ अदवदच्छन्न रूपे ँ

    प्रवहमान अदछ । मैदिली सादहत्यक दवकासमे गीदत-सादहत्यक सवाषदधक योगिान अदछ । कहबाक प्रयोजन नदह जे आदिकालस ँआधदुनक काल धरर मैदिली सादहत्येदतहास गीदतमय रहल अदछ । दवदवध दवर्षयक अजस्र

  • आधुनिक मैथिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/4

    मैदिली लोकगीत ओ महाकदव दवद्यापदत रदित असंख्य पि मैदिली गीदत-सादहत्यक प्रािीनता ओ समदृद्धक

    सवोत्तम उिाहरण दिक ।

    दवदवध प्रकारक मैदिली लोकगीतक अपन दवदशष्ट गायन शैली अदछ जकरा भास कहल जाइत अदछ ।

    गायन पद्धदतक रूपमे भास, रागक समकक्ष मानल जाइत अदछ । अिाषत् जदहना राग दवशेर्षक संगीत-संरिनामे

    स्खलन अस्वीकायष अदछ तदहना भास दवशेर्षक स्वर-संयोजन सेहो दनधाषररत होइत अदछ आ तकर पालन

    गायक लोकदनक लेल आवश्यक होइत अदछ ।

    मैदिलीक पारम्पररक गीदत-सादहत्यमे दमदिलाक ग्राम्य-जीवनक सहज-सरल मनोभावक तीव्र

    अदभव्यदक्त भेल अदछ । मैदिली लोकगीतमे सामादजक तिा पाररवाररक जीवनक सखु, ि:ुख, पे्रम, करुणा

    आदिक ममषस्पशी दित्रण भेल अदछ । कन्यािानक पीड़ा, वैधव्यक शोक, बाल-दववाह, वृद्ध-दववाह आदिक

    उत्पीड़न प्रभदृत दवर्षयक समावेश एदह गीत सभमे भेल अदछ । रवीन्द्रनाि ठाकुरक मतानसुार-वस्तुतुः मैदिलीमे

    जे गीत लोकगीतक नामे प्रिदलत अदछ से प्रगीतक कोदि केर गीत िीक । एदहमे सम्बोधन वैयदक्तकता, मन

    उमकय तऽ गाबी गीतक पररणामस्वरूप अन्तुःस्फूदत्तष, तन्मयताभावमयता, संगीतात्मकता, गदत, प्रवाह सब

    दवद्यमान रहैछ ।"11 दवदवध संस्कार गीत, िेवी-िेवताक गीत, ऋतुगीत, व्रत-त्योहार सम्बन्धी गीत, श्रमगीत,

    दशशगुीत आदि मैदिली लोकगीतक अनेक प्रकार भेिैत अदछ । डॉ. जयकान्त दमश्र मैदिलीक एदह पारम्पररक

    गीदतकाव्यकँे सात वगषमे दवभादजत कयने छदि-1. भजन 2. िेवी-िेवताक गीत 3. पावदनक गीत 4. सोहर 5.

    संस्कार गीत 6. समैया गीत आओर 7. लगनी ।12 डॉ. अदणमा दसंह अपन पोिी 'मैदिली लोकगीत'मे सेहो

    मैदिलीक पारम्पररक गीदतकाव्यकँे सात वगषमे वगीकरण कयने छदि- 1. िेवी-िेवताक गीत 2. व्रत आओर

    सामदयक उत्सवक गीत 3. संस्कार सम्बन्धी गीत 4. दववाह संस्कार सम्बन्धी गीत 5. ऋतु सम्बन्धी गीत 6. श्रम सम्बन्धी गीत एवं 7. दवदवध प्रकारक गीत । मिुा दहनक वगीकरण कनेक दभन्न अदछ । एदह वगीकरणमे

    दववाह-सम्बन्धी गीतकँे अन्यान्य संस्कार-गीतस ँ फराक राखल गेल अदछ । तदहना दवदवध प्रकारक गीतकँे

    फुियबाक प्रयास कयल गेल अदछ । डॉ. रामिेवझा अपन ग्रन्ि 'मैदिली लोक सादहत्युः स्वरूप ओ सौन्ियष 'मे

    पारम्पररक मैदिली गीदत-सादहत्यकँे छओ प्रकारमे वगीकृत कयने छदि- 1. संस्कार गीत 2. उत्सवव्रतोपासनाक

    गीत 3. भदक्तपरक गीत 4. श्रमापनोिक गीत 5. समैया गीत तिा 6. मनोरजंक गीत ।

    वैदिक परम्परामे सोलह प्रकारक कहल गेल अदछ । एदहमे मनुष्यक जन्मस ँमतृ्य ुपयषन्त धररक संस्कार

    सदन्नदवष्ट अदछ । प्रत्येक ससं्कारक दभन्न-दभन्न दवधक हते ुवेि-मन्त्रक पाठक दवधान अदछ । मिुा, दमदिलाक

    लोकजीवनमे एदह वैदिक मतं्रक समानान्तर गीत-गायनक परम्परा सेहो अदछ । अिाषत् मैदिली संस्कार गीतकँे

    वैदिक मन्त्रक मयाषिा प्राप्त छैक । कतहु-कतहु त ँई लौदकक परम्परा, वैदिक दवधानस ँअदधक महत्वपूणष भऽ

    जाइत अदछ । मैदिली ससं्कार गीतक महत्ताक प्रसंग डॉ. रामिेव झाक किन सवषिा उदित छदन- मैदिलीक

    संस्कार गीतक, दवदभन्न संस्कारक दवदध-व्यवहारमे वैह स्िान प्राप्त अदछ जे स्िान वैदिक, स्मात्तष आ पौरादणक

    मन्त्रकँे प्राप्त अदछ । कोनो दवदधक सम्पािनमे जादह प्रकारक मन्त्र पढल जाइत अदछ ठीक ओही प्रकारे ँओदह

    दवदधक हेतु गीतक गायन सेहो आवश्यक होइत अदछ ।13

  • आधुनिक मैथिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/5

    संस्कार गीतक मखु्यतुः प्रभेि दिक- जन्म, मूड़न, उपनयन आ दववाह गीत । िमुाओन गीत,

    केसकट्टीक गीत, िखाषगीत, कुमड़मक गीत, भीखक गीत, दपतरक गीत आदि मूड़न तिा उपनयनक अवसरपर

    मखु्यतुः गाओल जाइबला प्रिदलत गीदत-प्रकार दिक । दमदिलामे दववाहक अवसरपर अनेक प्रकारक दवध-

    व्यवहार सम्बन्धी गीत उपलब्ध अदछ । एदहमे दकछु गीत िेवी-िेवताक दववाहक किापर आधारदत अदछ त ँदकछु

    गीतमे वर-कदनयाकँ आनन्ि, अदतदिक सत्कार, हसँी-मजाक आदिक वणषन सेहो भेिैत अदछ । आम-महु दववाह,

    पररछन, नैना-योदगन, कन्यािान, महुअक, दसन्िरुिान, घोघि, दमनती, गौरी-पूजन प्रभदृत अनेक अवसरक

    अजस्र गीत दमदिलामे प्रिदलत अदछ । सम्मर, झुम्मरर, कोबर, उिासी आदि सेहो दववाहक अवसरपर गाओल

    जाइत अदछ । दद्वरागमनक अवसरपर मखु्यतुः समिाउन गाओल जाइत अदछ ।

    सोहर संतानक जन्मोत्सवक गीत दिक । संतान प्रादप्तक उल्लास तिा पररजनक मगंलकामनाक संगदह

    िेव-स्तुदत एदह गीतक प्रमखु दवर्षय होइत अदछ । दमदिलामे 'सोहर' गीतक अन्तगषत मखु्यतुः गभाषवस्िाक गीत

    ओ मङ्गलगीत अबैत अदछ । सोहर गानक प्रिाक दमदिलामे प्रािीन अदछ । एदह दवर्षयमे डॉ. लोकनाि दमश्रक

    किन छदन- सोहर शब्िक व्यतु्पदत्तक मूलमे संस्कृतक 'शभु' धातु अदछ जादहस ँ'शोभन', 'शोभा' आदि तत्सम

    तिा 'सोहना', 'सोहाओन' आदि तद्भव रूप बनैत अदछ । ब्रजमे सूदतकागारकँे 'सोभर' सेहो कहल जाइत अदछ।

    संस्कृतक 'शोकहर' शब्िस ँ सेहो सोहरक व्यतु्पदत्त सम्भव अदछ।'14 सादहदत्यक सोहर सेहो उपलब्ध अदछ

    जादहमे कृष्णजन्म वा राम-जन्मक वणषन भेिैत अदछ । सोहर मखु्यतुः बेिाक जन्मक अवसरपर, बेिाक

    उपनयनक अवसरपर, एतय धरर जे पतु्र दववाहोत्सवक अवसर पर सेहो गाओल जाइत अदछ । कतहु-कतहु

    पतु्रीक जन्मोत्सवपर सेहो सोहर गायनक प्रिा िेखल जाइत अदछ । मैदिली सोहर सभ अत्यन्त हृियस्पशी

    अदछ । अनेक सोहरमे पदतक अनुपदस्िदतकँे अत्यतं कदवत्वपूणष दित्रण कयल गेल अदछ । पमररया गीत, बक्खो

    गीत ओ झूला सेहो जन्मोत्सवक गीतक रूपमे प्रिदलत अदछ ।15 दमदिलामे सोहरक िू भास प्रिदलत अदछ -

    सामान्य सोहर तिा छन्िपरक सोहर । छन्िपरक सोहर, सामान्य सोहरस ँदभन्न शैलीमे गाओल जाइत अदछ ।

    एदहमे गेय पिक गायनक पश्चात छन्ि-पदंक्तक लयबद्ध पाठ कयल जाइत अदछ ।16 खेलौना गीत, सोहर भासक

    एक अन्य प्रकार दिक । हास-पररहास तिा उलहन-उपराग एदह गीतक मखु्य दवर्षय अदछ । जेना दक नामदहसँ

    स्पष्ट अदछ, ई गीत मनोरजंक होइत अदछ ।

    समिाउदन तिा उिासी- समिाउदन एकप्रकारक दविा गीत दिक । जे दवशेर्षतुः कन्याक दविा

    करबाकाल गाओल जाइत अदछ । उिासी सेहो करुण-रस प्रधान गीत दिक । उिासीमे नव-दववादहत वर

    (जमाय)क दविाकालक दवदध-व्यवहार तिा दवरह-वेिनाक मखु्यतुः दित्रण रहैत अदछ ।

    जोग-उदिदत- जोग-उदिदत मैदिली गीदतसादहत्यक दवशेर्ष दनदध दिक । योग दववाहक समय वर-

    कदनयाकँ स्नेह-बन्धनक उदे्दश्यस ँ गाओल जाइत अदछ । योगक प्रािीनतम स्वरूप दवद्यापदतक पिमे भेिैत

    अदछ। उदिदत गीत दवदशष्ट अभ्यागतक सत्कारमे गाओल जाइत अदछ ।

  • आधुनिक मैथिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/6

    मैदिली गीदत-परम्परामे पाबदन-दतहारस ँसम्बदन्धत गीतक प्रिरुता अदछ । दवदभन्न व्रतक अवसरपर

    गाओल जायबला गीत सभमे छदठ गीत, सामा गीत, साझँ गीत, मधशु्रावणी गीत, बररसादतक गीत, गौरीक गीत

    आदि प्रमखु अदछ ।

    िेवी-िेवताक गीतक रूपमे दमदिलामे अनेक प्रकारक आस्िामूलक गीतक प्रिलन अदछ । एदह कोदिमे

    ब्रह्म, भैरव, गोदवन्ि, हनुमान, दबसहरा, धमषराज, िाहा ओ अन्यान्य ग्राम्य िेवताक दनदमत्त गाओल जायबला

    गीत अबैत अदछ । प्राती, निारी, महेशवानी, दवष्णपुि, गङ्गागीत, गोसाउदनक गीत आदि भजनक कोदिमे

    अबैत अदछ । एहन गीत सभ धादमषक ओ सामादजक उत्सव दकंवा पाररवाररक शभु अवसरपर सामान्यतुः गाओल

    जाइत अदछ।

    समैया गीत अिवा ऋतु गीतक किा वस्तु मखु्यतुः पे्रम ओ तिज्न्य आकर्षषण, दवयोग, नैराश्य वा

    असंतोर्ष रहैत अदछ । िौमासा, छओमासा तिा बारहमासा प्रभदृत गीदतमे एकादधक ऋतुक वणषन होइत अदछ ।

    एदहमे प्रत्येक मासक दवशेर्ष अनुभूदत तिा नायक-नादयकाक परस्पर दवयोगक दित्रण रहतै अदछ । िैतावर, फाग,ु

    पावस, मलार ओ वसन्त अन्य ऋतुगीदत-प्रकार दिक जे मखु्यतुः पे्रमगीत दिक तिा मास दवशेर्ष दकंवा ऋतु-

    दवशेर्षमे गाओल जाइत अदछ ।

    लगनी एक प्रकारक श्रमगीत िीक जे दस्त्रगण द्वारा जातँ दपसैत काल गाओल जाइत अदछ । एदह गीतक

    मखु्य दवर्षय नायक-नादयकाक पे्रम होइत अदछ । ई गीत सभ शृगंार रस प्रधान होइत अदछ । गोिना गीतमे गोिना

    गोिबाबए कालक दस्त्रगणक पीड़ाक दित्रण रहैत अदछ ।

    दतरहुदत- मैदिली गीदत सभक मध्य दतरहुदत एक बहुिदिषत गीदत-प्रकार दिक । एदहमे मखु्यतुः शृगंाररक

    दवर्षय यिा-संयोग अिवा दवयोग होइत अदछ । एदह गीदत सभक अन्तमे 'ना', 'हो रे' अिवा 'सजनी गे' िेक

    सामान्यतया पाओल जाइत अदछ। गोआलरर दतरहुदत एक गोि प्रभेि दिक जादहमे मखु्यतुः गोपी सभक बीि

    कृष्णक लीलाक वणषन भेिैत अदछ ।

    मानगीत- मानगीतमे नायक-नादयकाक परस्पर रूसब-मनायब दिदत्रत रहैत अदछ । एहन गीत शृगंार-रस

    प्रधान होइत अदछ । कोनो-कोनो मानगीतमे नादयकाक सखी सभ रूसल नायक अिवा नादयकाक मान-मोिन

    हेतु अनुनय करैत छदि । मध्ययगुमे दवद्यापदत सदहत अनेक कदव लोकदन मानगीतक रिना कयलदन ।

    विगमनी-बिगमनी नादयकाक नायकस ँदमलन करबाक हेत,ु अदभसारक हेतु बाि िलबा कालक गीदत

    दिक । एदहमे 'सजनी गे' िेक रहैत अदछ । बिगवनी भासक प्रत्येक छन्िमे िारर िरण होइत अदछ । दकछु बिगवनी भासमे छन्िक प्रिम एवं तृतीय िरणक अन्तमे 'सजनी गे' िेक प्रयकु्त होइत अदछ त ँदकछु बिगवनीमे

    छन्िक प्रत्येक िरणक अन्तमे ।

    मैदिली सादहत्येदतहासमे गीदतकाव्यक परम्परा कमस ँ कम 1200 वर्षष प्रािीन प्रतीत होइत अदछ ।

    प्राकृत तिा प्राकृत-अपभ्रशं एदह परम्पराक आदिम स्रोत दिक तिा एकर प्रािीनतम स्वरूप ‘ियाषपि’, ‘प्राकृत

    पैंगलम’, ज्योदतरीश्वरक नािक ‘धूतषसमागम’ तिा आधदुनक भारतीय भार्षाक प्रािीनतम गद्यग्रिं 'वणषरत्नाकर'

  • आधुनिक मैथिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/7

    आदिमे उद्धृत अिवा वदणषत अदछ । ियाषपिकँे मैदिली गीदत-सादहत्यक प्रारदम्भक रिना मानल जाइत अदछ ।

    तेरहम शताब्िीमे ज्योदतरीश्वरक ‘वणषरत्नाकर’क प्रिम कल्लोल तिा छठम कल्लोलमे गीत-संगीतक दवशि

    वणषन भेल अदछ जादहमे शास्त्रीय आ लोक संगीत, िूनूक ििाष कयल गेल अदछ । वणषरत्नाकरमे वदणषत संगीत एव ं

    ‘धूतषसमागम’मे प्रयकु्त गीतस ँ मैदिली प्रािीन सादहत्यमे गीदत-तत्वक महत्ता प्रकि होइत अदछ; संगदह मैदिली

    सादहत्यमे गीदतकाव्यक प्रािीनता दसद्ध होइत अदछ ।

    मध्यकालमे लोकभार्षामे मखु्यतुः गीतेक रिना भेल । एदह यगुमे महाकदव दवद्यापदत तिा दहनक

    परवत्ती कदव लोकदनक दवदभन्न भाव-भूदमपर रदित गीत मैदिली सादहत्यक अमूल्य धरोहर दिक । दवद्यापदत

    ‘िेदसल वयना’मे जे पिावलीक रिना कयलदन तकर छन्ि, भास, धदुन, स्वर तिा शब्ि-दवन्यास आदि

    लोकजीवनस ँ अनुप्रादणत छल । दहनक रदित पिावली वस्तुतुः तत्कालीन समाजक िपषण दिक । दवद्यापदत

    रदित गीत समाजक प्रत्येक वगषमे प्रदतदष्ठत भेल तिा परम्परात एव ंसंस्कृतदनष्ठ सादहत्यक प्रदत स्िादपत लोक-

    मान्यताकँे सेहो ध्वस्त कयलक । ई गीत सभ मात्र दमदिले नदह अदपतु सम्पूणष पूवाांिलमे करीब छओ सय वर्षष

    धरर अपन प्रभाव बनओने रहल, जादहस ँ दवद्यापदतक अतुलनीय काव्य-प्रदतभाक अनुमान सेहो सहजदह ँ

    लगाओल जा सकैत अदछ ।

    मैदिली गीदत-सादहत्यक के्षत्रमे दवद्यापदतक प्रभाव बीसम शताब्िीक मध्य धरर स्पष्ट िेखल जा सकैत

    अदछ । उनैसम-बीसम शताब्िीमे कवीश्वर िन्िाझा मैदिली सादहत्यक आधदुनक कालक प्रणेता भेलाह ।

    दहनकदह द्वारा कयल गेल गीत-रिनाक संग मैदिलीक आधदुनक गीत-परम्पराक आरम्भ होइत अदछ । एदह यगुमे

    दवदभन्न सामादजक आन्िोलनक प्रभाव अन्यान्य भार्षा-सादहत्ये जका ँ मैदिली सादहत्यपर सेहो पड़ल आ एदह

    सादहदत्यक नवजागरणक सूत्रधारक रूपमे कवीश्वर िन्िाझा अपन गीत सभमे समाजक यिािष आ लोक

    अनुभूदतक सहज अदभव्यदक्तकँे समादहत कयलदन । पछादत मैदिलीक आधदुनक गीत-परम्पराकँे आगा ँबढयबामे

    अनेक गीतकार-कदव लोकदन अपन उल्लेखनीय योगिान िेलदन ।

    प्रािीन ओ मध्यकालीन यगुमे जदहना मैदिली गीदतकाव्य अपन िारूकातक समाजकँे आलोदड़त-

    आनदन्ित करैत रहल तदहना आधदुनको कालमे मैदिली गीदत मानवमनकँे स्पदन्ित-आनदन्ित कऽ रहल अदछ

    आ तादह लेल अपन स्वर, स्वरूप ओ त्वरामे सेहो दनरतंर पररवत्तषन-पररवद्धषन करैत रहल अदछ । ज्ञान-दवज्ञानक

    एदह यगुमे जखन दवश्वमानवता ओ दवश्वग्रामक कल्पना कयल जा रहल अदछ, मैदिली गीदतकाव्य सेहो जन-

    सामान्यक जीवन-यिािषक राष्रीय-अंतराषष्रीय पररपे्रक्ष्यमे अपनाकँे अनुकुदलत करबास ँ नदह िकुल अदछ ।

    राष्रवाि, रहस्यवाि, प्रगदतवाि, प्रयोगवाि ओ यिािषवाि आदि प्रवृदतकँे अगेँदज दवश्व-समिुायक सुरस ँ सुर

    दमला रहल अदछ ।

    एदह यगुमे गीदतकाव्यक माध्यमे समाजक मध्यदवत्तक अन्तद्वषन्द्व ओ संघर्षषक किा कहल जा रहल

    अदछ संगदह दवदभन्न सामादजक-राजनीदतक समस्याक समाधान सेहो तकवाक प्रयास कयल जा रहल अदछ

    जादहस ँसामान्य जन-जीवनक आशा-अदभलार्षा पूणष हो ।

  • आधुनिक मैथिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/8

    अतुः कदह सकैत छी जे आधदुनक मैदिली गीदतकाव्य मात्र जन-मनोरजंनािष नदह अदपतु सामादजक-

    सासं्कृदतक उन्नयनािष सेहो दलखल जा रहल अदछ । कहबाक प्रयोजन नदह जे एदह द्रतुगामी ओ ज्ञान-दवज्ञानक

    नवयगुमे एकर प्रयोजन ओ महत्व मानव सभ्यतामे सवाषदधक भऽ गेल अदछ । मैदिली गीत-सादहत्यक दवकास

    यात्राक दवर्षयमे डॉ. रमानन्ि झा 'रमण' दविार एकिम समीिीन बझुना जाइत अदछ जे- मैदिली गीत-सादहत्यक

    दवकास यात्राक अवलोकनस ँ स्पष्ट होइछ जे वतषमान शताब्िीक प्रारम्भस ँ गीत सादहत्यमे दवर्षय वस्तुक

    दवदवधता आबय लागल। गीतक अिष महेशवाणी, निारी अिवा सोहर-समिाउन वा दतरहुत-मलार नदह रहल।

    राष्रीय िेतनाक दवकासक अदभव्यदक्त सेहो होअए लागल । गीतक प्रयोजन केवल अवसर दवशेर्षपर गएवे धरर

    सीदमत नदह रहल, सूतल आ भकुआयल लोककँे जगयबाक साधन सेहो बदन गेल ।17

    सादहत्य के्षत्रमे नवगीतक नामकरण बीसम शताब्िीक सादठक िशकमे भेल । मैदिलीमे सेहो एदहस ँपूवष

    एहन नामकरण नदह भेिैत अदछ । मधपुजीक गीतमे जे भावगत ओ कलात्मक आधदुनकता ओ अदभनवता

    समादहत अदछ तादह आधारपर हुनका मैदिली नवगीतक आदिगरुू मानल जाइत छदन । मिुा, ई कहब

    अदतशयोदक्त नदह होयत जे कवीश्वरके गीत सभमे मैदिलीमे सभस ँ पदहने आधदुनक ओ नवगीतक प्रवृदतक

    समावेश भेिैत अदछ, जे बीसम शताब्िीक उत्तराद्धष अबैत-अबैत अपन स्वततं्र स्वरूप स्िादपत कयलक ।

    आस्िा, आक्रोश, आत्मालोिन, िाशषदनक दिन्तन, वैज्ञादनक दृदष्टकोण, आिंदलकता, पे्रम, दवरह, प्रकृदत-दित्रण

    समेत जीवनक प्रायुः प्रत्येक पक्षकँे नवगीत अपन स्वर िेलक । व्यवस्िाक दवसंगदत ओ राजनैदतक आ

    सामादजक मूल्यहीनताकँे अपन प्रदतपाद्य दवर्षय बनौलक । नवगीतमे दशल्पगत दृदष्टकोणस ँअनेक अदभनव प्रयोग

    भेल अदछ ।

    मैदिलीक आधदुनक गीदतकाव्य, मनुष्यक अन्यतम अनुभूदतक सहज अदभव्यदक्त दिक । जतय प्रािीन

    एव ं मध्ययगुमे मैदिली गीदतकाव्य संगीतशास्त्रस ँ आबद्ध छल ततय आधदुनक मैदिली गीदतकाव्य संगीत-

    शास्त्रीय जदिलतास ँ मकु्त अदछ । वस्तुतुः आधदुनक मैदिली गीदतकाव्य कदवक तीव्रतम भावादभव्यदक्त एवं

    सहज-सरल संगीतात्मकतास ँ अनुप्रादणत अदछ । नवगीतकार लोकदन पारम्पररक छन्िशास्त्र ओ सादंगदतक

    सूत्रस ँ फराक मात्र लयात्मकता ओ प्रवाहपूणष गेयात्मकताकँे प्रािदमकता िेलदन । एदह यगुमे सममादत्रक,

    दवर्षममादत्रक, तुकान्त, मकु्तक, ितुिषशपिी आदि अनेक प्रकारक गीदतक रिना भेल अदछ ।

    कहबाक आवश्यकता नदह जे गीदतकाव्य आधदुनक मैदिली सादहत्यक एक प्रमखु सादहदत्यक दवधा

    दिक । दवगत डेढ शतकमे आधदुनक मैदिली गीदतकाव्य प्रिूर मात्रामे रिल गेल अदछ । आधदुनक मैदिली गीत

    अपन दवर्षयगत ओ दशल्पगत अदभनवता ओ प्रयोगधदमषताक कारणे ँयगुीन दवर्षयवस्तुकँे, जीवनक जदिलताकँे

    आ व्यवहारगत दवसंगदतकँे सहज ओ लोकदप्रय ढंगस ँसम्पे्रदर्षत करबामे सक्षम भेल अदछ । यगुबोध, बौदद्धक िैतन्य, सासं्कृदतक दनष्ठा, राष्रीय िेतना, समदष्टमूलक आ मूल्यबोधक दवशेर्षता आधदुनक मैदिली गीतकँे

    मानवीय संवेिनशीलताक सरंक्षक बना िेलक अदछ । एदह व्यस्त यगुकँे गीदतकाव्यक यगु मानल गेल अदछ ।

    आधदुनक कालमे जतय मैदिली गीदतकाव्य रिनाक धारा अदवरल रहल अदछ ओतदह िोसर दिस एकर

    सादहदत्यक मूल्याकंनक दृदष्टकोणस ँकोनो महत्वपूणष काज नदह भेल अदछ । जे दकछु दिन्तक-समीक्षक लोकदन

  • आधुनिक मैथिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/9

    एदह काव्यदवधाक प्रदत अपन समीक्षा-समालोिना प्रस्तुत कयलदन अदछ तादहस ँ पदछला डेढ सय वर्षषक

    अन्तरालमे रदित मैदिली गीदतकाव्यक सवाांगीन मूल्याकंन सम्भव नदह भऽ सकल अदछ । पिीस-पिास वर्षष पूवष

    धरर मैदिली गीदतकाव्यक सन्िभषमे जे दकछु शोधपरक काज भेल अदछ सेहो मखु्यतुः प्रािीन कालीन ओ

    मध्यकालीन मैदिली गीदतकाव्य धरर दसदमत अदछ ।

    आजुक सन्िभषमे मैदिली गीदतकाव्यक महत्ताकँे समकलीन सादहत्य जगतमे उदित मूल्याकंन नदह भऽ

    सकल अदछ । इएह कारण दिक जे हमरा ई दवर्षय आकदर्षषत कयलक आ हम एदह दवर्षयक प्रारदम्भक अनुसंधान

    करबा लेल पे्रररत भेलहु ँ। तत्पश्चात् एदह दवर्षयक गहन अध्ययन-अन्वेर्षणक आवश्यकता बूदझ पड़ल । एदह शोध-

    कायषक सवषप्रधान उदे्दश्य इएह दिक जे आधदुनक मैदिली गीदतकाव्य आगामी कालमे मैदिली सादहत्यक नवीन

    पषृ्ठभूदम दलखय तादह लेल आजकु नवीन पीढीकँे एदह काव्य-दवधाक दवशेर्षतास ँअवगत कराय हुनका सभकँे

    एदहस ँजोड़ब ।

    एहनामे महत्वपूणष भऽ जाइत अदछ जे मैदिलीक आधदुनक गीदतक परम्परा, ओकर उद्भव ओ क्रमागत

    दवकास, ओकर वस्तुगत एवं दशल्पगत दवदवधता तिा दवशेर्षता एव ंएकर दिन्तन-धाराक गहन दववेिन-दवशे्लर्षण

    कयल जाए जादहस ँएकदिस जतय समकालीन मैदिली गीदतकाव्यक दवकासक आधार तैयार होयत ओतदह

    िोसर दिस एकर मूल्याकंनस ँभदवष्यक दिशा-दनिेश सेहो भेित ।

    प्रस्तुत शोध-प्रबधंकँे पूणषता िेबाक हेतु गीदतकाव्यक उद्भव ओ दवकास, भारतीय वाङ्मयमे गीदतकाव्यक

    दवकास, वैदिक यगुक गीदतकाव्यक दवशेर्षता आदिपर आगा ँििाष कयल जायत। । संगदह प्रािीन ओ मध्ययगुक

    मैदिली गीदतकाव्य-परम्पराक संदक्षप्त ओ पररियात्मक दवशे्लर्षण ओ दववेिन सेहो एदहमे समादहत करब । पनुुः

    दमदिलाक सामादजक-राजनैदतक पषृ्ठभूदमपर दविार करैत आधदुनक मैदिली गीदतकाव्यक भाव ओ कलापक्षक

    दवस्तृत दवशे्लर्षण प्रस्तुत कयल जायत जादहमे मखु्यत: िन्िाझा कालीन गीदतकाव्यस ँ लऽ कऽ समकालीन

    गीदतकाव्यक दवर्षयगत ओ काव्यगत वैदशष््टयकँे रेखादंकत- स्िादपत कयल जायत ।

    *****

    1 गीदतकाव्य का दवकास, प.ं लीलाधर दत्रपाठी 'प्रवासी', दहन्िी प्रिारक पसु्तकालय, वाराणसी, प.ृ-6 । 2 दहलकोर, ताराकान्त झा, कल्याणी लेजर, कोलकाता, 2015, प.ृ-23 मे उद्धृत । 3 आधदुनक दहन्िी गीदतकाव्य का स्वरूप और दवकास, डॉ. आशा दकशोर, दवश्वदवद्यालय प्रकाशन, वाराणसी,

    प.ृ-1-2 । 4 The lyric is the most interesting form of poetry that we have. It affects more human beings than any other kind. It is elemental. It is undoubtedly the first type of poetry that

    was ever evolved, the type out of which sprang all the others. For what is the lyric when

    you come to analyse it? It is the simplest and most natural literary expression of unmixed

  • आधुनिक मैथिली गीनिकाव्य ओ परम्परा/10

    emotion- usually the emotion of an individual. It may be personal, or religious, or

    amatory, or patriotic; but in the beginning it must have been removed by only one stage

    from cries, ejaculations, shouts primitive expressions of pure feeling. Now, just as, all

    over the world, a cry of passion or of pain is understood by every human being, so is the

    lyric the nearest literary representative of an inarticulate cry.

    Studies in Several Literature, H. T. Peck, Dodd Mead and Company, 1909, P.70 ( The

    Lyrics of Tennyson). 5 आधदुनक गीदतकाव्य, सदच्ििानंि दतवारी, प.ृ-1-2 । 6 उपयुषक्त, प.ृ-2 । 7 संस्कृत गीदत-काव्य का दवकास, डॉ. परमानन्ि शास्त्री, प्रकाशन प्रदतष्ठान, मेरठ, प.ृ-3 । 8 Music when combined with a pleasurable idea, is Poetry, Music, without the idea, is

    simply music, the idea, without the music, is prose, from its very definiteness. An

    anthology of critical statement, p.-69. आधदुनक दहन्िी गीदतकाव्य का स्वरूप और दवकास, प्ूवोक्त-

    3, प.ृ-4 मे उद्धृत ।

    9 पूवाांिलीय गीदत सादहत्य, प.ं गोदवन्ि झा (सं.), िेतना सदमदत, पिना, प.ृ-1-2 । 10 आधदुनक दहन्िी गीदतकाव्य का स्वरूप और दवकास, प्ूवोक्त-3, प.ृ-4 । 11 प्रगीत, रवीन्द्रनाि ठाकुर, भूदमका, प.ृ- ii. 12 दमदिलाक लोक सादहत्यक भूदमका, डॉ. जयकान्त दमश्र, (मै.अ.-डॉ. रेवती दमश्र), प.ृ- 83 । 13 दमदिला-संगीतक भास पद्धदत, डॉ. कदवता कुमारी, दमदिला ररसिष सोसाइिी, कदबलपरु, 2013, प.ृ-70 ।

    14 मैदिलीमे व्यवहार गीत, लोकनाि दमश्र, दसंहवाड़ा, िरभगंा, 1970, प.ृ-44 । 15 उपयुषक्त, प.ृ- 89-90 । 16 दमदिला-संगीतक भास पद्धदत, पूवोक्त-13, प.ृ-69 ।

    17 मैदिली सादहत्य ओ राजनीदत, डॉ. रमानन्ि झा 'रमण', अदखयासल प्रकाशन लालगजं-1994, प.ृ-94 ।

  • आधुनिक मैनिली गीनिकाव्य ओ परम्परा /11

    प्रिम अध्याय: गीनिकाव्यक उद्भव ओ नवकास

    वर्त्तमान यगुमे काव्यक जे अनेक ववधा प्रचवित अवि, प्रायः सभक उद्भवक जव़ि मानव सभ्यताक

    आविम यगु धरि पसिि अवि । तविना गीवतकाव्यक उद्भवक सूत्र सेिो आजुक सभ्य जावतक आविकािीन

    सभ्यतामे भेटैत अवि । ववश्वक कोन-कोनमे वास किैत आविवासी समिुायक संस्कािमे आइयो नतृ्य-गीत तथा

    ताविस ँ सम्बद्ध पािम्परिक संगीतक जे चिवन भेटैत अवि, वास्तवमे से गीवतकाव्यकँे आविम यगुक प्रथम

    साविवत्यक ववधा-रूपमे पवुि कितै अवि । जेना आइ आविवासी समाजक सामावजक उत्सवक आनन्ि वकंवा

    कोनो ववपवर्त्क वस्थवतमे वा िःुखेक अवभव्यविक क्षणमे जािू-टोना, धावमतक-अनषु्ठान, नतृ्य-गीत आविक

    समवेत िेखबामे अबैत अवि, तविना आजकु सभ्य जावतक आविम समाजमे एिन सन पिम्पिा ििि िोयत, आ

    एिी आविकािीन सामवुिक नृत्य-गीतक भाषागत अवभव्यंजना कािान्तिमे गीवतकाव्यक रूपमे ववकवसत िोइत

    गेि अवि ।

    मानव सभ्यताक आिवम्भक चिणमे नतृ्य-गीतक अववविन्न पिम्पिाक सम्बन्धमे डेनमाकत क प्रवसद्ध

    ववद्वान 'वोमे'क एक गोट मित्त्वपूणत कथन िवन जे- एवि यगुमे नतृ्यक वबना गीत वा गीतक वबना नतृ्य सम्भव नवि

    िि । गीवत-पिम्पिाक मूि रूप नतृ्यमे प्रयुि गीते िि ।1

    ववकासक क्रममे गीतक संग नतृ्यक अवनवायतता समाप्त िोइत गेि । गीत नतृ्यस ँमिु िोइत गेि आ

    समवेत गायन (कोिस) आ समूिगानक पिम्पिा ववकवसत भेि । एवि समूिगानक आिम्भ 'टेक पद्धवत'स ँभेि।

    फवडतन वोल्डक अनसुाि- टेक ओतबे प्राचीन अवि जतेक मानव जावतक कववता । आविम यगुमे त ँमखु्य रूपस ँ

    पूजा, सिभोग, नतृ्य, क्री़िा या अन्य प्रािवम्भक उत्सवक अवसिपि गीतक भीति केि "टेक"क माध्यमेस ँ

    समिुाय प्रत्यक्ष रूपस ँगायनमे भाग िैत िि ।2

    "टेक पद्धवत"क अन्तगतत एकटा मखु्य गबैया आगा-ँआगा ँ गबैत िवथ आ संगतकाि िोकवन िुनकि

    गाओि पि वकंवा गीतक स्थायी पिकँे बीच-बीचमे िोििबैत अवि । जविया एवि गान-पद्धवतक अवधािणा भेि

    िोयत, तविया एकि एकटा व्याविारिक पक्ष इिो िि िोयतैक जे टेककर्त्ात अथवा संगतकाि जखन टेक

    िोििबैत िोयत तखन मखु्य गबैयाकँे ववश्रामक अवसि भेटैत िेतवन ।

    गीवतकाव्यक एवि आविकािीन गायन पद्धवतपि प्रकाश िैत डॉ. वमयि (Dr.Meyer) किैत िवथ जे-

    कववताक आविस्वरूप वा आविगीत, आविम मानवक अववववक्षत िो-िल्िा मात्र िि । भय, आनन्ि, िःुख

  • आधुनिक मैनिली गीनिकाव्य ओ परम्परा /12

    अथवा पे्रमक आवेगात्मक भाव जखन संगीतात्मक ध्ववन वक ध्ववन-समूिक रूपमे अनचोकेमे अनायास

    अवभव्यि भेि त ँ से अवभव्यवि िो-िल्िाक रूपमे िि । पिवर्त्ी यगुक धावमतक काव्यिुमे अववशि रूपमे

    वततमान िि । अन्ति एतबे िि जे एवि ववकवसत रूपबिा गीतमे ववववक्षत शब्िक समावेश भऽ गेि िि ।3

    आिवम्भक िोककाव्य, गीवतकाव्य अथवा गाथाकाव्यक िचना सवुवचारित नवि िोइत िि, बवल्क

    आकवस्मक िोइत िि । कोनो अवसि ववशेषपि, गबैया उपवस्थत श्रोता समाजक बीच स्वतःस्फूतत, तत्काि

    िवचत िचना गबैत ििाि । एवि प्रकाि तावि समयमे कववताक जे वववभन्न मौवखक संस्किण तैयाि िोइत िि,

    से सवुनयोवजत वा सवुवचारित नवि । एवि िचना सभक प्रािम्भ तथा समापनक कोनो ववधान वनवित नवि िि ।

    गायक स्वकवल्पत वकंवा कोनो आन गबैयाक मुिेँ सनुि-वसखि िचनाकँे अपना विसाबे जोव़ि-तोव़ि कऽ गबैत

    ििाि आ ते ँएवि काव्य सभमे कोनो ववषयगत मौविकता सेिो नवि ििैत िि ।

    'टेन वरंक्स' मिोियक अनुसाि- तावि समयमे काव्य वनमातणक नवि, पनुवनतमातणक वस्तु िि । िचनाक

    कोनो वनवित शैिी वा संिचना नवि िोइत िि । तावि यगुक िोककँे िचना आ िचनाकािक शावब्िक अथतिुक

    भान नवि िि ।4 किबाक आवश्यकता नवि जे तावि समयमे एिन काव्यक िेतु आ प्रयोजन िनूु सामावजक

    िि, व्यविगत नवि ।

    उपि ववणतत 'टेक पद्धवत'क गायन प्रारूप आ गीवतकाव्यक िचना ओ गायनक अववचारित पिम्पिा

    आइयो ववश्वभरिमे वववभन्न रूपमे जीववत अवि । वर्त्तमान समयमे वववभन्न िोकगाथामे गीत, नतृ्य आ टेकक

    समवेत रूपमे गीवतकाव्यक आविम पिम्पिाक अववशि भेटैत अवि । स्केन्डनेववयाक कबीिा सभमे स्विवचत

    काव्यक सावतजवनक गायन पिम्पिा अवि । आइसिैण्ड, इटिी, नावे आवि िेशमे तविना गीत-प्रवतद्वंविता ओ

    आशकुववत्वक चिवन अवि । भाितीय पिम्पिामे कजिी आ वबििा िगंि एकि जीवंत उिाििण वथक । एवि

    िगंि सभमे भाग िेवनिाि गायक िोकवनक आशकुववत्व उपवस्थत श्रोता समाजकँे आइयो आियतचवकत कितै

    अवि ।5

    मैवथिी गीवत-सावित्यक उद्भव ओ ववकासक प्रसंग सेिो डॉ. िगुातनाथ झा 'श्रीश' अपन ववचाि व्यि

    कितै किैत िवथ- मैवथिी सावित्यक उद्गम ओ ववकास िोकसावित्यविक रूपमे भेि...मैवथिीक अवधकांश

    सावित्य गीतमय अवि। कोनिु ँभाषाक िोकसावित्य गीतमय िोइत अवि, जकि कािण वथक मानव जावतएटामे

    नवि, मानवेर्त्ि जीविुमे नतृ्य-गीतक सिजात प्रववृर्त् । भाषा वसखबाक पूवतविस ँमनषु्य गान ओ अनकुिण किब

    आिम्भ किैत अवि ओ भाषा वसखबाक पिात् गीतक माध्यम भाषा भए जाइि । सभ्यताक ववकास क्रममे गीत

    परिमावजतत िोइत गेि ओ कववताक स्वरूप धािण कितै गेि । कािक्रमे गीत ओ कववता वभन्न-वभन्न वस्त ु

    बझुि जाए िागि...।6

    गीनिकाव्यक पररभाषा

    वैविक यगुस ँअद्याववध गीवतकाव्यक वशल्पक ववकास-यात्रा मात्र प्राचीन भाितीय वाङ्मय नवि अवपतु

    कािान्तिमे वववभन्न भाितीय तथा योिोपीय भाषा-सावित्यस ँप्रभाववत भेि अवि । आधवुनक यगुमे 'गीवत' आ

    'गीत' पर्ययातय रूपमे व्यवहृत िोइत अवि जे अंगे्रजी भाषाक Lyrics क भाषान्ति वथक ।

  • आधुनिक मैनिली गीनिकाव्य ओ परम्परा /13

    काव्यक आने-आन ववधा जका ँगीवतकाव्यक सेिो कोनो सवुनवित आ सवतमान्य परिभाषा नवि भेटैत

    अवि । 'गीिं हन्यिे काव्य, काव्य ंहन्यिे शास्त्रम'् उविक आधािपि वकिु ववद्वान िोकवनक इिो मान्यता िवन

    जे काव्यशास्त्री िोकवन गीवतकाव्यकँे संगीतक अंग मावन एकि स्वरूप ओ संिचना आविपि समवुचत ववचाि नवि

    कयिवन तथा एकिा अवडेरि कऽ 'नाट्यशास्त्र'क अन्तगतत िाखि गेि । मिुा कािान्तिमे, प्राच्य ओ पािात्य

    जगतक अनेक मनीषी िोकवन गीवतकाव्यकँे परिभावषत किबाक प्रयास कयिवन अवि ।

    भाितीय वाङ्मयमे आचायत िोकवन काव्यकँे िू भेि कििवन अवि- दृश्य तथा श्रव्य काव्य । पनुः श्रव्य

    काव्यकँे प्रबन्ध आ मिुक िू भेि किि गेि अवि । मुिक काव्य िसवसद्ध काव्य वथक ।7 आधवुनक कािमे

    ववद्वान िोकवन, मिुक काव्यक िू भेि कििवन अवि- पाठ्य आओि गेय । इएि गेय मिुक वस्तुतः गीवतकाव्य

    वथक । प्राचीन मिुक काव्य ववशेषतः शृंगारिक तथा वीि िस प्रधान मिुकमे अनभूुवतक सघनता ओ तीव्र

    भावात्मकता आवि गीवतकाव्यक वैवशष्यट्यक समावेश भेटैत अवि । अतः आधवुनक गीवतकाव्य, वस्ततुः

    प्राचीन मिुक-पिम्पिाक ववकवसत स्वरूप वथक ।

    पािात्य सावित्य-जगतमे गीवत'क समानाथी यनुानी शब्ि 'Lyric’ वथक, जकि शावब्िक अथत िोइत

    अवि-'ओ काव्य जे िायि बाजाक संग गाओि जा सकय' । एवि संबधं वशप्िे मिोिय विखैत िवथ-"ओिन

    कववता जकिा िायि बाजाक संग गाओि जा सकय ।8 तविना ई. गोसे मिोिय ‘Encyclopidia-Britanika-

    Vol.16, P.-180-8’ मे ‘Lyrical Poetry’ अथातत् गीवतकाव्य शीषतक परिच्िेिमे विखैत िवथ- “गीवतकाव्य

    सामान्य काव्य िेत ुप्रयिु पारिभावषक शब्ि वथक, जे कोनो गीवत-वाद्यक संग गाओि जा सकय ।”9

    उपिोि िनूु परिभाषामे गीवतकाव्य'क प्रधान तत्व ओकि गेयधवमतता मानि गेि अवि । मिुा, डॉ.

    चाल्सत वमल्स मिोिय गीवतकाव्यक वस्तगुत वववशिता; मानवीय संवेिना यथा इच्िा, संवेग, भावना आविक

    संवािक रूपमे प्रधानता िैत िवथ आ एिन काव्य-तत्वकँे गीवतक मखु्य वैवशि्य मानबाक संकेत किैत िवथ-

    वस्ततुः गीवतकाव्येकँे कववता किि जा सकैत अवि । कोनो कृवत ववशेषमे काव्यात्मकता जतेक बेसी िोइत

    अवि ओ तािी अनपुातमे गीतात्मक िोइत अवि । नाटक जतेक अवधक काव्यात्मक िोयत, ओ ओतबे गीवत

    तत्वस ँपूणत िोयत। मिाकाव्य जतबा अवधक काव्यात्मक िोयत, ओ ओतबे गीतात्मक िोइत अवि ।10

    अंगे्रजी भाषाक प्रवसद्ध समािोचक पािगे्रव मिोिय गीवतक गेयधवमतता ओ ओकि वस्तपुिकताक संगवि

    िघतुा तथा गवतशीिताकँे अथवा भाव शृंखिामे परिवर्त्तन िेतु आ ववषय-वस्तकु प्रभावी सम्पे्रषण िेत ुगवतक

    त्विाकँे एकि प्रमखु वववशिता मानैत विखैत िवथ-गीवतकाव्य कोनो ववचाि, अनभूुवत अथवा मनःवस्थवतक

    वचत्रण अवि, जाविमे संवक्षप्तता, मानवीय भावनाक अिंकृत अवभव्यंजना तथा गवतशीिता िोयब आवश्यक

    अवि।11

    आविम यगुमे सम्पूणत समाज व्यविक समान इकाई िि, मिुा उर्त्िोर्त्ि यगुमे व्यविवािक ववकास

    भेि। व्यविगत ववचाि, संवेग, भावना, आत्मानभूुवतक अवभव्यविक कािणे गीवतकाव्य आत्मपिक िोइत गेि ।

    समस्त वस्त-ुवणतन, व्यविवनष्ठ िागात्मकताक संग गीवतकाव्यक मौविक ववशेषता बवन गेि । प्रवसद्ध जमतन

    ववद्वान GWF Hegel गीवतकाव्यक तीनटा आवश्यक तत्त्व मानैत िवथ- काव्यक अन्तवतस्त ु(Content), एवि

  • आधुनिक मैनिली गीनिकाव्य ओ परम्परा /14

    अन्तवतस्तकु वणतनक वनवित प्रारूप (Form) आ जीव-जगतक प्रवत व्यविक स्वतःस्फूर्त्त चेतना (Conscious)

    जावि माध्यमे व्यविवनष्ठ अनुभूवत वा ववचाि िागात्मक अवभव्यंजनाक रूपमे प्रसारित भऽ सकय । वणतनात्मक

    काव्य वक मिाकाव्यस ँफिाक गीवतकाव्यक वववशिता व्यि कितै ओ विखैत िवथ- गीवतकाव्यक कवव जगतक

    समस्त तत्त्वकँे अपनामे समावित किैत अवि । अपन वैयविक भावक प्रभावस ँएकिा पूणततः आत्मसात कितै

    अवि आ एवि आत्मपिकताकँे सिुवक्षत िाखऽ बिा शैिीमे अवभव्यि किैत अवि ।12

    विन्िी भाषाक प्रवसद्ध सावित्यकाि मिािेवी वमातक अनुस�