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भारत के संविधान की विशेषताएँ बहंचयनाक ʲ ʲ 1. भारतीय संविधान को संविधान सभा ारा अंगीकार वकया गया (अ) 1 मई 1947 (ब) 9 दिसɾर 1946 (स) 26 नवɾर 1949 (ि) 26 जनवरी 1950 ʲ 2. भारत के संविधान म अनुछेद ह (अ) 150 (ब) 395 (स) 360 (ि) 147 ʲ 3. नीवत वनदेशक त वकस द ेश के संविधान से विए गए ह (अ) इंै (ब) रंस (स) आयरलै (ि) ऑːरेदलयʲ 4. राों म संिैधावनक संकट उ होने पर राʼ पवत शासन संविधान के वकस अनुछे द के तहत िगाया जाता है? (अ) अनुछेि 352 (ब) अनुछेि 356 (स) अनुछेि 362 ʲ 5. 42ि संविधान संशोधन ारा ˑािना म वकन शों को जोडा गया है (अ) गणर(ब) समरजवरिी, पंथ दनरपे तथर अखतर को (स) लोकतं (ि) बɀु
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भारत के संविधान की विशेषताएँ - SelfStudys

Feb 27, 2023

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Khang Minh
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Page 1: भारत के संविधान की विशेषताएँ - SelfStudys

भारत के संविधान की विशेषताएँ

बहंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. भारतीय संविधान को संविधान सभा द्वारा अंगीकार वकया गया

(अ) 1 मई 1947

(ब) 9 दिसम्बर 1946

(स) 26 नवम्बर 1949

(ि) 26 जनवरी 1950

प्रश्न 2. भारत के संविधान में अनुचे्छद हैं

(अ) 150

(ब) 395

(स) 360

(ि) 147

प्रश्न 3. नीवत वनदेशक तत्व वकस देश के संविधान से विए गए हैं

(अ) इंगै्लण्ड

(ब) फ्रंस

(स) आयरलैण्ड

(ि) ऑस्ट्र ेदलयर

प्रश्न 4. राज्ो ंमें संिैधावनक संकट उत्पन्न होने पर राष्ट्र पवत शासन संविधान के वकस अनुचे्छद के

तहत िगाया जाता है?

(अ) अनुचे्छि 352

(ब) अनुचे्छि 356

(स) अनुचे्छि 362

प्रश्न 5. 42िें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तािना में वकन शब्ो ंको जोडा गया है

(अ) गणररज्य

(ब) समरजवरिी, पंथ दनरपेक्ष तथर अखण्डतर को

(स) लोकतंत्र

(ि) बनु्धत्व

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प्रश्न 6. भारत की संविधान की प्रस्तािना में प्रयुक्त “हम भारत के िोग” िाक्ांश से तात्पयय है

(अ) संदवधरन सभर के सिस्य।

(ब) प्रररूप सदमदत के सिस्य

(स) स्वतंत्रतर सेनरनी

(ि) संदवधरन को स्वीकरर करने वरले भररत के नरगररक

प्रश्न 7. प्रस्तािना न्याय का स्वरूप है

(अ) सरमरदजक न्यरय

(ब) आदथिक न्यरय

(स) ररजनीदतक न्यरय

(ि) उपयुिक्त स सभी।

उत्तर:

1. (स), 2. (ब), 3. (स), 4. (ब), 5. (ब), 6. (ि), 7. (ि)।

अवत िघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. भारतीय संविधान के वनमायण में वकतना समय िगा?

उत्तर: भररतीय संदवधरन के दनमरिण में 2 वर्ि 11 मरह व 18 दिन लगे।

प्रश्न 2. भारतीय संविधान में वकतनी अनुसूवचयाँ हैं?

उत्तर: भररतीय संदवधरन में 12 अनुसूदियराँ हैं।

प्रश्न 3. भारत के संविधान की प्रस्तािना से क्ा अवभप्राय है?

उत्तर: भररत के संदवधरन की प्रस्तरवनर एक ऐसर प्रलेख है दजसके अंतगित संदवधरन के मौदलक उदे्दश्ो ंव

लक्ष्ो ंको िर्रियर गयर है। इसे संदवधरन की आत्मर भी कहर जरतर है।

प्रश्न 4. संविधान में अब तक वकतने संशोधन वकये जा चुके हैं?

उत्तर: संदवधरन में अब तक 101 संर्ोधन दकये जर िुके हैं।

प्रश्न 5. “प्रस्तािना संविधान की पे्ररणा और प्राण है” क्ो?ं

उत्तर: प्रस्तरवनर को संदवधरन की पे्ररणर व प्ररण इसदलए कहर जरतर है योंोदंक प्रस्तरवनर संपूणि संदवधरन की

आधररदर्लर है दजस पर संदवधरन दिकर हुआ है। इसके अभरव में संदवधरन कर कोई महत्व नही ंहै।

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प्रश्न 6. सिोच्च न्यायािय के मुख्य न्यायाधीश की वनयुक्तक्त वकसके द्वारा की जाती है?

उत्तर: सवोच्च न्यरयरलय के मुख्य न्यरयरधीर् की दनयुक्तक्त स भररत के ररष्ट्र पदत द्वररर दकयर जरतर है।

प्रश्न 7. देश के वकसी वहसे्स में सशस्त्र विद्रोह की क्तथिवत में वकस अनुचे्छद के तहत आपातकाि

िागू वकया जाता है?

उत्तर: िेर् के दकसी दहसे्स में सर्स्त्र दवद्रोह की क्तथथदत में अनुचे्छि 352 के तहत आपरतकरल लरगू दकयर

जरतर है।

प्रश्न 8. प्रस्तािना में समाजिाद शब् वकस सांविधावनक संशोधन द्वारा जोडा गया है?

उत्तर: प्रस्तरवनर में समरजवरि र्ब्द 42 वें सरंदवधरदनक संर्ोधन के द्वररर जोडर गयर है।

िघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. भारत के संविधान की कोई पाँच विशेषताएँ बताइए।

उत्तर: भररतीय संदवधरन की दवरे्र्तरएाँ - भररतीय संदवधरन की पराँि दवरे्र्तरएाँ दनम्नदलक्तखत हैं

1. सम्प्रभुतर सम्पन्न संदवधरन -भररत कर संदवधरन प्रभुसत्तर पर आधरररत संदवधरन है। यह भररतीय

जनतर द्वररर दनदमित है तथर अंदतम र्क्तक्त स भररतीय जनतर को प्रिरन की गई है।

2. कठोरतर व लिीलेपन कर दमश्रण – भररतीय संदवधरन कठोरतर व लिीलरपन कर दमश्रण है अथरित

इसमें िेर् की पररक्तथथदतयो ंमें बिलरव के सरथ ही संवैधरदनक संर्ोधन दकयर जर सकतर है।

3. दवश्वर्रंदत कर समथिक – भररतीय संदवधरन दवश्व र्रंदत कर समथिक है। इसीकररण उसने पंिर्ील

व गुिदनरपेक्ष नीदत कर समथिन दकयर है।

4. दवलक्षण िस्तरवेज – भररतीय संदवधरन एक दवलक्षण िस्तरवेज है दजसमें आधररभूत मूल्ो ंव

सवोच्च आकरक्षरओ ंको थथरन दियर गयर है।

5. स्वतंत्र न्यरयपरदलकर – संदवधरन में प्रजरतंत्र की रक्षर व जनतर के मौदलक अदधकररो ंकी सुरक्षर के

दलए स्वतंत्र न्यरयपरदलकर की व्यवथथर की गई है।

प्रश्न 2. संविधान में ियस्क मतावधकार से क्ा तात्पयय है?

उत्तर: संदवधरन में वयस्क मतरदधकरर से तरत्पयि-वयस्क मतरदधकरर के तरत्पयि को दनम्न आधररो ंपर स्पष्ट्

दकयर जर सकतर है

1. वयस्क मतरदधकरर के दलए यह आवश्क है दक व्यक्तक्त स भररत कर नरगररक हो।

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2. दकसी भी व्यक्तक्त स की दजसकी आयु 18 वर्ि है यर वह यह आयु पूरी कर िुकर है उसे मतरदधकरर

प्रिरन दकयर गयर है।

3. िेर् में मदहलर व पुरुर् िोनो ंको ही समरन रूप से मतरदधकरर करने कर हक प्रिरन दकयर गयर है।

4. कोई भी व्यक्तक्त स िरहे दकसी भी जरदत,धमि यर दलंग कर हो उसे मत िेने कर अदधकरर प्ररप्त है।

5. वयस्क मतरदधकरर की आयु पहले 21 वर्ि थी जो 61 वे संदवधरन संर्ोधन द्वररर घिरकर 18 वर्ि कर

िी गई ।।

प्रश्न 3. पंिवनरपेक्ष राज् से क्ा अवभप्राय है?

उत्तर: पंथ दनरपेक्ष ररज्य से अदभप्ररय-श्री वेंकिरमन के अनुसरर-पंथ दनरपेक्ष ररज्य न तो धरदमिक है न

अधरदमिक, न धमि दवरोधी है बक्ति धरदमिक करयों व दसद्धरतो ंसे सविथर पृथक है।

धरदमिक मरमलो ंमें सिर तिथथ है। प्रते्यक व्यक्तक्त स को अपनर धमि िुनने व उसकर परलन करने कर अदधकरर

है।

” भररतीय संदवधरन के अनुचे्छि 25 के अनुसरर धमि के के्षत्र में प्रते्यक नरगररक को स्वतंत्रतर प्रिरन की गई

है।

धमि के आधरर पर दकसी भी नरगररक से भेिभरव नही ंदकयर जर सकतर तथर ररज्य कर अपनर कोई धमि नही ं

होतर। वह तो सविधमि समभरव पर आधरररत व्यवथथर है।

धरदमिक मरमलो ंमें ररज्य ने एक तिथथ दृदष्ट्कोण को अपनरयर है, न तो दकसी धमि दवरे्र् को ररज्य ने स्वयं

कर धमि मरनर है न ही दकसी समुिरय दवरे्र् को धरदमिक प्रश्रय दियर गयर है।

42 वें संदवधरन संर्ोधन द्वररर संदवधरन में “पंथ दनरपेक्ष” र्ब्द को जोडर गयर है।

प्रश्न 4. प्रस्तािना को विक्तिए।

उत्तर: प्रस्तरवनर – भररतीय संदवधरन की प्रस्तरवनर’ दनम्नदलक्तखत है

“हम भररत के लोग, भररत को एक समू्पणि प्रभुत्व सम्पन्न, समरजवरिी, पंथ दनरपेक्ष, लोकतंत्ररत्मक गणररज्य

बनरने के दलए तथर उसके समस्त नरगररको ंको सरमरदजक, आदथिक और ररजनीदतक न्यरय दविरर

अदभव्यक्तक्त स, दवश्वरस, धमि और उपरसनर की स्वतंत्रतर, प्रदतष्ठर और अवसर की समरनतर प्ररप्त करने के दलए

तथर उन सबमें व्यक्तक्त स की गररमर और ररष्ट्र की एकतर और अखण्डतर सुदनदित करने वरली बंधुतर बढरने के

दलए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संदवधरन सभर में आज तररीख 26 नवम्बर 1949 ई. (दमदत मरगिर्ीर्ि

रु्क्ल सप्तमी, सम्वत् 2006 दवक्रमी) को एति् द्वररर इस संदवधरन को अंगीकृत, अदधदनयदमत और

आत्मरदपित करते हैं।”

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प्रश्न 5. संविधान में आपातकािीन उपबंधो ंसे संबंवधत अनुचे्छद विक्तिए।

उत्तर: संदवधरन में आपरतकरलीन उपबन्धो ंसे सम्बक्तन्धत अनुचे्छि – भररतीय संदवधरन के भरग 18 में

ररष्ट्र पदत के संकिकरलीन प्ररवधरनो ंकर वणिन दकयर गयर है, जो दनम्नदलक्तखत हैं

1. अनुचे्छि 382 के अनुसरर यदि ररष्ट्र पदत को दवश्वरस हो जरए दक युद्ध, बरह्य आक्रमण यर सर्स्त्र

दवद्रोह के कररण भररत की सुरक्षर खतरे में है तो समस्त िेर् में यर िेर् के दकसी एक भरग में वह

आपरत क्तथथदत की घोर्णर कर सकतर है।

2. अनुचे्छि 356 के अनुसरर यदि ररष्ट्र पदत को ररज्य के ररज्यरपरल यर दकसी अन्य सरधन द्वररर सूिनर

दमलने पर यह दवश्वरस हो जरए दक उस ररज्य में ऐसी क्तथथदत उत्पन्न हो गई है दजसमें ररज्य कर

र्रसन संवैधरदनक प्ररवधरनो ंके अनुसरर नही ंिलरयर जर सकतर है तो ररष्ट्र पदत आपरतकरल की

घोर्णर कर सकतर है।

3. अनुचे्छि 360 के अनुसरर यदि ररष्ट्र पदत को दवश्वरस हो जरए की ऐसी क्तथथदत उत्पन्न हो गई है दजसके

कररण भररत यर,इसके दकसी भरग की दवत्तीय क्तथथरतर संकि में है तो वह उस समय दवत्तीय संकि

की घोर्णर कर सकतर है।

प्रश्न 6. “भारतीय संविधान कठोरता ि िचीिेपन का वमश्रण है।” इस पर संवक्षप्त वटप्पणी विक्तिए।

उत्तर: संवैधरदनक संर्ोधन के दलए भररतीय संदवधरन में संर्ोधन दवदध अनुचे्छि 368 में िी गई है।

संदवधरन में संर्ोधन व्यवथथर कुछ भरगो ंके सम्बन्ध में कठोर तो कुछ में लिीली रखी गई है।

संदवधरन में कठोरतर कर समरवेर् संयुक्त स ररज्य अमेररकर के संदवधरन व लिीलेपन कर समरवेर् दििेन के

संदवधरन से दकयर गयर है। भररतीय संदवधरन में संर्ोधन की तीन दवदधयराँ हैं

1. संदवधरन के कुछ भरगो ंमें संसि के िोनो ंसिनो ंके सरधररण बहुमत से संर्ोधन दकयर जर सकतर

है; जैसे-ररज्यो ंकर पुनगिठन, ररज्यो ंमें दवधरन पररर्ि की थथरपनर यर समरक्तप्त। यह दवदध संदवधरन

के लिीलेपन को िर्रिती है।

2. भररत के संदवधरन के कुछ अनुचे्छिो ंको संर्ोदधत करने के दलए संसि के िोनो ंसिनो ंके पूणि

बहुमत एवं उपक्तथथत सिस्यो ंके िो-दतहरई बहुमत की आवश्कतर होती है। संदवधरन के भरग 3

एवं 4 के अनुचे्छि इस शे्रणी में आते हैं।

3. संदवधरन के कुछ अनुचे्छिो ंमें संर्ोधन के दलए संसि के िोनो ंसिनो ंके पूणि बहुमत, उपक्तथथत

सिस्यो ंके िो-दतहरई बहुमत एवं आधे ररज्यो ंके दवधरनसभरओ ंके समथिन की आवश्कतर होती

है।

ररष्ट्र पदत की दनवरििन की पद्धदत, केन्द्र एवं ररज्यो ंके बीि र्क्तक्त स दवभरजन आदि इस शे्रणी में आते

हैं। उक्त स दवदधयराँ संदवधरन की कठोरतर को िर्रिती हैं।

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प्रश्न 7. िोकतंत्रात्मक गणराज् से क्ा अवभप्राय है?

उत्तर: लोकतंत्ररत्मक गणररज्य से अदभप्ररय – लोकतंत्ररत्मक गणररज्य कर अदभप्ररय है- भररत में जनतर यर

लोग र्रसन सत्तर के अक्तिम स्त्रोत हैं। सरकरर लोगो ंकी, लोगो ंके द्वररर और लोगो ंके दलये है। भररत में

ररजसत्तर कर प्रयोग जनतर द्वररर दनवरिदित प्रदतदनदध करते हैं और वे जनतर के प्रदत उत्तरिरयी होते हैं।

संदवधरन सभी को सरमरदजक, आदथिक व ररजनीदतक न्यरय कर आश्वरसन िेतर है। गणररज्य से अदभप्ररय है

दक भररत में ररष्ट्र रध्यक्ष यर सवोच्च र्क्तक्त स कर दनवरििन अप्रत्यक्ष रूप से पराँि वर्ि के दलये होतर है। भररत के

सभी सरविजदनक पि दबनर दकसी भेिभरव के सभी के दलये खुले हैं। भररत में कोई दवरे्र्रदधकरर प्ररप्त वगि

नही ंहै।

प्रश्न 8. प्रस्तािना में प्रयुक्त समाजिाद शब् की संवक्षप्त व्याख्या कीवजए।

उत्तर: समरजवरि – समरजवरि र्ब्द को 42 वें संर्ोधन द्वररर जोडर गयर है। प्रस्तरवनर में समरजवरि र्ब्द

को सक्तिदलत करके उसे और अदधक स्पष्ट् दकयर गयर है।

इसमें समरज के कमजोर और दपछडे वगों के जीवन स्तर को ऊाँ िर उठरने और आदथिक दवर्मतर को िूर

करने कर प्रयरस करने के दलए दमदश्रत अथिव्यवथथर को अपनरयर है। वसु्तत:

1. इस र्ब्द कर उले्लख भररतीय जनतर की आदथिक क्तथथदत को सुधररने के दलए दकयर गयर

2. समरज में दनधिनतर के दनवररण हेतु इस र्ब्द कर प्रयोग दकयर गयर।

3. ररष्ट्र की संपदत्त सभी वगों एवं व्यक्तक्त सयो ंके दहतो ंकी पूदति को व्यवक्तथथत ढंग से प्रयोग करने पर बल

िेतर है।

अत: समरजवरिी र्ब्द समरज से संबंदधत अवधररणर है जो समस्त व्यक्तक्त सयो ंके दवकरस के दलए मरगि प्रर्स्त

करतर है।

वनबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओ ंका विसृ्तत िणयन कीवजए।

उत्तर: भररतीय संदवधरन की मुख्य दवरे्र्तरएाँ – भररतीय संदवधरन की मुख्य दवरे्र्तरएाँ दनम्नदलक्तखत हैं

1. विश्व का सबसे विशाि संविधान:

भररत कर संदवधरन दवश्व के सभी संदवधरनो ंसे दवर्रल संदवधरन है। वतिमरन में सरंदवधरदनक संर्ोधनो ंके

पिरत् इसमें 395 अनुचे्छि, 22 भरग व 12 अनुसूदियराँ हैं जबदक संयुक्त स ररज्य अमेररकर के संदवधरन में 7,

कनरडर के संदवधरन में 147, ऑस्ट्र ेदलयर के संदवधरन में 128, िदक्षण अफ्ीकर के संदवधरन में 153 तथर

क्तस्विजरलैंड के संदवधरन में 195 की अनुचे्छि हैं।

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2. विक्तित एिं वनवमयत संविधान:

भररत कर संदवधरन संयुक्त स ररज्य अमेररकर, कनरडर और क्तस्वि्जरलैंड के संदवधरन की तरह की एक

दलक्तखत एवं दनदमित संदवधरन है। भररत के संदवधरन कर अदधकरंर् भरग दलदपबद्ध है तथर इसमें परम्पररओ ं

कर भरग बहुत कम है। इसकर दनमरिण संदवधरन सभर द्वररर दकयर गयर है। इसके दनमरिण में 2 वर्ि 11 महीने

एवं 18 दिन कर समय लगर।

3. समू्पणय प्रभुता सम्पन्न संविधान:

भररत कर संदवधरन लोकदप्रय प्रभुसत्तर पर आधरररत संदवधरन है अथरित् यह भररतीय जनतर द्वररर दनदमित है।

इस संदवधरन द्वररर अक्तिम र्क्तक्त स भररतीय जनतर को प्रिरन की गई है। संदवधरन की प्रस्तरवनर में कहर गयर

है दक हम भररत के लोग इस संदवधरन को अंगीकृत अदधदनयदमत व आत्मरदपित करते हैं अथरित् भररतीय

जनतर ही इसकी दनमरितर है। जनतर ने स्वयं की इच्छर से इसे अंगीकृत, अदधदनयदमत वे आत्मरदपित दकयर है।

इसे दकसी अन्य सत्तर द्वररर थोपर नही ंगयर है।

4. संविधान की प्रस्तािना:

भररतीय संदवधरन की मौदलक प्रस्तरवनर तथर लक्ष्ो ंको संदवधरन की प्रस्तरवनर में िर्रियर गयर है। डॉ. के.

एम मंुर्ी ने इसे संदवधरन की ररजनीदतक कंुडली कहर है। इसे संदवधरन की आत्मर भी कहर जरतर है।

प्रस्तरवनर में ररष्ट्र की एकतर एवं व्यक्तक्त स की गररमर पर बल दियर गयर है।

5. संसदीय शासन व्यिथिा:

भररतीय संदवधरन में संसिरत्मक र्रसन व्यवथथर को अपनरयर गयर है। इसके अिगित संसि समू्पणि

ररजनीदतक व्यवथथर की धुरी है। मंदत्रमंडल अथरित् करयिपरदलकर सरमूदहक रूप से व्यवथथरदपकर अथरित्

लोकसभर के प्रदत प्रत्यक्ष रूप से उत्तरिरयी है और िेर् के ररष्ट्र रध्यक्ष अथरित् ररष्ट्र पदत कर पि नरममरत्र की

करयिपरदलकर कर प्रतीक है।

वरस्तदवक र्क्तक्त सयो ंकर प्रयोग मंदत्रमंडल द्वररर दकयर जरतर है। इसी प्रकरर भररत के ररज्यो ंमें भी संसिीय

र्रसन प्रणरली अपनरयी है। जहराँ ररज्यपरल ररज्य कर सरंदवधरदनक प्रमुख होतर है।

6. मौविक अवधकार एिं कत्तयव्य:

भररतीय संदवधरन के भरग – 3में मूल अदधकररो ंकी व्यवथथर की गयी है।

मूल अदधकरर व्यक्तक्त स के व्यक्तक्त सत्व के दवकरस के दलए आवश्क अदधकररो ंको कहते हैं। भररतीय संदवधरन

में मूल रूप से ऐसे 7 अदधकररो ंकर प्ररवधरन दकयर गयर थर ये हैं–

1. समरनतर कर अदधकरर

2. स्वतंत्रतर कर अदधकरर

3. र्ोर्ण के दवरुद्ध अदधकरर

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4. धरदमिक स्वतंत्रतर कर अदधकरर

5. दर्क्षर एवं संसृ्कदत कर अदधकरर

6. सम्पदत्त कर अदधकरर और

7. संवैधरदनक उपिररो ंकर अदधकरर

बरि में 44वें संदवधरन संर्ोधन के द्वररर सम्पदत्त के अदधकरर को मूल – अदधकररो ंकी शे्रणी से दनकरल दियर

गयर। 42वें संदवधरन संर्ोधन 1976 द्वररर भररत के संदवधरन में नरगररको ंके िस मूल कतिव्यो ंकर समरवेर्

दकयर गयर है, दजसमें संदवधरन कर परलन करनर, भररत की प्रभुतर, एकतर तथर अखण्डतर की रक्षर, भररत

की संसृ्कदत की रक्षर आदि प्रमुख हैं।

86वें संदवधरन संर्ोधन 2002 द्वररर 6 से 14 वर्ि तक के बच्चो ंको दर्क्षर प्रिरन करने सम्बनधी 11वराँ मूल

कत्तिव्य जोडर गयर है।

7. राज् के नीवत:

दनिेर्क तत्व – आयरलैंड के संदवधरन से पे्रररत होकर तैयरर दकए गए ररज्य के नीदत-दनिेर्क तत्व

भररतीय संदवधरन की एक अनोखी दवरे्र्तर हैं। संदवधरन के भरग – 4 में अनुचे्छि 36 से अनुचे्छि 51 के

अिगित इनकर समरवेर् दकयर गयर है। सरमरदजक, आदथिक दवकरस तथर न्यरय व समतर के उदे्दश्ो ंको

सरमने रखते हुए दनिेर्क तत्व सरकरर के दलए पे्ररणर कर करयि करते हैं।

8. समाजिादी राज्:

42वें संदवधरन संर्ोधन 1976 द्वररर भररत को समरजवरिी गणररज्य घोदर्त दकयर गयर है। यद्यदप मूल

संदवधरन में यह र्ब्द नही ंथर। प्रस्तरवनर में यह र्ब्द भररतीय ररज व्यवथथर को एक नई दिर्र दिये जरने

की भरवनर को दृदष्ट्गत रखकर जोडर गयर है।

9. ियस्क मतावधकार

हमररे िेर् के संदवधरन में 18 वर्ि की आयु प्ररप्त करने वरले प्रते्यक नरगररक को समरन रूप से मतरदधकरर

प्रिरन दकयर गयर है। यद्यदप मूल संदवधरन में यह आयु 21 वर्ि थी दकिु संदवधरन में 61वें संर्ोधन द्वररर

आयु सीमर 21 वर्ि से घिरकर 18 वर्ि कर िी गई है।

10. पंि-वनरपेक्ष राज् :

42वें संदवधरन संर्ोधन अदधदनयम द्वररर प्रस्तरवनर में ‘पंथ दनरपेक्षतर’ र्ब्द जोडर गयर है, लेदकन इसकी

पररभरर्र कर प्रयरस नही ंदकयर गयर है। पंथ दनरपेक्षतर से आर्य यह है दक धरदमिक मरमलो ंमें ररज्य कर

दृदष्ट्कोण तिथथ है।

यह न तो दकसी धमि दवरे्र् को ररज्य कर धमि मरनतर है और न ही दकसी समुिरय दवरे्र् को धरदमिक

संरक्षण िेतर है। यह धमि के के्षत्र में प्रते्यक नरगररक को स्वतंत्रतर प्रिरन करतर है। ररज्य की दृदष्ट् में सभी

धमि समरन है।

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11. स्वतंत्र न्यायपाविका:

संघीय र्रसन में संदवधरन की व्यरख्यर, केन्द्र और ररज्यो ंके दववरिो ंको हल करने के दलए स्वतंत्र

न्यरयरपरदलकर होनी िरदहए। भररत में भी स्वतंत्र न्यरयपरदलकर है। सवोच्च न्यरयरलय एवं उच्च न्यरयरलयो ंकी

व्यवथथर भी इसी आधरर पर की गई है।

12. अन्य विशेषताएँ –

1. दवलक्षण िस्तरवेज,

2. एकरत्मक व संघरत्मक अि्भुत संयोग,

3. कठोरतर व लिीलेपन कर दमश्रण,

4. न्यरदयक पुनररवलोकन व संसिीय सम्प्रभुतर कर समन्वय,

5. दवश्वर्रंदत कर समथिक,

6. आपतकरलीन उपबन्ध,

7. एकल नरगररकतर,

8. लोक कल्रणकररी ररज्य की थथरपनर कर आिर्ि

9. अल्पसंख्यक एवं दपछडे वगों के कल्रण की दवरे्र् व्यवथथर।

प्रश्न 2. ‘भारतीय संविधान की विशेषताएँ भारत को विश्व के सफितम िोकतंत्रो ंमें से एक बनाने में

सहायक ‘वसद्ध हई हैं। इस किन की विसृ्तत व्याख्या कीवजए।

उत्तर: भररतीय संदवधरन की दवरे्र्तरएाँ , भररत को दवश्व के सफलतम लोकतंत्रो ंमें से एक बनरने में सहरयक

दसद्ध हुई हैं। यह दनम्न दबन्िुओ ंके अिगित स्पष्ट् दकयर जर सकतर है।

(1) जनता का शासन: र्रसन की एक प्रणरली के रूप में लोकतंत्र समू्पणि जनतर कर र्रसन होतर है।

हमररे संदवधरन ने हमें जनतर कर र्रसन प्रिरन दकयर है। जनतर कर अथि समू्पणि जनसमूह एवं प्रते्यक व्यक्तक्त स

से है। यह दकसी दवरे्र् नस्ल, भरर्र, संसृ्कदत आदि से सम्बक्तन्धत वगि कर र्रसन नही ंहोतर है।

(3) संसदीय शासन व्यिथिा: हमररे संदवधरन ने लोकतंत्र को सफल बनरने के दलए संसिीय र्रसन

व्यवथथर प्रिरन की है। इस प्रणरली में करयिपरदलकर व्यवथथरदपकर के प्रदत सरमूदहक रूप में उत्तरिरयी होती

है। इस व्यवथथर में प्रधरनमंत्री मंदत्रपररर्ि कर नेतृत्व करतर है। ररष्ट्र पदत िेर् कर सरंदवधरदनक प्रमुख होतर

है। इस र्रसन व्यवथथर को ररज्यो ंमें भी अपनरयर गयर है।

(4) मौविक अवधकार ि कत्तयव्य: भररतीय संदवधरन ने नरगररको ंके दहतो ंकी रक्षर के दलए मौदलक

अदधकरर प्रिरन दकए हैं। इनके सरथ-सरथ ही नरगररको ंके कतिव्य भी दनधरिररत दकए हैं जो दक सफल

लोकतंत्र के दलए आवश्क हैं।

(5) नीवत वनदेशक तत्वो ंका समािेश: भररतीय संदवधरन में लोक कल्रणकररी ररज्य के दलए नीदत –

दनिेर्क तत्व बतरए गए हैं। ये सरकररो ंके पथ – प्रिर्िन की भूदमकर कर दनविहन करते हैं।

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(6) जन कल्याणकारी भािना: संदवधरन में सरकरर कर प्रते्यक करयि जनतर के कल्रण की दृदष्ट् को ध्यरन

में रखकर जोडर गयर है। लोकतंत्र में र्रसन जनतर के प्रदत उत्तरिरयी रहतर है। वह जन-कल्रण की

भरवनर रखतर है।

(7) काययकुशि शासन: हमररे संदवधरन ने हमें लोकतंत्र के रूप में सवरिदधक करयिकुर्ल र्रसन प्रिरन

दकयर है। सरकरर कर प्रते्यक करयि करफी सोि दविरर कर जनदहत में दकयर जरतर है।

(8) नैवतक वशक्षा का साधन: लोकतरंदत्रक र्रसन व्यक्तक्त स को नैदतक दर्क्षर प्रिरन करतर है। लोकतंत्र में

व्यक्तक्त स पररवरर की संकीणि सीमरओ ंसे बरहर दनकलकर सरविजदनक दहत तक दवसृ्तत हो जरतर है और वह

सरथी नरगररको ंके सरथ सहयोग, सदहषु्णतर, उिररतर व सहरनुभूदत कर व्यवहरर करने लगतर है।

(9) देश भक्तक्त की वशक्षा-भारतीय संविधान ने िोकतंत्र के माध्यम से राष्ट्र : पे्रम की भरवनर कर

दवकरस दकयर है। लोकतंत्र में ररज्य को दकसी र्रसक वगि की सम्पदत्त नही ंमरनर जरतर है। इसमें जनतर में

ररष्ट्र के प्रदत पे्रम व अपनत्व की भरवनर कर दवकरस होतर है।

(10) समानता ि स्वतंत्रता पर आधाररत शासन: हमररे संदवधरन ने हमें व्यक्तक्त स की समतर व स्वतंत्रतर

पर आधरररत र्रसन प्रिरन दकयर है। यह र्रसन व्यक्तक्त सयो ंमें जरदत, धमि, भरर्र व दलंग आदि के आधरर पर

भेिभरव नही ंकरतर है अदपतु सभी व्यक्तक्त सयो ंके दलए दवदध की समरनतर तथर दवदध के समरन संरक्षण में

दवश्वरस करतर है।

(11) स्वतंत्र ि वनष्पक्ष न्यायपाविका की थिापना: हमररे संदवधरन ने लोकतरंदत्रक र्रसन प्रणरली के

अिगित स्वतंत्र व दनष्पक्ष न्यरयपरदलकर की थथरपनर की है। यह जनतर को करयिपरदलकर व व्यवथथरदपकर के

अत्यरिरर से बिरती है और व्यक्तक्त स की स्वतंत्रतर की रक्षर करती है। यह र्रसन से उसकी संवैधरदनक

मयरििर कर परलन कररती है।

(12) विश्वशाक्ति का समियन: ‘वसुधैव कुिुम्बकम’ के दसद्धरि को अपनरते हुए भररतीय संदवधरन ने

दवश्वर्रंदत कर समथिन दकयर है। भररत न तो दकसी िेर् की सीमर के आंतररक मरमलो ंमें हस्तके्षप करनर

िरहतर है और न ही दकसी िेर् के हस्तके्षप को सहन करतर है। भररत सरकरर को इसी भरवनर के कररण

पंिर्ील व गुिदनरपेक्षतर की नीदत को अपनरयर है।

(13) अल्पसंख्यक ि वपछडे िगों के कल्याण की विशेष व्यिथिा: हमररे संदवधरन ने अल्पसंख्यको ंके

धरदमिक, भरर्रयी और सरंसृ्कदतक दहतो ंकी रक्षर के दलए दवरे्र् व्यवथथर की है। सरथ ही अनुसूदित

जनजरदत के लोगो ंके दलए लोकसभर, दवधरनसभरओ ंव ररजकीय सेवरओ ंमें आरक्षण प्रिरन दकयर जरतर है।

(14) पंि वनरपेक्ष राज्: भररतीय संदवधरन ने धमि के के्षत्र में प्रते्यक नरगररक को स्वतंत्रतर प्रिरन की है।

धरदमिक मरमलो ंमें ररज्य ने एक तिथथ दृदष्ट्कोण अपनरयर है, न तो दकसी धमि दवरे्र् को ररज्य-धमि मरनर है

और न ही दकसी समुिरय दवरे्र् को धृरदमिक संरक्षण प्रिरन दकयर है। धमि के आधरर पर दकसी भी नरगररक

से भेिभरव नही ंदकयर जर सकतर है। ररज्य कर कोई आदधकरररक धमि नही ंहै।

अतः दनष्कर्ि रूप में कहर जर सकतर है दक भररतीय संदवधरन की इन दवरे्र्तरओ ंने भररत को दवश्व कर

सफलतम लोकतंत्र बनरने में अत्यदधक सहरयतर की है।

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प्रश्न 3. ‘संविधान की प्रस्तािना भारतीय संविधान का सार है।’ समझाइए।

उत्तर: भररतीय संदवधरन की एक प्रमुख दवरे्र्तर उसकी प्रस्तरवनर यर उदे्ददर्कर है। प्रस्तरवनर उन सवोच्च

मूल्ो ंऔर िरर्िदनक आधरर तत्वो ंको अदभव्यक्त स करती है, दजस पर हमररर पूरर संदवधरन आधरररत है।

प्रस्तरवनर के अनुसरर जन प्रभुसत्तर एवं पंथ दनरपेक्षतर पर आधरररत समरजवरिी, लोकतंत्ररत्मक गणररज्य के

मरध्यम से भररतीय संदवधरन न्यरय, स्वतंत्रतर, समतर, बंधुत्व, व्यक्तक्त स की गररमर एवं ररष्ट्र की एकतर व

अखण्डतर के लक्ष्ो ंको अदजित करनर िरहतर है।

(1) संदवधरन की प्रस्तरवनर में वदणित ‘हम भररत के लोग इन र्ब्दो ंमें तीन बरतें दनदहत हैं –

संदवधरन द्वररर अंदतम सत्तर जनतर में दनदहत की गई है,

संदवधरन के दनमरितर जनतर के प्रदतदनदध थे,

भररतीय संदवधरन भररतीय जनतर की इच्छर कर पररणरम है।

(2) भररतीय संदवधरन की प्रस्तरवनर में भररत को एक समू्पणि प्रभुत्व सम्पन्न समरजवरिी, पंथ दनरपेक्ष

लोकतंत्ररत्मक गणररज्य घोदर्त दकयर गयर है। इसकर अथि यह है दक भररत 26 जनवरी 1950 से भररत की

अदधररज्य की क्तथथदत समरप्त हो गयी है।

(3) संदवधरन की प्रस्तरवनर में वे उदे्दश् सदन्नदहत हैं दजन्हें संदवधरन थथरदपत करनर िरहतर है और आगे

बढनर िरहतर है। इसके अनुसरर न्यरय, स्वतंत्रतर, समतर व बंधुत्व संदवधरन के मूल उदे्दश् हैं।

(4) संदवधरन की प्रस्तरवनर में िेर् में सभी नरगररको ंको न्यरय कर आश्वरसन दियर गयर है। न्यरय को

स्वतंत्रतर, समरनतर व बंधुत्व की अपेक्षर अदधक उच्च थथरन प्रिरन दकयर गयर है।

(5) प्रस्तरवनर में न्यरय को तीन रूपो ंमें पररभरदर्त दकयर गयर है – सरमरदजक न्यरय, आदथिक न्यरय एवं

ररजनीदतक न्यरय सरमरदजक और आदथिक न्यरय को ररजनीदतक न्यरय से उच्चतर थथरन प्रिरन दकयर गयर

है।

(6) भररतीय संदवधरन की प्रस्तरवनर में उक्तल्लक्तखत स्वतंत्रतर र्ब्द कर अदभप्ररय केवल दनयंत्रण यर आदधपत्य

कर अभरव ही नही ंअदपतु यह दविरर, अदभव्यक्तक्त स, दवश्वरस, धमि एवं उपरसनर की स्वतंत्रतर के अदधकरर की

सकरररत्मक संकल्पनर है।।

(7) समरनतर से तरत्पयि है दक िेर् के सभी नरगररक दवदध की नजर में समरन हैं तथर उन्हें दवदध के द्वररर

समरन संरक्षण प्ररप्त है। सभी नरगररको ंको दबनर दकसी भेिभरव के िुनरव प्रदक्रयर व र्रसन की प्रदक्रयर में

भरग लेने हेतु समरन ररजनीदतक अदधकरर प्ररप्त हैं।

(8) प्रस्तरवनर में व्यक्तक्त स की गररमर और ररष्ट्र की एकतर एवं अखण्डतर सुदनदित करने वरली बंधुतर की

भरवनर बढरने के दलए संकल्प दलयर गयर है। दनष्कर्ि रूप में कहर जर सकतर है दक प्रस्तरवनर में संदवधरन के

मूलभूत आिर्ों को िर्रियर गयर है। यह भररतीय संदवधरन कर सरर है।

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अन्य महत्त्वपूणय प्रश्नोत्तर

बहंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. भारतीय संविधान के वकस भाग को डॉ. के. एम. मंुशी ने संविधान की राजनीवतक कंुडिी

कहा है?

(अ) प्रस्तरवनर

(ब) मूल अदधकरर

(स) नीदत दनिेर्क तत्व

(ि) मूल कतिव्य

प्रश्न 2. भारतीय संविधान के वकतने भाग हैं

(अ) 20

(ब) 22

(स) 25

(ि) 29

प्रश्न 3.संयुक्त राज् अमेररका के संविधान में अनुचे्छदो ंकी संख्या है

(अ) 20

(ब) 27

(स) 25

(ि) 7

प्रश्न 4. भारतीय संविधान की प्रमुि विशेषता है

(अ) दवश्व कर दवर्रलतम संदवधरन

(ब) दलक्तखत व दनदमित संदवधरन

(स) दवलक्षण िस्तरवेज

(ि) उपयुिक्त स सभी

प्रश्न 5. सम्पवत्त का अवधकार है

(अ) करनूनी अदधकरर

(ब) मूल अदधकरर

(स) नीदत दनिेर्क तत्व

(ि) मूल कतिव्य

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प्रश्न 6. मूि अवधकारो ंका िणयन संविधान के वकस अनुचे्छद में वकया गया है

(अ) 10 – 15

(ब) 12 – 35

(स) 12-40

(ि) 12 – 36

प्रश्न 7. ितयमान में मूि अवधकारो ंकी संख्या है

(अ) 7

(ब) 6

(स) 5

(ि) 9

प्रश्न 8. वकस संविधान संशोधन द्वारा 1976 में भारत को समाजिादी गणराज् घोवषत वकया गया

िा?

(अ) 42वें

(ब) 47वें

(स) 76वें

(ि) 101वें

प्रश्न 9. संविधान के वकस भाग में नीवत वनदेशक तत्वो ंका िणयन वकया गया है?

(अ) भरग 2

(ब) भरग 3

(स) भरग 4

(ि) भरग 5

प्रश्न 10. भारत में मतावधकार की नू्यनतम आयु वनधायररत की गयी है

(अ) 20 वर्ि

(ब) 21 वर्ि

(स) 19 वर्ि

(ि) 18 वर्ि।

प्रश्न 11. वकस अनुचे्छद के अनुसार वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर संपूणय देश या वकसी भाग में

आपातकाि िागू वकया जा सकता है?

(अ) अनुचे्छि 352

(ब) अनुचे्छि 356

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(स) अनुचे्छि 357

(ि) अनुचे्छि 360

प्रश्न 12. पंि वनरपेक्ष राज् से आशय है

(अ) धमि कर सिरन करनर

(ब) ररज्य कर धमिदवहीन होनर

(स) धरदमिक मरमलो ंमें तिथथ रहनर

(ि) इसमें से कोई नही।ं

प्रश्न 13. संविधान में विश्व शांवत ि सुरक्षा सम्बन्धी प्रािधान वकस अध्याय में हैं?

(अ) नीदत दनिेर्क तत्व में

(ब) मौदलक अदधकरर में

(स) आपरतकरलीन प्ररवधरनो ंमें

(ि) इनमें से कोई नही ं

प्रश्न 14. संविधान को िह प्रािधान जो राष्ट्र की एकता का पररचायक है

(अ) एकल नरगररकतर

(ब) मूल कत्तिव्य

(स) नीदत दनिेर्क तत्व

(ि) मूल अदधकरर

उत्तर:

1. (अ), 2. (ब), 3. (ि), 4. (ि), 5. (अ), 6. (ब), 7. (ब), 8. (अ), 9. (स),

10. (ि), 11. (स), | 12. (ि), 13. (अ), 14. (अ)

अवत िघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. वकस देश के संविधान को जीिंत संविधान का दजाय वदया गया है?

उत्तर: भररत के संदवधरन को।

प्रश्न 2. भारतीय संविधान की कोई दो विशेषताएँ विक्तिए।

उत्तर:

1. दवश्व कर सबसे दवर्रल संदवधरन,

2. संसिीय र्रसन व्यवथथर।

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प्रश्न 3. भारतीय संविधान द्वारा अंवतम शक्तक्त वकसके हाि में वनवहत की गयी है?

उत्तर: भररतीय जनतर के हरथ में।।

प्रश्न 4. प्रस्तािना को वकस विद्वान ने संविधान की राजनीवतक कंुडिी कहा है?

उत्तर: डॉ. के. एम. मंुर्ी ने प्रस्तरवनर को संदवधरन की ररजनीदतक कुडली कहर है।

प्रश्न 5. भारतीय संविधान में वकतने भाग हैं?

उत्तर: भररतीय संदवधरन में कुल 22 भरग हैं।

प्रश्न 6. 101िाँ संिैधावनक संशोधन वकससे संबंवधत है?

उत्तर: संदवधरन कर 101वराँ संर्ोधन वसु्त व सेवर कर से संबंदधत है।

प्रश्न 7. विश्व का सबसे विशाि संविधान वकस देश का है?

उत्तर: भररत कर

प्रश्न 8. दवक्षण अफ्रीका के संविधान में वकतने अनुचे्छद हैं।

उत्तर: 153 अनुचे्छि।

प्रश्न 9. संविधान में नागररको ंको कुि वकतने मूि अवधकार प्रदान वकये गये हैं?

उत्तर: छः मूल अदधकरर।

प्रश्न 10. संविधान द्वारा प्रदत्त वकन्ी ंदो मौविक अवधकारो ंके नाम विक्तिए।

उत्तर:

1. समतर कर अदधकरर,

2. र्ोर्ण के दवरुद्ध अदधकरर।

प्रश्न 11. ितयमान में मूि कतयव्यो ंकी संख्या वकतनी है?

उत्तर: वतिमरन में मूल कतिव्यो ंकी संख्यर ग्यररह है।

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प्रश्न 12. नीवत वनदेशक तत्व वकस संविधान से विए गए हैं?

उत्तर: नीदत दनिेर्क तत्व आयरलैंड के संदवधरन से दलए गए हैं।

प्रश्न 13. वकस संविधान संशोधन द्वारा 21 िषय की आयु को घटाकर 18 िषय कर वदया गया?

उत्तर: संदवधरन में 61वें संर्ोधन द्वररर 21 वर्ि की आयु सीमर को घिरकर 18 वर्ि कर दियर गयर।

प्रश्न 14. संविधान में संघ शब् के विए वकस शब् का प्रयोग वकया जाता है?

उत्तर: संदवधरन में संघ र्ब्द के दलए ‘union of states’ र्ब्द कर प्रयोग दकयर जरतर है।

प्रश्न 15. अिवशष्ट् शक्तक्तयाँ वकसके पास होती हैं?

उत्तर: अवदर्ष्ट् र्क्तक्त सयराँ केन्द्र के परस होती हैं।

प्रश्न 16. भारतीय संविधान में संशोधन विवध वकस अनुचे्छद में दी गई है?

उत्तर: संदवधरन में संर्ोधन दवदध अनुचे्छि 368 में िी गई है।

प्रश्न 17. भारतीय संविधान में कठोरता ि िचीिेपन को वकन देशो ंके संविधान से विया गया है?

उत्तर: भररतीय संदवधरन में कठोरतर व लिीलेपन को क्रमर्ः संयुक्त स ररज्य अमेररकर व दििेन के संदवधरन

से दलयर गयर है।

प्रश्न 18. “भारतीय संविधान अवधक कठोर तिा अवधक िचीिे के मध्य एक अच्छा संतुिन थिावपत

करता है।” यह वकस विद्वान का किन है?

उत्तर: डॉ. ह्वीयर कर।

प्रश्न 19. हमारे संविधान में वकसे सिोच्च थिान प्राप्त है?

उत्तर: हमररे संदवधरन में संसि को सवोच्च थथरन प्ररप्त है।

प्रश्न 20. नीवत वनदेशक तत्वो ंमें अनुचे्छद 5 के अनुसार राज् का क्ा कत्तयव्य है?

उत्तर: ररज्य अिररिष्ट्र ीय र्रंदत व सुरक्षर तथर ररष्ट्र ो ंके मध्य न्यरयपूणि व सिरनजनक सम्बन्धो ंकी थथरपनर

करे।

प्रश्न 21. संविधान के वकस भाग में आपातकािीन उपबन्धो ंका उले्लि वकया गया है?

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उत्तर: संदवधरन के भरग -18 में।

प्रश्न 22. भारतीय संविधान द्वारा वकस प्रकार के शासन की व्यिथिा की गई है?

उत्तर: संघरत्मक र्रसन की।

प्रश्न 23. भारत में वकस प्रकार की नागररकता का प्रािधान है।

उत्तर: एकल नरगररकतर कर।

प्रश्न 24. अनुसूवचत जावतयो ंके आरक्षण की व्यिथिा वकस अनुचे्छद में की गई है?

उत्तर: अनुसूदित जरदतयो ंके दलए आरक्षण की व्यवथथर अनुचे्छि 330 में की गई है।

प्रश्न 25. अन्य वपछडा िगय के विए सरकारी (केन्द्र) सेिाओ ंमें वकतने प्रवतशत आरक्षण की व्यिथिा

की गई है?

उत्तर: दपछडर वगि दलए केन्द्र सरकरर की सेवरओ ंमें 27 प्रदतर्त आरक्षण की व्यवथथर की गई है।

प्रश्न 26. 42िें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तािना में कौन – से शब् जोडे गए हैं?

उत्तर: 42वे संदवधरन संर्ोधन द्वररर प्रस्तरवनर में समरजवरि, पंथदनरपेक्षतर व अखण्डतर र्ब्द जोडे गए हैं।

प्रश्न 27. व्यिथिावपका के प्रवत मंवत्रपररषद का सामूवहक उत्तरदावयत्व भारतीय संविधान की वकस

विशेषता को । प्रदवशयत करता है।

उत्तर: संसिीय र्रसन व्यवथथर को।

प्रश्न 28. वकन्ी ंदो वबुदुओ ंको विक्तिए वजनके द्वारा भारतीय संविधान राजनीवतक न्याय के आदशय

को मूतय रूप प्रदान करता है।

उत्तर:

1. वयस्क मतरदधकरर,

2. सरंदवधरदनक उपिररो ंकर अदधकरर।

प्रश्न 29. भारत में वमवश्रत अियव्यिथिा को क्ो ंअपनाया गया है?

उत्तर: समरज में आदथिक दवर्मतर को िूर करने के दलए दमदश्रत अथिव्यवथथर को अपनरयर गयर है।

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प्रश्न 30. बंधुत्व का आदशय वकतने आधारो ंपर वटका है?

उत्तर: बंधुत्व कर आिर्ि िो आधररो-ंररष्ट्र की एकतर व व्यक्तक्त स की गररमर पर दिकर है।

प्रश्न 31. काययपाविका के आदेशो ंको कौन अिैध घोवषत कर सकता है?

उत्तर: सवोच्च न्यरयरलय करयिपरदलकर के आिेर्ो ंको अवैध घोदर्त कर सकतर है।

प्रश्न 32. राज्पाि की वनयुक्तक्त कौन करता है?

उत्तर: ररज्यपरल की दनयुक्तक्त स ररष्ट्र पदत करतर है।

िघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. भारतीय संविधान अन्य देशो ंके संविधानो ंसे शे्रष्ठ है। स्पष्ट् कीवजए।

उत्तर: भररतीय संदवधरन में दवश्व की प्ररयः सभी र्रसन प्रणरदलयो ंएवं संदवधरनो ंके गुणो ंको अपनरकर उसे

उनसे शे्रष्ठ बनरने कर प्रयरस दकयर गयर है। हमररे संदवधरन दनमरितरओ ंने दवश्व के सभी प्रमुख संदवधरनो ंकर

अध्ययन कर उनके उपयोगी तत्वो ंको अपनी आवश्कतरनुसरर अपनरने तथर उनके िोर्ो ंसे बिने कर

प्रयरस दकयर है।

भररतीय संदवधरन में दििेन की संसिरत्मक पद्धरदत के मूल तत्व, संयुक्त स ररज्य अमेररकर की अध्यक्षरत्मक

पद्धदत के उपयोगी तत्व, आयररर् संदवधरन से ररज्य के नीदत – दनिेर्क तत्व, कनरडर के संदवधरन से

भररतीय यूदनयन की पे्ररणर लेकर भररतीय संदवधरन को जनोपयोगी बनरयर गयर है। इस प्रकरर भररतीय

संदवधरन अन्य संदवधरनो ंसे शे्रष्ठ संदवधरन है।

प्रश्न 2. समू्पणय प्रभुत्व सम्पन्न िोकतंत्रात्मक राज् की विशेषताओ ंको स्पष्ट् कीवजए।

उत्तर: भररत दकसी अन्य िेर् यर दकसी बरहरी दनयन्त्रण से पूणितयर मुक्त स है एवं अपने आिररक मरमलो ंमें

दकसी कर हस्तके्षप स्वीकरर नही ंकरतर है।

सरथ ही सरथ भररत में प्रजरतरक्तन्त्रक र्रसन व्यवथथर को अपनरयर गयर है दजसकर आर्य यह है दक र्रसन

संिरलन की समू्पणि र्क्तक्त स जनतर में दनदहत है। जनतर अपनी इस र्क्तक्त स कर प्रयोग अपने द्वररर दनवरिदित

प्रदतदनदधयो ंके मरध्यम से करती है।

इसके दलए संदवधरन द्वररर नरगररको ंको वयस्क मतरदधकरर दियर गयर है।

प्रश्न 3. “भारत का संविधान विश्व का सबसे विशाि संविधान है।” किन को स्पष्ट् कीवजए।

उत्तर: भररत कर संदवधरन दवश्व कर सबसे दवर्रल संदवधरन है। जहराँ संयुक्त स ररज्य अमेररकर के संदवधरन में

07 अनुचे्छि, कनरडर के संदवधरन में 147 अनुचे्छि, ऑस्ट्र ेदलयर के संदवधरन में 128 अनुचे्छि व िदक्षण

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अफ्ीकर के संदवधरन में 153 अनुचे्छि हैं। वही ंहमररर संदवधरन व्यरपक व दवसृ्तत संदवधरन है। इसमें 395

अनुचे्छि, 22 भरग, 12 अनुसूदियराँ व 05 पररदर्ष्ट् हैं।

इसमें अब तक 101 संर्ोधन हो िुके हैं और संर्ोधन की यह प्रदक्रयर आवश्कतर पडने पर आगे भी जररी

रहेगी। इस कररण भी इसकर स्वरूप दवर्रल हो जरतर है। हमररर संदवधरन संघरत्मक है। इसमें संघ व ररज्यो ं

के बीि सम्बन्धो ंकर बहुत व्यरपक वणिन दकयर गयर है।

संदवधरन के एक अध्यरय में तो ररज्य के नीदत दनिेर्क दसद्धरंतो ंकर ही उले्लख है जो अदधकरंर् िेर्ो ंके

संदवधरन में नही ंहै। संदवधरन की इसी दवर्रलती को लेकर हररदवषु्ण करमथ ने कहर थर दक “हमें इस बरत

कर गवि है दक हमररर संदवधरन दवश्व कर सबसे दवर्रल संदवधरन है।” .

प्रश्न 4. भारत में संसदीय शासन व्यिथिा को स्पष्ट् कीवजए।

उत्तर: भररत में संसिीय र्रसन व्यवथथर-संसिीय र्रसन में करयिपरदलकर कर िोहरर रूप परयर जरतर है।

भररत में ररष्ट्र पदत केवल संवैधरदनक अध्यक्ष के रूप में र्रसक है, यद्यदप संदवधरन के द्वररर करयिपरदलकर

सम्बन्धी समस्त र्क्तक्त सयराँ ररष्ट्र पदत में दनदहत हैं, परिु वह उनकर प्रयोग मक्तन्त्रमण्डल के मरध्यम से ही करतर

है।

प्रधरनमंत्री संसि के दनम्न सिन में बहुमत िल कर नेतर होतर हें वह अपने मक्तन्त्रमण्डल कर गठन संसि के

िोनो ंसिनो ंमें से करतर है।

मक्तन्त्रमडल के समस्त सिस्य सरमूदहक उत्तरिरदयत्व के दसद्धरि पर अपनर करयि करते हैं तथर

व्यवथथरदपकर के प्रदत भी उनकर उत्तरिरदयत्व सरमूदहक ही होतर है। संसि कर दवश्वरस समरप्त होने पर

मंदत्रमण्डल को त्यरगपत्र िेनर पडतर है।

इस व्यवथथर में प्रधरनमंत्री ही मंदत्रमण्डल कर नेतृत्व करतर है भररत में संसिीय व्यवथथर को केन्द्र के सरथ

ररज्यो ंमें भी अपनरयर गयर है। जहराँ ररज्यपरल सरंदवधरदनक प्रमुख होतर है।

प्रश्न 5. भारतीय संविधान में िवणयत मौविक अवधकार एिं मूि कतयव्यो ंपर एक संवक्षप्त वटप्पणी

विक्तिए।

उत्तर: भररतीय संदवधरन में वदणित मौदलक अदधकरर-मरनवोदित जीवन एवं व्यक्तक्त स के व्यक्तक्त सत्व के दवकरस

के दलए वतिमरन में भररत के संदवधरन में नरगररको ंको छः मौदलक अदधकरर प्रिरन दकये गये हैं। ये हैं-

1. समरनतर कर अदधकरर,

2. स्वतंत्रतर कर अदधकरर,

3. र्ोर्ण के दवरुद्ध अदधकरर,

4. धरदमिक स्वतंत्रतर कर अदधकरर,

5. संसृ्कदत एवं दर्क्षर सम्बन्धी अदधकरर,

6. संवैधरदनक उपिररो ंकर अदधकरर।

Page 20: भारत के संविधान की विशेषताएँ - SelfStudys

ये सभी अदधकरर वरि योग्य हैं। इनकर हनन होने पर नरगररक न्यरयरलय में र्रण की सकते हैं। मूल

कत्तिव्य-42वे संदवधरन संर्ोधन 1976 के द्वररर नरगररको ंके िस मूल कतिव्य दनधरिररत दकये गये हैं। इनमें

प्रमुख हैं-संदवधरन कर परलन करनर, भररत की प्रभुतर, एकतर एवं अखण्डतर की रक्षर करनर समरन भरतृत्व

कर भरव रखनर।

प्ररकृदतक पयरिवरण की रक्षर करनर तथर वैज्ञरदनक दृदष्ट्कोण दवकदसत करनर आदि। 186वें संदवधरन

संर्ोधन 2002 द्वररर 6 से 14 वर्ि तक के बच्चो ंको दर्क्षर प्रिरन करने सम्बन्धी 11वराँ मूल कत्तिव्य जोडर

गयर है।

प्रश्न 6. भारतीय संविधान में नीवत वनदेशक तत्वो ंको क्ो ंथिान वदया गया है?

उत्तर: वतिमरन समय में ररज्य को एक आवश्क बुररई न मरनकर लोक कल्रणकररी ररज्य के रूप में

स्वीकरर दकयर जरतर है।

हमररे िेर् के संदवधरन दनमरितर इस बरत से भलीभराँदत पररदित थे दक भररत में आदथिक, सरमरदजक एवं

प्रर्रसदनक दवर्मतरयें गम्भीर रूप से दवद्यमरन हैं, दजनके बने रहने से सरमरन्य नरगररको ंके दलए अदधकररो ं

कर कोई मूल् नही ंहोगर।

संदवधरन द्वररर ऐसी व्यवथथर करनर आवश्क थर दजससे सरकरर दकसी भी िल की योंो ंन हो। व्यक्तक्त स की

मूलभूत आवश्कतरओ ंकी पूदति करनर सभी कर समरन उदे्दश् रहे। ररज्य के नीदत-दनिेर्क तत्व इसी

उदे्दश् की पूदति में एक प्रयरस के रूप में स्वीकरर दकये जरते हैं।

आयरलैण्ड के संदवधरन से पे्रररत होकर हमररे संदवधरन के भरग-4 में नीदत-दनिेर्क तत्वो ंकी व्यरख्यर की

गई।

प्रश्न 7. भारतीय संविधान में एकात्मक शासन के कौन-कौन से तत्व पाए जाते हैं?

उत्तर: संदवधरन दनमरितरओ ंके सरमने सबसे बडी समस्यर िेर् की एकतर एवं अखण्डतर को लेकर थी।

इसदलए उन्होनें संघीय सरकरर को र्क्तक्त सर्रली बनरयर। हमररे संदवधरन में दनम्नदलक्तखत कररक एकरत्मक

र्रसन से सम्बक्तन्धत हैं

1. भररत में समू्पणि िेर् के दलए एक ही संदवधरन है।

2. अवदर्ष्ट् दवर्यो ंपर करनून दनमरिण कर अदधकरर संघीय सरकरर को है।

3. भररत में इकहरी नरगररकतर है।

4. समस्त भररत में एकीकृत न्यरय व्यवथथर परयी जरती है।

5. संसि ररज्यो ंकर पुनगिठन करने की र्क्तक्त स रखती है।

प्रश्न 8. भारतीय संविधान में संघात्मक शासन के कौन-कौन से तत्व पाए जाते हैं?

उत्तर: भररत एक संघरत्मक ररज्य है। संदवधरन में संघ र्ब्द के थथरन पर यूदनयन ऑफ से्ट्ि्स’ र्ब्द कर

प्रयोग दकयर गयर है। संदवधरन के पहले अनुचे्छि में ही कहर गयर है दक भररत ररज्यो ंकर एकक होगर, दजसे

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प्रिलन में ररज्यो ंकर संघ भी कहर जरतर है। भररतीय संदवधरन में संघरत्मक र्रसन के दनम्नदलक्तखत तत्व परये

जरते हैं-

1. केन्द्र व ररज्यो ंके मध्य र्क्तक्त सयो ंकर दवभरजन

2. दनष्पक्ष व स्वतंत्र न्यरयपरदलकर,

3. संदवधरन की सवोच्चतर

4. एकल नरगररकतर,

5. केन्द्रीय व्यवथथरदपकर में ररज्यो ंकर सिन – ररज्यसभर,

6. ररज्यपरल कर पि,

7. एकरत्मकतर कर प्रभुत्व।

प्रश्न 9. भारत में न्यावयक स्वतंत्रता के िक्ष्य को प्राप्त करने के विए कौन-कौन से प्रािधान वकए गए

हैं?

अििा

भारत में स्वतंत्र न्यायपाविका पर संवक्षप्त वटप्पणी विक्तिए।

उत्तर: न्यरयपरदलकर की स्वतंत्रतर: भररत में न्यरदयक स्वतंत्रतर के लक्ष् को प्ररप्त करने के दलए दनम्न

व्यवथथरएाँ की गई हैं।

(1) भररत के ररष्ट्र पदत द्वररर सवोच्च एवं उच्च न्यरयरलयो ंके न्यरयरधीर्ो ंकी दनयुक्तक्त स की जरती है। किरिरर

में दलप्त परए जरने पर उन्हें संसि में महरदभयोग द्वररर ही पि से हिरयर जर सकतर है।

(2) न्यरयरधीर्ो ंको पयरिप्त वेतन एवं वेतन सम्बन्धी संरक्षण प्ररप्त है।

(3) करयिपरदलकर के आिेर् एवं व्यवथथरदपकर के करनून यदि सरंदवधरदनक प्ररवधरनो ंके प्रदतकूल हैं तो

न्यरयरलय उन्हें अवैध घोदर्त कर सकतर है।

(4) नरगररको ंके मूल अदधकररो ंकी रक्षर के दलए अनुचे्छि 32 के अिगित पुनररवलोकन द्वररर बन्दी

प्रत्यक्षीकरण अदधकरर पृच्छर जैसे लेखो ंको न्यरयरलय जररी कर सकतर है।

प्रश्न 10. भारतीय संविधान में न्यावयक पुनराििोकन एिं संसदीय सम्प्रभुता के वसद्धािो ंका वकस

प्रकार समन्वय वकया गया है?

उत्तर: भररतीय संदवधरन में न्यरदयक पुनररवलोकन के दसद्धरि व संसिीय सम्प्रभुतर के मध्य मरगि को

अपनरयर गयर है। यथर –

1. हमररे संदवधरन में ससंि को सवोि्ि बनरयर गयर है।

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2. संसि को दनयंदत्रत करने के दलए सवोच्च न्यरयरलय को संदवधरन की व्यरख्यर करने कर अदधकरर

प्रिरन दकयर गयर है।

3. न्यरदयक पुनररवलोकन की र्क्तक्त स के मरध्यम से सवोच्च न्यरयरलय करयिपरदलकर के उन आिेर्ो ंएवं

संसि द्वररर दनदमित उन करनूनो ंको अवैध घोदर्त कर सकतर है, जो संदवधरन की भरवनर के

अनुरूप न हो।

4. दपछले कुछ वर्ों में न्यरदयक सदक्रयतर के कररण न्यरयपरदलकर की र्क्तक्त स में पयरिप्त वृक्तद्ध हुई है।

प्रश्न 11. संविधान में अल्पसंख्यक एिं वपछडे िगों ने कल्याण के विए क्ा प्रािधान वकए गए हैं?

अििा

संविधान में अल्पसंख्यक ि वपछडे िगों की सुरक्षा के विए क्ा विशेष व्यिथिा की गई है?

उत्तर: अल्पसंख्यक / दपछडे वगों के कल्रण के दलए दकए गए प्ररवधरन / व्यवथथर – भररतीय संदवधरन में

अल्पसंख्यक एवं दपछडे वगों के कल्रण हेतु दकए गए प्रमुख प्ररवधरन/ व्यवथथर दनम्नदलक्तखत हैं

1. संदवधरन में अल्पसंख्यको ंके धरदमिक, भरर्रयी तथर सरंसृ्कदतक दहतो ंकी रक्षर के दलये दवरे्र्

व्यवथथर की गई है।

2. संदवधरन द्वररर अनुसूदित जरदतयो ंएवं अनुसूिदत जनजरदतयो ंके के्षत्रो ंके नरगररको ंको सरविजदनक

सेवरओ,ं दवधरनमण्डलो ंऔर अन्य के्षत्रो ंमें प्रदतदनदधत्व के दलए आरक्षण प्रिरन दकयर गयर है।

3. संदवधरन के भरग 16 के अनुचे्छि 330 से लेकर 342 तक दवरे्र् प्ररवधरन दकये गये हैं।

4. संदवधरन के अनुचे्छि 330 व 332 के तहत अनुसूदित जरदतयो ंव अनुसूदित जनजरदतयो ंको

लोकसभर व दवधरन सभरओ ंमें आरक्षण प्रिरन दकयर गयर है। यह व्यवथथर 25 जनवरी 2020 तक

बढर िी गई है।

5. अनुचे्छि 335 में अनुसूदित जरदतयो ंव जनजरदतयो ंके दलए सरकररी सेवरओ ंमें आरक्षण के दलए

कोई समय सीमर दनधरिररत नही ंकी गई है।

6. अन्य दपछडर वगि के दलए केन्द्र सरकरर की सेवरओ ंमें दसतम्बर 1993 से 27 प्रदतर्त आरक्षण लरगू

दकयर गयर।

प्रश्न 12. भारतीय संविधान की प्रस्तािना / उदे्दवशका के वििरणात्मक भाग को स्पष्ट् कीवजए।

उत्तर: भररतीय संदवधरन की प्रस्तरवनर / उदे्ददर्कर कर दववरणरत्मक भरग-भररतीय संदवधरन की

प्रस्तरवनर/उदे्ददर्कर के दववरणरत्मक भरग को दनम्नदलक्तखत दबन्िुओ ंके अिगित स्पष्ट् दकयर गयर है

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1. सरमरदजक, आदथिक व ररजनैदतक न्यरय – सरमरदजक न्यरय कर अथि है दक सभी नरगररको ंको दबनर

दकसी भेिभरव के समरनतर प्ररप्त हो।

आदथिक न्यरय कर अथि है दक ररज्य अपनी नीदत कर संिरलन इस प्रकरर करें दक समरन रूप से

सभी नरगररको ंको आजीदवकर के सरधन प्ररप्त करने कर अदधकरर हो ।

ररजनीदतक न्यरय कर अदभप्ररय है दक सभी नरगररको ंको ररजनीदतक गदतदवदधयो ंमें समरन और

स्वतंत्र रूप से भरग लेने कर अवसर प्ररप्त हो ।

2. स्वतंत्रतर, समरनतर और भ्ररतृत्व – भररत के संदवधरन में नरगररको ंको दविरर अदभव्यक्तक्त स, दवश्वरस,

धमि व उपरसनर की स्वतंत्रतर िी गई है। िेर् के सभी नरगररको ंको प्रगदत के समरन अवसर प्ररप्त

होगें एवं बंधुत्व की भरवनर को सुदनदित करने की भी प्रदतज्ञर ली गई है।

3. एकतर एवं अखण्डतर – प्रस्तरवनर में व्यक्तक्त स की गररमर एवं ररष्ट्र की एकतर व अखण्डतर को सुस्पष्ट्

एवं सुदनदित दकयर गयर है।

प्रश्न 13. भारतीय संविधान की प्रस्तािना की प्रमुि विशेषताएँ बताइए।

उत्तर: भररतीय संदवधरन की प्रस्तरवनर की प्रमुख दवरे्र्तरएाँ -भररतीय संदवधरन की प्रस्तरवनर की प्रमुख

दवरे्र्तरएाँ दनम्न प्रकरर हैं

1. ‘हम भररत के लोग’ से तरत्पयि है दक संदवधरन भररत की जनतर कर, जनतर द्वररर एवं जनतर के दलए

है।

2. समरजवरिी एवं पंथदनरपेक्ष से तरत्पयि है दक भररत में समरजवरिी समरज की थथरपनर की जरयेगी

एवं इसकर स्वरूप धमिदनरपेक्ष होगर अथरित् सभी धमों के लोगो ंके यहराँ पर समरन अदधकरर होगें।

ररज्य कर अपनर कोई धमि नही ंहोगर।

3. संदवधरन कर उदे्दश् भररत ररज्य को समू्पणि प्रभुतर सम्पन्न, लोकतरक्तन्त्रक गणररज्य बनरनर है।

4. गणररज्य र्ब्द इस बरत कर द्योतक है दक भररत कर ररष्ट्र रध्यक्ष दनवरिदित व्यक्तक्त स होगर।

प्रश्न 14. भारतीय संविधान की प्रस्तािना का मूल्यांकन कीवजए।

उत्तर: भररत के संदवधरन की प्रस्तरवनर कर मूल्रंकन:

भररतीय संदवधरन की प्रस्तरवनर कर मूल्रंकन दनम्नदलक्तखत दबन्िुओ ंके अिगित दकयर गयर है

1. न्यरय योग्य यर वरि योग्य नही ं– भररत के संदवधरन की प्रस्तरवनर के र्ब्द अदधक पदवत्र होते हुए

भी उन्हें न्यरय योग्य क्तथथदत प्ररप्त नही ंहै। यह केवल संदवधरन के आिर्ों वे आकरंक्षरओ ंको बतरती

है।

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2. संदवधरन की कंुजी – भररतीय संदवधरन की प्रस्तरवनर हमररे संदवधरन को उतृ्कष्ट् स्वरूप प्रिरन

करती है। इसमें भररतीय संदवधरन के मौदलक उदे्दश्ो ंव लक्ष्ो ंको िर्रियर गयर है डॉ. के एम.

मुन्र्ी ने इसे संदवधरन की ररजनीदतक कंुडली कहर है।

इसके महत्व के िेखते हुए इसे संदवधरन की आत्मर भी कहर जरतर है। आज तक अंदकत इस प्रकरर

के लेखो ंमें यह सबसे शे्रष्ठ है। यह संदवधरन की कंुजी तथर संदवधरन कर सबसे शे्रष्ठ अंग है।

प्रश्न 15. भारत एक संपूणय प्रभुत्व संपन्न धमयवनरपेक्ष, समाजिादी ि िोकतांवत्रक गणराज् है।” इस

किन को वसद्ध कीवजए।

उत्तर:

1. भररत पूणि रूप से प्रभुत्व संपन्न है।अथरित वह आंतररक तथर बरहरी िोनो ंही के्षत्रो ंमें स्वतंत्र है। इस

पर कोई बरहरी दनयतं्रण नही ंहै।

2. भररत में धमिदनरपेक्ष ररज्य की थथरपनर की गयी है। भररत में सभी धमि समरन हैं। ररज्य कर अपनर

कोई धमि नही ंहै।

3. भररत में समरजवरिी ररज्य की थथरपनर के दलए उत्परिन व दवतरण के सरधनो ंपर पूरे समरज कर

अदधकरर है।

4. भररत में लोकतरंदत्रक र्रसन प्रणरली है, योंोदंक यहराँ जनतर कर र्रसन है ।

5. संदवधरन द्वररर गणररज्य की थथरपनर की गयी है। इसमें र्रसन कर प्रधरन ररष्ट्र पदत होतर है जो जनतर

के द्वररर अप्रत्यक्ष रूप से िुनर जरतर है। में

वनबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. भारत के संविधान की प्रस्तािना का अिय स्पष्ट् करते हए इसके मुख्य तत्वो ंका वििेचन

कीवजए।

अििा

उदे्दवशका की विसृ्तत वििेचना कीवजए।

उत्तर: प्रस्तरवनर – प्रते्यक संदवधरन के प्रररम्भ में सरमरन्यतयर एक प्रस्तरवनर होती है दजसके द्वररर संदवधरन

में मूल उदे्दश्ो ंव लक्ष्ो ंको स्पष्ट् दकयर जरतर है। इसकर मुख्य प्रयोजन संदवधरन दनमरितरओ ंके दविररो ंएवं

उदे्दश्ो ंको स्पष्ट् करनर होतर है, दजससे संदवधरन की दक्रयरक्तन्वदत एवं उसके परलन में संदवधरन की मूल

भरवनर कर ध्यरन रखर जर सके।

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भररत के संदवधरन की प्रस्तरवनर के प्रजरतरक्तन्त्रक गणररज्य कर एक संदक्षप्त लेदकन सररपूणि घोर्णर – पत्र

है। संदवधरन के गौरवपूणि मूल्ो ंको संदवधरन की प्रस्तरवनर में रखर गयर है।

भररत के संदवधरन की प्रस्तरवनर – हम भररत के लोग भररत को एक समू्पणि प्रभुत्व सम्पन्न समरजवरिी,

पंथदनरपेक्ष, लोकतन्त्ररत्मक गणररज्य बनरने के दलए एवं उसके समस्त नरगररको ंको सरमरदजक, आदथिक

और ररजनैदतक न्यरय, दविरर अदभव्यक्तक्त स, दवश्वरस, धमि और उपरसनर की स्वतंत्रतर, प्रदतष्ठर और अवसर की

समतर प्ररप्त कररने के दलये एवं उन सब में व्यक्तक्त स की गररमर और ररष्ट्र की एकतर और अखण्डतर सुदनदित

कररने वरली बनु्धतर बढरने के दलए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संदवधरन सभर में आज तररीख 26 नवम्बर

1949 ई. (दमदत मरगिर्ीर्ि रु्क्ल सप्तमी संवत् 2006 दवक्रमी) को एतिद्वररर इस संदवधरन को अंगीकृत,

अदधदनयदमत और आत्मरदपित करते हैं।

(इस प्रस्तरवनर में दिए गए समरजवरिी, पंथ दनरेपक्ष तथर अखण्डतर र्ब्द 42वें संदवधरन संर्ोधन 1976 के

द्वररर जोडे गये हैं।)

प्रस्तािना के प्रमुि तते्व: प्रस्तािना के प्रमुि तत्वो ंका वििेचन वनम्नविक्तित है

(1) हम भारत के िोग – प्रस्तरवनर के इन र्ब्दो ंमें तीन बरतें दनदहत हैं-

1. संदवधरन द्वररर अक्तिम सत्तर जनतर में दनदहत है,

2. संदवधरन के दनमरितर जनतर के प्रदतदनदध थे,

3. भररतीय संदवधरन भररतीय जनतर की इच्छर कर पररणरम है।

(2) समू्पणय प्रभुत्व सम्पन्न, समाजिादी, पंिवनरपेक्ष, िोकताक्तिक गणराज् – ये र्ब्द भररतीय

संदवधरन की प्रस्तरवनर के आधरर स्तम्भ हैं, दजसकर अदभप्ररय इस प्रकरर है

(i) समू्पणि प्रभुत्व – इसकर तरत्पयि यह है दक भररत अपने आंतररक व बरहरी मरमलो ंमें पूणि स्वतंत्र है। वह

दकसी भी िूसरे िेर् के सरथ सम्बन्ध जोड सकतर है यर तोड सकतर है। यह उसकी इच्छर पर दनभिर है।

(ii) समरजवरिी – संदवधरन दनमरितर नही ंिरहते थे दक संदवधरन दविररधररर यर वरि दवरे्र् से जुडर हो यर

दकसी आदथिक दसद्धरि से सीदमत हो। इसीदलए मूल प्रस्तरवनर में समरजवरि र्ब्द को नही ंजोडर गयर थर,

दकिु सभी नरगररको ंको आदथिक न्यरय, प्रदतष्ठर एवं अवसर आदि की समरनतर दिलरने के संकल्प कर वणिन

दकयर गयर थर। सन् 1976 में 42वें संदवधरन संर्ोधन द्वररर प्रस्तरवनर में समरजवरि’ र्ब्द को भी जोड दियर

गयर।

(iii) पंथदनरपेक्षतर – भररतीय संदवधरन में दकसी भी एक धमि को ररष्ट्र धमि घोदर्त नही ंदकयर गयर है बक्ति

सभी धमों को समरन िजरि दियर गयर है। ररज्य धरदमिक मरमलो ंमें पूणितः तिथथ रहतर है। 42वें संदवधरन

संर्ोधन द्वररर इस र्ब्द को प्रस्तरवनर में जोड दियर गयर दजससे भरवी भररत की धमिदनरपेक्ष नीदत को बल

दमलर है।

(iv) लोकतन्त्र – इसकर अदभप्ररय यह है दक भररत में ररज्य सत्तर कर प्रयोग जनतर द्वररर दकयर जरतर है।

भररतीय जनतर इसकर प्रयोग अप्रत्यक्ष रूप से करती है अथरित् जनतर द्वररर दनवरिदित प्रदतदनदध र्रसन को

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संिरदलत करते हैं।

(v) गणररज्य – भररत के ररष्ट्र पदत वंर्रनुगत आधरर पर मनोनीत न होकर जनतर द्वररर अप्रत्यक्ष रूप से

दनवरिदित होते हैं। इसी कररण भररत को गणररज्य कहते हैं।

3. सामावजक, आवियक और राजनीवतक न्याय- प्रस्तरवनर के अिगित इन र्ब्दो ंके आधरर पर संदवधरन

के लक्ष् कर वणिन दकयर गयर है

(i) सरमरदजक न्यरय कर अथि है दक सभी नरगररको ंको दबनर दकसी भेिभरव के समरनतर प्ररप्त है। व्यक्तक्त सयो ं

के मध्य जरदत, धमि, वगि, दलंग, नस्ल, सम्पदत्त यर अन्य दकसी आधरर पर भेिभरव नही ंदकयर जरनर िरदहए।

(ii) आदथिक न्यरय कर अथि है दक समरज में अदधक अमीरी और गरीबी न हो। वगि भेि नू्यनतम हो एवं

प्रते्यक व्यक्तक्त स की नू्यनतम आवश्कतरओ ंकी पूदति की जरये तथर पुरुर् व मदहलरओ ंको समरन करयों के

दलए समरन वेतन दमले।

(iii) ररजनीदतक न्यरय कर अथि है दक सभी नरगररको ंको ररजनीदतक के्षत्र में समरन और स्वतन्त्र रूप से

भरग लेने कर अवसर हो । भररतीय संदवधरनं सरंदवधरदनक उपिररो ंद्वररर ररजनीदतक न्यरय के आिर्ि को

मूति रूप प्रिरन करतर है।

4. स्वतिता, समानता और बनु्धत्व-

1. स्वतन्त्रतर – भररतीय संदवधरन में नरगररको ंको दविरर अदभव्यक्तक्त स, दवश्वरस, धमि और उपरसनर की

स्वतन्त्रतर प्रिरन की गई है।

2. समरनतर – िेर् के सभी नरगररको ंको प्रदतष्ठर और अवसर की समरनतर प्रिरन की गई है।

3. बनु्धत्व – प्रस्तरवनर में व्यक्तक्त स की गररमर और ररष्ट्र की एकतर तथर अखण्डतर सुदनदित करने वरली

बनु्धतर की भरवनर बढरने के दलए संकल्प दलयर गयर है।

5. व्यक्तक्त स की गररम – संदवधरन के अनुचे्छि 17 में दिये गए मूल अदधकरर कर उदे्दश् असृ्पश्तर के

आिरण कर अि करनर है, जो दक मरनव की गररमर के दवरुद्ध है। इसी प्रकरर व्यक्तक्त स की गररमर को बनरये

रखने के दलए अनुचे्छि 32 में भी पयरिप्त प्ररवधरन हैं।

6. ररष्ट्र की एकतर एवं अखण्डतर-हमररे संदवधरन दनमरितर यह िरहते थे दक हमररे नरगररक के्षत्रीयतर,

प्ररिवरि, भरर्रवरि व सम्प्रिरयवरि को महत्व न िेकर िेर् की एकतर के भरव को अपनरयें। 42वें संदवधरन

संर्ोधन द्वररर प्रस्तरवनर में “अखण्डतर” र्ब्द को सक्तिदलत दकयर गयर है। इसकर मूल भररत की एकतर

और अखण्डतर को सुदनदित करनर है।

एकतर एवं अखण्डतर के दबनर हम लोकतन्त्र यर ररष्ट्र की स्वरधीनतर तथर नरगररको ंके सिरन की रक्षर नही ं

कर सकते हैं। इसदलए अनुचे्छि 51(क) में सभी नरगररको ंकर यह कतिव्य है दक वे भररत की सम्प्रभुतर,

एकतर और अखण्डतर की रक्षर करें और उसे अकु्षण्ण रखें।