अिभमयु क आमहया / राजे यादव I shall depart. Steamer with swaying masts, raise anchor for exotic landscapes. — 'Sea Breeze' Mallarme तुह पता है, आज मेरी वषगांठ है और आज म आमहया करने गया था? मालू म है, आज म आमहया करके लौटा हं? अब मेरे पास शायद कोई ‘आम’ नह बचा, िजसक हया हो जाने का भय हो। चलो, भिवय के िलए छु ी िमली! िकसी ने कहा था िक उस जीवन देने वाले भगवान को कोई हक नह है िक हम तरह-तरह क मानिसक यातनाओं से गु ज़रता देख-देखकर बैठा-बैठा मुकराये, हमारी मजबूरय पर हंसे। म अपने आपसे लड़ता रहं, छटपटाता रहं,जैसे पानी म पड़ी चटी छटपटाती है, और िकनारे पर खड़े शैतान बचे क तरह मेरी चेाओं पर ‘वह’ िकलकारयां मारता रहे! नह, म उसे यह ू र आनद नह दे पाऊं गा और उसका जीवन उसे लौटा दूंगा। मु झे इन िनरथक परिथितय के चयू ह म डालकर तू िखलावाड़ नह कर पाएगा िक हल तो मेरी मुी म बंद है ही। सही है, िक मां के पेट म ही मने सु न िलया था िक चयू ह तोड़ने का राता या है, और िनकलने का तरीका म नह जानता था.... लेिकन िनकलकर ही या होगा? िकस िशव का धनु ष मेरे िबना अनटू टा पड़ा है? िकसी अपणा सती क वरमालाएं मेरे िबना सू ख-सू खकर िबखरी जा रही ह? िकस एवरेट क चोिटयां मेरे िबना अछू ती िबलख रही ह? जब तू ने मु झे जीवन िदया है तो ‘अहं’ भी िदया है, ‘म हं’ का बोध भी िदया है, और मेरे उस ‘म’ को हक है िक वह िकसी भी चयू ह को तोड़कर घु सने और िनकलने से इंकार कर दे ..... और इस तरह तेरे इस बबर मनोरंजन क शुआत ही न होने दे ..... और इसीिलए म आमहया करने गया था, सु ना? िकसी ने कहा था िक उस पर कभी िवास मत करो, जो तुह नह तुहारी कला को यार करती है, तुहारे वर को यार करती है, तुहारी महानता और तुहारे धन को यार करती है। यिक वह कह भी तुह यार नह करती। तुहारे पास कु छ है िजससे उसे मु हबत है। तुहारे पास कला है; दय है, मुकराहट है, वर है, महानता है, धन है और उसी से उसे यार है; तु मसे नह। और जब तु म उसे वह सब नह दे पाओगे तो दीवाला िनकले शराबखाने क तरह वह िकसी दू रे मैकदे क तलाश कर लेगी और तुह लगेगा िक तुहारा ितरकार हआ। एक िदन यही सब बेचनेवाला दू सरा दू कानदार उसे इसी बाज़ार म िमल जाएगा और वह हर पु राने को नये से बदल लेगी, हर बु रे को अछे से बदल लेगी, और तु म िचलिचलाते सीमाहीन रेिगतान म अपने को अनाथ और असहाय बचे-सा यासा और अकेला पाओगे .... तुहारे िसर पर छाया का सु रमई बादल सरककर आगे बढ़ गया होगा और तब तुह लगेगा िक बादल क उस यामल छाया ने तुह ऐसी जगह ला छोड़ा है जहां से लौटने का राता तुह खु द नह मालू म.... जहां तु मम न आगे बढ़ने क िहमत है, न पीछे लौटने क ताकत। तब यह छलावा और वन-भंग खु द मं-टू टे सांप सा पलटकर तुहारी ही एड़ी म अपने दांत गड़ा देगा और नस-नस से लपकती हई नीली लहर के िवष बु झे तीर तुहारे चेतना के रथ को छलनी कर डालगे और तुहारे रथ के टू टे पिहये तुहारी ढाल का काम भी नह दे पायगे .... कोई भीम तब तुहारी रा को नह आएगा। यिक इस चयू ह से िनकलने का राता तुह िकसी अजु न ने नह बताया- इसीिलए मु झे आमहया कर लेनी पड़ी और िफर म लौट आया - अपने िलए नह, परीित के िलए, तािक वह हर सांस से मेरी इस हया का बदला ले सके ,हर तक को य क सु गंिधत रोशनी तक खच लाए। मु झे याद है : म बड़े ही िथर कदम से बांा पर उतरा था और टहलता हआ ‘सी’ ट के टैड पर आ खड़ा हआ था। सागर के उस एकात िकनारे तक जाने लायक पैसे जेब म थे। पास ही मज़दू र का एक बड़ा-सा परवार धू ि लया फु टपाथ पर लेटा था। धु आंते गड्ढ़े जैसे चूहे क रोशनी म एक धोती म िलपटी छाया पीला-पीला मसाला पीस रही थी। चूहे पर कु छ खदक रहा था। पीछे क टू टी बाउी से कोई झू मती गु न-गु नाहट िनकली और पु ल के नीचे से रोशनी-अंधेरे के चारखाने के फते-सी रेल सरकती हई िनकल गई-िवले पाल के टेशन पर मेरे पास कु छ पांच आने बचे थे। घोड़बदर के पार जब दस बजे वाली बस सीधी बैड टैड क तरफ दौड़ी तो मने अपने-आपसे कहा -”वॉट डू आई के यर? म िकसी क िचता नह करता!“