दल वववयालय का जीन परवतत (GM) सरसindiagminfo.org/wp-content/uploads/2015/11/GM-S... · फसल रकबा 59.8 फसद था। इसक
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�द�ल� �व�व�व�यालय का जीन प�रव�त�त (GM) सरस�
सरस� क� एक जीन प�रव�त�त (जेने�टकल� मॉ�डफाइड या जीएम) �क�म �यावसा�यक खेती के �लए भारत म� मंजूर�
पाने क� कगार पर है1 और ये त�य-प� (�ी�फंग पेपर) इस जीएमओ सरस� पर त�यपूण� बहस म� मदद करने के
उ�दे�य से ��तुत है। अगर ऐसा होता है तो जीन प�रव�त�त सरस� क� �यावसा�यक खेती करने क� यह दसूर� को�शश
होगी। पहल� बार सन ्2002 म� जम�नी क� बहुरा���य कंपनी बेयर क� सहायक कंपनी �ो ए�ो �वारा �वक�सत जीएम
सरस� को मंजूर� देने का आवेदन भारतीय �नयामक� ने खा�रज कर �दया था।2
अब तक भारत ने �सफ� जीएम कपास (बीट� कॉटन) क� �यावसा�यक खेती को औपचा�रक मंजूर� द� है जब�क कई
जीएम खा�या�न� का कई साल� से पर��ण चल रहा है। भारत सरकार के पया�वरण, वन और जलवायु प�रवत�न
मं�ालय के तहत जीएमओ से संबं�धत सव��च �नयामक सं�था जेने�टक इंिज�नय�रगं ए�ेजल कमेट� (जीईएसी, जो �क
तब जेने�टक इंजी�नय�रगं ए�वूल कमेट� के नाम से जानी जाती थी) न े2009 म� बीट� ब�गन क� �यावसा�यक खेती को
मंजूर� द� थी ले�कन देश भर म� साव�ज�नक �वचार-�वमश� और बहस के बाद भारत सरकार ने �नयामक के फैसले को
पलट �दया और 9 फरवर� 2010 को बीट� ब�गन के �यावसा�यक इ�तेमाल पर अ�नि�चतकाल के �लए रोक लगा द�
थी। बीट� ब�गन पर रोक के बाद, अब एक सरकार� उप�म क� ओर स ेजीएम संकर सरस� के �यावसा�यक उ�पादन क�
मंजूर� के �लए आवेदन �कया गया है। यह �यास आगे चलकर �नजी �े� क� मॉनस�टो, �सजंे�टा और डो जैसी
क�प�नय� �वारा तैयार क� गई दसूर� जीएम फसल� जैसे म�का, चावल, ब�गन आ�द के �लए रा�त ेखोलेगा। इस
सं���त त�य-प� म� �द�ल� �व�व�व�यालय के स�टर फॉर जेने�टक मै�नपुलेशन ऑफ �ॉप �लां�स (CGCMP) �वारा
�वक�सत जीएम सरस� से संबं�धत त�य ��तुत �कए गए है।
भारत म� सरस�
पील� सरस�-सरस� (राई, तो�रया, तारामीरा आ�द �थानीय नाम ह�) �तलहन, स�जी और चारे के �प म� �योग क� जाने
वाल� फसल ह�। ये भारत म� कर�ब 5.5 से 7 �म�लयन हे�टेयर रकबे म� पैदा क� जाती है। भारत म� ये �यादातर रबी
क� फसल या �फर जाड़े क� फसल के तौर पर उगाई जाती है। कुछ इलाक� म� ये एकल फसल के तौर पर बोई जाती है
जब�क कई जगह ये अंतर फसल के तौर पर भी उगाई जाती है।
भारत म� �ै�सका (पील� सरस�/सरस�) न ेधीरे-धीरे सोयाबीन और मूंगफल� क� बजाय �तलहन क� �मुख फसल के तौर
पर जगह बना ल� है। �तलहन के तौर पर सोयाबीन क� पैदावार 2012-13 म� 146.66 टन थी जब�क 2013-14 म�
119.89 लाख टन। ले�कन, तेल के �प म� उपयोग के मामले म� ये तो�रया (रेपसीड)/सरस� के बाद दसूरे नंबर पर रहा।
2012-13 म� सोयाबीन तेल का उ�पादन 23.47 लाख टन था जब�क सरस� या तो�रया (रेपसीड) तेल का उ�पादन
24.89 लाख टन था। अगले साल 2013-14 म� सोयाबीन तेल का उ�पादन घटकर 19.19 लाख टन रहा जब�क सरस�
और तो�रया (रेपसीड) तेल का उ�पादन बढ़कर 24.68 लाख टन पहंुच गया।3 2008-09 से 2013-14 के बीच तो�रया
(रेपसीड) और सरस� के रकबे म� सालाना औसत व�ृ�ध दर तीन फ�सद�, उ�पादन म� 7.3 फ�सद� और उ�पादकता म�
3.9 फ�सद� रह� (जब�क सभी �तलहन� क� सामू�हक उ�पादकता व�ृ�ध दर 1.3 फ�सद� रह�)।4 ये आंकड़े वा�तव म�
हाल के वष� म� कामयाबी के उदाहरण के तौर पर पेश क� जाने वाल� भारतीय म�के और कपास क� कहा�नय� से
�यादा �भावशाल� ह�।
वैि�वक �तर पर, चीन और कनाडा के बाद भारत द�ुनया म� तो�रया (रेपसीड) और सरस� का तीसरा बड़ा उ�पादक है।
हाल के वष� म� भारत म� इन फसल� क� खेती का रकबा कुल फसल� रकबे के कर�ब 2.8 फ�सद� के आसपास बना हुआ
है। भारत म� तो�रया (रेपसीड) और सरस� �यादातर �स�ंचत भू�म म� ह� उगाई जाती है। 1990-91 म� खेती का �स�ंचत
फसल� रकबा 59.8 फ�सद� था। इसक� तुलना म� 2011-12 म� खेती का �स�ंचतं फसल� रकबा 73.2 फ�सद� हो गया।
समि�वत �प से उपज म� भी सुधार �दखा है। 1950-51 म� उपज 3.68 कंुतल ��त हे�टेयर से बढ़कर 1990-91 म�
9.04 कंुतल ��त हे�टेयर पहंुची और 2012-13 म� उपज औसतन 12.62 कंुतल ��त हे�टेयर थी। 2012-13 म�
गुजरात म� तो�रया (रेपसीड) और सरस� क� ��त हे�टेयर उपज 16.95 कंुतल अथा�त ् लगभग 1.7 टन रह�। कुल
उ�पादन क� �ि�ट से देख� तो 1950-51 के 0.76 �म�लयन टन से बढ़ कर यह 2013-14 म� 7.96 �म�लयन टन पहंुच
गया (चौथे अ��म अनुमान म� 2010-11 म� ये 8.18 �म�लयन टन पहंुच गया था)। 2013-14 म� रेपसीड-सरस� के
तीन बड़े उ�पादक रा�य थ:े राज�थान (भारत म� कुल उ�पादन का 48.12 फ�सद�), म�य �देश (11.31 फ�सद�) और
ह�रयाणा (11.06 फ�सद�)। एक साथ �मलाकर तीन� रा�य� का भारत के उ�पादन म� 70 फ�सद� स े�यादा �ह�सा है।
सरस� पैदा करने वाल ेदसूरे अहम रा�य ह�- उ�र �देश, पि�चम बंगाल, गुजरात, असम, �बहार, पंजाब5 आ�द।6
सरस� के तेल म� संत�ृत वसा अ�ल कम मा�ा म� पाया जाता है और इसम� �लनोलेइक और ल�नोले�नक वसा अ�ल
पया��त मा�ा म� होता है। सरस� �जा�त के बीज से कर�ब 33 फ�सद� तेल �नकलता है। बीज से तेल �नकलने का
मामल ेम� दसूरे �तलहन जैसे सोयाबीन, मूंगफल� आ�द क� तुलना म� ये �यादा है।7 तेल �नकालने के बाद बची 67
��तशत खल� का उपयोग जानवर� के खाने या �फर खाद के तौर पर होता है। भारत म� �े�सका जुन�सया सरस� क�
�मुख �प से उगाई जाने वाल� �जा�त है इसके अलावा दसूर� �मुख �जा�त �े�सका रापा और �े�सका नेपस ह�।
�द�ल� �व�व�व�यालय का जीएम सरस�
वत�मान म� नई �द�ल� ि�थत �द�ल� �व�व�व�यालय के द��णी कै�पस ि�थत स�टर फॉर जेने�टक मै�नपुलेशन ऑफ
�ॉप �लां�स (सीजीएमसीपी) �वारा �वक�सत क� गई (�ा�सका जुन�सया) संकर सरस� डीएमएच-11, िजसम� बार,
बारनेस और बार�टार जीन� को डाला गया है, ने क�थत �प से दसूरे �तर क� जैवसुर�ा शोध (बायोसे�ट� �रसच� लेवेल
-II) को पूरा कर �लया है। भारतीय �नयामक तं� क� श�दावल� म� यह �तर �कसी फसल को �यावसा�यक �प से
उ�पा�दत करने क� अनुम�त देन ेक� �दशा म� अं�तम स ेठ�क पहले का चरण है। इस जीन प�रव�त�त जैवपदाथ� का
�वकास करने वाले बताये जा रहे डा. द�पक प�टल ने जीईएसी क� 73वीं बैठक म� ��तुत ��ताव "�ांसजे�न�स इन
म�टड� (�ै�सका जुन�सया) फॉर हेटरो�सस �ी�डगं" म� बताया �क 1994 से जैव तकनीक �वभाग �वारा �व�पो�षत इस
प�रयोजना का मु�य उ�दे�य
(अ) �ै�सका जुन�सया म� बारनेज जीन डालकर इसक� नर �जनन �मता को रोकना और
(ब) �ै�सका जुन�सया म� �ांसजे�नक लाइन� वाल ेबार�टार जीन को डालकर इसक� नर �जनन �मता को पुनः स��य
करना है।
समझा जाता है �क 2002-03 और 2003-04 के रबी के मौसम म� सी�मत तौर पर ज�ती गांव के खेत� म� इसका
पर��ण �कया गया। इसके बाद 2005-06 के रबी के मौसम म� इसका कई �थान� पर पर��ण �कया गया। बताया गया
�क ये पर��ण भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद के त�वावधान म� हुए। इस फसल के बीआरएल I (बायोसे�ट� �रसच�
लेवल वन) पर��ण 2010 म� राज�थान म� �कए गए जब�क राज�थान म� अगले साल ऐसे बीएलआर I पर��ण� को
रोकने क� मांग क� गई। ऐसे म� कटाई से थोड़ा पहले ह� तीन पर��ण� म� से एक क� फसल को जला कर न�ट कर
�दया गया। इसके बाद 2014-15 के रबी के मौसम म� बीआरएल II (बायोसे�ट� �रसच� लेवल टू) पर��ण (इसे
�यावसा�यक खेती क� मंजूर� पर �वचार से पहले का आ�खर� चरण माना जाता है) तीन �थान� (लु�धयाना, भ�टंडा और
�द�ल�) पर �कए गए।8
माना जाता है �क जीएमओ मामल� म� जैव सुर�ा संबंधी सभी �रपोट�, फसल का जीव-वै�ा�नक �ववरण और दसूर�
जानका�रयां साव�ज�नक तौर पर मुहैया करायी जाएंगी। सीआईसी (क� ��य सूचना आयोग) के आदेश� के अलावा सु�ीम
कोट� ने भी जीएम फसल� पर दायर एक जन�हत या�चका पर 2005 से चल रह� सुनवाई के दौरान जार� अंत�रम
आदेश� म� से एक म� इसे दहुराया है। �फर भी, इस �रपोट� के बावजूद �क बीआरएल-II के पर��ण पूरे कर �लए गए ह�,
जीईएसी क� वेबसाइट पर अब तक इस जीएम सरस� के बारे म� कोई भी जानकार� मुहैया नह�ं कराई गई है। इस
जीएम सरस� के जैव सुर�ा डेटा के बारे म� जानकार� मांगत ेआरट�आई आवेदन� को �नयामक� ने बार-बार इस बहाने
के साथ ठुकरा �दया �क ''ये अभी ���या म� है''। इससे ये माना जा सकता है �क या तो �नयामक (जीईएसी) उस
�ारि�भक जैव सुर�ा जानकार� को बाहर आने से रोके हुए ह� िजसके आधार पर इस जीएमओ सरस� के बीआरएल II
पर��ण� को मंजूर� द� गई अथवा फैसला लेने के �लए ज�र� ठोस डेटा न होने के बावजूद बीआरएल II को मंजूर� दे द�
गई।
दावे: इस जीएम सरस� को �वक�सत करने वाल� का दावा है �क इसक� उपज 25-30 फ�सद� �यादा है।9 ले�कन, इस
दावे के साथ िजस बात का िज� नह�ं �कया जाता है वह यह है �क इस जीएम सरस� से �मलने वाल� उपज और
बाजार म� पहले से मौजूद गैर जीएम संकर �जा�तय� क� उपज म� कोई अंतर नह�ं है। साफ है �क ये जीएम सरस�
�कसान� के फायदे क� नह�ं है, बि�क इससे केवल बीज �नमा�ताओं को लाभ होगा, िजसके बारे म� आगे इस त�य-प� म�
बताया गया है। शु� म� भारत सरकार के �व�ान और �ौ�यो�गक� मं�ालय के जैव �ौ�यो�गक� �वभाग से सहायता
�ा�त इस जीएमओ �वकास प�रयोजना से बाद म� रा���य डेयर� �वकास बोड�, यूरोपीय यू�नयन और कई दसूरे संगठन
जुड़।े 2012 तक इसके �वकास पर कर�ब 45 करोड़ �पये का �नवेश �कया गया।10 अब ताजा आंकड़� के मुता�बक इस
जीएम सरस� के �वकास के �लए जनता के कर�ब 70 करोड़ �पये खच� हो चुके ह�।11
बीट� ब�गन के मामले म� �ांसजे�नक �ौ�यो�गक� क� सुर�ा सा�बत कर पाने म� नाकाम होने के बाद जीएम सरस� लाने
क� मौजूदा को�शश, भारत म� खा�य फसल� क� �ांसजे�नक �ौ�यो�गक� म� द�ुमन� को चोर दरवाजे से लाने जैसी है।
इसके प� म� जो तक� �दया जा रहा है �क वो है �क ये जीएमओ सरस� चंू�क पि�लक से�टर से है, इस�लए ये महंगा
नह�ं होगा और न ह� इसके �यावसा�यक इ�तेमाल पर �कसी कंपनी का एका�धकार होगा। ये भी तक� �दया जा रहा है
�क इस जीएम सरस� के आन ेपर भारत क� �तलहल और तले आयात क� �नभ�रता कम हो जाएगी। इसे बनाने वाले ये
भी दावा करत ेह� �क ये सुर��त है और कनाडा के जीएम कैनोला जैसी है। भारत म� जैसा �पछले 13 साल� का अनुभव
रहा है, उसम� ये बताना गलत नह�ं होगा �क बीट� कॉटन को लेकर �कए गए सभी दावे झूठे और गलत सा�बत हुए ह�।
भारत म� कपास क� खेती म� कृ�ष रसायन� (क�टनाशक� और उव�रक� दोन�) का इ�तेमाल बढ़ा है, ��त हे�टेयर
क�टनाशक� का इ�तेमाल 0.9 �कलो�ाम पहंुच गया है, ये बीट� कॉटन के आने से पहले के व�त यानी सन 2000 से
पहले जैसा हो गया है।12 �कसान� क� आ�मह�या बेरोकटोक जार� है िजनम� से �यादातर बीट� कपास पैदा करने वाले
�कसान ह�। गौर करने लायक �दलप�प बात यह है �क देश के अ�णी कपास वै�ा�नक कपास क� खेती से जुड़े संकट�
के समाधान के �लए गैर जीएम भारतीय कपास को बढ़ावा देने क� ज�रत बता रहे ह�।13
‘�ा�कथन’: 2002 म� �ो-ए�ो जीएम सरस� �यावसा�यक खेती के �लए अ�वीकृत
नवंबर 2002 म� जेने�टक इंजी�नय�रगं मू�यांकन स�म�त (7 नवंबर 2002 को 34वी ंमी�टगं म�) न े�ो-ए�ो के आवेदन
पर जीएम सरस� क� �यावसा�यक बुआई के �लए मंजूर� �दान करने के फैसले को कुछ समय के �लए टाल �दया। पाया
गया था �क इस जीएमओ के �लए जीएम बीज� को 2002 म� �यावसायीकरण क� को�शश करने स ेसात साल पहले
बेि�जयम से �ा�त �कया गया था। जैसी बारनेस/बार�टार जीन �णाल� �ो ए�ो जीएम सरस� म� बांझपन और इसे �फर
से वापस पुरानी ि�थ�त म� लाने वाल� सीमा के �लए इ�तेमाल क� गई थी वैसी ह� �द�ल� �व�व�व�यालय जीएम सरस�
म� भी इ�तेमाल क� गई है। इसम� बार जीन और फॉ�फोनाइ���सन ��तरोध को�डगं जीन भी थ ेजो जा�हर तौर पर
रासाय�नक गुण बताने के �लए थ ेले�कन ये खरपतवार नाशक ��तरोधी भी है।14 25 अ�ैल 2003 को हुई जीईएसी क�
36वीं बैठक म� �ो-ए�ो क� जीएम सरस� के मामल ेपर एक बार �फर �वचार हुआ और जीईएसी इस फैसले पर पहंुची
�क इस मसले पर सभी जैवसुर�ा तथा कृ�ष वै�ा�नक मु�द� पर आगे अ�ययन �कया जाना चा�हए। दो साल बाद
बायर (�ो-ए�ो क� मात ृक�पनी अव��टस का बायर ने अ�ध�हण कर �लया था) ने एक पया�वरण संगठन के साथ हुए
संवाद म� पुि�ट क� �क वह इस जीएमओ पर शोध बंद कर रह� है।15
बहुत से लोग� का तक� था �क �ो-ए�ो का जीएम सरस� �लफूो�सनेट जैसे खरपतवार नाशक� का ��तरोध करन ेके �लए
बार जीन क� �मतावाल� फसल के �प म� �वक�सत �कया गया था, भले ह� आ�धका�रक �प से उसे �यादा उपज वाल े
बीज के �प म� ��तुत �कया गया हो। क�पनी का तक� था �क भारत म� �लूफो�सनेट का इ�तेमाल सरस� पर करने क�
अनुम�त नह� ं है;16 ले�कन सच यह है �क चाय बागान� म� वा�तव म� �लूफो�सनेट का इ�तेमाल हो रहा है और यह
सोचना मुि�कल नह�ं है �क भारत जैसे देश म� जहां �कसी उ�पाद अथवा तकनीक के अं�तम उपयोग पर �कसी �कार
का �नयमन लगभग असंभव है वहां इस सरस� क� इस फसल के खरपतवार नाशक ��तरोधक गुण� के कारण उस पर
भी �लूफो�सनेट का इ�तेमाल शु� हो सकता है।
नवंबर 2002 और अ�ैल 2003 म� जीईएसी क� बैठक� (और, भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद अ�धका�रय� के मी�डया
इंटर�यू) म� िजन �बदंओुं पर चचा� हुई थी वे इस �कार ह�: 17
क�पनी �वारा पराग कण� के �सार �े� के बारे म� दाव े�कए गए थे �क इन �ांसजी�स का �सार 35 मीटर तक है
जब�क भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद के �योग� म� इन पराग कण� का �सार 75 मीटर तक पाया गया। कृ�ष जलवाय ु
प�रि�थ�तय� और भारतीय �कसान� क� छोट� जोत को �यान म� रखत ेहुए स�म�त का मानना था �क इन �ांसजीन पराग
कण� के कारण आसपास के खेत� क� गैर जीएम सरस� के बीज� पर नर बाँझपन के बारनेज, बार�टार, नीओमाइ�सन और
बार जी�स के कारण जीन �दषूण क� संभावना है िजससे गैर �ांसजे�नक �क�म� के गुण� क� ि�थरता �भा�वत हो सकती
है।
कंपनी न े�व�भ�न जीएम संकर बीज� म� स ेव�ण के जांच प�रणाम� को सबस ेअ�छा बताते हुए उसस ेउ�पादन म� 16%
से 23% व�ृ�ध का दावा �कया जब�क भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद के �योग म� �मल ेप�रणाम� म� यह व�ृ�ध केवल
5% थी। जीइएसी ने यह भी कहा �क इस �ांसजे�नक सरस� क� कृ�षवै�ा�नक �े�ठता भी अभी तक पूर� तरह से
�था�पत नह�ं है।
भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद, िजसक� देखरेख म� वा�त�वक �े� पर��ण होने चा�हए थे, ने �प�ट �कया �क कंपनी
उसके �नर��ण म� िजतने �े� पर��ण� का दावा कर रह� है वह गलत है और उसने केवल चार �थान� पर पर��ण� का
आयोजन �कया था जो अ�ययन क� �ि�ट से पया��त नह�ं ह�।
जीईएसी का �नण�य था �क "सरस� के खा�य फसल होन ेके कारण इसक� लेब�लगं, पहचान आ�द से संबं�धत मह�वपूण�
नी�तगत मु�द� के �था�पत होन ेके बाद ह� इसके �यावसा�यक �योग क� अनुम�त द� जानी चा�हए"।
कंपनी �वारा �कए गए पर��ण अ�ययन म� यह बात भी सामन ेआई �क �ांसजे�नक सरस� के खेत के आसपास के खेत�
म� उगाई गई गैर-�ांसजे�नक सरस� क� फसल म� नर भाग क� नपसुंकता स े�भा�वत पौध ेउपि�थत थे। अनुमान �कया
गया �क बारनेज जीन के कारण नर भाग क� नपुंसकता स े�भा�वत पौध� क� उपि�थ�त कुल पौध� म� औसतन 0.31%
है। स�म�त ने उ�लेख �कया �क बार�टार और बार जीन के कारण द�ूषत हुए देशी पौध� का मु�दा मह�वपूण� है िजसका
�यान �ांसजीन के �सार का आकंलन करते समय नह� ंरखा गया है।
माक� र जीन के �प म� बार जीन का उपयोग, खर-पतवार� जैसी व�ृ�ध क� अ�धकता और प�रणाम�व�प उ�ह� रोकन ेके
�लए �वषा�त शाकना�शय� के उपयोग के ��न पर भी चचा� हुई। �नण�य �लया गया था �क शाकना�शय� क� ��तरोधकता
समेत सभी जैवसुर�ा मामल� पर आग ेका अ�ययन भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद �वारा आयोिजत �कया जाना
चा�हए।
स�म�त ने उ�लेख �कया �क सरस� के खा�य फसल होने के कारण इसस ेजुड़ े�वा��य सुर�ा पहलुओ ंको �था�पत करने
के �लए और अ�ययन� क� ज�रत है।
कुल �मलाकर, यह देखा जा सकता है �क �ो-ए�ो जीएम सरस� का पर��ण उतनी �यापकता और कठोरता से भी नह�ं
�कया गया था िजतना रा���य कृ�ष अनुसंधान �णाल� (एनएआरएस) म� अ�खल भारतीय समि�वत फसल सुधार शोध
प�रयोजनाओं के अधीन �नय�मत �जा�त चयन पर��ण� के दौरान �कया जाता है। �वा��य के प� पर देखा गया �क
शाक के �प म� �योग होने वाल� सरस� क� प�� के खा�यसुर�ा आंकड़े नह�ं �दए गए थे और आवेदक ने केवल इन
बीज� से उ�पा�दत तेल के आंकड़े पेश �कए थे।18 �नयामक� �वारा �ो-ए�ो जीएम सरस� क� अनुम�त �थ�गत करने के
अ�य कारण� म� �दषूण और ख�म करने म� मुि�कल खर-पतवार� के उ�प�न होने क� संभावना जताते हुए कहा गया
�क भले यह संभावना कम हो, इस बात पर �वचार आव�यक है �क �या यह जो�खम �वीकाय� है।
इस बारे म� आए समाचार� के अनुसार �नयामक� का एक और �ासं�गक सवाल था �क यह जानते हुए �क जीएम सरस�
को िजन �े�� म� उगाने क� अनुम�त द� जाए ये उन सभी �े�� म� उपयोगी नह�ं हो सकता, ऐसे म� एक बार अनुम�त
�दए जाने के बाद अ�य �े�� म� इसके �सार को �नयं��त करने के �या उपाय हो सकत ेह�। इन ��न� पर जीएम
सरस� के �वकासकता�ओं क� ओर से कोई उ�र नह�ं �मला। इस जीएम सरस� को अ�वीकृत �कए जाने के बाद जीएम
पर��ण� क� जानकार� जनता के सामन ेरखने क� मांग भी उठ� थी।
उ�लेखनीय है �क जीईएसी का उपयु��त �ि�टकोण और �न�कष� भारतीय जैवतकनीक �नयमन के इ�तहास के उस दौर
म� था जब फैसले केवल क�प�नय� �वारा ��तुत आंकड़� के आधार पर �कए जात ेथे और जैवसुर�ा तथा अ�य
�व�श�ट मु�द� पर �वशेष� स�म�तय� �वारा उन आंकड़� क� �वतं� जांच, नए �सरे से �व�लेषण अथवा मू�यांकन क�
�यव�था नह�ं थी।
इस कहानी का �फर से दोहराया जाना इस�लए ज�र� है �क इसम� �कए गए दावे, �ौ�यो�गक� और पर��ण ���याएं
�द�ल� �व�व�व�यालय �वारा �वक�सत जीएम सरस� के इ�ह�ं प�� स ेमेल खाती हुई है �सवाय इस अंतर के �क पहला
�यास �नजी �े� क� एक क�पनी क� ओर स ेहुआ था और वत�मान �यास साव�ज�नक �े� क� एक सं�था क� ओर से
�कया गया है। �प�टतः इस बात का �यान �दए �बना �क जीएमओ का �वकास �नजी �े� म� हुआ है या साव�ज�नक
�े� म�, 2002 म� �नयामक� �वारा इ�तेमाल �कए गए तक� आज भी �ासं�गक ह�।
इस प�ृठभू�म के साथ, हम वापस �द�ल� �व�व�व�यालय के जीएम सरस� क� ओर बढ़त ेह�.
जीएम तकनीक बीज उ�पादक� के �लए है- भारत के खा�य तेल आयात का इस
तकनीक स ेकोई मतलब नह� ं
जैसा �क पहले उ�लेख �कया जा चुका है, सरस� के इस आनुवं�शक संशोधन स ेिजस संकरण ���या को आगे बढ़ाया
जाना है, वह मु�य �प से बीज �नमा�ताओं के �लए है। जहां तक �कसान� का संबंध है, यह जीएम सरस� पहले स ेह�
बाजार म� मौजूद गैर-जीएम संकर सरस� के समान है। वा�तव म�, कृ�ष मं�ालय ने हाल ह� म� ��त हे�टेयर 2.4 टन
पैदावार देन ेवाल� भारतीय संकर सरस� (एनआरसी संकर सरस�) के बीज उ�पादन तकनीक के मानक�करण क� घोषणा
क� है।19 यह �यान रखना भी मह�वपूण� है �क इस बात के पया��त �माण ह� �क बीज क� �जा�त के साथ �कसी तरह
क� छेड़छाड़ �कए �बना गहन सरस� उ�पादन �णाल� जैसी कृ�ष प�ध�तय� का उपयोग करते हुए सरस� क� उपज को
2.5 से 3 टन ��त हे�टेयर तक पहंुचाया जा सकता है। गहन उ�पादन �णाल� के सभी �स�धांत� का �योग करने पर
तो पैदावार ��त हे�टेयर 4 टन तक पहंुची है। ये �माण �बहार के उन 1600 �कसान� से एक��त �कए गए ह� िज�ह�
उनके �योग� म� �बहार सरकार क� ओर से मदद मुहैया कराई गई थी। इस �योग म� �द�ल� �व�व�व�यालय के शोध के
तहत �कए गए �थम और दसूरे �तर के जैवसुर�ा शोध (बीआरएल I तथा II) के �म म� �कए गए दो से चार पर��ण�
क� तुलना म� काफ� बड़े �े�फल का �योग हुआ।20 यह भी �यान रखा जाना चा�हए �क सु�नयोिजत �प से �द�ल�
�व�व�व�यालय के शोध आंकड़� म� जीएम सरस� के उ�पादन क� तुलना �कसी अ�य संकर �जा�त के उ�पादन से करने
के �थान पर ओपी �ेणी क� व�ण �जा�त के बीज� से �मले उ�पादन से क� गई।
जीएम सरस� के �वकासकता�ओं के इस दाव ेक� ओर भी देख� �क जीएम सरस� के उपयोग स ेभारत का खा�य तेल
आयात �बल घट जाएगा। इस तकनीक-क� ��त �ि�टकोण (िजसम� इस बात का भी �याल नह�ं रखा गया है �क सरस�
क� संकर �जा�तयां पहले से ह� बाजार म� मौजूद ह�) को रखते हुए �प�टतः उन नी�तगत और राजनी�तक कारक� क�
उपे�ा क� गई िजनसे भारत का तेल आयात नीचे आ सकता है जब�क �वशेष�� ने बार-बार रेखां�कत �कया है �क
खा�य तेल� का आयात कम करन े के �लए वा�तव म� नी�तगत प�रवत�न� क� ज�रत है। उदाहरण के �लए, आयात
शु�क 300 फ�सद� स ेघटाकर लगभग शू�य हो जाने के कारण देश म� स�ते आया�तत तेल क� बाढ़ आ गई है। इसके
अलावा, यह भी याद रखने क� ज�रत है �क 1985 म� शु� हुए �तलहन �ौ�यो�गक� �मशन ने �कस सफलता से देश
म� खा�य तेल� क� ि�थ�त बदल� है। �मशन शु� होने के समय 1985-86 म� देश क� कुल ज�रत का लगभग 50%
आयात करना होता था जो 1993-94 आते-आते घटकर 3 ��तशत रह गया था।21 इस�लए, सरस� जैसे �तलहन� के
उ�पादन को पया��त नी�तगत समथ�न� जैसे बाजार को आया�तत स�त ेखा�य तेल� से भर देन ेसे रोकने के �लए ऊंचे
आयात शु�क�, सरस� �कसान� को लाभकार� मू�य �दान करने और उनक� उपज क� वा�त�वक खर�द क� �यव�था
करने जैसे उपाय� से सरस� उ�पादन को �ो�सा�हत करके �तलहन फसल� के उ�पादन म� व�ृ�ध और आयात �बल कम
करने के मोच� पर बड़ी सफलता पाई जा सकती है। यह भी �यान �दया जाना चा�हए �क औसत भारतीय �दय रोग�
और दसूर� �वा��य सम�याओ ंसे बचे रहने के �लए डॉ�टर� �वारा सं�तुत खा�य तेल� क� मा�ा से लगभग दोगुना
तेल� का उपयोग करता है।
जीएम सरस� म� �यु�त जीन� के कारण यह आनुवं�शक �योग ��तबंध �ौ�यो�गक� (GURT) है
�द�ल� �व�व�व�यालय का जीएम सरस� बारनेज जीन के उपयोग से नर बांझपन पैदा करता है। इस�लए यह एक
�कृ�त संबंधी आनुवं�शक �योग ��तबंध �ौ�यो�गक� (Genetic Use Restriction Technology) है। इसके
�वकासकता�ओं का दावा है �क इस संकर �जा�त क� पुन�था�पक �ृंखला (Restorer Line) म� बार�टार जीन के �योग
से पुन��पादकता को दोबारा हा�सल �कया जा सकता है और नर बांझपन पैदा करने वाला जीन बारनेज इस फसल से
दसूर� फसल� म� नह�ं पहंुचेगा। ले�कन, जीन प�रवत�न के अि�थर और अ��या�शत �व�ान तथा सामा�य जै�वक ���या
अध�सू�ी�वभाजन (Meiosis) क� मौजूदगी म� यह �प�ट है �क इसे पूर� तरह से सुर��त नह�ं माना जा सकता। �कसी
भी ि�थ�त म�, मूल गुणसू�� वाले पैतकृ �ृंखला क� फसल� का भी �योगशाला से बाहर वा�त�वक उ�पादन करने क�
आव�यकता होगी, और उनके गुणसू�� से दसूर� फसल� के �भा�वत होने क� संभावना �यादा होगी जब�क संकर �जा�त
क� फसल से भी ऐसी संभावना को एकदम नकारा नह�ं जा सकता। पादप �व�वधता संर�ण और �कसान अ�धकार
अ�ध�नयम (PPVFRA), 2001 क� धारा 29(3) के अनुसार GURT तथा ट�म�नेटर तकनीक� का वग�करण ऐसी
�ौ�यो�गक� के �प म� �कया गया है जो मनु�य�, पशुओं या पौध� के जीवन अथवा �वा��य के �लए हा�नकारक है। यह
भी �प�ट �प स ेकहा गया है अ�ध�नयम के अंतग�त ऐसी �कसी जींस �ृंखला या �जा�त का पंजीकरण नह�ं �कया
जाएगा िजसम� GURT का �योग हुआ हो।
भारत म� सरस� क� कई �क�म�
भारतीय सरस� (�ै�सका जुन�सआ)22 के मूल उ�प�� �थान के बारे म� �व�वान� के �वरोधाभासी दाव� के बीच भी यह
सु�था�पत है �क सरस� के �लए भारत �व�वधता का क� � है।23 सु�ीम कोट� क� तकनीक� �वशेष� स�म�त (ट�ईसी) के
एक सद�य न े1991 म� �का�शत एक शोध म� इस बात क� पुि�ट क� थी �क �ै�सका एसएसपी (राई, सरस� और
तो�रया जैसी �े�णयां) क� कई �जा�तय� का मूल उ�प�� �थान भारत है।24 वा�तव म�, इस बात के �माण दज� ह� �क
देश के सभी भाग� म� सरस� कुल (Brassicaceae) क� उ�च �व�वधता है। बीट� ब�गन पर रोक लगाने के कारण� म� से
एक यह भी था �क भारत ब�गन का उ�प�� तथा �व�वधता क� � है। सव��च �यायालय क� तकनीक� �वशेष� स�म�त ने
अपनी �रपोट� म� बहुमत स ेकहा था �क उन सभी फसल� या पादप� के बारे म� जीन प�रवत�न शोध बंद �कए जाने
चा�हए िजनक� उ�प�� और/या �व�वधता का क� � भारत है, इस संदभ� म� जीएम सरस� का �वकास भारत क� सरस� जैव
�व�वधता के �लए हा�नकारक हो सकता है। एक दशक पहले कृ�ष जैव �ौ�यो�गक� के अनु�योग पर �वामीनाथन टा�क
फोस� क� �रपोट� म� भी उन फसल� के जीन�म के साथ प�रवत�न के �खलाफ चेतावनी द� िजनक� उ�प�� और/या
�व�वधता का क� � भारत है।
भारत म� �े�सका जुन�सआ क� अनेक �क�म� उगाई जाती ह�, िजनम� से कई �वक�सत �जा�तय� को मु�त �योग के
�लए जार� �कया गया है। भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद के रेपसीड (तो�रया) -सरस� अनुसंधान �नदेशालय (DRMR)
के अनुसार 1967 म� तो�रया (रेपसीड)/सरस� पर अ�खल भारतीय समि�वत अनुसंधान प�रयोजना क� �थापना के बाद
2013 तक साव�ज�नक �े� क� ओर स ेभारतीय सरस� क� 91 �क�म� जार� क� जा चुक� ह�। अकेले इस �नदेशालय ने
रा���य और अंतररा���य एज��सय� से अ�ध�हण के मा�यम से 1868 �कार क� भारतीय सरस� �जा�तय� को हा�सल
�कया है (तो�रया (रेपसीड) �जा�तय� के साथ यह सं�या 2452 है); इसके अलावा, पूरे देश म� रेपसीड(तो�रया)-सरस� क�
12,755 �क�म� क� उपल�धता �मा�णत है।25 यह त�य देश म� इस फसल क� जबरद�त �व�वधता क� एक झलक देता
है।
रोकथाम असंभव, �दषूण अप�रहाय�
�व-परागण तथा पर-परागण दोन� तर�क� से परागण होने वाल� फसल26 के कारण जीएम कैनोला / तो�रया (रेपसीड) से
संदषूण क� घटनाएं द�ुनया के कई �ह�स� म� कई बार सामन ेआई ह�। जै�वक संदषूण के अलावा मधुमि�खय� के सहारे
काफ� दरू� तक परागण क� संभावनाओं के साथ ह� कई दसूरे तर�क� स ेपरागण क� संभावनाओं के कारण इसे रोक
पाना असंभव है। इस फसल के बीज� का आकार काफ� छोटा होने के कारण फसल कटाई के बाद क� ���याओं म�
सावधा�नय� के बावजूद दसूर� फसल� के साथ �मलकर �कसी भी दरू� तक पहंुच सकते ह�। इसके अलावा फसल कटाई,
भराई आ�द ���याओं के दौरान ये पड़ोसी खेत� तक उड़ कर भी पहंुच सकत ेह�। इसके अलावा, कई जैव च�� तक
स�म रहकर खुद �वक�सत हो जाने वाले पौध� और जंगल� पौध� के बीज के �प म� �कसी �नि�चत समय के काफ�
बाद भी इनका स��य होना संभव है।
उ�लेखनीय है �क द�ुनया भर म� पादप संदषूण क� िजन घटनाओं का पता चला है उनम� से कई का कारण आयात-
�नया�त है। ऐसा �तीत होता है �क 2002 म� जीएम तो�रया (रेपसीड) क� एक खेप का कनाडा से �ांस म� आयात हुआ।
इसके दो साल बाद 2004 से आई कई �रपोट� म� इस खेप के प�रवहन माग� म� पड़े जापानी बंदरगाह� के अलावा
आयात�थल� से काफ� दरू के �े�� म� इस जीएम तो�रया (रेपसीड) स ेसंदषूण का उ�लेख �कया गया है। हाल म� आई
�रपोट� म� बताया गया है �क इस जीएम तो�रया (रेपसीड) के प�रव�त�त जी�स का �सार इस �तलहन क� जंगल�
�क�म� तक म� हो गया है।27 2013 म� द��ण को�रया म�, जहा ंइस फसल क� खेती क� अनुम�त नह�ं है, एक सरकार�
सव��ण म� पाया गया �क �मुख बंदरगाह�, �सं�करण कारखान� और पशु �जनन �े�� के आसपास इस तो�रया
(रेपसीड) का संदषूण मौजूद है। 2012, 2013 और 2014 म� ि�वटजरल�ड म� अन�धकृत जीएम तो�रया (रेपसीड) जंगल�
पौध� के �प म� तेजी से फैल रहा है। एनवायरनम�ट साइंस यूरोप म� �का�शत शोधप� म� बताया गया �क जंगल� जीएम
तो�रया (रेपसीड) ि�व�जरल�ड के चार �े�� म� मौजूद था और दो �थान� पर वह खर-पतवार ना�शय� के �योग के बाद
भी जी�वत रहने स�म था। अन�धकृत जीएम सरस� के �वक�सत होने के सा�य ि�वटजरल�ड क� इटल� और �ांस स े
लगी सीमाओं के �नकट, रेलवे लाइन� के �नकट और �तलहन �सं�करण कारखान� तक पाए गए थे।28
कनाडा म� पाया गया है �क सी�मत �ाकृ�तक बीज �सार के बावजूद जीएम सरस� का बड़े पैमाने पर �सार मानवीय
ग�त�व�धय� �वारा हुआ है। वहां के अ�धकांश काब��नक खेती करने वाल े�कसान इस दषूण के कारण अब अपने
�तलहन के �प म� तो�रया (रेपसीड) क� खेती नह� ंकर सकते।
2010 म�, संयु�त रा�य अमे�रका म� वै�ा�नक अनुसंधान म� पता चला �क �ांसजे�नक तो�रया (रेपसीड) जंगल� पादप
के �प म� फैल रहा है। इससे वहां जीएम फसल� क� उ�चत �नगरानी और �नयं�ण क� क�मय� पर �काश पड़ा। उ�र�
डकोटा म� सव��ण के दौरान पाए गए पौध� पर �कए गए पर��ण� से पता चला �क उनम� से कुछ पौधे ऐस ेनए
जीएमओ थे िजनम� मॉनस�टो और बायर �वारा �वक�सत �ांसजीन मौजूद थे िजसके कारण वे �लाइफोसेट तथा
�लूफो�सनेट जैसे खर-पतवार ना�शय� क� ��तरोधक �मता वाले थे। इन पौध� क� मौजूदगी स ेपता चला �क अलग-
अलग जीएम पौध� का �नषेचन होने से एक ऐसी नए गुण� वाल� �जा�त का �वकास हो गया था जो पहले कभी न तो
मौजूद थी, न उस े�वक�सत �कया गया था न और न ह� उसे �कसी �कार क� �वीकृ�त �ा�त थी।29
��टेन म� जीएम फसल� के कृ�ष �े� मू�यांकन म� पाया गया �क एक जीएम तो�रया (रेपसीड) का पर-�नषेचन इसी
कुल के एक खर-पतवार चारलॉक स ेहो गया था। इस बात क� जानकार� तीन वष� के शोध काय��म के दो वष� बाद
�कए गए प�चवत� अ�ययन म� �मल�।30 खरपतवार नाशक ��तरोधक �मता वाले खर-पतवार� क� मौजूदगी �कसान� के
�लए बड़ी सम�या पैदा कर सकती है। ��टेन म� ह� 2008 म� पाया गया �क एक पारंप�रक तो�रया (रेपसीड) म� भी
अन�धकृत जीन प�रव�त�त पदाथ� के अंश पहंुच गए थे।
गैर-जीएम / जै�वक �े�� के जीएम कैनोला संदषूण के च�च�त मामल� म� दो �कसान� कनाडा के पस� �मीसर और
ऑ��े�लया के �ट�व माश� जैसे लोग� के मामल ेह�। पहले मामले म� मोनस�टो ने कनाडा के सु�ीम कोट� म� �मीसर के
�खलाफ पेट�ट उ�लंघन का दावा �कया था। अदालत ने भी मोनस�टो के दावे को मंजूर कर �लया जब�क �मीसर क�
फसल के संद�ूषत होने का कारण जीएम कैनोला पराग कण� का उड़कर पड़ोसी खेत� म� पहंुचना था। ऑ��े�लयाई
जै�वक �कसान �ट�व माश� के मामल ेम� एक पड़ोसी के खेत से हुए जीएम संदषूण के कारण उसक� फसल� जै�वक �ेणी
क� नह� ंरह ग�। इस मामल ेम� जब वह पड़ोसी के �खलाफ अदालत गया तो मामला हार गया �य��क �यायाधीश का
मानना था �क इस ि�थ�त के �लए पड़ोसी को िज�मेदार नह� ंठहराया जा सकता। माश� न ेइस फैसले के �खलाफ उ�च
�यायालय म� अपील क� है।
�द�ल� �व�व�व�यालय के स�टर फॉर जेने�टक मै�नपुलेशन ऑफ �ॉप �लां�स के त�काल�न �नदेशक डा. द�पक प�टल ने
प��का डाउन टु अथ� के संवाददाताओं को �दए एक सा�ा�कार म� जीएम सरस� के कारण इसक� अ�य �जा�तय� के
संदषूण क� संभावनाओं के बारे म� �कए गए ��न पर �वीकार �कया था �क पूव� भारत म� उगाई जाने वाल� �ाकृ�तक
�प से उपल�ध �ै�सका जुन�सआ और �ै�सका रापा तक इस जीएम सरस� के प�रव�त�त जीन पहंुच सकत ेह�। उ�ह�ने
यह भी कहा था �क यह कहना गलत होगा �क ये �ांसजीन गैर-�ांसजे�नक �ेणी के पादप� तक नह�ं जाएंगे। य�द आप
इनके �खलाफ �कसी खरपतवार नाशक या ऐसे �कसी अ�य रसायन का �योग करते ह� तो ये तो वे काफ� तेजी से फैल
सकत ेह� ले�कन इसम� संदेह नह�ं �क जीएम �े�सका जुन�सआ का �नषेचन गैर जीएम जुन�सआ के साथ हो सकता
है।31
ऊपर �दए गए उदाहरण� को एक साथ रख कर देखा जाए तो यह बात असं�द�ध �प से �था�पत होती है �क जीएम
तो�रया (रेपसीड)-सरस� को जै�वक �प से सी�मत रख पाना असंभव होगा और इससे न केवल इस �जा�त क� जंगल�
�क�म� बि�क अ�य गैर-जीएम �क�म� का संदषूण होगा। भौ�तक �प स ेयह अप�म��त होकर अ��या�शत और दरू के
�थान� तक फैलेगा। यह बात अ�छ� तरह से �था�पत हो चुक� है जीएम संदषूण का �सार �यावसायीकरण के कारण
होने वाले �सार से �वतं� होता है32 और पर��ण के नाम पर खुले खेत� म� इसे ले जाए जाने के भी गंभीर खतरे पैदा
होते ह�।
जो बात च�काने वाल� है वह यह �क आईसीएआर ने �ो-ए�ो के जीएम सरस� के मामले म� 75 मीटर क� दरू� तक
संदषूण के खतरे पाने के बावजूद नए जीएम सरस� पर��ण� के �लए अ�य फसल� से अलगाव क� दरू� मा� 50 मीटर
रखने क� सं�तु�त क�। इससे �नयामक� म� िज�मेदार� के पणू� अभाव का पदा�फाश होता है। इस तरह क� गैर-िज�मेदार�
का सीधा सा मतलब है �कसान� और उपभो�ताओं के �लए �वक�प� का समा�त हो जाना िजसके कारण जै�वक सरस�
के उ�पादन पर भी गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा। उ�लेखनीय है �क जीन प�रव�त�त जैवसंरचनाओं (जीएमओ) के बारे म�
दायर एक जन�हत या�चका पर सुनवाई करते हुए भारत के सव��च �यायालय ने �प�ट आदेश �दए ह� �क �नयामक�
को यह सु�नि�चत करना चा�हए �क ऐसी कोई संदषूण न हो सके।
�द�ल� �व�व�व�यालय का जीएम सरस� खरपतवार नाशक� क� ��तरोधी �मता रखने वाला है
भारत म� �व�भ�न सरकार� �वारा �था�पत, संसद और �व�भ�न अदालत� �वारा �नयु�त स�म�तय� / काय� बल� ने बार-
बार देश म� खरपतवार नाशक क� ��तरोधी �मता रखने वाले फसल� के �खलाफ �सफा�रश क� है। इस सलाह म�
खरपतवार नाशक ��तरोधी �मता वाले जीएम फसल� से जुड़े जैव-सुर�ा मु�द� के साथ-साथ कृ�ष ��मक� के
�व�थापन क� तकनीक के �प म� खरपतवार नाशक� के �योग जैसी गंभीर सामािजक-आ�थ�क �चतंाओं को भी शा�मल
�कया गया है। उ�लेखनीय है �क देश म� �यादातर म�हला कृ�ष ��मक� को आजी�वका के �लए फसल� खेत� से खर-
पतवार क� �नराई का काम �मलता है।
�द�ल� �व�व�व�यालय का जीएम सरस� भी, अतीत म� भारतीय �नयामक� �वारा अ�वीकृत �कए गए �ो-ए�ो जीएम
सरस� क� तरह ह� खतपतवार नाशी ��तरोधी जीएम फसल है। वा�तव म� इस बीज के �वकासकता�ओं �वारा �का�शत
�ारं�भक साम�ी स ेलगता है �क इस जीएम फसल के �वकास का मु�य उ�दे�य ह� इसम� खरपतवार नाशक ��तरोधी
गुण� का �वकास करना था।33 आवेदक इसक� उ�च उपज क� �वशेषता क� आड़ म� अनुम�त के �लए आवेदन कर सकते
ह� ले�कन �नयामक न तो इसक� खतपतवार नाशी ��तरोध क� �मता को नजरअंदाज कर सकत ेह�, न ह� उ�ह� ऐसा
करना चा�हए �य��क 2002 म� �ो-ए�ो जीएम सरस� को अनुम�त न �दए जाने क� वजह� म� स ेएक वजह उसक�
खरपतवार नाशी ��तरोधी �मता ह� थी। यह बात भारतीय संदभ� म� �वशेष �प से खतरनाक है �य��क यहां
क�टनाशक� या खरपतवार नाशक रसायन� के अं�तम उपयोग के संबंध म� कोई �व�नयमन अथवा �नयं�क तं� नह�ं है।
हमार� खेती म� खरपतवार नाशक� के उपयोग के साथ-साथ बढ़ रहे �वा��य और पया�वरण जो�खम� के अ�त�र�त
जीएम फसल� के आगमन के साथ ह� खरपतवार नाशक� के उपयोग म� घातीय व�ृ�ध होने के मामल ेद�तावेज� म� दज�
ह�। उदाहरण के �लए पशुओ ंपर �कए गए �योग� से यह �था�पत हुआ है �क �लूफो�सनेट तं��का-तं� और �जनन
�णाल� पर �वषा�त �भाव डालता है; अ�य अ�ययन� म� यह भी बताया गया है �क यह खरपतवार नाशक फसल के
�लए नुकसानदेह क�ड़� को खान ेवाले लाभकार� क�ट� तथा परागण म� मदद करने वाले क�ट� पर भी �वषा�त �भाव
डालता है।34 इस ि�थ�त म�, भारत के �लए इसके गंभीर �न�हताथ� ह�। इसके खतरपतवार नाशक ��तरोधी जीएम फसल
होने के कारण इसके बारे म� �वचार करते हुए इससे जुड़े उन सभी खतर� के बारे म� एह�तयात रखा जाना चा�हए
िजनके बारे म� अ�ययन हो चुके ह� और जानका�रयां उपल�ध ह�। �व�भ�न स�म�तय� �वारा बार-बार द� गई सलाह �क
भारत म� खरपतवार नाशक ��तरोधी जीएम फसल� पर ��तबंध लगा �दया जाना चा�हए के अनु�प ह� इस मामल ेम�
�नण�य �लया जाना चा�हए।
सरस� भारत म� खा�य शाक भी है
सरस� क� प�ी, खासकर उ�र भारत म�, भारतीय �यंजन� म� एक भोजन के �प म� सीधे खाई जाती है। प��यां सलाद
म� इ�तेमाल के साथ-साथ रोट� के साथ खाने के �लए ��स�ध भारतीय पकवान (सरस� दा साग) के �प म� पकाया
जाता है। भारतीय सरस� इस�लए �सफ� एक �तलहन नह�ं है।
बीट� ब�गन के मामल ेम�, उस पर अ�नि�चतकाल�न रोक लगाए जाने के मु�य कारण� म� से एक बात यह थी �क
�वचाराधीन जीएमओ क� खा�य उ�पाद के �प म� सीधी खपत क� जाती है। खा�य उ�पाद के �प म� सरस� का उपयोग
तो ब�गन क� तुलना म� �यादा सीधे तर�के से �कया जाता है।
2010 म�, जब भारत म� बीट� ब�गन के �यावसायीकरण के बारे म� बहस चल रह� थी तब वन एवं पया�वरण मं�ी न े9
फरवर� 2010 को जार� रोक के आदेश म� देश के सबसे ��ति�ठत और सबसे व�र�ठ कृ�ष वै�ा�नक डॉ एमएस
�वामीनाथन का उ�लेख �कया था। उस मसले पर बहस म� डा. �वामीनाथन ने ये चार म�ुदे म�ुय �प से उठाए थे:
भारत म� ब�गन क� �यापक खपत के कारण इससे उ�प�न होने वाल� द�घ�का�लक �वषा�तता; ब�गन के बारे म� उसके
�वकासकता�ओं �वारा उपल�ध कराए गए आंकड़� पर �नभ�र होने क� बजाय �वतं� और �व�वसनीय आंकड़े हा�सल करन े
के �लए पर��ण� का आयोजन; कृ�ष के �े� म� जीएम �ौ�यो�गक� के सभी पहलओुं का अ�ययन करने और मापनीय
�न�कष� पर पहंुचने म� स�म �वतं� �नयामक �णाल� क� ज�रत; तथा भारतीय ब�गन क� आनुवं�शक �वरासत के
संर�ण क� ज�रत।35
यहां इस बात का उ�लेख अ�ासं�गक नह�ं होगा �क ये सभी म�ुदे इस जीएम सरस� के मामल ेम� भी समान �प से
�ासं�गक ह�।
फसल �वकासकता�ओं के �खलाफ बौ��धक स�पदा क� चोर� और EPA उ�लंघन का मामला
�द�ल� �व�व�व�यालय के इस जीएम सरस� और वह�ं �वक�सत क� जा रह� एक दसूर� सरस� के बारे म� भी �ववाद है।
भारत सरकार के �व�ान और �ौ�यो�गक� �वभाग न ेरह�यो�घाटन �कया है �क उसे नह�ं पता �क इस हाई-�ोफाइल
मामल ेम� जीएम �ृंखलाएं कहां से आई ह� और �कसने इस �वषय पर शोध क� अनुम�त �दान क�।36 वा�तव म� एक
अदालत म� �द�ल� �व�व�व�यालय के ह� एक �ोफेसर �ो. पी. पाध�सारधी न ेइस जीएम सरस� के �वकासकता� �ो. द�पक
प�टल पर आरोप लगाया है �क प�टल ने उनक� �लखी मौ�लक साम�ी क� चोर� के अलावा उनक� �योगशाला स ेजीएम
बीज� क� चोर� क� है और �नयामक क� मंजूर� के �बना इस तरह क� 'खतरनाक साम�ी' का उपयोग कर रहे ह�। �ो.
पाध�सारधी के आरोप ह� �क �ो. प�टल न ेएक शोधछा� के.वी.एस.के. �साद को गलत तर�के से �नयुि�त देकर उसके
मा�यम से सीओडी-ए �ांसजे�नक भारतीय सरस� के बीज� क� चोर� करवाई। के.वी.एस.के. �साद इसके पहले जा�मया
�म�लया इ�ला�मया म� �ो. पाध�सारधी का छा� था। या�चकाकता� �ो. पाध�सारधी का दावा है �क उ�त बीज का �वकास
वा�तव म� उ�ह�ने और उनक� ट�म न ेभारत-जापान �व�ान सहका�रता काय��म के अंतग�त �कया था।37
जैवसुर�ा शोध के दसूरे चरण (बीआरएल-II) म� पहंुची जीएम सरस� के मामल ेम� फसल के �वकासकता� के �प म�
आ�धका�रक आवेदक यह� �ो. द�पक प�टल ह�। यह �प�ट नह� ंहै �क भारतीय जीएम �नयामक� ने �ो. प�टल से जुड़ े
�ववाद� और मौ�लक रचना तथा बीज क� चोर� के आरोप� का सं�ान �लया है या नह�ं। यह भी �प�ट नह�ं है �क �या
�नयामक� ने यह सु�नि�चत करने के �लए कोई कदम उठाए ह� �क �वचाराधीन जीएम सरस� के �वकासकता� ह� वा�तव
म� इसके मा�लक या सज�क ह� या नह�ं।
जीएम सरस� के पर��ण भी नह�ं चाहती सरस� उ�पादक रा�य� क� सरकार�
भारत म� �मुख सरस� उगाने वाले रा�य� म� से कुछ ने जीएमओ के ��त एक एह�तयाती रवैया अपनाया है और अपनी
सीमाओं म� ऐसी फसल� के �े� पर��ण के भी �खलाफ ह�। ऐसे रा�य� म� म�य�देश भी शा�मल है जो रा�य क� सीमा
म� कह� ंभी जीएम फसल� के �े� पर��ण को लगातार मना करत ेरहे ह�।38 म�य �देश सरकार का तक� है �क जीएम
फसल� के कारण मनु�य�, पशुओ,ं जैव �व�वधता और पया�वरण पर ��तकूल �भाव न पड़न ेके बारे म� कोई �व�वसनीय
और अका�य सबूत नह�ं ह�।
इस बीच, राज�थान म� बीआरएल -I (जैवसुर�ा शोध का �थम �तर) के तहत जीएम सरस� के पहले वष� के पर��ण�
का आरंभ 2010 म� हुआ ले�कन इसके दसूरे वष� का अंत आत-ेआते 2012 म� रा�य सरकार न ेइन पर��ण� के �लए
�दया गया अनाप�� �माण-प� वापस ले �लया और खेत म� खड़ी फसल� को जलाकर इन पर��ण� को तुरंत समा�त
करने के �दशा-�नद�श जार� �कए। यह �नद�श आने तक िजन तीन खेत� म� फसल लगाई गई थी उनम� से दो म� फसल
क� कटाई हो चुक� थी जब�क तीसरे खेत म� �े� खड़ी फसल को न�ट करने क� िज�मेदार� सरकार ने खुद ल�।
अनाप�� �माण-प� वापस लेने के प� म� कहा गया: �ांसजे�नक फसल� के पर��ण क� अनुम�त देने के �वषय म� बहुत
सार� �चतंाएं �या�त ह� और इनके प� या �वप� म� �कसी तरह का मतै�य नह�ं हो सका है। भारतीय कृ�ष अनुसंधान
प�रषद भी ऐसी ह� बेचैनी से जूझता �तीत होता है। ऐसे म�, सरकार ने इस �वषय पर रा���य आम सहम�त �वक�सत
होने तक �ती�ा करने का �नण�य �लया है। यह भी �नण�य �लया गया है �क इस �ववाद पर आम सहम�त तक पहंुचने
के �लए होने वाले �वचार-�वमश� म� इस मामले के सभी �हतधारक� को शा�मल �कया जाना चा�हए।"
इस घटना�म के बाद, डॉ प�टल न े�धानमं�ी काया�लय और जीईएसी के दरवाज� पर द�तक द�। जीईएसी ने 11 अ�ैल
2012 को अपनी 116वीं बैठक म� इस मामले (एज�डा आइटम 6) पर �वचार-�वमश� �कया और इस �न�कष� पर पहंुचा
�क य�य�प राज�थान सरकार का अनाप�� �माण-प� वापस लेने का फैसला मनमाने ढंग से �लया गया था �य��क
इसम� इन फसल� से �कसी �कार के नुकसान या �दशा-�नद�श� के उ�लंघन के सबूत का िज� नह�ं है और एक बार
अनाप�� �माण-प� �दए जाने के बाद इसे अंत�रम अव�ध म� �बना �कसी वै�ा�नक कारण के वापस नह�ं �लया जाना
चा�हए। इसके बावजूद, स�म�त न ेयह भी दोहराया �क कृ�ष रा�य� का �वषय है और जीएम फसल� के �े� पर��ण क�
अनुम�त देन ेया न देन ेके मामले म� रा�य सरकार के �नण�य का स�मान �कया जाना चा�हए।
इस बीच, ह�रयाणा सरकार न ेअब तक जीएम सरस� पर��ण के �लए कोई भी अनाप�� �माण प� जार� नह�ं �कया।
इसका अथ� हुआ �क िजन तीन रा�य� म� देश के कुल सरस� उ�पादन का 70% से अ�धक उ�पादन होता है व ेइस
फसल के �े� पर��ण भी नह�ं होने देना चाहते और इस जीएम सरस� का पर��ण �मुख सरस� उ�पादक रा�य� म�
नह�ं हुआ है। यहां यह �यान देना मह�वपूण� है �क रा�य सरकार� �वारा जीएम खा�य फसल� क� अ�वीकृ�त का यह
पहलू 2010 म� बीट� ब�गन पर ��तबंध का �नण�य लेने के �लए मह�वपूण� कारक� म� से एक था।39
�द�ल� �व�व�व�यालय के जीएम सरस� क� जैवसुर�ा सूचना पूर� तरह नामौजूद है
�नयामक� के सम� अपने दाव ेम� आवेदक जीएम सरस� क� �यावसा�यक खेती के अनुमोदन के तुरंत बाद क�
���याओं के बारे म� चचा� कर रहे हो सकते ह� ले�कन गंभीर �चतंा का �वषय है �क सव��च �यायालय के आदेश के
बावजूद �नयामक� न ेशोध के इस उ�नत चरण तक पहंुचने के बाद भी इस जीएमओ से संबं�धत जैवसुर�ा जानकार�
साव�ज�नक �प से उपल�ध नह� ंकराई है। एक आरट�आई आवेदन के जवाब म�, �नयामक� न े15 मई 2015 को उ�र
�दया �क 'उ�त �वषय अभी ���याधीन है तथा इसके बारे म� सूचनाएं इस �तर पर उपल�ध नह�ं कराई जा सकतीं।
�वडंबना यह है �क जीईएसी ने 8 अग�त 2007 को हुई अपनी 79वीं बैठक म� एज�डा सं�या 2.0 (2.0) (ए) (2.0) म�
खुद को याद �दलाया था �क सव��च �यायालय न े1 अग�त 2007 को हुई सुनवाई म� जीईएसी को �नद�श �दया था
�क वह पया�वरण एवं वन मं�ालय एवं जैव तकनीक �वभाग क� वेबसाइट पर जैव सुर�ा डेटा उपल�ध कराए।
भारत म� बीट� ब�गन गाथा से �प�ट हो चुका है �क जीएम फसल� के �वकासकता� अपने उ�पाद के बारे म� सुर�ा के
दावे तो करते ह� �कंतु अपने उ�पाद के संबंध म� जैवसुर�ा आंकड़� को लेकर सावधानी और गोपनीयता बरतते ह�। न तो
इन उ�पाद� का �वतं� पर��ण होता है, और न ह� द�घ�का�लक �वषा�ता तथा अ�य मु�द� पर जानकार� हा�सल करन े
के �लए लंबे समय तक पर��ण आयोिजत �कए जाते ह�। भारत सरकार के पया�वरण एवं वन मं�ालय �वारा बीट� ब�गन
पर ��तबंध लगात ेहुए क� गई �ट�पणी, जीएम खा�य फसल� के बारे म� संसद क� �थायी स�म�त क� �रपोट� तथा
सु�ीम कोट� क� तकनीक� �व�
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