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िमािक िमाचार पिका िषय िूची अभिकलनामक एकॉउटिक पर अपावभि पाम बिाइया सहयोगामक अनुसिान हेतु चीन भववभवालय के सा समौतता पादकीय उपादन दता : भसात एवपर अपावभि पाम जैव ऊजा अतरण पर अपावभि पाम टिािट अप क का उघािन शैभणक गभतभवभिया भनयुतया अतरारीय योग भदवस हदी कायटशाला साभहय टति - सुभमानदन प मेरे भलये भहदी का न टवराय का न है। - राजि पु रिोमदास िडन। अिकलनामक एकॉउटिक पर अपािि पाठ्यम मई-जून ि- 2016 िपादक मंडल : डॉ. राज कुमार हसह (पीआईसी, राजिािा) डॉ. अभिलेश कुमार हसह, सहायक ायापक, एसबीएस एव डॉ. राजन ौा, सहायक ायापक, एसबीएस ी भनभतन जैन, कभनठ हहदी अनुवादक अंक - 11 भारतीय ौोगिकी संथान भुवनेवर थत यांगकी भगभयांगकी गवाी ने भारत सरकार के शैगिक नेटवक क वैवक ी( ीयीयानक के तत गानांक म स से म यन 16 को उभरती आवयकताओं के भगभ(कनाक एकाउटक ीर भीावगि ीा का आयोयन गकया। ो. ा िाइतडे, ओगयो टेट यगनवसटी एवं ो. तीन के . सेनिुता, भा.ौ.सं. कानीुर इस के भंतरारीय एवं रारीय संकाय साय के ऱी उीथत थे। इस ीा कु ( म7 गतभागिय ने भाि ग(या। डॉ. रायन, सायक ायाीक, आिारीय गवान गवाी को रारीय गवान भकााी, भारत का साय चुना िया। डॉ. शांत कु ार सा, स ायाीक, गवुत गवान गवाीी को रारीय गवान भकााी, भारत का साय चुना िया। बिाइया
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द्विाद्विक िाचा पद्विका · 2016. 11. 2. · द्विाद्विक िाचा पद्विका द्विष^ िoचm...

Nov 19, 2020

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  • द्विमाद्विक िमाचार पद्विका

    द्विषय िूची

    अभिकलनात्मक एकॉउस्टिक पर अल्पावभि पाठ्यक्रम

    बिाइया ाँ

    सहयोगात्मक अनुसंिान हेतु चीन भवश् वभव्ालय के सा समौतता

    संपादकीय

    उत्पादन दक्षता : भसद्ांत एवं प्र ा पर अल्पावभि पाठ्यक्रम

    जैव ऊजा अंतरण पर अल्पावभि पाठ्यक्रम

    टिािट अप कें द्र का उद् घािन

    शैक्षभणक गभतभवभिया ाँ भनयुस् तया ाँ

    अंतराष्ट्रीय योग भदवस

    हहदी कायटशाला

    साभहत्य टतंि - “ सुभमत्रानंदन पं

    मेरे भलये भहन्दी का प्रश्न टवराज्य का प्रश्न है। - राजर्षि पुरुिोत्तमदास िण्डन।

    अद्विकलनात्मक एकॉउद्वटिक पर अल्पािद्वि पाठ्यक्रम

    मई-जून िषष - 2016

    िंपादक मंडल

    : डॉ. राज कुमार हसह (पीआईसी, राजिािा)

    डॉ. अभिलेश कुमार हसह, सहायक प्राध्यापक, एसबीएस एवं डॉ. राजन ौा, सहायक प्राध्यापक, एसबीएस

    श्री भनभतन जैन, कभनष्ट्ठ हहदी अनुवादक

    अंक - 11

    भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान भवुनेश् वर ्स्थत यागंरिककी भगभयागंरिककी गवद्याीी ने भारत सरकार के शैक्षगिक नेटवकक वै्श् वक ी ( ीयीयानक के त त गानाकं म स से म य न 16 को उभरती आवश्यकताओं के भगभ(कनात् क एकाउ्स्टक ीर भल्ीावगि ीाठ्यक्र

    का आयोयन गकया। प्रो. ात्ता िाइतोंडे, ओग यो स्टेट य गनवर्ससटी एव ं प्रो. तीन के. सेनिुप्ता, भा.प्रौ.सं. कानीुर इस ीाठ्यक्र के भंतराष्ट्रीय एव ंराष्ट्रीय संकाय सास्य के रूी ें उी्स्थत थे। इस ीाठ्यक्र ें कु( म7 प्रगतभागियों ने भाि ग(या।

    डॉ. रायन, स ायक प्राध्याीक, आिारीय गवज्ञान गवद्याीी को राष्ट्रीय गवज्ञान भकाा ी, भारत का सास्य चुना िया।

    डॉ. प्रशातं कु ार सा , स प्राध्याीक, गवदु्यत गवज्ञान गवद्याीी को राष्ट्रीय गवज्ञान भकाा ी, भारत का सास्य चुना िया।

    बिाइयााँ

  • स-स ाचार का 11 वा ाँ भंक प्रस्तुत करते ुए ुझे भगत प्रसन्नता का आभास ो र ा ै। इस भंक ें ने स-य न

    16 के ाौरान संस्थान ें आयोगयत भंतराष्ट्रीय योि गावस और ानव संसािन गवकास ंरिका(य की ुख्य ी ( यीयान

    ीाठ्यक्र से संबगंित खबरों को प्रकागशत गकया ै। यीयान ीाठ्यक्र एक नस ी ( यो राष्ट्रीय एव ंभंतराष्ट्रीय स्तर के

    गवषय गवशेषज्ञों के भनुभवों को साझंा कर नस योयना गन ाि करने ें स ायता करती ै।

    इस भंक ें संस्थान द्वारा खो(े िए स्टाटक भी कें द्र से संबगंित खबरों को प्रकागशत ै। सवकगवगात ै गक स्टाटक भी

    भारत सरकार की एक त्वी िक ी ( ै गयसका उदे्दश्य स्टाटक भी और नये गवचारों के ग(ए एक यब त ीागर्स्थगतकी

    तंरिक का गन ाि करना ै गयससे ाेश का आर्सथक गवकास ो एव ंबड़े ीै ाने ीर रोयिार के भवसर उत्ीन्न ों। संस्थान भी

    इस गाशा ें कायकरत ै और नव उद्य के ग(ए पे्रगरत करता ै ।

    इस भंक ें ने 1 य न 16 को भतंराष्ट्रीय योि गावस के भनुीा(न से संबगंित खबरों को प्रकागशत गकया ै। योि

    िंपादकीय...........

    भहन्दी को ही राजिािा का आसन देना चाभहए। - शचींद्रना बख्शी।

    िहयोगात्मक अनिंुिान हते ुचीन द्विश् िद्वि्ालय के िाथ िमझौता

    भारतीय प्रौद्योगिकी ससं्थान भवुनेश् वर,ओगडशा के खगऩ,, िातुक क एव ं ीााथक भगभयागंरिककी गवद्याीी ने इंयीगनयररि सेटंर ऑफ टेैगरयल्स, नुैफैक्चररि, स्क ( ऑफ टैगरय( सासंस एंड इंयीगनयररि, संघास गययो तोंि गवश् वगवद्या(य के साथ 6 स 16 को स झौता ज्ञाीन ीर स्ताक्षर गकया। य स झौता ज्ञाीन भारत के राष्ट्रीगत के 4- 7 स 16 के चीन ाौरे के ाौरान प्रो. आर.वी.रायकु ार, गनाेशक, भा.प्रौ.सं.भवुनेश्वर एव ंडॉ. र ियु गयया, एसयेटीय , चीन ीप्रो. रयिाउ (ीक के स्ताक्षर से ुआ।

    स झौता ज्ञाीन ीर स्ताक्षर ीेरकि य गनवर्ससटी, गबरयि, चीन ें ाननीय राष्ट्रीगत की उी्स्थगत ें गकया िया गयस ें भन्य भा.प्रौ.संस्थानें/रा.प्रौ.ससं्थानें के प्रगतगनगि, कें द्रीय गवश्वगवद्या(य के कु(ीगत एव ं वस्रिक ंरिका(य, भारत, चीन के गशक्षा एव ं प्रगत्ष्ट् त गशक्षागवाों की उी्स्थगत ें ुआ। य भारत और चीन के गवश् वगवद्या(यों के बीच ोने वा(े 1 स झौता ज्ञाीनों ें से एक ै।

    खगऩ,, िातुक क एव ं ीााथक भगभयागंरिककी, भा.प्रौ.सं भवुनेश्वर और एसयेटीय (ाइट टैल्स एव ं स्म श्रों के ोसकरि एव ं प्रसंस्करि, ीााथों, सिंन कोगशका और बटैरी़,, नैनोीााथक, स क्ष् गवदु्यतयागंरिककी प्रिा(ी ी ेमसक के प्रगतरूीि एव ंभनुकरि एव ंीााथों के ीनुचकक्ररीकरि के बीच स योिात् क प्रयासों के ग(ए गकया िया ै।

    इस स झौता ज्ञाीन ें शोिकताओं सग त संकाय सास्यों, ीोस्ट डॉक्टर( फै(ो, वगरष्ट् भवर स्नातक छारिकों एव ंस्नातक छारिकों का स वन्यन, वैज्ञागनक एव ं शैक्षगिक ीााथों का गवगन य, स योिात् क भनुसिंान कायकक्र , संयुक्त कायकशा(ाए ं एव ं सम े(न का स न्वयन, संयुक्त कायकशा(ाए ं एव ं सम े(न और छारिक इटंनकगशी एव ं उद्य शी(ता की सुगविा प्राान करना शाग ( ै।

    अंक - 11 मई- जून वर्ष - 2016

  • भा.प्रौ.सं. भवुनेश्वर के ानगवकी, सा ागयक गवज्ञान एव ंप्रबंि गवद्याीी द्वारा ानव संसािन गवकास ंरिका(य के यीयान कायकक्र के त त गानाकं म स से 8 य न, 16 तक “उत्ीाान ाक्षता : गसद्ातं एव ं प्रथा” ीर भल्ीावगि ीाठ्यक्र का आयोयन गकया िया। कायकक्र का उद् घाटन एव ंभध्यक्षता प्रो. सुयीत रॉय, संकायाध्यक्ष ीसत श गशक्षाक द्वारा की िस। कायकक्र ें ाेश के प्रगत्ष्ट् त संस्थानों यैसे भा.प्रौ.स.ं कानीुर, भा.प्रौ.स.ं खड़िीरु, भा.प्रौ.स.ं इंाौर, भा.प्रौ.सं. द्रास, भा.प्रौ.स.ं रोीड़, भा.प्रौ.स.ं बॉमब,े भा.प्रौ.सं. रुड़की, एनआसटी, राउरके(ा, कें द्रीय गवश्वगवद्या(य यम , भ(ीिढ़ ुसग( गवश्वगवद्या(य, ैाराबाा गवश्वगवद्या(य, भस गवश्वगवद्या(य, उत्क( गवश्वगवद्या(य, रेवेंशा गवश्वगवद्या(य, िुवा टी गवश्वगवद्या(य सग त भन्य प्रगसद् गवश्वगवद्या(यों के शोिकताओं एव ंसंकाय सास्यों ने भाि ग(या। कायकक्र ें कु( 64 प्रगतभािी थे। प्रो. कग(भप्ीा काग(रायन, आस्रेग(यन नेशन( य गनवर्ससटी एव ं प्रो. गबरेश सा , एक्सासए बी भवुनेश्वर इस भल्ीावगि ीाठ्यक्र के भंतराष्ट्रीय एव ंराष्ट्रीय गवषय गवशेषज्ञ के रूी ें उी्स्थत थे। ीाठ्यक्र की शरुआत करते ुए डॉ. नरेश चदं्र सा ने प्रगतगनगियों एव ंप्रगतभागियों को इस भल्ीावगि ीाठ्यक्र के ुख्य उदे्दश्य ीर प्रकाश डा(ा। उन् ोंने भीने स्वाित भाषि ें भारतीय भथकव्यवस्था के ते़,ी से गवकास ीर प्रकाश डा(ा और आय की ाुगनया को उन्नत औद्योगिकी, उन्नत ाेश के रूी ें संबोगित गकया। इसके साथ ी उन् ोंने क ा गक आने वा(े गानों ें भारतीय भथकव्यवस्था गवगभन्न के्षरिकों ें उत्ीाान क्ष ता को बढ़ाते ुए गवकास के उच्च ीथ को प्राप्त कर सकती ै। इसके भगतगरक्त उन् ोंने उत्ीाान क्ष ता ें सुिार करने के साथ “ गरत गवकास” एव ंक संसािनों के साथ भत्यागिक सा ान एव ंसेवाएं के (क्ष्य को प्राप्त करने ीर यानकारी प्राान की। प्रो. काग(भप्ीा काग(रायन, भगतगथ व्याख्याता ने भारत ें िरीबी क करने के ग(ए उत्ीाान क्ष ता के त्व एव ंयीवन के बे तर स्तर को प्राप्त करने के ग(ए उच्च आर्सथक गवकास की ाेखरेख ीर प्रकाश डा(ा।

    उत्पादन क्षमता : द्विद्ांत एिं प्रथा पर अल्पािद्वि पाठ्यक्रम

    अंक - 11 मई- जून वर्ष - 2016

    मनुष्ट्य सदा अपनी िातृिािा में ही भवचार करता है। - मुकुन्दटवरूप वमा।

    ारे यीवन ें एक त्वी िक भ ग का गनभाता ै। सवकगवगात ै गक 11 गासंबर 14 को संयुक्त राष्ट्र ासभा की बै क ें

    प्रिान ंरिकी के आह्वान ीर 1 य न को भतंराष्ट्रीय योि गावस नाने ेतु प्रस्ताव प्रस्तुत गकया िया था गयसे सवकसम गत से

    स्वीकृगत प्राप्त ुस। योि एक प्राचीन ीद्गत ै गयस ें शरीर, न और आत् ा को एक साथ (ाने का कायक ोता ै। ाैगनक

    यीवन ें योि का भभ्यास गनरंतर स्वस्थ रखता ै और ानगसक तक(ीफों को भी ा र करता ै। ें भीने यीवन ें योि

    का त्व स झना चाग ए और इसे भीनाना चाग ए।

    इस भंक के साग त्य स्तंभ के भिीन ने छायावााी के प्रवतककों ें से एक सुग रिकानंान ींथ की यन् ययतंी ीर उनके छोटे से यीवन वृत्त के साथ उनके प्रगसद् काव्य सगं्र ील्(व की एक कगवता याचना को प्रकागशत कर स्ने ी वकक श्रद्ा ाी ै। ुझे आशा ी न ीं भगीतु ी िक गवश्वास ै गक आी ारी ीगरिकका को ीढ़कर भीनी प्रगतगक्रया भवश्य ाेंिे गयससे गक इसे और ब ेतर बनाने ेतु गनरंतर प्रयास करते र े। - भनभतन जैन

  • अंक - 11 मई- जून वर्ष - 2016

    जिै ऊजाष अंतरण पर अल्पािद्वि पाठ्यक्रम

    भारतीय प्रौद्योगिकी ससं्थान भवुनेश्वर के यागंरिककी गवज्ञान गवद्याीी ें ए एचआरडी द्वारा प्रायोगयत

    यीयान ीाठ्यक्र के भिीन “यैवऊया भंतरि” ीर गानाकं 6-17 य न, 16 तक भल्ीावगि ीाठ्यक्र का आयोयन गकया िया। इस ीाठ्यक्र का ुख्य उदे्दश्य शोिकताओ,ं वैज्ञागनकों, गशक्षागवाों एव ं छारिकों को

    यैवगचगकत्सा भगभयागंरिककी, आयुर्सवज्ञान, औषिीय गवज्ञान, यैव प्रौद्योगिकी एव ंरासायगनक/यागंरिककीय भगभयागंरिककी के के्षरिक ें गशक्षा प्राान करना ै। इसके भगतगरक् त गचगकत्सक और इंयीगनयरों के बीच एक सबंिं स्थागीत कर उनकी ा गरयों को क करना था। इस गवशेष ीाठ्यक्र ें गवगभन्न संस्थानों ीयैसे भा.प्रौ.सं. कानीरु, ए एनएनआसटी इ(ा बाा, यीससी औरंिाबाा, एससीटीसीस, गरिकरुवेंथाीरु , केआसआसटी भवुनेश् वर, सीसटी भवुनेश्वर, वीएसएसय टी बु(ा इत्यागाक से (िभि म5 प्रगतभागियों ने भाि ग(या।

    ाेश एव ंगवाेश के गवगशष्ट्ट प्राध्याीकों ने ीाठ्यक्र से संबंगित गवगभन्न गवषयों ीर गवशेष व्याख्यान प्राान गकया। प्रो. सुनी( कु ार, न्य याकक गवश्वगवद्या(य ीएनवासय क, बु्रकग(न, य एसए यीयान ीाठ्यक्र के भगतगथ व्याख्याता थे। प्रो. ोस्ताफा साोकी ीप्रो. सेंट यॉन गवश्वगवद्या(य, न्य याकक क, डॉ. प्रोबिन फरनदे्र, श्री ींकय रायी त ीएनवासय , बु्रकग(नक ने इस ीाठ्यक्र के उदे्दश्य से संबंगित गवषयों ीर व्याख्यान प्रस्तुत गकया।

    ीाठ्यक्र ें, गचगकत्सा ीगरपे्रक्ष्यों ीर यानकारी प्राान करने के ग(ए भगख( भारतीय आयुर्सवज्ञान संस्थान भवुनेश् वर के प्रो. ीडॉ.क डी.के. ीगरडा एव ं प्रो. ीडॉ.क ए . ंिराय ने कस सर उीचार के ग(ए ानव नोगवज्ञान एव ंगवगकरि ीर पे्ररक व्याख्यान प्रस्तुत गकया। इसके साथ ी, प्रो. सु न चक्रवती ीप्राध्याीक, ए स गवभाि एव ं प्र ुख, आसए एसटीक भा.प्रौ.सं. खड़िीुर, गयन् ें स क्ष् तर( एव ंयैवस क्ष् तर(िगतगक के भनुसिंान गवषयों के गवगभन्न छोरों ें उत्कृष्ट् भनुसिंान कायक के ग(ए प्रगत्ष्ट् त भटनािर प्राप्त ुआ था, ने आिुगनक औषि सुीाकिी एव ंखुराक भनु ान ीर ि रास से प्रकाश डा(ते ुए व्याख्यान प्रस्तुत गकया। इस ीाठ्यक्र के ुख्य स न्वयक, प्रो. एस.के. ाीारिक ने टु्य र के सटीक उीचार ेतु ॉड( के गवकास ीर व्याख्यान प्रस्तुत गकया। कायकक्र के भंत ें इस उदे्दश्य की ी र्सत ेतु स -स न्वयक डॉ. ीी.रथ ने गवगभन्न यैवऊया भंतरि प्रगतरूी एव ंइसके प्रभावी सा ान्य सॉल्वर के गवकास ीर व्याख्यान प्रस्तुत गकया। सफ( आयोयन के साथ कायकक्र का स ाीन 17य न 16 को ुआ।

    भा.प्रौ.सं. भवुनेश्वर ने भीने तोषा(ी भवन ीगरसर ें स्टाटक भी कें द्र की शुरुआत की। गवज्ञान एव ंप्रौद्योगिकी गवभाि और ानव संसािन गवकास ंरिका(य, भारत सरकार ने स्टाटक भी कें द्र की स्थाीना के ग(ए रु. 1.5 करोड़ की स्वीकृगत प्राान की ै। प्रो. आर. वी. रायकु ार, गनाेशक, भा.प्रौ.सं. भवुनेश्वर ने य न 16 को स्टाटक भी कें द्र का उद् घाटन गकया। स्टाटक भी कें द्र ने भीनी स्थाीना के प्रथ वषक ें ी 1 स्टाटक भी के ना ाकंन की कल्ीना की ै। स्टाटक भी कें द्र ना ाकंन करने वा(ों को स्टाटकभी के ग(ए कायक स्थ( के साथ प्रारंगभक रागश के रूी ें रु. .5 (ाख रुीए प्राान करेिा। ब ुत ी यल्ा, स्टाटक भी कें द्र उभरते ुए उद्यग यों तथा ओगडशा राज्य एव ंआस ीास के सक्ष नव स्नातकों को इस सुगविा का (ाभ (ेने के ग(ए आवाेन आ ंगरिकत करेिा।

    टिािष अप कें द्र का उद् घािन

    िारत के भवभिन्न प्रदेशों के बीच भहन्दी प्रचार द्वारा एकता ट ाभपत करने वाले सच्चे िारत बंिु हैं। - अरहवद।

  • अंक - 11 मई- जून वर्ष - 2016

    1. डॉ. भगख(ेश कु ार रस , स ायक प्राध्याीक, आिारीय गवज्ञान गवद्याीी ने भा.प्रौ.सं. िुवा टी ें गानाकं 17- स

    16 को आयोगयत “एससएसटीससी 16 सम े(न” ें “ रसथेगसस एंड कैरेक्टराइयेशन ऑफ ्क्वनो(ाइन-बेस्ड/टेीी एना(ॉि टीएसआसए( एंड ाेभर एक्स्रेक्शन स्टडी़, फॉर (ैँथानाइड्स/ए्क्टनाइड्स ीर ौगखक प्रस्तुगत प्रस्तुत की।

    2. डॉ. श्रीगनवास रा ानुय कन्न, स ायक प्राध्याीक, यागंरिककी गवज्ञान गवद्याीी ने स योिात् क भनुसंिान के ग(ए 1-म य न 16 तक इगंडया इसं्टीट्य ट ऑफ रॉगीक( ग गटयोरॉ(ॉयी को ाौरा गकया।

    3. डॉ. नी(ाद्री गब ारी ीु ान, स ायक प्राध्याीक, गवदु्यत गवज्ञान गवद्याीी ने भा.गव.संस्थान बसि( र ें गानाकं

    11. 6. 16 से 16. 6. 16 के ाौरान आयोगयत “ गसग्न( प्रोसेरसि एंड कमयगनकेशन ीर भतंराष्ट्रीय सम े(न

    ीएसीीसीओए क ें “ ए स्ीासक कॉन्सेप्ट कोडेड स्ीगैशयो-स्ीैक्र( गफचर गरपे्रयेंटेशन फॉर सडगरटैन कैरेक्टर

    गरकॉिगनगयशन” ीर ौगखक प्रस्तुगत की।

    4. डॉ. आर.के.ींडा, प्राध्याीक, आिागरक सरंचना गवद्याीी ने सेन फे्रनगसस्को, य एसे ें गानाकं 9 से 1 य न 16 को आयोगयत एन्वॉयरो ेंट एडं नैचुर( गरसोसेस ीर 18वा ाँ

    भंतराष्ट्रीय सम े(न ें “ एना(ाइगसस ऑफ रेंड एंड

    वगेरएगबग(टी ऑफ रैनफॉ( इन ा ग ड- ानाी गरवर

    बेगसन ऑफ सस्टनक इगंडया” गवषय ीर ीेीर प्रस्तुत गकया।

    5. डॉ. ीी. बरेा, स ायक प्राध्याीक, गवदु्यत गवज्ञान गवद्याीी ने एट(ाटंा, य एस ें गानाकं 1 से 14 य न 16 के ाौरान आयोगयत सुरक्षा ीर 11वा ंआसससस भंतराष्ट्रीय

    कायकशा(ा ें “ए नोव( सैक्य र एंड एगफगसएटं ीॉग(सी नेैय ेंट फे्र वकक फॉर सॉफ्टवयेर गडफाइन्ड नेटवकक ” गवषय ीर व्याख्यान प्रस्तुत गकया।

    6. डॉ. श्या ( चटयी, स ायक प्राध्याीक, आिारीय गवज्ञान गवद्याीी ने ेल् ोल्ट़, येंर , डे्रसडेन, य कनी

    ें गानाकं 11- 7 य न 16 के ाौरान आयोगयत “आयन इरेगडएशन इंडस्युड ॉगडगफकेशन ऑफ वन-डाइ ेंशन(

    नैनो ेटेगरयल्स” ीर स योिात् क भनुसिंान ें भाि ग(या।

    7. डॉ. सुशातं कु ार ीा ी, स ायक ीुरस्तका(याध्यक्ष ने भा.प्रौ.सं. खड़िीरु ें गानाकं 1 . 6. 16 से 19. 6. 16 के ाौरान आयोगयत ऑीेन सोसक सॉफ्टवयेर फॉर (ाइबे्ररी नेैय ेंट ीओएसएसए(ए 16क ीर राष्ट्रीय कायकशा(ा ें स भागिता की।

    शकै्षद्वणक गद्वतद्विद्वियााँ

    1. श्री य ुना प्रसाा ने गानाकं 16. 5. 16 को ससं्थान ें कगनष्ट् भिीक्षक ीा ीर कायकभार ग्र ि गकया। उन् ें कु(सगचव काया(य ें ीास्थागीत गकया िया। 2. श्री सत्यब्रत घोष ने गानाकं 17. 5. 16 को संस्थान ें कगनष्ट् भिीक्षक ीा ीर कायकभार ग्र ि गकया। उन् ें संकायाध्यक्ष का काया(य ें ीास्थागीत गकया िया। 3. डॉ. ानव ो न ाीारिका ने गानाकं 19. 5. 16 को संस्थान के यागंरिककी गवज्ञान गवद्याीी ें स प्राध्याीक ीा ीर कायकभार ग्र ि गकया। 4. प्रो. रबींद्र कु ार ींडा ने गानाकं 1. 6. 16 को संस्थान के आिागरक सरंचना गवद्याीी ें प्राध्याीक ीा ीर कायकभार ग्र ि गकया। 5. श्री भगभयीत ींडा ने गानाकं . 6. 16 को ससं्थान ें छारिक स(ा कार ीा ीर कायकभार ग्र ि गकया। उन् ें छारिक ीरा शक कें द्र ें ीास्थागीत गकया िया। 6. डॉ. भंकुर िुप्ता ने गानाकं 9. 6. 16 को संस्थान ें भभ्याित प्राध्याीक के ीा ीर कायकभार ग्र ि गकया।

    नागरी की वणटमाला है भवशुद् महान, सरल सुन्दर सीिने में सुगम अभत सुिदान। - ग श्रबिुं।

  • अंक - 11 मई- जून वर्ष - 2016

    संस्थान ने छारिकों, संकाय सास्यों एव ंक कचागरयों की स भागिता और ी रे उत्सा के साथ “भंतराष्ट्रीय योि

    गावस” नाया। कायकक्र का प्रथ ाो गान ी19 एव ं य नक प्रस्तावना एव ं भभ्यास सरिक के ग(ए स र्सीत था य ा ाँ प्रगतभागियों को योि, प्रिाय एव ंध्यान के बारे ें यानकारी प्राान करने के साथ भभ्यास कराया िया। गानाकं 1 य न को

    बृ ा योि भभ्यास के साथ छोटे प्राशकन के साथ कायकक्र की शरुआत ुस।

    कायकक्र का आरंभ संस्थान गनाेशक प्रो. आर. वी. राय कु ार द्वारा ाीी प्रज्ज्व(न के साथ ुआ। उन् ोंने योि एव ं

    इसके त्व ीर उी्स्थत स भागियों को सबंोगित गकया। उन् ोंने भीने सबंोिन के ाौरान भीने ाैगनक यीवन ें उनके

    द्वारा ाशकों से गकए या र े योि भभ्यास के बारे ें भीने भनुभव साझंा गकए। तत्ीश्चात उन् ोंने प्रगतभागियों के साथ योि

    भभ्यास गकया। इस गवशेष कायकक्र ें डॉ. ंि(तीथक , गनाेशक, न तन सयंीवनी ससं्थान, ाेवघर को आ ंगरिकत गकया िया

    था। उन् ोंने योि से सबंंगित वैज्ञागनक प्रासगंिक एव ंइसके (ाभ के बारे ें यानकारी प्रस्ततुत की। उन् ोंने योि के (ाभ के

    साथ ाैगनक यीवन ें इसके त्व ीर प्रकाशन डा(ा और बताया गक कैसे योि ारे यीवन ें त्वी िक भ ग का गनभाते

    ुए तनाव को ा र करता ै।

    कायकक्र के भंत ें डीएवी गवद्या(य – य गनट VIII के छारिकों ने (घु योि नृत्य प्रस्तुत गकया और डॉ. भगख(ेश

    कु ार रस , सएए स न्वयक के िन्यवाा ज्ञाीन के साथ कायकक्र संीन्न ुआ।

    अंतराषष्ट्रीय योग द्वदिि

    भहन्दी व्यापकता में अभद्वतीय है। - अस्बबका प्रसाद वाजपेयी।

  • रायभाषा एकक ने संस्थान के क कचागरयों के ग(ए म- 4 य न 16 के ाौरान “सरकारी नीगतयों के कायान्वयन ें र ाी का त्व” गवषय ीर ाो गावसीय कायकशा(ा का आयोयन गकया। कायकशा(ा का आयोयन कंप्य टर प्रयोिशा(ा ए- ब्(ॉक, तोषा(ी भवन ें गकया िया था। कायकशा(ा की भध्यक्षता डॉ. राय कु ार रस , प्राध्याीक प्रभारी, रायभाषा एकक तथा श्री ाेबराय रथ, कायकवा क कु(सगचव ने की।

    इस ाो गावसीय कायकशा(ा का प्रारंभ भगतगथयों के ीुष्ट्ीिुच्छ के स्वाित के साथ ुआ। डॉ. राय कु ार रस , प्राध्याीक प्रभारी ने भीने सबंोिन ें ससं्थान ें रायभाषा नीगतयों के कायान्वयन के ग(ए सभी क कचागरयों को आिे बढ़ने ेतु भीी( की। उन् ोंने भीने संबोिन ें संस्थान ें रायभाषा नीगतयों के कायान्वयन की प्रशंसा करते ुए सभी सास्यों को य यानकारी ाी गक ससं्थान गनाेशक को रायभाषा गवभाि द्वारा निर रायभाषा कायान्वयन सग गत भवुनेश्वर का भध्यक्ष चुना िया ै। ें भीने ससं्था ें रायभाषा की िगतगवगियों के ाध्य से निरीय स्तर ीर एक ािक तैयार करना ै।

    कायकवा क कु(सगचव श्री ाेबराय रथ ने सभी प्रगतभागियों को संबोगित करते ुए रायभाषा नीगतयों के कायान्वयन ीर योर गाया और क ा गक ें गनरंतर भीने ाैगनक का कायों ें र ाी के प्रिा ी प्रयोि को बढ़ाना ै।

    कायकशा(ा के ाौरान श्री गनगतन यैन ने प्रगतभागियों के बीच रायभाषा नीगत एवं ारी भ ग का के साथ र ाी टंकि, र ाी ीरिकाचार से संबंगित गवषयों ीर यानकारी प्राान की और आशा व्यक्त की इन प्रयोिों से गनरंतर रायभाषा नीगत का कायान्वयन बढ़ाएिें।

    द्वहंदी कायषशाला

    अंक - 11 मई- जून वर्ष - 2016

    जातीय िाव हमारी अपनी िािा की ओर ौुकता है। - शारदाचरण भमत्र।

    िाद्वहत्य मंच

    बीसवीं साी का ी वाद्क छायावााी कगवयों का उत्थान का( था। उसी स य भल् ोड़ा गनवासी सुग रिकानंान ींत उस नये युि के प्रवतकक के रूी ें ग न्ाी साग त्य ें भगभग त ुये। इस युि को ययशंकर प्रसाा, ााेवी व ा, स यककातं गरिकीा ी 'गनरा(ा' और रा कु ार व ा यैसे छायावााी प्रकृगत उीासक-सौन्ायक ी यक कगवयों का युि क ा याता ै। सुग रिकानंान ीतं का प्रकृगत गचरिकि इन सब ें श्रषे्ट् था। उनका यन् ी बर्फक से आच्छागात ीवकतों की भत्यंत आकषकक घाटी भल् ोड़ा ें ुआ था, गयसका प्राकृगतक सौन्ायक उनकी आत् ा ें आत् सात ो चुका था। झरना, बफक , ीुष्ट्ी, (ता, भवंरा िंुयन, उषा गकरि,

    शीत( ीवन, तारों की चनुरी ओढे़ ििन से उतरती सधं्या ये सब तो स य रूी से काव्य का उीााान बने। गनसिक के उीााानों का प्रतीक व गबमब के रूी ें प्रयोि उनके काव्य की गवशेषता र ी। उनका व्य्क्तत्व भी आकषकि का कें द्र रबाु था। िौर विक, सुंार सौमय ुखाकृगत, (ंबे घंुघरा(े बा(, उंची नायुक कगव का प्रतीक स ा शारीगरक सौष्ट् व। सुग रिकानंान ींत का उनका यन् भल् ोड़ा ग़,(े के कौसानी ना क ग्रा ें स , 19 को ुआ। यन् के छ घंटे बाा ी उनकी ा ाँ को क्र र ृत्यु ने छीन ग(या। उन् ें उनकी ाााी ने ीा(ा ीोसा। गशशु का ना रखा िया िुसास ात्त। व ेसात भास ब नों ें सबसे छोटे थे। इनकी प्रारंगभक गशक्षा-ाीक्षा भल् ोड़ा ें ुस। सन् 1918 ें व ेभीने ाँझ(े भास के साथ काशी आ िए और क्वींस कॉ(ेय ें ीढ़ने (िे। व ा ाँ से गैरक उत्तीिक करने के बाा व ेइ(ा ाबाा च(े िए। उन् ें भीना ना ीसंा न ीं था, इसग(ए

  • उन् ोंने भीना ना रख ग(या - सुग रिकानंान ीतं। य ा ाँ मयोर कॉ(ेय ें उन् ोंने इंटर ें प्रवशे ग(या। ात् ा िािंी के आह्वान ीर भि(े वषक उन् ोंने कॉ(ेय छोड़ गाया और घर ीर ी ग न्ाी, संस्कृत, बाँि(ा और भंगे्रयी का भध्ययन करने (िे। सुग रिकानंान सात वषक की उम्र ें, यब व ेचौथी कक्षा ें ीढ़ र े थे, कगवता ग(खने (ि िए थे। सन् 19 9 से 1918 के का( को स्वयं कगव ने भीने कगव-यीवन का प्रथ चरि ाना ै। इस का( की कगवताएाँ वीिा ें संकग(त स। सन् 19 ें उच्छवास और 19 8 ें ील्(व का प्रकाशन ुआ। सुग रिकानंान ीतं की कुछ भन्य काव्य कृगतया ाँ स - गं्रगथ, िंुयन, ग्रामया, युंिात, स्विक-गकरि, स्विकि ग(, क(ा और ब ढ़ा चा ाँा, (ोकायतन, गनाेबरा, सत्यका आगा। उनके यीवनका( ें उनकी २८ ीुस्तकें प्रकागशत ुस,ं गयन ें कगवताए,ं ीद्य-नाटक और गनबिं शाग ( स। श्री सुग रिकानंान ींत भीने गवस्तृत वाङ य ें एक गवचारक, ााशकगनक और ानवतावााी के रूी ें सा ने आते स रकतु उनकी सबसे क(ात् क कगवताएं 'ील्(व' ें संकग(त स, यो 1918 से 19 5 तक ग(खी िस यो म कगवताओं का संग्र ै। उनका रचा ुआ संी िक साग त्य 'सत्य गशव संुार ' के संी िक आाशों से प्रभागवत ोते ुए भी स य के साथ गनरंतर बा(ता र ा ै। य ा ंप्रारंगभक कगवताओं ें प्रकृगत और सौंायक के र िीय गचरिक ग (ते स व ीं ा सरे चरि की कगवताओं ें छायावाा की स क्ष् कल्ीनाओं व को ( भावनाओं के और भंगत चरि की कगवताओं ें प्रिगतवाा और गवचारशी(ता के। उनकी सबसे बाा की कगवताएं भररवा ाशकन और ानव कल्याि की भावनाओं से ओतप्रोत स। र ाी साग त्य की इस भनवरत सेवा के ग(ए उन् ें ीद्मभ षिी1961क, ज्ञानीी ी1968क तथा सोगवयत (सड ने रू ीुरस्कार यैसे उच्च श्रेिी के सम ानों से भ(ंकृत गकया िया। सुग रिकानंान ींत के ना ीर कौशानी ें उनके ीुराने घर को गयस ें व ेबचीन ें र ा करते थे, सुग रिकानंान ीतं वीगथका के ना से एक सगं्र ा(य के रूी ें ीगरवर्सतत कर गाया िया ै। इस ें उनके व्य्क्तित प्रयोि की वस्तुओं यैसे कीड़ों, कगवताओं की ( ीाडुंग(गीयों, छायागचरिकों, ीरिकों और ीुरस्कारों को प्रार्सशत गकया िया ै। इस ें एक ीुस्तका(य भी ै, गयस ें उनकी व्य्क्तित तथा उनसे संबगंित ीुस्तकों का संग्र ै। उनका ाे ातं 1977 ें ुआ। आिी शताब्ाी से भी भगिक (ंबे उनके रचनाक क ें आिुगनक र ाी कगवता का ी रा एक युि स ाया ुआ ै। उनकी यन् ययंती ीर प्रस्तुत ै उनकी प्रगसद् कगवता सगं्र ील्(व की एक कगवता “याचना” -

    अंक - 11 मई- जून वर्ष - 2016

    राजिािा एकक द्वारा ई-माध्यम से प्रकाभशत हहदी ई- समाचार पभत्रका

    “याचना” बना िुर ेरा यीवन!

    नव नव सु नों से चुन चुन कर ि ग(, सुरगभ, िुरस, ग -कि,

    ेरे उर की ृाु-कग(का ें भराे, कराे गवकगसत न।

    बना िुर ेरा भाषि! बंशी-से ी कर ाे ेरे

    सर( प्राि औ’ सरस वचन, यैसा यैसा ुझको छेड़ें बो( ाँ भगिक िुर, ो न;

    यो भकिक-भग को भी स सा कराे न्रिक- ुग्ि, नत-फन, रो रो के गछद्रों से ा! फ टे तेरा राि ि न,

    बना िुर ेरा तन, न! रचना -